22 साल में दून में बस गईं 129 बस्तियां

15 May 2019
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देहरादून की रिस्पना और बिंदाल नदी के अलावा नालों और खालों पर हुए अवैध निर्माण को लेकर हाईकोर्ट ने फिर आदेश जारी किए हैं। देहरादून के राजपुर पार्षद उर्मिला थापा की याचिका पर हाईकोर्ट ने आदेश किया है। इस पर सरकार को जवाब देना है। दून में नदियों के क्षेत्र में 22 साल में 129 बस्तियां बस गईं। नगर निगम की रिपोर्ट में भी इसकी तस्दीक करती है।

देहरादून नगर निगम के पुराने क्षेत्र में नदी क्षेत्र की बस्तियों को लेकर बनी रिपोर्ट में कई आंकड़े सामने आए हैं। नगर निगम की रिपोर्ट बताती है कि देहरादून में बस्तियों के बसने की प्रक्रिया 1985 से शुरू हुई। 1985 में ही जाखन क्षेत्र में बॉडी गार्ड बस्ती नदी, खाला भूमि में बस गई। रिपोर्ट के मुताबिक इस जगह पर 160 परिवार हैं।

इसी साल अधोईवाला नदी क्षेत्र में अंबेडकर कालोनी बनकर तैयार हो गई। जहां 700 के करीब परिवार हैं। ऐसे ही 1985 में बसी आर्यनगर बस्ती भी नॉनजेएए भूमि पर है। फिर से सिलसिला चलता रहा।

2007 तक 129 बस्तियां बनकर तैयार हो गईं। निगम के पास 2007 तक का ही रिकार्ड है। हालांकि 2007 के बाद भी इन्हीं बस्तियों के आगे नदी क्षेत्र में निर्माण होते रहे हैं।

2007 में ही बसीं 27 बस्तियां

नगर निगम की सर्वे रिपोर्ट 2008 की है। इसके तहत वर्ष 2007 में ही 27 बस्तियां नदी, नाले व खाले क्षेत्र में बसी हैं। इसमें राजपुर, अधोईवाला अजबपुर कलां, कांवली से लेकर धर्मपुर तक का क्षेत्र शामिल है।

वोट बैंक की राजनीति से तैयार हुईं शहर में बस्तियां

दून में मलिन बस्तियों के मुद्दे कर सालों से राजनीति होती आ रही है। बस्तियों को खड़ा करने के पीछे वोट बैंक की राजनीति रही है। भाजपा-कांग्रेस दोनों की सरकारों में नदी, नाले व खालों में अवैध निर्माण हुए। कानूनी जानकार कहते हैं कि वाटर बॉडी क्षेत्र में निर्माण प्रतिबंधित रहता है। फिर भी यहां निर्माण हुए। छुटभैया नेता से लेकर बड़े नेताओं की शह पर नदी, नाले व खाले अतिक्रमण की चपेट में आ गए। कई सालों से मलिन बस्तियों के नियमितीकरण का मामला चल रहा है। इसकी याद भी चुनाव से ठीक पहले आती है। चुनाव में इस मुद्दे को भुनाकर नेता अपना वोट बैंक मजबूत करते हैं। मजेदार बात यह है कि नदी, नाले व खाले क्षेत्र में भवनों के निर्माण होने के बाद विधायक निधि से बिजली के पोल, पानी की लाइन के साथ सीवर लाइन तक यहां पर बिछा दी गई।

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