2015-16 जल क्रान्ति वर्ष (Jal Kranti Varsha 2015-16)


केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय वर्ष 2015-16 को देश भर में ‘जल क्रान्ति वर्ष’ के रूप में मना रहा है, तीसरे भारत जल सप्ताह के समापन समारोह में केन्द्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती ने बताया कि इस कार्यक्रम का आयोजन देश के प्रत्येक जिले में किया जाएगा और जल को बचाने तथा संरक्षित करने के सभी प्रयास किये जाएँगे। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि इस महान अभियान में सभी राज्य सरकारें उनके साथ हैं। जल संरक्षण को एक वास्तविक जन आन्दोलन बनाने की प्रधानमंत्री की अपील का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्यों को इस ध्येय के लिये संयुक्त रूप से प्रयास करना चाहिए।

वर्ष 2015-16 के दौरान देश में जल संरक्षण एवं प्रबन्धन को सुदृढ़ बनाने के लिये सभी पणधारियों को शामिल करते हुए एक व्यापक एवं एकीकृत दृष्टिकोण से ‘जल क्रान्ति अभियान’ का आयोजन किया गया।

तीव्रता से बढ़ती जनसंख्या तथा तेजी से विकास कर रहे राष्ट्र की बढ़ती हुई आवश्यकताओं के साथ जलवायु परिवर्तन के सम्भावित प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए जल की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता प्रतिवर्ष कम होती जा रही है और यदि समय रहते इस समस्या का उचित समाधान नहीं किया गया तो जल की तेजी से बढ़ती हुई माँग के कारण विभिन्न प्रयोक्ता समूहों तथा सह बेसिन राज्यों के बीच जल विवाद होने की सम्भावना है, देश में एक समग्र एवं एकीकृत दृष्टिकोण अपनाते हुए जल संरक्षण, जल उपयोग दक्षता तथा जल उपयोग प्रबन्धन के क्रियाकलापों को बढ़ावा देने और सुदृढ़ बनाए जाने की अविलम्ब आवश्यकता है।

उपर्युक्त और ऐसे ही कई जल सम्बन्धी विषयों पर जन-जागरुकता का सृजन किया जाना महत्त्वपूर्ण है। अन्य शब्दों में, पूरे देश में ‘जल क्रांति अभियान’ चलाने की आवश्यकता है। संक्षेप में इस अभियान की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

1. जल सुरक्षा और विकास योजनाओं (उदाहरण के लिये सहभागिता सिंचाई प्रबन्धन) में पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों सहित सभी पणधारियों की जमीनी स्तर पर भागीदारी को सुदृढ़ बनाना।

2. जल संसाधन के संरक्षण एवं प्रबन्धन में परम्परागत जानकारी का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहन देना।

3. सरकार, गैर सरकारी संगठनों, नागरिकों आदि में विभिन्न स्तरों से क्षेत्र स्तरीय विशेषज्ञता का उपयोग करना और ग्रामीण क्षेत्रों में जल सुरक्षा के माध्यम से आजीविका सुरक्षा में संवर्धन करना।

इस अभियान के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिये अपनाई जाने वाली प्रमुख कार्यनीतियाँ निम्नानुसार होंगी:

क. जल सुरक्षा बढ़ाने के लिये स्थानीय/क्षेत्रीय विशिष्ट नवाचारी उपाय विकसित करने के लिये परम्परागत ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना;

ख. परम्परागत जानकारी और जल संरक्षण एवं उपयोग के लिये स्रोतों को पुनर्जीवित करना;

ग. सतही और भूजल के संयुक्त उपयोग को प्रोत्साहित करना;

घ. वर्षाजल के कुशल एवं सतत उपयोग के लिये उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना। पुरानी एवं नई भूजल स्कीमें, जल संचयन संरचनाों के निर्माण के माध्यम से जल संरक्षण के लिये अतिरिक्त सुविधाएँ सृजित करना;

ङ. पुनर्भरण के लिये वर्षाजल संचयन को घरेलू, व्यावसायिक तथा औद्योगिक परिसरों के लिये अनिवार्य बनाना;

च. जल गुणवत्ता के निर्दिष्ट मानदण्डों को बनाए रखने के लिये हस्तक्षेप करना;

छ. जल संसाधन विकास एवं प्रबन्धन के लिये विभिन्न विभागों के प्रयासों में समन्वय करना;

ज. विभिन्न प्रयोजनों, विशेष तौर पर उद्योग, कृषि एवं घरेलू प्रयोजन के लिये जल की माँग को पूरा करने के लिये तथा जल प्रयोग दक्षता को बढ़ावा देने के लिये जल के सामाजिक विनियमन को प्रोत्साहित करना;

झ. जुड़ाव उत्तरदायित्व एवं जिम्मेदार भागीदारी की भावना लाने के लिये जल सम्बन्धी स्कीमें तथा परियोजनाओं में तथा उसके प्रचालन व रख-रखाव में ग्रामीण स्तर पर हिस्सेदारी को औपचारिक रूप देना;

ट. जल सम्बन्धी मुद्दों के समाधान के लिये तथा जल सुरक्षा की नूतन पद्धतियाँ विकसित करने के लिये पीआरआई को प्रोत्साहन देने/सम्मानित करने हेतु प्रावधान;

ठ. सभी पणधारियों के साथ सकारात्मक रूप से जुड़ने के लिये जल क्रान्ति अभियान हेतु एक शुभंकर (लोगो) का इस्तेमाल किया जाएगा।

जल ग्राम योजना


इस क्रियाकलाप के अन्तर्गत देश के 672 जिलों में से प्रत्येक जिले में पणधारियों की प्रभावी भागीदारी से कम-से-कम एक जल अभाव ग्रस्त गाँव में जल का इष्टतम एवं सतत प्रावधान सुनिश्चित करने के लिये जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा स्कीमें शुरू की जानी हैं।

1. प्रत्येक जिले में जल की अत्यधिक कमी वाले एक गाँव को ‘‘जल ग्राम’’ का नाम दिया जाएगा।
2. जल ग्राम का चयन जल ग्राम अभियान के कार्यान्वयन के लिये गठित जिलास्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा।
3. प्रत्येक गाँव को एक इंडेक्स वैल्यू (जल की माँग और उपलब्धता के बीच अन्तर के आधार पर) दी जाएगी और सबसे अधिक इंडेक्स वैल्यू वाले गाँव को जल क्रान्ति अभियान कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
4. स्थानीय जल पेशेवरों को जल सम्बन्धी मुद्दों के सम्बन्ध में जन-जागरुकता सृजित करने के लिये तथा सामान्य जल आपूर्ति सम्बन्धित समस्याओं के निराकरण के लिये, उपयुक्त प्रशिक्षण देकर उनका एक संवर्ग (अर्थात जल मित्र) बनाया जाएगा।
5. सम्बद्ध महिला पंचायत सदस्यों को जल मित्र बनने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
6. प्रत्येक जल ग्राम के लिये सुजलम कार्ड (शुभंकर लोगो: ‘जल बचत जल निर्माण’) के रूप में जाना जाने वाला एक जल स्वास्थ्य कार्ड तैयार किया जाएगा जो गाँव के लिये उपलब्ध पेयजल स्रोतों की गुणवत्ता के सम्बन्ध में वार्षिक सूचना देगा।
7. प्रत्येक जल ग्राम के लिये ब्लॉक स्तरीय समितियों द्वारा गाँव में जल के स्रोत, मात्रा एवं गुणवत्ता सम्बन्धी उपलब्ध आँकड़ों और अनुमानित आवश्यकताओं के आधार पर एक व्यापक एकीकृत विकास योजना बनाई जाएगी। समिति एक सतत पद्धति से इष्टतम मात्रा एवं गुणवत्ता के साथ जल उपलब्ध कराने के लिये एक एकीकृत विकास योजना बनाएगी।

8. इस योजना में गाँव में जल के वर्तमान स्रोतों, वर्तमान में मात्रा एवं गुणवत्ता के सन्दर्भ में जल की उपलब्धता, आवश्यकता एवं उपलब्धता के बीच अन्तर और इस स्थिति में सुधार लाने के लिये राज्य सरकार/केन्द्र सरकार की विभिन्न स्कीमों के अन्तर्गत शुरू किये जाने वाले सम्भावित कार्यों के सम्बन्ध में सूचना शामिल होगी।

9. स्थानी पणधारियों, विशेष रूप से किसानों और जल प्रयोक्ता संघों को उनके सामने आ रही समस्याओं के सम्भावित समाधानों के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा। योजना बनाते समय स्थानीय प्रतिनिधियों के सुझाव पर यथोचित रूप से विचार किया जाएगा।

पणधारियों द्वारा कार्य के प्रचालन एवं अनुरक्षण हेतु प्रावधान भी इस योजना का एक अभिन्न अंग होगा। एक बार जिलास्तरीय समिति द्वारा अनुमोदित किये जाने के बाद यह योजना सम्बन्धित लाइन विभागों द्वारा अलग-अलग स्कीमें तैयार करने का आधार बनेगी।
10. कृषि, पेयजल एवं स्वच्छता शहरी विकास ग्रामीण विकास नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा आदि मंत्रालयों के प्रतिनिधियों को भी जिला एवं ब्लॉक स्तर चयन एवं आयोजना के लिये जोड़ा जाएगा।

11. जल ग्राम के सम्बन्ध में एकीकृत विकास योजना, राज्य जल संसाधन विभाग द्वारा कार्यान्वित की जाएगी और इसके लिये निधि, नियोजित स्कीमों जैसे जल निकायों की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनरुद्धार, एकीकृत वाटरशेड प्रबन्धन स्कीम जैसी मौजूदा योजना स्कीमों, प्रस्तावित प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अन्तर्गत स्कीमों और मनरेगा के लिये उपलब्ध निधि में से उपलब्ध कराई जाएगी।

योजना के अन्तर्गत प्रस्तावित क्रियाकलाप


1. वर्तमान और बन्द हो चुके जल निकायों (जलाशय, टैंक आदि) और इनके कमान में इनकी वितरण प्रणाली की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनरुद्धार।
2. वर्षाजल संचयन और भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण।
3. अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण।
4. किसानों की सक्रिय भागीदारी के लिये जन-जागरुकता कार्यक्रम।
5. जल के कुशल उपयोग के लिये सूक्ष्म सिंचाई।
6. जल जमाव वाले क्षेत्रों की पुनर्बहाली के लिये बायो-ड्रेनेज।
7. समुदाय आधारित जल निगरानी।
8. नई तकनीकों और प्रौद्योगिकी का प्रयोग।
9. प्रदूषण उपशमन सतही और भूजल।
10. जल प्रयोक्ता संघों और पंचायती राज संस्थाओं का क्षमता निर्माण।
11. एकीकृत जल सुरक्षा योजना के अन्तर्गत इसमें किये गए कार्यों और इन कार्यों के परिणामों का मूल्यांकन जिलास्तरीय समिति द्वारा नामित जिला स्तर पर एक समिति द्वारा किया जाएगा। जल क्रांति अभियान में शामिल प्रत्येक जल ग्राम के निष्पादन का मूल्यांकन उचित प्लेटफार्म जैसे कि भारत जल सप्ताह में किया जाएगा और इस मंच पर इसके सम्बन्ध में जानकारी भी दी जाएगी।
12. लाइन विभाग ब्लॉक स्तरीय समिति के साथ परामर्श से उनके सम्बन्धित क्षेत्र में स्कीमें तैयार करेंगे। इन स्कीमों के पूरा होने के सम्बन्ध में मूल्यांकन जिलास्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा। तत्पश्चात लाइन विभाग आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करेगा। सम्बन्धित मूल्यांकन अभिकरण को प्राथमिकता के आधार पर आवश्यक अनुमोदन देने के लिये सुग्राही बनाने हेतु प्रयास किये जाएँगेे। आवश्यक अनुमोदन प्राप्त होने के बाद ‘वित्तपोषण प्रबन्ध’ भाग में दिये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्यान्वयन के लिये निधि का प्रबन्ध किया जाएगा।
13. यह कार्य सम्बन्धित लाइन विभाग द्वारा प्राथमिकता आधार पर कार्यान्वित किया जाएगा। कार्य के कार्यान्वयन की प्रगति की निगरानी ब्लॉक स्तरीय समिति द्वारा साप्ताहिक आधार पर की जाएगी। इसकी निगरानी मासिक आधार पर जिला स्तरीय समिति द्वारा और तिमाही आधार पर राज्य स्तरीय समिति द्वारा भी की जाएगी।
14. कार्य पूरा होने पर जिलास्तरीय समिति द्वारा कार्य का निष्पादन व मूल्यांकन किया जाएगा। कार्यक्रम शुरू होने के दौरान एकत्रित आधारभूत सूचना के सन्दर्भ में गाँव में जल की समस्या की स्थिति की समीक्षा की जाएगी। आवश्यकता होने पर सुधारात्मक व न्यूनतम-परिवर्तन सम्बन्धित कार्य किये जाएँगेे।
15. कार्यों की प्रकृति के आधार पर कार्य पूरा होने के बाद इनका प्रचालन एवं अनुरक्षण जल प्रयोक्ता संघों/पंचायती राज संस्थाओं को सौंपने के लिये आवश्यक प्रबन्ध किये जाएँगेे।

मॉडल कमान क्षेत्र की पहचान और क्षेत्र का विकास


इस योजना के अन्तर्गत सर्वप्रथम मॉडल कमान क्षेत्र की पहचान की जाएगी। इसमें इन क्रिया कलापों का समावेश होगा।

1. एक राज्य में लगभग 1000 हेक्टेयर का मॉडल कमान क्षेत्र के लिये निर्धारित राज्य देश के विभिन्न भागों का प्रतिनिधित्व करेंगे अर्थात उत्तर प्रदेश, हरियाणा (उत्तर), कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु (दक्षिण), राजस्थान, गुजरात (पश्चिम), ओडिशा (पूर्व), मेघालय (उत्तर-पूर्व) इत्यादि।
2. मॉडल कमान क्षेत्र का चयन राज्य की एक वर्तमान/चालू सिंचाई परियोजना से किया जाएगा जहाँ विभिन्न स्कीमों से विकास के लिये निधि उपलब्ध हो।
3. मॉडल कमान क्षेत्र का चयन जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा राज्य सरकार के साथ परामर्श से किया जाएगा।
4. जल संरक्षण।
5. नहर के ऊपर एवं तटों पर वाष्पीकरण कम करने के लिये सौर ऊर्जा पैनलों का संस्थापन और जहाँ कहीं उपयोगी हो, वहाँ किसानों के उपयोग हेतु सौर ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि।
6. मात्रात्मक मापन एवं बाराबन्दी को प्रोत्साहन देते हुए समुदाय आधारित जल उपयोग निगरानी।
7. सिंचाई के लिये प्राथमिक रूप से शोधित जल का उपयोग।
8. जहाँ कहीं उपयोगी हो वहाँ सूक्ष्म सिंचाई, टपक व छिड़काव सिंचाई और पाइप सिंचाई को प्रोत्साहन देना।
9. वाटरशेड प्रबन्धन और भूजल का उपभोगी उपयोग।
10. भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण।
11. सहभागिता सिंचाई प्रबन्धन और जल प्रयोक्ता संघों द्वारा जल शुल्क एकत्रित करने के लिये प्रोत्साहन देना।
12. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की अनुमति से कोई अन्य क्रियाकलाप।

प्रदूषण नियंत्रण


इस दिशा में जल संरक्षण, उसके कृत्रिम पुनर्भरण, भूजल प्रदूषण नियंत्रण और भारत की अति दोहित इकाइयों, जहाँ जल की उपलब्धता अत्यन्त कम है और जलस्तर में गिरावट आ रही है, वहाँ पणधारियों को वर्षाजल का उपयोग करके जल संरक्षण एवं कृत्रिम पुनर्भरण, उनके उपयोग, प्रभाव और तकनीकों के सम्बन्ध में जागरुक बनाने और उनके बीच सूचना का प्रसार करने के लिये 126 प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से जल संरक्षण को प्रोत्साहित किया जाएगा।

1. इस कार्यक्रम के तहत ध्यान केन्द्रित किये जाने वाले राज्यों में आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों के जलग्रस्त जिले और दमन एवं दीव तथा पुडुचेरी संघ शासित राज्य क्षेत्र शामिल होंगे।
2. राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में अति दोहित इकाइयों के वितरण के अनुसार प्रशिक्षण कार्यक्रमों की संख्या निर्धारित की जाएगी।
3. प्रशिक्षण ब्लॉक/जिला स्तर पर आयोजित किया जाएगा और इसके लिये स्थल राज्य सरकारों के साथ परामर्श से चिन्हित किये जाएँगेे।
4. प्रशिक्षण के लिये रिसोर्स पर्सन केन्द्रीय भूजल बोर्ड/राज्य सरकारों के सम्बन्धित क्षेत्रीय कार्यालयों के अधिकारी होंगे। जिनके क्षेत्राधिकार में क्षेत्र आता है और उनके साथ-साथ राज्य सरकार के अधिकारी भी होंगे।
5. विशेषज्ञ दल समस्याओं की गम्भीरता, वर्तमान सुविधाओं और ग्रामीणों की बातों से अपने आप को परिचित करने के लिये चिन्हित स्थल का दौरा करेंगे। यह दल जल संरक्षण और व्यक्तिगत स्तर पर जल संचयन तकनीकों के उपयोग के लिये परम्परागत स्रोतों को पुनर्जीवित करने हेतु क्षेत्र विशिष्ट परम्परागत जानकारी के साथ आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करेगा।
6. प्रशिक्षण का वित्त पोषण त्रिस्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों (इस वर्ष 350 प्रस्तावित) के अन्तर्गत आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई (आरजीआई) से किया जाएगा।

भूजल प्रदूषण नियंत्रण


1. भारत में फ्लोराइड और आर्सेनिक भूजल के दो प्रमुख सन्दूषक हैं। जिनमें से 138 कार्यक्रम फ्लोराइड प्रभावित जिलों (कुल प्रभावित जिले-276) में से 138 जिलों में अर्थात प्रत्येक में एक-एक कार्यक्रम और आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों के लिये 86 कार्यक्रम 86 आर्सेनिक प्रभावित जिलों (कुल प्रभावित जिले-86) में अर्थात प्रत्येक में एक-एक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
2. यह कार्यक्रम प्रदूषण, स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव और विभिन्न नियंत्रण विकल्पों के सम्बन्ध में जागरुकता सृजित करने के लिये प्रगतिशील किसानों सहित राज्य सरकार के अधिकारियों, पंचायत के प्रतिनिधियों, जनमत को प्रभावित करने वाले, युवाओं तथा नेहरू युवा केन्द्र के सदस्यों, गैर-सरकारी संगठनों और पणधारियों को लक्षित करते हुए ब्लॉक/तहसील/तालुका मुख्यालय पर आयोजित किया जाएगा। इन कार्यक्रमों में क्षेत्र में पाये जाने वाले अन्य भूजल सन्दूषकों के मुद्दे और इनके सुधारात्मक उपायों सहित सम्भावित समाधानों को भी शामिल किया जाएगा।

3. प्रशिक्षण के लिये रिसोर्स पर्सन केन्द्रीय भूजल बोर्ड/राज्य सरकारों के सम्बन्धित क्षेत्रीय कार्यालयों के अधिकारी होंगे जिनके क्षेत्राधिकार में क्षेत्र आता है और उनके साथ-साथ राज्य जलापूर्ति, स्वास्थ्य एवं सिंचाई विभाग के अधिकारी और शैक्षणिक संस्थाओं के प्रतिनिधि भी होंगे। यह दल आधुनिक तकनीकों और क्षेत्र विशेष परम्परागत जानकारी तथा जलशोधन तकनीकों के सम्बन्ध में सूचना का प्रसार करेगा। यदि क्षेत्र में जल के वैकल्पिक स्रोत की सम्भावना हो तो उस पर भी विचार किया जाएगा। सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं को प्रेरित किया जाएगा।

4. प्रशिक्षण का वित्त पोषण प्रशिक्षण कार्यक्रमों (इस वर्ष 350 प्रस्तावित) के अन्तर्गत आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई (आरजीआई) से किया जाएगा।

चयनित क्षेत्रों में आर्सेनिक मुक्त कुओं के निर्माण और राज्य जल आपूर्ति अभिकरणों के अधिकारियों तथा अन्य पणधारियों, खासकर जल उपयोगकर्ता संघ (WUAs) और किसानों की क्षमता निर्माण के लिये विशेष कार्यक्रम चलाए जाएँगेे इसमें निम्नलिखित क्रियाकलाप सम्मिलित किये जाने का प्रस्ताव है-

आर्सेनिक सन्दूषण भूमि जल गुणवत्ता की बहुत बड़ी समस्या है। गंगा के मैदानी क्षेत्रों के एक बहुत बड़े भाग में प्रभावित क्षेत्र फैले हुए हैं। समस्या के समाधान हेतु निम्नलिखित गतिविधियाँ की जाती हैं:

1. केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा चार प्रभावित राज्यों नामतः उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल के पाँच जिलों के सात ब्लाकों में डीप ट्यूबवेल के निर्माण किया जाना होता है। गाँवों में जल के वितरण सम्बन्धी कार्यक्रम में राज्य सरकार साझेदार होगी। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पेयजल उद्देश्यों हेतु गहरे जलभृतों से आर्सेनिक मुक्त भूजल उपलब्ध कराना है।
2. केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड पश्चिम बंगाल और असम के प्रत्येक राज्यों में एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम (दो दिवसीय) का आयोजन किया जाना है।
3. क्षमता निर्माण कार्यक्रम के लिये रिसोर्स पर्सन के. भू. बो. के सम्बन्धित क्षेत्रीय कार्यालयों, राज्य विभागों के अधिकारियों और अकादमी के प्रतिनधियों से होंगे।
4. कुओं के निर्माण के वित्तपोषण भूजल प्रबन्ध और विनियमन स्कीम से किया जाएगा। चार क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के व्यय का प्रबन्ध आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई (आरजीआई) के बजट से किया जाएगा।
5. गंगा नदी के दोनों किनारों को शामिल करते हुए, जहाँ उपयुक्त भू-आकृतिक इकाइयाँ उपलब्ध हैं और जल भू-विज्ञानी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं, कानपुर, उन्नाव जिलों के भागों मेें आने वाले जलभृतों में भूजल संसाधन के संवर्धन हेतु कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के सम्बन्ध में एक प्रायोगिक परियोजना को निष्पादित किया जाना।
6. परियोजना को राज्य सरकार के विभागों के परामर्श से उत्तरी क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा निष्पादित किया जाएगा। केन्द्रीय भूजल बोर्ड के दल स्कीम को शुरू करने के लिये विशेष क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करने और पहचानने के लिये अभिज्ञात स्थल का दौरा करेंगे।

जन जागरुकता कार्यक्रम


‘सूचना, शिक्षा और संचार’ योजना जो कि वर्तमान में चल रही है के तहत समाज के प्रत्येक क्षेत्र की समस्या को दूर करने और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये खासतौर पर जागरुकता अभियान तैयार किये गए हैं। निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

i. लोगोें को जोड़ने के लिये फेसबुक, ट्विटर आदि जसी सोशल मीडिया उपयोग।
ii. रेडियो और टेलीविजन पर आम लोगों के लिये जागरुकता कार्यक्रम।
iii. जल क्रान्ति अभियान के सम्बन्ध में जागरुकता फैलाने हेतु प्रिन्ट मीडिया (बुकलेट पोस्टर और पम्फ्लेट) का उपयोग।
iv. निबन्ध, चित्रकला और अन्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से बच्चों तथा वयस्कों के लिये जागरुकता कार्यक्रम।
v. अन्तरराष्ट्रीय जल प्रयोक्ता विनिमय कार्यक्रम।
vi. नीति योजनाकारों, जनमत बनाने वालों और उद्योग को लक्ष्य बनाते हुए खास गतिविधियाँ और,
vii महत्त्वपूर्ण जल विकास और प्रबन्धन मुद्दों के सम्बन्ध में सम्मेलनों, कार्यशालाओं का आयोजन।

वर्ष 2015-16 के दौरान नियोजित गतिविधियों की निर्देशक सूची


i. आम जनता के लिये जल क्रान्ति अभियान के लिये वेबसाइट तैयार करना और रख-रखाव करना तथा कार्यान्वयन अभिकरणों की गतिविधियों की निगरानी करना।
ii. जल क्रान्ति अभियान का फेसबुक पेज और ट्विटर अकाउंट बनाना तथा इसकी लगातार अपडेटिंग करना।
iii. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण के सभी आधिकारिक वेबसाइटों में जल क्रान्ति अभियान वेबसाइट का लिंक बनाना और राज्य जल संसाधन विभागों जैसे अन्य सम्बन्धित कार्यालयों को भी लिंक जोड़ने हेतु अनुरोध करना।

iv. जल क्रान्ति अभियान के लिये हिन्दी/अंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं में भी बुकलेटों, पोस्टरों और पम्फ्लेटों की प्रिंटिंग और वितरण।
v. राज्य स्तर पर जल क्रान्ति अभियान के सम्बन्ध में अलग से बच्चों और वयस्कों के लिये निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन करना।
vi. एनडब्ल्यूए, पुणे द्वारा आयोजित सभी प्रशिक्षण कार्यों में जल क्रान्ति अभियान के सूचना परक मॉड्युल का आयोजन करना।

vii. नीति योजनाकारों/पणधारियों आदि को लक्ष्य बनाते हुए क्षमता निर्माण गतिविधियाँ।

अन्य क्रियाकलाप


जल क्रान्ति के भाग के रूप में निम्नलिखित गतिविधियों को भी शुरू किया जाएगा।

1. राष्ट्रीय जलनीति-2012 के अनुसार राज्य जलनीति को अपनाने हेतु राज्यों को प्रोत्साहित किया जाएगा। उन्हें राज्य जल संसाधन परिषद तथा जल विनियामक अधिकरण को सुदृढ़ करने हेतु भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
2. डब्ल्यूआरआईएस जल के मानचित्रण हेतु स्पेस प्रौद्योगिकी का उपयोग पर उपलब्ध आँकड़ों से प्रत्येक जल निकाय के लिये विशिष्ट पहचान संख्या आवंटित करना।
3. बहते जल का लाइव चित्र दिखाते हुए तत्काल नदी बहाव निगरानी को केन्द्रीय जल आयोग द्वारा विकसित किया जाएगा।
4. राज्य स्तर/जिला स्तर समिति द्वारा जल बचाव के लिये प्रभाव अध्ययन/नवीन प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित किसी अन्य गतिविधि को शुरू करना।

कार्यान्वयन अभिकरण


जल ग्राम और मॉडल कमान


अनुमोदित कार्यक्रम के तहत केन्द्रीय जल आयोग, केन्द्रीय भूजल बोर्ड और अन्य सहित राज्य सरकार और मंत्रालय के विभिन्न संगठनों द्वारा सभी गतिविधियाँ शुरू की जाएँगी।

प्रदूषण निवारण


भूजल और राज्य सरकारों के लिये केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा यह गतिविधि शुरू की जाएगी।

जनजागरुकता


इस गतिविधि का केन्द्रीय जल आयोग, केन्द्रीय भूजल बोर्ड, एनआईएच, एनडब्ल्यूएम, एनडब्ल्यूए, पुणे और राज्य सरकारों के ग्रामीण विकास, शहरी विकास विभागों आदि द्वारा शुरू किया जाएगा।

समग्र समन्वय और निगरानी


भारत जल सप्ताह 2015जल क्रान्ति अभियान के कार्यान्वयन हेतु प्रत्येक भागीदार संगठन एक नोडल अधिकारी का नामांकन करेंगे। राष्ट्रीय स्तर पर एक सलाहकार और निगरानी समिति का गठन किया जाना प्रस्तावित है। अध्यक्ष समिति के लिये किसी भी सदस्य का चुनाव कर सकते हैं। कार्यान्वयन और अन्य उद्देश्यों के लिये राज्य स्तर, जिला स्तर और ब्लॉक स्तर पर भी समितियाँ स्थापित की जाएँगी। अध्यक्ष, समिति के लिये किसी सदस्य का चुनाव कर सकते हैं। निगरानी और मूल्यांकन के अलावा ये समितियाँ जानकारी साझा करना, आयोजना, संचार, प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और संसाधन उपलब्ध कराएँगी।


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