अनसुनी गंगा की गुहार

मुक्तिदायिनी गंगा अब खुद बंधक बन गई है। बंधक गंदगी, कचरे और विषाक्त तत्वों की। उसकी लहरें अब घाट किनारे आने से कतराती हैं, वे रूठ गई हैं। आंचल एक कदर मैला हो गया है कि अब उससे सुगंध नहीं बल्कि दुर्गंध आती है। ऐसे में गंगा को फिर तलाश है एक भगीरथ की। पतित पावनी गंगा अब अपने उद्धार की प्रतीक्षा में है। गंगा को निर्मल बनाने के तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद ठोस नतीजा अब तक धरातल पर नहीं दिखता है। बिहार सरकार ने गंगा पर्यटन को विकसित करने के लिए सार्थक कोशिश जरूर की है लेकिन जब तक गंगा को निर्मल बनाने की मुहिम असर नहीं दिखाती तब तक इस दिशा में सफलता पर संदेह बना रहेगा। विडंबना यह है कि गंगा के नाम पर सियासत भी खूब होती रही है। गंगा कई बार हिंदू वोट बैंक के चश्मे तक से देखी जाती है। भगीरथ ने कभी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों के उद्धार का रास्ता सुगम बनाया था। अब वर्तमान परिस्थितियों में गंगा को दूसरे भगीरथ की जरूरत है जो उन्हें फिर से आचमन के लायक बना सके।

गंगा सागर से लेकर गंगोत्री तक समग्र यात्रा कर रहीं भाजपा की वरिष्ठ नेत्री उमा भारती ने बिहार यात्रा के दौरान गंगा को विश्व धरोहर बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। बकौल उमा भारती गंगा हमें राम, रोजगार और रोटी देती है। इस गंगा का सम्मान संपूर्ण देशवासियों को करना चाहिए। गंगा के बूते हम एफडीआई से पैदा होने वाले खतरों से आसानी से निपट सकते हैं। उमा ने पटना के गांधी घाट में गंगा आरती में शिरकत करने के बाद बिहार सरकार के प्रयासों को सराहते हुए कहा कि बिहार पहला राज्य है जिसने त्वरित फैसला कर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना बनाई है। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि गंगा रोजगार की जननी है इसलिए हमें गंगा को हर हाल में बचाना है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि गंगा में गंदा पानी नहीं बहाया जाएगा। इसके लिए कई स्थानों पर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना बनी है। उम्मीद है, शीघ्र ही इन योजनाओं क स्वीकृति मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि कलेक्टेरियट घाट से गांधी घाट तक सड़क बनाने की भी योजना है।

जहां तक गंगा को निर्मल बनाने का सवाल है तो वर्ष 1985 से अब तक हजारों करोड़ खर्च किए गए लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात जैसा ही है। सेंटर ऑफ एनवायर्नमेंट एंड नेचर कंजरवेशन के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ पटना में प्रतिदिन 222.6 मिलियन लीटर गंदा पानी गंगा में बहाया जाता है। इनमें से 160.6 मिलियन लीटर दूषित पानी बगैर ट्रीटमेंट के ही गंगा में बहाया जाता है। दरअसल, राजधानी में चार वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हैं जिनकी क्षमता प्रतिदिन 109 मिलियन लीटर पानी शुद्ध करने की है। इनमें महज 62 मिलियन लीटर पानी का ही शुद्धीकरण हो पा रहा है। यह स्थिति तब है जब शहर की 10 प्रतिशत आबादी सीवेज सिस्टम से जुड़ी हुई है। पूरे बिहार में गंगा नदी में 300 मिलियन लीटर गंदा पानी बगैर ट्रीटमेंट के ही बहा दिया जाता है। इन प्रयासों की सराहना की जा सकती है लेकिन यह सवाल भी पैदा होता है कि लोकसभा चुनाव की तैयारियों के क्रम में ही भाजपा को गंगा की निर्मलता की याद क्यों आई? दूसरा सवाल यह कि क्या चुनाव बाद यह जज्बा कायम रह सकेगा।

दरअसल, गंगा की पवित्रता को सिर्फ धर्म के लहजे से नहीं जा सकता। गंगा भारत की पहचान और वरदान रही है। गंगा से लाखों लोगों के जीवन की डोर बंधी है इसलिए इसे निर्मल बनाने की मुहिम को राष्ट्रीय यज्ञ की तरह पूरा कनरे की जरूरत है। वर्तमान में हालात ये हैं कि बिहार में गंगा में विषाणुओं की मात्रा बढ़ रही है। पटना विश्वविद्यालय के बी.एन. कॉलेज के भूगर्भशास्त्र एवं भूमिगत जल विभाग के प्राध्यापक प्रो. रणवीर नंदन के शोध के अनुसार, गंगा में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा न्यूनतम 5 मिलीग्राम प्रति लीटर भी नहीं रह गई है जो बैक्टेरियोफेज नुकसानदायक बैक्टीरिया, टोटल कोलीफॉर्म तथा फीकल कोलीफॉर्म को खत्म करता है उसकी संख्या घटती जा रही है। नुकसानदेह बैक्टीरिया कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की संख्या निश्चित अनुपात को पार कर गई है।

वर्ष 2009 में गंगा नेशनल रिवर बेसिन बनाया गया था। इसके तहत 2600 करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन गंगा निर्मल नहीं बनाई जा सकी। गंगा के किनारे स्थापित सात सौ से अधिक औद्योगिक इकाइयां भी इसे प्रदूषित कर रही हैं। बिहार के बेगूसराय में 65 करोड़, बक्सर में 75 करोड़, हाजीपुर में 114 करोड़ और मुंगेर में 188 करोड़ रुपए की योजना पर काम हो रहा है। इस योजना के तहत बेगूसराय में एक प्लांट बनाया जाएगा। मुंगेर में लगने वाला प्लांट प्रतिदिन 82 मिलियन लीटर गंदे पानी को शुद्ध करेगा। बिहार सरकार ने 600 करोड़ रुपए की योनजा को स्वीकृति देकर अपनी भूमिका निभाई है लेकिन सच यह भी है कि पूरे देश में अब तक गंगा को निर्मल बनाने के नाम पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए गए पर मैली गंगा की सूरत नहीं बदली। गंगा एक्शन प्लान का फेज वन फेल हो गया और अब फेज दो भी उसी ढर्रे पर चल रहा है। विश्व बैंक से कर्ज लेकर गंगा को मलरहित बनाने की इस कोशिश में गंगा आंदोलन से जुड़े लोगों को तरजीह नहीं मिली।

गंगा बचाओ अभियान से जुड़े प्रमुख संत स्वामी गुड्डू बाबा कहते हैं कि इस बार भी धरातल से जुड़े लोग गंगा एक्शन प्लान में नजरअंदाज किए गए हैं। गंगा को राष्ट्रीय नदी तो घोषित कर दिया गया लेकिन गंगा का मैल टस से मस नहीं किया जा सका। विश्व बैंक से 15 हजार करोड़ का ऋण लिया जा रहा है लेकिन देश में गंगा राहत कोष नहीं बनाया जा सका। जाहिर है, गंगा को निर्मल बनाने के लिए इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के साथ-साथ राष्ट्रीय नदी एक्ट बनाने की भी जरूरत है। अगर गंगा एक्शन प्लान की बात करें तो इस योजना के तहत फेज वन में बिहार के चार शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना पर 53 करोड़ 29 लाख रुपए खर्च हुए। वर्ष 1985 में शुरू हुई इस योजना को 26 साल बीत गए लेकिन हालत नहीं बदली। योजना 31 मार्च, 2000 को बंद कर दी गई। फेज वन में बिहार के पटना, भागलपुर, मुंगेर और छपरा में 45 योजनाएं शुरू की गईं जिनमें से 44 फाइलों में पूरी भी हो गईं। उपलब्धि 99 फीसद दिखाई गई। 7 सीवेज प्लांट मंजूर हुए थे जिनमें से 6 बने। इन ट्रीटमेंट प्लांटों की क्षमता 371.60 मिलियन लीटर टन कचरे के निस्तारण की तय की गई थी। इनमें से 6 प्लांट बने लेकिन क्षमता घटकर 122 एमएलडी हो गई। फेज वन में 17 योजनाओं के तहत 53.71 किलोमीटर सीवर लाइन बनाई जानी थी। फेज दो में बिहार के आरा, छपरा, भागलपुर, मुंगेर, पटना, फतुहा, बाढ़, सुल्तानगंज, बड़हिया, बक्सर, कहलगांव और हाजीपुर शामिल हैं। इस बार बिहार के लिए एक हजार करोड़ रुपए तय किए गए हैं। विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट जालिक और केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने पटना का दौरा कर सीवेज प्लांटों को मंजूरी दे दी है। गंगा बेसिन अथॉरिटी ने हाजीपुर, बेगूसराय, मुंगेर और बक्सर के लिए 442 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

गंगा एक्शन प्लान के तहत देश में 26 वर्षों में 900 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए गए लेकिन गंगा का प्रदूषण नहीं घटा। अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्र सरकार के आर्थिक मामलों की समिति में गंगा की सफाई के लिए सात हजार करोड़ की योजना को मंजूरी दी है। बिहार में गंगा बक्सर में उत्तर प्रदेश से प्रवेश करती है जहां इसमें औसतन 400 क्यूमेक्स पानी रहता है जबकि पीरपैंती के निकास बिंदु पर इसमें 1500 क्यूमेक्स पानी रहता है। जलस्तर को कायम रखना गंगा के जंतुओं के लिए जरूरी है। घाटों के सौंदर्यीकरण के नाम पर भी करोड़ों खर्च किए जा चुके हैं लेकिन घाटों की गंदगी समाप्त नहीं हुई। वर्तमान में गंगा में प्रदूषण बढ़ा है। गंगा के पानी में ऑक्सीजन की घटती मात्रा जल जीवों के लिए भी संकट पैदा कर रही है। गंगा डॉल्फिन संकट में है। इसके अलावा राजधानी पटना में गंगा नदी अपने घाटों यानी शहर से दूर हट रही है। गंगा अभियान पायलट चैनल की खुदाई की मांग करता रहा है लेकिन चैनल नहीं बन सका।

इधर, बिहार सरकार ने कुछ सार्थक प्रयास जरूर किए हैं लेकिन इस योजना की लगातार निगरानी जरूरी है ताकि इसका भी वही हश्र नहीं हो जो अब तक गंगा से जुड़ी तमाम योजनाओं का होता रहा है। राहत यह है कि अब पटना उच्च न्यायालय ने इन मामलों को देखना शुरू कर दिया है। पटना हाईकोर्ट ने शहर के गंगा घाटों के जीर्णोद्धार को लेकर दोबारा निविदा निकाली जाने पर पटना के जिलाधिकारी एवं निर्माण विभाग के कार्यकारी अभियंता से जवाब-तलब किया है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि गंगा घाटों के निर्माण पर पहले ही 25 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। फिर से कुल 2.48 करोड़ रुपए की योजना के लिए निविदा निकाली गई है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading