अमरीकी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई में केन्द्र सरकार विफल

1 Dec 2015
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भोपाल गैस कांड पर विशेष


भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे की 31वीं बरसी पर गैस पीड़ित मशाल जुलूस लेकर यूनियन कार्बाइड कम्पनी का विरोध करेंगे। हर बार की तरह इस बार भी गैस पीड़ित मुफ्त इलाज, मुआवजा के साथ-साथ जन्मजात विकलांगता वाले बच्चों की पुनर्वास सुविधाओं की भी माँग करेंगे।

इस तरह का विरोध पहली बार नहीं हो रहा है, बल्कि लगातार 30 वर्षों से गैस पीड़ित इसी तरह यूनियन कार्बाइड के खिलाफ अपना विरोध जताते आ रहे हैं। लेकिन इस दफा मामला इसलिये भी गम्भीर है, क्योंकि पेरिस में 125 देश मिलकर पर्यावरण प्रदूषण के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन पर बहस और दिशा तय करेंगे।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन रोकने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए माँग करेंगे कि सौर महागठनबन्धन के निर्माण के साथ-साथ न्यायसंगत जलवायु समझौता हो और विकसित देशों से वित्तीय और प्रौद्योगिकी हस्तान्तरित हो।

इसी दौरान भोपाल (मध्य प्रदेश) में दुनिया का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी के 31वीं बरसी पर गैस हादसे के लम्बित मसलों को सुलझाने में मोदी सरकार की विफलता की तीव्र आलोचना हो रही है।

मोदी सरकार ने यूनियन कार्बाइड कारखाने के आस-पास जारी ज़हरीले प्रदूषण के वैज्ञानिक आकलन करने की संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण संस्था यूनेप के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया है। जबकि इलाके की ज़हर सफाई के लिये सबसे पहले ज़मीन के नीचे के प्रदूषण का वैज्ञानिक आकलन होना ज़रूरी है पर पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बगैर कारण बताए यूनेप के इस अभूतपूर्व प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

दूसरी ओर प्रधानमंत्री पूरे देश को साफ़ सुथरा बनाने की बात करते हैं, लेकिन भोपाल के कारखाने के अन्दर और आस-पास ज़मीन के नीचे दबे हज़ारों टन ज़हरीले कचरे की उनके स्वच्छता अभियान में कोई जगह नहीं है। जबकि त्रासदी के बाद यहाँ की भूजल एवं मिट्टी के ज़हरीले प्रदूषण की सफाई के लिये अमेरीकी अदालत में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए।

भोपाल ग्रुप फॉर इंफार्मेशन के सतीनाथ षडंगी बताते हैं कि भारतीय अदालतों की अवहेलना करने वाली अमेरीकी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई में केन्द्रीय सरकार पूरी तरह से विफल रही है। भोपाल के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने डाउ केमिकल को हाजिऱ होने के लिये पिछले एक साल में तीन बार नोटिस भेजे हैं, परन्तु भारत सरकार इस कम्पनी को अदालत में हाजिऱ नहीं करा पाई है। मोदी के कार्यकाल में सीबीआई ने जानबूझकर डाउ केमिकल की भारतीय शाखा द्वारा रिश्वत देने के मामले से कम्पनी को बच निकल जाने दिया। उन्होंने कहा, सीबीआई हमेशा इन कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई में ढील बरतती आई है। लेकिन मोदी जी के अधीन यह ब्यूरो जितनी ढीली हुई है, इसने तीस सालों के ढिलाई के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है।पिछले साल नवम्बर में यूनियन कार्बाइड हादसे के पीड़ित मुआवज़े के मुद्दे पर दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर सर्वोच्च न्यायालय में केन्द्र सरकार द्वारा दायर सुधार याचिका में मौतों और बीमारियों के आँकड़े सुधारने और सभी गैस पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा देने की माँगों पर अनिश्चित काल के लिये अनशन पर बैठे थे। उस वक्त केन्द्र सरकार ने आश्वासन दिया था, कि मौत और बीमारियों के आँकड़ों का सही-सही आकलन कराएगी। लेकिन आज तक न तो प्रदेश सरकार इलाज का आँकड़ा बता पाई और न ही आईसीएमआर मौतों का।

भोपाल में यूनियन कार्बाइड के परित्यक्त कारखाने के आस-पास के मोहल्लों के सैकड़ों रहवासी मुफ्त इलाज, साफ़ पानी की आपूर्ति और पानी के बिल माफ़ करने की माँग कर लम्बे समय से कर रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि भारतीय विष विज्ञान शोध संस्थान के 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक़ 22 मोहल्लों का भूजल कीटनाशक कारखाने के ज़हरीले कचरे की वजह से प्रदूषित हो चुका है। उनके अनुसार पिछले बीस से भी अधिक सालों से वे ऐसा पानी पीते आ रहे हैं, जिसमें गुर्दे, लीवर, फेफड़े और मस्तिष्क को नुकसान पहुँचाने वाले रसायन और भारी धातु हैं और जिनसे कैंसर तथा जन्मजात विकृतियाँ होती हैं।

इससे पूर्व वर्ष 2009 में प्रदेश सरकार की संस्था पुनर्वास अध्ययन केन्द्र की वैज्ञानिक रिपोर्ट बताती है कि प्रदूषित भूजल वाली आबादी में अप्रभावित आबादी की अपेक्षा श्वास एवं पाचन तंत्र के साथ-साथ चमड़ी और आँखों की बीमारियाँ ज़्यादा हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के मई 2004 के आदेश के फलस्वरूप अगस्त 2014 में प्रदेश सरकार द्वारा 10 हजार परिवारों को पीने के पानी के नि:शुल्क कनेक्शन दिये गए, जिसमें से उड़िया बस्ती के गंगाराम बताते हैं कि आज पाइप द्वारा पानी आपूर्ति की समस्याओं की वजह से कई हज़ार रहवासी ज़हरीला पानी पीने को मजबूर हैं। शिव नगर की सुनीता बताती हैं कि जहाँ 1984 में यूनियन कार्बाइड की ज़हरीली गैसों से प्रभावित लोगों को मुफ्त इलाज दे रही है, वहीं उसी कम्पनी द्वारा प्रदूषित भूजल से पीड़ित 10 हजार परिवारों को मुफ्त इलाज नहीं देने का कोई औचित्य नहीं है।

पीड़ित महिलाओं की ट्रेड यूनियन की अध्यक्ष रशीदा बी बताती हैं कि एक लाख रुपए का अतिरिक्त मुआवजा सिर्फ 33 हजार 672 गैस पीड़ितों को दिया गया है, जबकि सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ 5 लाख से अधिक लोग गैस प्रभावित हैं। 93 फीसदी गैस पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे से वंचित करने का कोई वैज्ञानिक या कानूनी आधार सरकार के पास नहीं है। सरकार सुधार याचिका में अतिरिक्त मुआवज़े के तौर पर 120 करोड़ डॉलर माँग रही है, जबकि उसे अमेरीकी कम्पनियों से कम-से-कम 810 करोड़ डॉलर की माँग करनी चाहिए।

रचना ढींगरा बताती हैं कि पिछले 30 सालों से केन्द्र सरकार द्वारा यूनियन कार्बाइड की तरफदारी की वजह से ही पीड़ितों को आज तक सही मुआवजा नहीं मिल पाया है। लेकिन वर्तमान में केन्द्र में भाजपा की सरकार है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका को यह सन्देश दे सकते थे कि अब भारत आकर कत्लेआम करना आसान नहीं होगा। लेकिन प्रधानमंत्री उत्साह से अमेरीकी कम्पनियों को भारत बुला रहे हैं। जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार द्वारा पर्यावरण और श्रम क़ानूनों में जिस तरह से बदलाव प्रस्तावित है, उससे देश भर में भोपाल गैस त्रासदी जैसे हादसे होने की आशंका बढ़ जाएगी।

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