163 मीटर उद्वहन कर खेतों तक पहुँचेगा नर्मदा का पानी

7 Feb 2017
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Narmada canal
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मध्य प्रदेश की इन्दिरा सागर सिंचाई परियोजना की नहरों से खंडवा खरगोन और बड़वानी जिले में कुल मिलाकर 1 लाख 23 हजार हेक्टेयर कमांड क्षेत्र सिंचित हो सकेगा। इनमें से कुछ इन्दिरा सागर परियोजना के कमांड से ऊँचे क्षेत्रों पर स्थित है और यहाँ के किसानों को अपनी फसलों के लिये नर्मदा का पानी नहीं मिल पा रहा था। इसे देखते हुए गोगांवा भगवानपुरा और खरगोन क्षेत्र के किसानों को लाभ देने के लिये इस योजना का विस्तार किया गया है और अब यहाँ पानी उद्वहन करके पहुँचाया जाएगा। मध्य प्रदेश का निमाड़ इलाका कभी सूखी और ऊसर जमीन के कारण पहचाना जाता था। पर अब धीरे-धीरे यहाँ की पहचान बदलती जा रही है। यहाँ की काली मिट्टी फसलों के लिये बहुत उर्वरा है। लेकिन पानी की कमी के चलते यहाँ के मेहनतकश किसानों की हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी उन्हें अपनी जमीन से अपेक्षित फायदा नहीं हो पाता था। अब इस इलाके से निकली नर्मदा के पानी की नहरों ने इस इलाके को काफी हद तक खेती के मायने में हरा-भरा कर दिया है।

हालांकि अब तक इलाके में इन्दिरा गाँधी वृहद सिंचाई परियोजना का लाभ कुछ ही किसानों को कुछ सीमित क्षेत्र में ही मिल पा रहा था। इस क्षेत्र को और अधिक विस्तारित करने की दृष्टि से अब राज्य सरकार बिस्टान उद्वहन सिंचाई परियोजना लागू करने जा रही है। 374.63 करोड़ की लागत वाली इस योजना में 163 मीटर तक नर्मदा के पानी को उद्वहन कर गोगांवा, भगवानपुरा और खरगोन तहसील में स्थित खेतों तक पहुँचाया जाएगा।

गौरतलब है कि पहाड़ी के चढ़ाई क्षेत्र में होने से इलाके में नर्मदा की नहरें होने के बाद भी यहाँ का बड़ा हिस्सा छूट रहा था। इसे सिंचित करने के लिये अब यह काम हो रहा है। इससे इलाके के 105 गाँवों के करीब 65 हजार लोगों को पीने का पानी भी मिल सकेगा और 22 हजार हेक्टेयर खेती सिंचित होगी। योजना अभी शुरू ही हुई है पर अभी से इसकी विसंगतियों को लेकर भी सवाल उठाना शुरू हो गए हैं। विपक्षी कांग्रेस नेता भी इसे लेकर अपने तर्क रख रहे हैं।

इस योजना में नर्मदा नदी पर बने इन्दिरा सागर परियोजना की मुख्य नहर से 8 क्यूमेक्स पानी तीन अलग-अलग चरणों में करीब 163 मीटर उद्वहन कर माइक्रो सिंचाई सुविधा दिलाई जाएगी। इसके लिये तीन जगहों पर पानी ऊपर चढ़ाने के लिये पम्पिंग स्टेशन भी बनाए जा रहे हैं। खरगोन जिले के मोहम्मदपुर के पास इस परियोजना की मुख्य नहर के आर डी 101 किमी पर जेकवेल बनेगा और इससे 8 क्यूमेक्स पम्पों से किया जाएगा।

यह उद्वहन किया हुआ पानी यहाँ से 8 किलोमीटर लम्बी राइजिंग मेन के जरिए चढ़ता हुआ देवलगाव बूस्टर पम्प पहुँचेगा। यहाँ से फिर इसे आगे 8 किलोमीटर लम्बी राइजिंग मेन से मेहरघट्टी के पास वितरण चैम्बर तक छोड़ा जाएगा। इस चैम्बर से 14 हजार 680 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित होगा।

इसी तरह वितरण केन्द्र क्रमांक 1 से 6 किलोमीटर लम्बी राइजिंग मेन के जरिए 2,304 घनमीटर पानी चैम्बर क्रमांक 2 में छोड़ा जाएगा और इससे भी 7 हजार 320 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित होगा। इसमें राइजिंग मेन की कुल लम्बाई 22 किलोमीटर तथा पाइपलाइन की लम्बाई डेढ़ सौ किलोमीटर होगी, जिसकी प्रत्येक ढाई हेक्टेयर चक्र तक भूमिगत पाइपलाइनों से किसानों को 20 मीटर प्रेशर हेड पर ड्रिप या स्प्रिंकलर चलाने के लिये पानी उपलब्ध हो सकेगा।

गौरतलब है कि निमाड़ का इलाका खेती के लिये उर्वरा भूमि के लिये पहचाना जाता है। इस उर्वरा भूमि में कपास, तुअर, मिर्ची, गेहूँ, केला, पपीता, गन्ना और सब्जियों जैसी फसलों के उत्पादन बड़ी तादाद में होते हैं। यह काली मिट्टी से भरा उपजाऊ क्षेत्र होने के बावजूद अब तक सिंचाई संसाधनों की कमी से जूझ रहा था। यहाँ पानी नहीं होने की वजह से किसान खून पसीना एक करने के बाद भी अब तक सम्पन्न नहीं हो सका था।

अपेक्षित कृषि उत्पादन नहीं होने की वजह से आजादी के 70 सालों बाद भी यह इलाका अपेक्षाकृत पिछड़ा हुआ ही है। यह भी विडम्बना ही है कि इस इलाके से प्रदेश की सबसे बड़ी नर्मदा नदी बहती है, लेकिन नर्मदा से कुछ दूरी पर यह इलाका अब तक नर्मदा के पानी से अछूता ही रहा है। इसे पहली बार नर्मदा के पानी से जोड़ा जा रहा है। यहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से नर्मदा का पानी कभी भी घाट ऊपर यानी गोगांवा, भगवानपुर और खरगोन तहसील के गाँवों तक नहीं पहुँच पाया था।

मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी विकास विभाग राज्य मंत्री लालसिंह आर्य कहते हैं– 'बाँध सिंचाई परियोजनाओं की कार्य योजनाएँ वर्ष 1972 में बनाई गई थी। लेकिन इनमें से कई महत्त्वपूर्ण सिचाई परियोजनाएँ निर्माण के बाद भी सिंचाई देने लायक स्थिति में नहीं थी। निमाड़ अंचल की सबसे महत्त्वपूर्ण इन्दिरा सागर और ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजनाओं की नहरों के निर्माण का काम बीते सालों में तेज गति से हुआ है। कई सालों तक नहरों का निर्माण नहीं होने से अब तक इस क्षेत्र में खेतों को पानी नहीं मिल पा रहा था। नर्मदा घाटी में खासकर निमाड़ अंचल में महत्त्वाकांक्षी इन्दिरा सागर परियोजना से खरगोन जिले के 69 हजार हेक्टेयर तथा बड़वानी जिले का 36 हजार हेक्टेयर रकबा सिंचित होगा। खंडवा जिले का 19 हजार हेक्टेयर रकबा भी इस परियोजना से सिंचित होगा।'

वे बताते हैं कि इसी तरह नर्मदा घाटी की ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना खरगोन जिले के 73 हजार और खंडवा जिले के 2 हजार खेती को सिंचित करेगी। पुनासा उद्वहन सिंचाई योजना भी खंडवा जिले के 35 हजार हेक्टेयर खेती को सिंचित करेगी। वहीं खरगोन जिले के अपरवेदा परियोजना से भी 10 हजार हेक्टेयर और कठोरा उद्वहन सिंचाई योजना से 7 हजार हेक्टेयर रकबा नर्मदा के पानी से सिंचाई की कमांड क्षेत्र में होगा। दूरस्थ बड़वानी जिले में नर्मदा की सहायक नदी लोअरगोई पर भी परियोजना बाँध बनकर तैयार हो चुका है। जल्दी ही इस परियोजना से भी बड़वानी जिले के आदिवासी अंचल के 13 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन को पानी मिल सकेगा।

बिस्टान उद्वहन योजना 374.63 करोड़ की लागत से 30 महीने में बन कर पूरी होगी। इसमें जल उद्वहन के लिये 10 मेगावाट बिजली की जरूरत की आपूर्ति के लिये 140.47 करोड़ में 15 मेगावाट क्षमता का सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जाएगा।

मध्य प्रदेश की इन्दिरा सागर सिंचाई परियोजना की नहरों से खंडवा खरगोन और बड़वानी जिले में कुल मिलाकर 1 लाख 23 हजार हेक्टेयर कमांड क्षेत्र सिंचित हो सकेगा। इनमें से कुछ इन्दिरा सागर परियोजना के कमांड से ऊँचे क्षेत्रों पर स्थित है और यहाँ के किसानों को अपनी फसलों के लिये नर्मदा का पानी नहीं मिल पा रहा था। इसे देखते हुए गोगांवा भगवानपुरा और खरगोन क्षेत्र के किसानों को लाभ देने के लिये इस योजना का विस्तार किया गया है और अब यहाँ पानी उद्वहन करके पहुँचाया जाएगा। इन तीनों तहसीलों के 92 गाँवों की 22 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि की प्यास अब नर्मदा के पानी से बुझ सकेगी।

नर्मदा नहरयोजना में खरगोन तहसील के 8 गाँवों की 1900, गोगांवा तहसील के 47 गाँवों की 11 हजार 300 हेक्टेयर तथा भगवानपुरा तहसील के 37 गाँवों का 8 हजार 800 रकबा सिंचित हो सकेगा। इसी के साथ इन गाँवों के 12 हजार 305 परिवारों के 61 हजार 525 से ज्यादा ग्रामीण आबादी को सिंचाई के साथ ही पीने का पानी भी मिल सकेगा।

मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी विकास विभाग राज्य मंत्री लालसिंह आर्य दोहराते हैं कि इस उद्वहन सिंचाई योजना से नर्मदा घाटी की सिंचाई परियोजनाओं में विस्तार होगा। भौगोलिक स्थितियों के कारण निमाड़ की बड़ी सिंचाई परियोजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे किसानों को इसके जरिए पानी दिया जाना सम्भव होगा। नर्मदा घाटी के कोने-कोने तक हम नर्मदा का जल पहुँचाने के लिये कृतसंकल्पित हैं।

उधर भगवानपुरा से कांग्रेस विधायक विजय सिंह सोलंकी इससे खासे नाराज हैं। आरोप लगाते वे कहते हैं– 'योजना में कई बड़ी विसंगतियाँ हैं। इन पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। यही स्थिति रही तो यह उद्वहन योजना अगले 10 सालों तक इलाके के लोगों को पानी नहीं दे सकेगी। विधानसभा के पटल पर जो जानकारियाँ दी गई है, उनमें तथा महालेखा परीक्षक केग की रिपोर्ट में भी अन्तर है।'

उन्होंने दस्तावेज दिखाते हुए आरोप लगाया कि कुछ अधिकारी निजी ठेकेदारों और विभागीय अधिकारियों को लाभ पहुँचाने के लिये इस योजना का पलीता लगा रहे हैं। वर्ष 2011 से शुरु हुई यह योजना 30 जून 2016 को पूरी हो जानी थी। महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है। लेकिन अब जनवरी 17 में शुरू हो रही है। विधानसभा की जानकारी के मुताबिक इन्दिरा सागर परियोजना का 81 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है और 30 जून 2017 को योजना मूर्त रूप लेगी लेकिन यह बड़ी विसंगति है।

इसी प्रकार निर्धारित निर्माण एजेंसी को करीब 90 फीसदी काम का भुगतान किया जा चुका है। साथ ही लगभग 53 करोड़ रुपए का अर्थदण्ड भी लगाया गया है। सोलंकी यह भी दावा करते हैं कि क्षेत्र में बीते 8 सालों में सरकार की राजस्व वसूली मात्र 63 लाख रुपए ही हो पाई है। इससे साबित होता है कि नहरों के पानी से इस इलाके के किसानों को कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ है।

विधानसभा से ली गई जानकारी बताती है कि इन्दिरा सागर परियोजना के प्रथम और द्वितीय चरण में 44 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचित होगी जबकि महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट बताती है कि 62 हजार हेक्टेयर सिंचाई प्रस्तावित है।

अब बड़ा सवाल यही है कि सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी इन सबका फायदा निमाड़ के किसानों को मिल भी सकेगा या नहीं। दूसरा बड़ा सवाल नर्मदा के पानी का भी है, मध्य प्रदेश में इसके पानी के दोहन को लेकर बड़ी-बड़ी परियोजनाएँ तो बना ली गई हैं पर अत्यधिक दोहन कहीं उसके नदी तंत्र के साथ अन्याय तो नहीं होगा। हमें हर कीमत पर नदी और उसके तंत्र को बचाए रखना होगा।

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