ऐतिहासिक गंगा चेतना पदयात्रा

दिल्ली के राजघाट से जंतर-मंतर तक 18 दिसंबर 2011 को स्वामी आनंद स्वरूप जी के नेतृत्व में ऐतिहासिक गंगा चेतना पदयात्रा निकाली गई। इसमें दिल्ली, हरियाणा समेत कई राज्यों के हजारों गंगा सेवकों ने भाग लिया। पदयात्रा में शामिल गंगाभक्त जोश से गंगा को बचाने का संकल्प लेते हुए नारे लगाते चल रहे थे। गंगा भक्तों के जोश और संकल्प को देखते हुए रास्ते में लोगों ने मुक्त कंठ से इसकी सराहना की और इसे पवित्र कार्य कहा। सुरक्षा की दृष्टि से दिल्ली पुलिस के जवान वाहनों पर और पैदल साथ साथ चल रहे थे। हालांकि, गंगाभक्तों के अनुशासन को देखते हुए भीड़ को संभालने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई।

इस अवसर पर स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि उन्होंने संकल्प लिया था कि पूरे देश में 101 पदयात्रा निकाली जाएगी, उसी क्रम में दिल्ली में यह पदयात्रा निकाली गई। उन्होंने कहा कि गंगा एक नदी नहीं, अपितु संस्कृति है, परंपरा है, धरोहर है। इसके अलावा यह हमारी मां है। भगीरथ के प्रयासों से गंगा धरती पर आईं और आज भगीरथ पुत्रों के कारण धरती पर अपना नैसर्गिक स्वरूप खो बैठी हैं। अब तक की सरकारों ने गंगा का उपयोग बांध बनाकर बिजली पैदा करने, नहरें निकालने और शहरों के सीवर को उसमें प्रवाहित करने में किया है।

उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि गंगा की नैसर्गिता बहाल की जाए और उसे राष्ट्रीय नदी घोषित किया जाए। उसे छेड़छाड़ करने पर राष्ट्रद्रोह जैसा कानून बनाकर उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि गंगा के ऊपर बनने वाले बांधों पर तत्काल रोक लगाई जाए। इस पदयात्रा में डॉक्टर मनोज मिश्र, जयप्रकाश, ताराचंद मोर, गंगा सेवा मिशन के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सुनील दत्त, महामंत्री राकेश चौधरी, मंत्री विनोद गुप्ता, राजीव गोयल, प्रदीप मित्तल, फिरोज खान, राकेश गुप्ता, जितेंद्र गुप्ता, शिवदत्त, जगमोहन सहगल, उत्तर प्रदेश के महामंत्री रोहित उपाध्याय, अजय मिश्र, ब्रह्मप्रकाश गोयल, विमलेश भारद्वाज, नीलिमा सिंह, अशेष कुमार दीक्षित आदि शामिल थे।

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