आएं : नीम उगाएं

नीम का पेड़
नीम का पेड़
भारत के मानसूनी क्षेत्र में पाया जाने वाला एक सामान्य प्रकार का वृक्ष जो आजकल अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है, ‘नीम’ के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘एजारडारेक्टा इन्डिका’ है। एक अनुमान के अनुसार सम्पूर्ण भारत में लगभग डेढ़ करोड़ नीम के वृक्ष उपलब्ध हैं। इस वृक्ष की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि है यह विभिन्न प्रकार के जलवायु क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। वर्तमान समय में नीम एक ऐसा महत्त्वपूर्ण वृक्ष है जिस पर पिछले कुछ वर्षों से देश एवं विदेश के अनेक वैज्ञानिक इसके गुणों, क्षमताओं एवं विलक्षण प्रभावों को पहचानने के लिए गहन शोध कार्यों में जुटे हुए हैं। वैसे भारत में नीम के पत्तों, टहनियों, फलों, छाल तथा लकड़ी को अनेकानेक क्षेत्रों तथा कार्यों में उपयोग किया जाता रहा है। बहुत पहले से हम लोग ग्रामीण क्षेत्रों में नीम के सूखे पत्तों को खाद्यान्न भण्डारण हेतु प्रयोग करते रहे हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा में नीम के तेल, नीम की पत्तियों के रस तथा छाल का अनेक रोगों में प्रयोग किया जाता रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में नीम की सूखी पत्तियों को जलाकर उसके धुएँ से मच्छरों से बचाव के लिए प्रयोग भी किया जाता रहा है। इसकी खली को मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने तथा दीमक से बचाव के लिए उपयोगी मानते हुए कृषक इसे उर्वरक के रूप में भी बहुत पहले से प्रयोग करते रहे हैं। वर्तमान में नीम में पाए गए विलक्षण गुणों के कारण इसके विभिन्न मूल्यवान उपयोग हेतु देश एवं विदेश के अनेक वैज्ञानिक निरन्तर अध्ययनरत हैं।

वैज्ञानिकों द्वारा नीम के ऊपर अब तक किए गए अध्ययन इस निष्कर्ष तक पहुँचाते हैं कि इसमें अनेक कीटनाशक तत्व/केमिकल्स पाए जाते हैं जो अनेकानेक क्षेत्रों में नितान्त उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। अब तक इसमें सात महत्त्वपूर्ण केमिकल्स पाए जाने की जानकारी प्राप्त हुई है। इन अनेकानेक विशेषताओं के कारण ही नीम से लगभग 70 कीटाणु प्रभावित होते हैं। नीम में ‘केरनेल’ नाम का एक अत्यधिक क्रियाशील पदार्थ पाया जाता है जिसका पाउडर के रूप में तथा द्रव के रूप में अल्कोहल, क्लोरोफार्म तथा पानी में मिलाकर प्रयोग किया जा सकता है। यह द्रव चावल में कीटनाशक के रूप में अत्यन्त प्रभावकारी होता है तथा इसके पाउडर का खाद्यान्न भण्डारण में एक सुरक्षित कीटनाशक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। नीम उत्पादों में कीटाणु वृद्धि रोकने की अद्भुत शक्ति होती है। नीम में टाक्सिक प्रभाव को भी कम करने की विलक्षण शक्ति है। नीम की खली को मिट्टी के साथ मिलाने पर मिट्टी-जनित कीटाणुओं को नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मच्छरों के लार्वों को नीम के तेल के प्रयोग से तुरन्त समाप्त किया जा सकता है।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नीम की ताजा पत्तियों के रस को ‘एन्टी एन्जाइटी’ प्रभाव वाला पाया गया है तथा प्रयोगों के आधार पर बाजार में उपलबध अनेकानेक टेबलेट्स की तुलना में अधिक असरकारक तथा सुरक्षित पाया है। इसके अतिरिक्त इसे गर्भ निरोधक तत्व युक्त भी पाया गया है। अतः सुरक्षित एवं प्राकृतिक तरीके से गर्भ निरोधक के रूप में इसका आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। नीम की पत्तियों के रस को सूक्ष्म जीवीय इनफेक्शन, त्वचा रोग तथा दन्त सम्बन्धी चिकित्सा में भी अत्यधिक उपयोगी बताया गया है। यहाँ तक कि इसे उच्च रक्तचाप कम करने, ब्लड शुगर का स्तर घटाने तथा अल्सर के उपचार में भी उपयोगी बताया गया है। जापान, जर्मनी तथा इंग्लैण्ड की तीन बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ नीम के द्रव से एड्स की जीवाणुओं को समाप्त करने के लिए निरन्तर प्रयोग कर रही हैं। यदि इस प्रयोग में उन्हें सफलता प्राप्त हुई तो निश्चित ही नीम निकट भविष्य में तीसरे विश्व के देशों से सर्वाधिक निर्यात की जाने वाली वस्तु होगी और हम इसके माध्यम से अधिक से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में सफल हो सकेंगे।

अभी हाल ही में मलेरिया शोध संस्थान, दिल्ली के शोध अध्ययनों में नीम के तेल को मच्छर निरोधक टिकिया (मैट) बनाने में अधिक उपयोगी एवं सक्षम बताया गया है। नीम के तेल से बाजार में उपलब्ध सभी मेट्स से सस्ते मूल्य पर मैट्स तैयार की जा सकती है। इसके अतिरिक्त मलेरिया फैलाने वाले एनाफ्लीज मच्छर तथा काला-अजर तक से पूर्ण सुरक्षा दिलाने में नीम के तेल को अत्यन्त उपयोगी पाया गया है। प्रयोगों द्वारा सिद्ध हुआ है कि यदि नीम के तेल तथा नारियल अथवा सरसों के तेल को 2.98 के अनुपात में मिलाकर शरीर के खुले हिस्सों में लगाया जाए तो इससे एनाफ्लीज मच्छरों से 12 घण्टों तक की सुरक्षा मिल जाती है।

नीम के प्रभावों के सम्बन्ध में किए गए कुछ अध्ययन तो नीम के तेल को बुद्धि बढ़ाने वाला तथा स्मृति तेज करने वाला भी बताते हैं। नीम के तेल में एन्टीबायोटिक गुण भी पाए जाते हैं। जिसके कारण इसके प्रयोग से अनेक रोगों के त्वरित इलाज के लिए एन्टीबायोटिक औषधियाँ भी तैयार की जा सकती हैं जो वर्तमान में बनाई जा रही एन्टीबायोटिक औषधियों की तुलना में अधिक प्रभावकारी, सस्ती एवं साइड-इफैक्ट से भी मुक्त होंगी।

नीम के पेड़ को मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने तथा मिट्टी में पानी रोकने की क्षमता बढ़ाने के लिए भी अन्य पेड़ों की तुलना में उपयोगी पाया गया है। अम्लीय मिट्टी को सामान्य मिट्टी में परिवर्तित करने की विलक्षण क्षमता भी नीम के पेड़ में होती है। अतः इसे अम्लीय मिट्टी के क्षेत्र में रोपित करके आसानी से वहाँ की मिट्टी को उपजाऊ बनाने में सहायता ली जा सकती है। चूँकि नीम शुष्क क्षेत्रों में भी आसानी से उगने और बढ़ने की क्षमता रखता है, अतः इसे शुष्क क्षेत्रों में वनारोपण हेतु मुख्य वृक्ष के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। नीम से प्राप्त गोंद जिसे ‘ईस्ट इण्डिया गम’ के नाम से जाना जाता है। में लगभग 35 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। अतः सम्बन्धित औद्योगिक इकाइयों में इसका प्रयोग प्रारम्भ किया गया है। इससे मानव उपयोग के लिए प्रोटीनयुक्त अनेक उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं।

खाद्यान्न को कीड़ों से बचाने हेतु नीम के उत्पादों का प्रयोग बहुत ही लाभकारी सिद्ध हो सकता है। भारत में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के अधिकांश खाद्यान्न का एक बहुत बड़ा भाग कीड़ों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। इनके प्रयोग से न केवल हजारों टन खाद्यान्न कीड़ों से बचता है बल्कि विषैलेपन से मुक्त रहकर मानव उपयोग के लिए पूर्ण सुरक्षित भी रहता है। लेकिन अब इसके आधुनिक प्रयोग से खाद्यान्न को कीड़ों से अधिक सुरक्षित रखने की सम्भावनाएँ बढ़ी है। जर्मनी के बायो-रसायन संस्थान के एक डाक्टर के अनुसार अकेले भारत में उपलब्ध नीम के वृक्षों के कुछ उत्पादों में सबसे कम खर्च पर प्रभावपूर्ण तरीके से पूरे संसार में उपलब्ध खाद्यान्न को कीड़ों से नष्ट होने से बचाया जा सकता है। यदि निकट भविष्य में नीम का इस दिशा में पूरा-पूरा उपयोग किया जा सका तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।

इस प्रकार साधारण समझा जाने वाला ‘नीम’ अपने औषधीय गुणों, कीटनाशक प्रभावों, प्रदूषण नियन्त्रक क्षमता, असाध्य बीमारियों से मुक्ति जैसे अनेकानेक गुणों के कारण एक विलक्षण वृक्ष कहा जा सकता है। अतः अब नीम के और नए-नए गुणों को पहचानने और इसके अवयवों के घरेलू, कृषीय एवं औद्योगिक उत्पादों के रूप में अधिक से अधिक प्रयोग की सम्भावनाओं पर प्रभावी शोध की व्यवस्था करना अत्यावश्यक हो गया है।

उत्पादन की दृष्टि से नीम एक ऐसा वृक्ष है जिसके अधिक से अधिक मात्रा में उगाने की पर्याप्त सम्भावनाएँ देश के अधिकांश राज्यों/क्षेत्रों में मौजूद हैं लेकिन पहली आवश्यकता है इसके गुणों के महत्व पर जनसामान्य तक आवश्यक जानकारी पहुँचाना। इस विषय में केन्द्र/राज्य सरकार द्वारा पहल करना अब बहुत आवश्यक हो गया है। अतः प्रचार माध्यमों, टेलीविजन, रेडियो, समाचारों, पत्र-पत्रिकाओं द्वारा इसके महत्व, लाभ एवं गुणों के सन्दर्भ में सुनियोजित प्रचार उपयोगी हो सकता है। साथ ही सरकार द्वारा इसके उत्पादन को बढ़ाने की दृष्टि से कृषकों/उत्पादकों को प्रेरणा-स्वरूप कुछ अनुदान, कौशल एवं तकनीकी सहायता आदि उपलब्ध कराई जा सके तो शीघ्र ही अच्छे परिणामों की आशा की जा सकती है। यदि सरकारी कृर्षि-फार्मों, सरकारी कार्यालय-परिसरों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों, सड़कों के किनारे आदि पर अधिकाधिक नीम के पेड़ लगाने हेतु व्यवस्था की जा सके तो नीम के पेड़ों की संख्या अति शीघ्र बढ़ाई जा सकती है। स्वैच्छिक संस्थाओं तथा पंचायतों की सहायता इस कार्य में अत्यन्त लाभकारी होगी। अधिक गुणों वाली एवं कम समय में बढ़ने वाली नीम की किस्में तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों तथा शोध संस्थाओं द्वारा पहल की जानी भी अपेक्षित है। नीम के पत्ते, छाल, फल, लकड़ी आदि अवयवों को संसाधित कर मूल्यवान पदार्थों में परिवर्तित करने हेतु उपज के निकटवर्ती क्षेत्रों में ऐसी ईकाइयाँ स्थापित करने का प्रबन्ध करना पड़ेगा जिससे इसके उत्पादकों को उनके श्रम का पर्याप्त लाभ मिल सके। नीम उत्पादकों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य दिलाने हेतु विपणन की उपयुक्त व्यवस्था करने की भी भविष्य में आवश्यकता पड़ेगी जिसके लिए पहले से तैयारी कर लेना श्रेयस्कर होगा।

वर्तमान में यद्यपि नीम उत्पादकों को इसके गुणों की तुलना में इससे कोई वित्तीय लाभ नहीं मिल पा रहे हैं क्योंकि शोध परिणामों का व्यावसायिक स्तर पर अभी तक क्रियान्वयन सम्भव नहीं हो सका है लेकिन निकट भविष्य में ऐसा सम्भव होने की पूरी उम्मीद है। अतः इसके उत्पादकों को भी देर-सवेर इसके लाभ प्राप्त होंगे ही। इस प्रकार यह मानते हुए कि ‘नीम भविष्य का कल्पतरू है’ इसे उगाने हेतु सभी सम्बन्धित लोगों को प्रयत्नशील होना चाहिए।

(संयुक्त निदेशक, प्रशिक्षण प्रभाग, राज्य नियोजन संस्थान, लखनऊ)

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