अम्ल बनकर बरसा अमृत

सीकर. शेखावाटी अंचल में मानसून के प्रारंभिक दौर का अमृत अम्ल बनकर बरसा। इससे खरीफ की मुख्य फसल बाजरा की बढ़वार ठहर गई है और पत्तियों पर इसका असर नजर आ रहा है। किसान इसे अपनी भाषा में 'खारी बरसात' होना बता रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार वायुमण्डल में व्याप्त प्रदूषण के कण (कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड) पानी के साथ मिलकर अम्ल (एसिड) बन गए। इस बरसात से पौधों की जड़ों का विकास नहीं होने से फसल कमजोर हो गई। साथ ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया भी प्रभावित हुई। कुछ स्थानों पर बीजों का अंकुरण भी कम हुआ है।
 

ऎसे होती है अम्लीय वर्षा


वायुमण्डल में व्याप्त प्रदूषण के कण व गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड जल से मिलने पर कार्बनिक एसिड में तब्दील हो जाता है। इसी तरह सल्फर डाइऑक्साइड जल से मिलने पर सल्फरिक एसिड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जल के साथ मिलकर नाइट्रक अम्ल बनकर बरसते हैं। तेज बरसात में आसमान में व्याप्त प्रदूषण पूरी तरह से साफ हो जाता है, लेकिन कम बरसात में इसका असर नजर आने लगता है।

 

 

यह रहा कारण


अंचल में पिछले तीन-चार वर्षो से प्री-मानसून की अच्छी बरसात होने से वायुमण्डल में व्याप्त प्रदूषण धुल जाता था। इसके बाद किसान बुवाई करते थे और मानसून की बरसात फसलों के लिए अमृत का काम करती थी, लेकिन इस बार प्री-मानसून की बरसात नहीं हुई। वहीं तेज बरसात भी नहीं हुई। रिमझिम और हल्की बरसात होने से प्रदूषण के कण जल के साथ अम्ल बनकर बरस रहे हैं। इस कारण फसलों को जितना फायदा होना चाहिए था उतना नहीं हो रहा है।

 

 

 

 

इनका कहना है


वायुमण्डल में मौजूद प्रदूषण व गैस जल से मिलकर अम्ल में परिवर्तित हो जाते हैं जिसे अम्लीय बरसात कहते हैं। इससे फसलों को नुकसान होता है। वहीं इस बरसात में नहाने से त्वचा पर फोड़े-फुन्सी हो जाते हैं।

- सुनील दबे, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विभाग सेठ मोतीलाल कॉलेज झुंझुनूं

पहली बरसात में वायुमण्डल में व्याप्त प्रदूषण व गैस घुल जाते हैं। यदि तेज बरसात हो जाए तो इसका असर कम रहता है, लेकिन कम व रिमझिम बरसात में इसका असर अधिक नजर आता है।

-मनीराम, कृषि अनुसंधान अधिकारी

पिछले वर्ष की तरह इस बार फसलों की वृद्धि कमजोर है। जबकि इतनी बरसात में बाजरा की फसल की बढ़वार दो फीट तक पहुंच जाती है। पहले दौर में खारी बरसात हुई है।- शिशुपाल सिंह, किसान

 

 

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