अब ऐसे तो साफ नहीं होगी गंगा

pollution in ganga
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जहाँ तक सबसे ज्यादा बदहाल राज्यों और शहरों का सवाल है, इनमें उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं। जबकि शहरों में कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और कोलकाता शीर्ष पर हैं। उत्तराखण्ड में 450 किलोमीटर के हिस्से में 14 गन्दे नालों से 440 एमएलडी सीवेज, उत्तर प्रदेश में 1000 किलोमीटर के हिस्से में गंगा में 43 बड़े नालों के जरिए तकरीब 3270 एमएलडी सीवेज, बिहार में 405 किलोमीटर हिस्से में 25 बड़े नालों के द्वारा 580 एमएलडी सीवेज और पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर के दायरे में 54 बड़े नालों के जरिए 1780 एमएलडी सीवेज गंगा में रोजाना गिर रहा है। गंगा आज भी साफ नहीं है। यह उस हालत में है जबकि गंगा शुद्धि का मामला मोदी सरकार की प्राथमिकता की सूची में सर्वोच्च स्थान पर है। नमामि गंगे मिशन का उद्देश्य ही यही है। लेकिन सरकार के लचर रवैए की वजह से इस मिशन की कामयाबी में सन्देह है। वह बात दीगर है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण सरकार के रवैए को लेकर बार-बार अपनी नाराजगी बयाँ कर चुके हैं। यही नहीं वह सरकार को चेतावनी भी दे चुके हैं।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने तो गंगा सफाई के मुद्दे पर केन्द्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से यहाँ तक कह दिया है कि वह यहाँ राजनीतिक मुद्दे न गिनाए और न ही अधिकारियों की अनुपलब्धता को गंगा सफाई में देरी का कारण बताए क्योंकि हम इन सवालों पर चर्चा के लिये नहीं, बल्कि नदी के प्रदूषण को लेकर चिन्तित हैं। हम सरकार को गंगा सफाई के लिये और वक्त नहीं दे सकते। हमने राज्य सरकार व केन्द्र सरकार की ओर से कई बार गुजारिश के बाद नदी की सफाई और उसके कायाकल्प से जुड़ी सुनवाई टाल दी है। लेकिन अब और नहीं।

जहाँ तक अधिकारियों का सवाल है राष्ट्रीय हरित अधिकरण गंगा सफाई को लेकर बरती जा रही लापरवाही पर कानपुर नगर निगम के आयुक्त और जल निकाय के अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस भी जारी कर चुका है। अधिकरण ने उनसे पूछा है कि पर्यावरण को खराब करने के लिये उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों न की जाये।

उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने भी गंगा में प्रदूषण को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा है कि गंगा में प्रदूषण के लिये जिम्मेदार गंगा किनारे स्थित होटलों, आश्रमों और उद्योगों को निर्देशों के बावजूद सील क्यों नहीं किया गया। आखिर इसकी वजह क्या है। इनको सील किया जाये और कृत कार्यवाही से तत्काल अवगत कराया जाये। अधिकरण का तो यहाँ तक कहना है कि गम्भीर मामलों में यदि राज्य सरकारें निर्देश का पालन नहीं करती हैं तो केन्द्र सरकार को अधिकार है कि वह ऐसी प्रदेश सरकार के खिलाफ धारा 370 का इस्तेमाल करे।

देखा जाये तो गंगा हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक आस्था की धुरी तो है ही, जैवविविधता का केन्द्र और पर्यावरण, कृषि और रोजगार का आधार भी है। इसमें रोजाना 20 लाख के करीब लोग धार्मिक आस्था के वशीभूत होकर स्नान करते हैं।

त्योहारों पर तो यह तादाद करोड़ों में हो जाती है। हरिद्वार और इलाहाबाद में तो हर बारह साल के अन्तराल पर कुम्भ मेले का भी आयोजन होता है जिसमें स्नान कर करोड़ों भारतवासी धन्य हो जाते हैं। देश की कुल 26 फीसदी कृषि भूमि गंगा घाटी क्षेत्र में आती है। 10 हजार मेगावाट पनबिजली उत्पादित करने वाले संयंत्र गंगा पर निर्भर हैं। लेकिन इतनी विशेषताओं वाली गंगा दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित 10 नदियों में से एक है। गौरतलब है कि 14 जनवरी 1986 को पहली बार इसकी सफाई को लेकर गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई थी। इसका उद्देश्य गंगा में मिलने वाले सीवेज और औद्योगिक प्रदूषण को रोकना था। लेकिन वह प्लान नाकाम रहा।

गंगा एक्शन प्लान की नाकामी के बाद 2009 में मिशन क्लीन गंगा शुरू किया गया। फिर भी गंगा मैली ही रही। देखा जाये तो अभी तक 4000 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च हो चुकी है। 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद नमामि गंगे मिशन की शुरुआत हुई। उसके बाद से इसकी सफाई को लेकर लगातार दावे-दर-दावे किये जा रहे हैं लेकिन असल में आज स्थिति यह है कि गंगा के पानी में तय मानक से 2800 गुणा ज्यादा कोलीफॉर्म मौजूद है।

हालात इतने खराब हैं कि कई जगहों पर तो पानी पीने की बात तो दीगर है, वह नहाने लायक तक नहीं है। कारण उसमें 12000 एमएलडी से भी ज्यादा सीवेज रोजाना गिर रहा है और उसकी रोकथाम करने में सरकार नाकाम है। जहाँ तक टियर -1 और टियर-2 के शहरों का सवाल है, अकेले 3000 एमएलडी सीवेज यह दोनों तरह के शहर गंगा में गिराते हैं।

जहाँ तक सबसे ज्यादा बदहाल राज्यों और शहरों का सवाल है, इनमें उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं। जबकि शहरों में कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और कोलकाता शीर्ष पर हैं। उत्तराखण्ड में 450 किलोमीटर के हिस्से में 14 गन्दे नालों से 440 एमएलडी सीवेज, उत्तर प्रदेश में 1000 किलोमीटर के हिस्से में गंगा में 43 बड़े नालों के जरिए तकरीब 3270 एमएलडी सीवेज, बिहार में 405 किलोमीटर हिस्से में 25 बड़े नालों के द्वारा 580 एमएलडी सीवेज और पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर के दायरे में 54 बड़े नालों के जरिए 1780 एमएलडी सीवेज गंगा में रोजाना गिर रहा है।

चमड़ा उद्योग का रसायनयुक्त कचरा कानपुर में ही गंगा को जहरीला बनाने के लिये काफी है। इलाहाबाद को लें, यहाँ 10000 एमपीएन प्रति 100 एमएल फोकल कॉलीफार्म बैक्टीरिया का स्तर है। वाराणसी में गंगाजल इतना प्रदूषित है कि यहाँ गंगा में नहाने वाले तकरीब 70 फीसदी लोग जलजनित बीमारियों की चपेट में हैं। कोलकाता की स्थिति तो और भयावह है। यहाँ के तकरीब 90 फीसदी लोग नगर निगम द्वारा आपूर्ति किये जाने वाले प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं।

सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि गंगा में गिरने वाले 12000 से अधिक एमएलडी सीवेज में से केवल 4000 एमएलडी सीवेज का ही शोधन हो पा रहा है। जबकि इसकी सफाई को लेकर नमामि गंगे मिशन के तहत 20,000 करोड़ का बजट आवंटित किया गया। इस मिशन के प्रथम चरण में 37.41 करोड़ जारी हुए और इसमें अभी तक 2958 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। लेकिन मौजूदा स्थिति इसकी बदहाली का जीता-जागता सबूत है। यह सरकार के दावों कहें या नाकारेपन का खुलासा करने के लिये काफी हैं और गंगा आज भी मैली है। वह ऐसे साफ नहीं होने वाली।

जल संसाधन और गंगा सरक्षण मंत्री उमा भारती भले तकनीकी कारणों से गंगा सफाई में आठ महीने देरी की बात कहें लेकिन असलियत में गंगा 2018 क्या 2022 तक साफ हो पाएगी, इसमें संदेह है। फिर इन हालात में तो कतई नहीं। सरकार इस बारे में कुछ भी कहे असलियत यह है कि कछ मसले ऐसे हैं जिनका समाधान आज तक नहीं हो सका है। उनमें उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के बीच गंगा किनारे की जमीन पर मालिकाना हक का स्पष्ट न होना, गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे कूड़े को जलाने में रोकने में नाकामी, गंगा किनारे की जमीन पर अतिक्रमण को हटाने में नाकामी, गंगा में अवैध खनन का जारी रहना, चमड़े के कारखानों पर अंकुश लगा पाने में नाकाम रहना, उनको बन्द न करा पाना, कारखानों द्वारा गंगा में गिराए जाने वाले विषैले कचरे और गंगा में आश्रमों, होटलों से गिरने वाली गन्दगी को रोक पाने और बन्द कराने में आने वाली नाकामी यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका आज तक सरकार राष्ट्रीय हरित अधिकरण को जवाब नहीं दे पाई है। आखिर क्यों? यह सवाल आज तक अनसुलझा है।
 

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