432 करोड़ की नर्मदा-क्षिप्रा लिंक पर उठे सवाल

21 Mar 2017
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Shipra river
Shipra river

नदी की भी अपनी एक सीमा है और अब वह जमीनी हकीकत सामने नजर भी आने लगी है। इससे नर्मदा और क्षिप्रा दोनों के ही प्राकृतिक नदी तंत्र बिगड़े हैं और इसका फायदा भी लोगों को नहीं मिल पा रहा है।432 करोड़ की लागत से नर्मदा नदी का पानी क्षिप्रा में भेजे जाने की महत्त्वाकांक्षी योजना को लेकर अब गम्भीर सवाल उठने लगे हैं। पर्यावरणविद तो इसे लेकर योजना के प्रारम्भ से ही इसका विरोध करते रहे हैं लेकिन इस बार ख़ास बात यह है कि ये सवाल प्रदेश में काबिज भाजपा सरकार के ही एक विधायक ने उठाए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि क्षिप्रा को सदानीरा और साफ़ करने के लिये प्रदेश सरकार बीते दो सालों में 650 करोड़ रूपये खर्च कर चुकी है लेकिन वह अब भी मैली ही है। साथ ही उन्होंने लिंक योजना को भी पूरी तरह से विफल करार दिया है।

उज्जैन दक्षिण से भाजपा विधायक मोहन यादव ने योजना की विसंगतियों को लेकर गम्भीर सवाल उठाते हुए बकायदा मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष और प्रदेश के प्रमुख सचिव को इसके लिये पत्र भेजे हैं। गौरतलब है कि सिंहस्थ के बाद से ही क्षिप्रा अब फिर अपने पुराने स्वरूप में लौट आई है। क्षिप्रा का पानी गंदा है और इसे साफ़ करने में किसी की कोई रूचि नहीं रह गई है। गर्मी शुरू भी नहीं हुई है और क्षिप्रा नदी जगह-जगह से सूखने लगी है। क्षिप्रा नदी से होने वाली पेयजल आपूर्ति भी खटाई में पड़ गई है। अभी से शहर में पानी की किल्लत की आहट सुनाई देने लगी है। लम्बे वक्त से लिंक योजना ठप्प हो जाने से क्षिप्रा में नर्मदा का पानी नहीं आ पा रहा है। इससे सूखी हुई क्षिप्रा नदी का पानी अब सड़ने लगा है। कई जगह बदबू आती है। इस गंदे पानी की शहर में सप्लाय होने से कुछ बस्तियों में लोगों के बीमार होने की भी खबर है।

विधायक यादव के मुताबिक प्रदेश सरकार ने बीते दो सालों में सिंहस्थ के मद्देनजर क्षिप्रा पर सबसे ज़्यादा फोकस किया लेकिन भारी भरकम राशि खर्च करने के बाद भी उज्जैन के लोगों को अब इसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। उनके मुताबिक बीते दो सालों में सरकारी खजाने से करीब साढ़े छह सौ करोड़ रूपये सिर्फ़ क्षिप्रा नदी को फिर से सदानीरा बनाने और साफ़-सुथरी करने के लिये फूंक डाले गए, इस राशि का इस्तेमाल होने के बाद सिंहस्थ के एक महीने तो व्यवस्थाएँ बड़ी ही चाक–चौबंद रही लेकिन सिंहस्थ निपटते ही किसी भी अधिकारी ने इस पर कभी कोई ध्यान नहीं दिया।

इस बात की जानकारी देने के बाद भी न तो अब तक गंदे पानी के नालों को क्षिप्रा नदी में मिलने से विधिवत रोका गया है और न ही नर्मदा–क्षिप्रा लिंक योजना से उज्जैन के लिये पानी छोड़ा गया है। इससे पूरे इलाके में सरकार की छवि खराब हो रही है। अगले विधानसभा सत्र में इस पर विधानसभा में गम्भीर चर्चा कराने के लिये विधानसभा अध्यक्ष से इस मुद्दे को उठाने की अनुमति मांगी है। इसके लिये उन्होंने विधानसभा में एक याचिका भी लगाई है, जिसमें उन्होंने कहा है कि नर्मदा लिंक योजना का पानी शहर में नहीं पहुँचने से उज्जैन के लोगों के लिये पेयजल का संकट खड़ा हो गया है। यहाँ तक कि इंदौर रोड, मक्सी रोड और देवास रोड से जुड़ी करीब सौ से ज़्यादा कॉलोनियों में लोगों को यहाँ–वहाँ से पीने के पानी का इंतजाम करना पड़ रहा है। निजी नलकूप और अन्य स्रोतों का दूषित पानी पीने से कई लोग बीमार हो रहे हैं।

इससे पहले इसी हफ्ते नर्मदा क्षिप्रा लिंक योजना की विफलता को और क्षिप्रा को साफ़–सुथरी बनाने की मांग को लेकर स्थानीय कांग्रेस नेत्री नूरी खान भी सामाजिक संगठन संकल्प के बैनर तले अचानक एक सुबह करीब 4 बजे क्षिप्रा नदी में ही अस्थायी मंच बनाकर भूख हड़ताल पर बैठ गई। थोड़ी ही देर में उनके समर्थन में कुछ और लोग भी वहाँ जुटने लगे। हलचल बढती देखकर पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी धरना स्थल पर पहुँचे तथा उनसे धरना खत्म करने की गुहार की। थोड़ी देर की मान-मनोबल के बाद भी जब नूरी खान भूख हड़ताल के अपने फैसले पर डटी रहीं तो कुछ ही घंटों में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। नूरी खान ने भी आरोप लगाया है कि भारी भरकम राशि खर्च करने के बाद भी उज्जैन के लोगों के साथ छल किया गया है। यहाँ क्षिप्रा आस्था और यहाँ के लोगों के पीने के पानी दोनों ही लिहाज से ज़रूरी नदी है, लेकिन अधिकारी इसे साफ़ रख पाने में कोई रूचि नहीं ले रहे हैं। नर्मदा लिंक से पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। उज्जैन के लोगों के सामने अपनी आस्था की नदी को यूँ गंदा होते जाना देख पाना हमारे लिये मुश्किल है। इसीलिए मैंने आंदोलन किया था।

उधर नर्मदा का पानी नहीं मिलने से देवास शहर में भी लोगों के सामने पीने के पानी की बड़ी किल्लत हो रही है। देवास के पास क्षिप्रा नदी पूरी तरह सूख चुकी है। इसे लेकर मंत्री दीपक जोशी ने क्षिप्रा गाँव के लिये तथा देवास महापौर सुभाष शर्मा ने देवास शहर के लिये नर्मदा लिंक से तत्काल पानी दिए जाने की मांग की है। उधर नर्मदा घटी विकास अधिकरण के अधिकारीयों के लिंक योजना में पानी छोड़े जाने को लेकर अड़चन है कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से ओंकारेश्वर बाँध को पूरी क्षमता 196.6 मीटर तक नहीं भरा जा सकता है। फिलहाल उसे 190 मीटर तक ही भरा जा सका है। कम पानी होने से नर्मदा का पानी लिंक योजना में भेजा जाना सम्भव नहीं हो पा रहा है। बाँध की प्राथमिकता निमाड़ क्षेत्र की खेती के लिये दिए जाने वाले नहरों को पानी देना है। अधिकारीयों के मुताबिक धार जिले के कुक्षी तक नर्मदा का पानी पहुँचने और बाँध का जलस्तर बनाए रखने के बाद ही पानी देवास और उज्जैन के लिये भेजा जा सकेगा।

देवास महापौर सुभाष शर्मा नर्मदा घाटी विकास मंत्री लालसिंह आर्य से भी मिल चुके हैं। उनके मुताबिक देवास शहर के करीब आधे से ज़्यादा हिस्से में क्षिप्रा नदी में बनाए गए बाँध से ही पानी दिया जाता है। फिलहाल इस बाँध में 10 मीटर पानी ही बचा है, जबकि दूसरे हिस्से में पानी टेल एण्ड तक पहुँच गया है। शहर में 35 हजार नल कनेक्शन है और हर दिन 18 एमएलडी पानी की खपत होती है। नगर निगम ने इस हफ्ते से जल वितरण की अवधि घटा दी है।अब शहर में एक दिन छोड़कर महज 35 मिनट तक ही जल प्रदाय किया जा रहा है। यदि जल्दी ही लिंक योजना से पानी नहीं दिया गया तो इसकी अवधि और भी घटाई जा सकती है। इसमें एक बड़ी अड़चन और है कि फिलहाल सिंचाई का मौसम होने से यदि नर्मदा का पानी सूखी क्षिप्रा नदी में अधिकारियों ने प्रवाहित भी कर दिया तो बड़ी तादात में पानी किसान अपने खेतों में उपयोग कर लेंगे और शहरों की प्यास बची ही रह जाएगी।

इस तरह की योजनाएँ बनाने से पहले नर्मदा को लेकर अध्ययन करने वाले कुछ संगठनों ने इस तरह की आशंकाएँ जताई भी थी कि आखिर नर्मदा के पानी को कहाँ–कहाँ तक और कितनी मात्रा में उपयोग किया जा सकता है। आख़िरकार नदी की भी अपनी एक सीमा है और अब वह जमीनी हकीकत सामने नजर भी आने लगी है। इससे नर्मदा और क्षिप्रा दोनों के ही प्राकृतिक नदी तंत्र बिगड़े हैं और इसका फायदा भी लोगों को नहीं मिल पा रहा है।

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