मैं सूचना के अधिकार को बढ़ावा देने के लिये क्या कर सकती/सकता हूँ (What can I do to Encourage RTI)


सूचना का अधिकार अधिनियम सूचनाओं तक पहुँचने का एक कानूनी ढाँचा स्थापित करता है। लेकिन सुशासन के एक उपकरण के रूप में इसकी व्यावहारिक सफलता की कुंजी आपके हाथों में है। नागरिकों का यह बुनियादी दायित्व है कि इस अधिनियम का उपयोग कर यह सुनिश्चित करें कि देश भर में सभी लोक प्राधिकरण एक सुदृढ़ एवं नागरिकों के पक्षधर होकर सूचना प्राप्त कराने वाले ढाँचे को स्थापित कर रहे हैं। आपकी मदद से सूचना का अधिकार एक शक्तिशाली और जीवंत अधिकार बन सकता है।

सूचनाओं के लिये निवेदन करना


सूचना का अधिकार अधिनियम भ्रष्टाचार को मिटाने और सरकार की सेवा प्रदाता व्यवस्था को सुधारने में कामयाब हो, यह सुनिश्चित करने के लिये नागरिकों को अधिक से अधिक संख्या में इस कानून का उपयोग कर सरकार से सूचना माँगना होगा। यह सरकार को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाने का सबसे विश्वस्त तरीका है।

सरकार में व्यापपक भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन को उजागर करने, सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं का उपयुक्त कार्यान्वयन सुनिश्चित करने, सरकार से जवाबदेही की मांग करने और सबसे बढ़ कर देश में नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन की प्रक्रिया में भागीदारी की मांग करने के लिये व्यक्तियों और नागरिक समाज के समूहों ने सूचना का अधिकार अधिनियम को पहले ही इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।

सरकार की निगरानी करना


आप जो सूचना चाहते हैं उसके लिये आवेदन करना और उसे हासिल करना केवल पहला कदम भर है। उतनी ही महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने द्वारा हासिल की गई सूचना का क्या करते हैं। उदाहरण के लिये, अगर आप द्वारा हासिल सूचना दुर्व्यवहार, भ्रष्टाचार या कुप्रशासन उजागर करती है, तो आपके लिये जरूरी है कि आप मामले को उच्चाधिकारियों तक ले जाएँ – भले ही वह मानवाधिकार आयोग हो, पुलिस अदालतें या भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी ही क्यों न हो – और सुनिश्चित करें कि वह मामला सार्वजनिक जानकारी का विषय बन जाए। हकीकत में तो स्वयं सूचना का अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन पर इसी तरह निगरानी करने की जरूरत है। आप इस बात का आकलन कर सकते हैं कि क्या लोक प्राधिकरणों में अधिकारी कानून की पालना करने का प्रयास कर रहे हैं और क्या सरकार सूचनाओं को प्रकाशित करने, लोक सूचना अधिकारियों को मनोनीत करने, और समय पर सूचनाओं तक पहुँच प्रदान करने के अपने दायित्वों को पूरा कर रहे हैं और इस तरह आप इसके कार्यान्वयन की निगरानी कर सकते हैं। अपने निष्कर्षों के आधार पर आप सरकार के साथ इसके कार्यान्वयन के प्रयासों में सुधार करने के लिये पैरवी कर सकते हैं और दबाव बना सकते हैं।

 

अधिनियम का उपयोगःसूचना का अधिकार कार्यकर्ता ने किया सरकार में भ्रष्टाचार को उजागर78

 

जनवरी 2004 से मध्य प्रदेश सरकार पाँच जिलों में अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा वित्तपोषित इंडस बाल श्रम परियोजना चला रही है। इंडस परियोजना का उद्देश्य बाल श्रमिकों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना है। यह एक पंजीकृत सोसाइटी द्वारा राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना (एनसीएलपी) के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही है जिसे राज्य सरकार के जरिए अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन से पैसा मिलता है। जिला आयुक्त राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना का अध्यक्ष और जिला श्रम अधिकारी इसका सचिव है। इसके अलावा परियोजना के कार्यान्वयन पर निगाह रखने के लिये पाँच परियोजना निदेशकों की नियुक्ति की गई है। परियोजना में बड़ा पैसा दाव पर लगा है – अकेले कटनी जिले में इंडस परियोजना को लागू करने के लिये 31,80,750 रु. की राशि आवंटित की गई है।

 

अपनी शुरूआत से ही यह परियोजना भ्रष्टाचार की अफवाहों में घिरी रही है। दिसम्बर 2005 में कटनी के एक सूचना अधिकार कार्यकर्ता ने इंडस परियोजना के लोक सूचना अधिकारी के पास एक आवेदन दायर कर पूछाःकटनी में परियोजना के अन्तर्गत चलाए जा रहे शिक्षण केन्द्रों के लिये खरीदी गई प्राथमिक चिकित्सा किटों की संख्या; किट किस दर पर खरीदी गई; किट में मौजूद चीजों की सूची; और परियोजना द्वारा स्वैच्छिक रूप से सार्वजनिक की गई सूचनाओं की एक प्रति भी मांगी।

 

लोक सूचना अधिकारी ने जवाब दिया कि 3,500 रू. प्रति किट की दर पर 40 प्राथमिक चिकित्सा किटें खरीदी गईं। निवेदक ने इसी तरह की किट बनाने वाली कम्पनियों के स्थानीय वितरकों से चल रहे बाजार भाव के बारे में पता किया और पाया कि उनकी कीमत 760 और सर्वाधिक 970 रू. थी। निवेदक को लगा कि परियोजना ने सबसे ऊँचे बाजार भाव से भी बहुत ज्यादा मूल्य पर किट खरीदी गई हैं। कार्यान्वयन एजेंसी ने 3,500 रू, प्रति किट की दर से 40 किट खरीदने में 1,40,000 रू. खर्च किए थे। अगर एजेंसी ने खुले बाजार से सबसे ज्यादा ऊँचे दामों यानी 970 रू. प्रति किट पर भी किट खरीदी होतीं, तो भी केवल 38,800 रू. खर्च हुए होते।

 

कार्यकर्ता ने किटों की जाँच करने के लिये दस शिक्षण केन्द्रों का दौरा भी किया और पाया कि किसी भी किट पर निर्माता कम्पनी का चिन्ह नहीं बना था। तीन केन्द्रों में, किट खाली पाई गईं और अन्य केन्द्रों में सात किटों के भीतर की सामग्री दिए गए गुणवत्ता विवरणों के मुकाबले घटिया थी। यह घोटाला स्थानीय समाचार पत्रों में उछाला गया और इस मामले के बारे में सारे सबूतों के साथ एक शिकायत अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन को भी भेजी गई। संगठन ने कटनी जिलाधिकारी से इस मामले की छानबीन करने की गुजारिश की। जाँच प्रक्रिया सम्पन्न होने पर किटों को सप्लाई करने वाली कम्पनी से 80,000 रु. वसूला गया। अब श्रम संगठन इन कार्यकर्ताओं के साथ पूरी योजना की समीक्षा करने पर विचार कर रही है।

 

दूसरों को शिक्षित करना और सलाह देना


आज समूचे देश में बहुत ही कम लोगों को मालूम है कि नागरिकों का सशक्तिकरण करने वाला एक ऐसा कानून लागू हो चुका है और उन्हें सुलभ है। जनता में सूचना का अधिकार अधिनियम के बारे में जागरूकता और शिक्षा का प्रसार करना केन्द्र व राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, लेकिन उनके प्रयास धीमे रहे हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम का संदेश देश में दूर-दूर तक और अनेकों भाषाओं तथा माध्यमों के साथ पहुँचे, यह सुनिश्चित करना भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है। अगर आपने सूचना का अधिकार अधिनियम का इस्तेमाल किया है, तो भले ही आपका प्रयास सफल रहा हो या असफल, अखबार में लेख लिख कर, या इंटरनेट पर एक केस स्टडी प्रकाशित कर या इस बारे में अपने मित्रों और सहकर्मियों से बात कर अपने अनुभव को सार्वजनिक बनाएँ। आप लोगों को सूचना के आवेदन लिखने और जमा करने का तरीका सिखा कर उन्हें सूचना के लिये ऐसे ही निवेदन भेजने में मदद दे सकते हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम को इस्तेमाल करने का आपका अनुभव अन्यों के लिये प्रेरणा का स्रोत हो सकता है और इस अनुभव को दूसरों के साथ बांटना बहुत जरूरी है क्योंकि इसी तरह सूचना का अधिकार अधनियम लोगों के दिलो-दिमाग में गहरी जड़ें जमाएगा।

 

देखो! क्या हो रहा है मुम्बई की जेलों में79

 

महाराष्ट्र में मीडिया में नियमित रूप से खबरें आती रहती थीं कि मुम्बई की आर्थर जेल के कैदियों को जबरन पैसा वसूलने और गैर-कानूनी तथा खतरनाक गतिविधियों को चलाने के लिये मोबाइल फोनों का इस्तेमाल करने दिया जाता है। अक्टूबर 2001 में जेल महानिरीक्षक ने जेल में मोबाइल फोनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिये 6,01,736 रू. की लागत से जैमर मशीन लगाने का प्रस्ताव रखा। अगले चार वर्षों तक इस प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और मोबाइलों का इस्तेमाल जारी रहा।

 

20 दिसम्बर 2005 को शैलेश गाँधी ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन के जरिए पूछा कि इस मामले में कार्रवाई के कागजात किस-किस अधिकारी के पास गए और क्या प्रगति हुई। उनके आवेदन के छह दिनों बाद ही 26 दिसम्बर 2005 को पुलिस महानिरीक्षक को जैमरों का आदेश देने के लिये कहा गया। 10 जनवरी 2006 को यानी शैलेश गाँधी के शुरुआती निवेदन के बाद एक महीने से भी कम समय में अंततः 7 लाख रू. की लागत से जेल में जैमर लगा दिए गए।

 

जो सरकार चार साल में नहीं कर सकी या उसने करना नहीं चाहा, उसी को सूचना का अधिकार अधिनियम ने चंद दिनों में कर दिखाया। अधिनियम के जरिए सरकार की निगरानी करना और उसके खराब कार्य-प्रदर्शन को उजागर करना नौकरशाही द्वारा कहे गए शब्दों को आधिकाधिक कार्रवाई में बदलने में बहुत प्रभावी हो सकता है।

 

इंडियन एक्सप्रेस ने किया रोजगार गारंटी योजना घोटाले का पर्दाफाश80

 

महाराष्ट्र के थाने जिले में राज्य के कुछ सबसे गरीब और पिछड़े तालुके स्थित हैं। जवाहर और मोखादा तालुकों में 75 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीते हैं। महाराष्ट्र रोजगार गांरटी योजना ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों को लाभकारी रोजगार प्रदान करने के लक्ष्य से विकसित की गई थी। हाल ही में इस योजना के कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में जानने के लिये सूचना का अधिकार अधिनियम का उपयोग किया गया और यह बात सामने आई कि व्यवस्था में भ्रष्टाचार की भरमार है।

 

इंडियन एक्सप्रेस ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत थाने जिले के लोक निर्माण विभाग से मस्टर रोल की प्रतियों के लिये आवेदन किया। इंडियन एक्सप्रेस की विशेष दिलचस्पी जिले में बोपदारी-चंदोशी एप्रोच रोड़ के निर्माण में किए गए कामों के मस्टर रोल में थी। यह सड़क महाराष्ट्र रोजगार गारंटी योजना के तहत इसलिये बनाई गई थी कि यह इलाके के सबसे गरीब गाँवों के लिये एक जीवन रेखा का काम करे। मस्टर रोल से पता लगा कि बोपदारी गाँव के एक ग्रामीण गंगा घटाल को 11 दिनों तक सड़क खोदने के लिये 961 रू. दिए गए थे। इसे मस्टर रोल पर उसके अँगूठे के निशान से प्रमाणित भी किया गया था। मस्टर रोल लेकर समाचार पत्र बोपदारी गया तो उसे पता लगा कि गंगा घटाल तो 2004 में ही आत्महत्या कर चुका और न उसे, न ही उसके परिवार को कोई पैसा मिला था। गंगा घटाल उन अनेकों मृतकों में से महज एक था जिसे रोजगार गारंटी योजना के तहत पैसे लेते हुए दिखाया गया था। मस्टर रोल में ऐसी अनेकों फर्जी नाम थे, बल्कि कुछ सरकारी अधिकारियों तक को योजना के हितग्राहियों के रूप में दिखाया गया था। इन सबूतों को देख राज्य के रोजगार गारंटी योजना मंत्री को मामले की जाँच करने के लिये मजबूर होना पड़ा।

 

सूचना का अधिकार आंदोलन में शामिल होना


देश भर में अनेकों कार्यकर्ता और नागरिक समाज के समूह सूचना के अधिकार को बढ़ावा देने के लिये काम कर रहे हैं। ये समूह सक्रिय रूप से ऐसे तरीके तलाश रहे हैं जिनसे इस अधिकार को भारत भर में महिलाओं, पुरुषों, और सीमांत समुदायों की पहुँच के दायरे में लाया जा सके। उन्हें उल्लेखनीय नतीजे हासिल हो रहे हैं। सफलताओं की अद्भुत कहानियाँ सामने आ रही हैं। इसके अलावा बहुत से ऑनलाइन चर्चा मंच था तथा स्थानीय समूह भी हैं जो सूचना का अधिकार अधिनियम के उपयोग और कार्यान्वयन की निकटता से निगरानी करने में संलग्न हैं। आप इन समूहों और/या सूचना के अधिकार पर अपने राज्य में काम कर रहे किसी संगठन के सदस्य बनने की बात सोच सकते हैं। बल्कि आप स्वयं अपना चर्चा समूह भी स्थापित कर सकते हैं (सूचना के अधिकार पर काम कर रहे कुछ समूहों के विवरणों के लिये देखें परिशिष्ट 5)।

 

सूचना अधिकार कार्यान्वयन अभियान में शामिल होना

 

पहले हासिल की जा चुकी उपलब्धियों को सुदृढ़ करने और सरकार पर सूचना का अधिकार अधिनियम को सही तरीके से कार्यान्वित करने के लिये दबाव बनाए रखने के लिये देश भर में बहुत से समूह एक-दूसरे से जुड़ कर काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय जन सूचना अधिकार अभियान (एनसीपीआरआई) की स्थापना 1996 में राष्ट्रीय स्तर पर सूचना के अधिकार पर पैरवी कर्म करने के मुख्य उद्देश्य से की गई थी। अभियान ने सूचना का अधिकार अधिनियम पारित करने के लिये दबाव बनाया और अब यह अधिनियम के कार्यान्वयन में सुधार करने पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहा है। इसके अलावा, अनेकों ऑनलाइन चर्चा समूह हैं जहाँ देश भर के कार्यकर्ता चर्चा और अपने अनुभवों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, देश भर में सूचना अधिकार समर्थकों ने ‘हम जानेंगे’ नाम से एक वैब आधारित चर्चा समूह स्थापित किया है जो अनुभवों का आदान-प्रदान करने, समस्याओं पर चर्चा करने और कानून तथा इसके कार्यान्वयन में मौजूद कमियों को दूर करने के लिये रणनीतियाँ बनाने और सूचना के अधिकार को आगे बढ़ाने के लिये समन्वय करने के मंच का काम करता है। इसी तरह, कर्नाटक में अधिकार के पैरोकारों ने ‘क्रिया कट्टे’ नाम से डिस्कशन बोर्ड स्थापित किया है। ये ऑनलाइन मंच एक संगठित अभियान चलाने के लिये विभिन्न पृष्ठभूमियों और स्थानों के लोगों को साथ लाने का एक बहुत उपयोगी तरीका साबित हुए हैं।

 

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