अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017 लोक सभा में पेश

17 Mar 2017
0 mins read
Uma Bharti
Uma Bharti

 

राज्यों द्वारा जल की माँग बढ़ने के कारण अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद बढ़ रहे हैं। हालांकि, अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (1956 का 33) में ऐसे विवादों के समाधान के कानूनी ढाँचे की व्यवस्था है, फिर भी इसमें कई कमियाँ हैं। उक्त अधिनियम के अन्तर्गत प्रत्येक अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद के लिये एक अलग अधिकरण स्थापित किया जाता है। आठ अधिकरणों में से केवल तीन ने अपने निर्णय दिये हैं जो राज्यों ने मंजूर किये हैं। हालांकि, कावेरी और रावी-व्यास जल विवाद अधिकरण क्रमशः 26 और 30 वर्षों से बने हुए हैं फिर भी ये अभी तक कोई सफल निर्णय देने में सक्षम नहीं हो पाये हैं।

केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने आज 14 मार्च को लोक सभा में अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017 पेश किया। विधेयक को पेश करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि अन्तरराज्यीय नदी जल विवादों के निपटारे के लिये एक ‘क्रान्तिकारी पहल’ है।

एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार सुश्री भारती ने विधेयक की मुख्य विशेषताओं का जिक्र करते हुए कहा कि इस विधेयक में अन्तरराज्यीय जल विवाद निपटारों के लिये अलग-अलग अधिक‍रणों की जगह एक स्‍थायी अधिकरण (विभिन्न पीठों के साथ) की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है जिसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम छह सदस्य तक होंगे।

अध्यक्ष के कार्यकाल की अवधि पाँच वर्ष अथवा उनके 70 वर्ष की आयु होने तक होगी। अधिकरण के उपाध्यक्ष के कार्यकाल तथा अन्य सदस्यों का कार्यकाल जल विवादों के निर्णय के साथ समाप्ति के आधार पर होगा। यह भी प्रस्ताव है कि अधिकरण को तकनीकी सहायता देने के लिये आकलनकर्ताओं की नियुक्ति की जाएगी, जो केन्द्रीय जल अभियांत्रिकी सेवा में सेवारत विशेषज्ञों में से होंगे और जिनका पद मुख्य इंजीनियर से कम नहीं होगा।

विधेयक के प्रावधानों की जानकारी देते हुए सुश्री भारती ने कहा कि जल विवादों के निर्णय के लिये कुल समयावधि अधिकतम साढ़े चार वर्ष तय की गई है। अधिकरण की पीठ का निर्णय अन्तिम होगा और सम्बन्धित राज्यों पर बाध्यकारी होगा। इसके निर्णयों को सरकारी राजपत्र में प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं होगी।

सुश्री भारती ने कहा कि अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017 में अन्तरराज्यीय नदी जल विवादों के न्याय निर्णयन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और वर्तमान कानूनी तथा संस्थागत संरचना को सुदृढ़ करने का विचार है। विधेयक में विवाद को अधिकरण को भेजने से पहले एक विवाद समाधान समिति के माध्यम से बातचीत द्वारा जल विवाद को सौहार्द्रपूर्ण ढंग से निपटाने के लिये एक तंत्र बनाने का भी प्रस्ताव है। यह तंत्र केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किया जाएगा जिसमें सम्बन्धित क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होंगे।

उल्‍लेखनीय है कि राज्यों द्वारा जल की माँग बढ़ने के कारण अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद बढ़ रहे हैं। हालांकि, अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (1956 का 33) में ऐसे विवादों के समाधान के कानूनी ढाँचे की व्यवस्था है, फिर भी इसमें कई कमियाँ हैं। उक्त अधिनियम के अन्तर्गत प्रत्येक अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद के लिये एक अलग अधिकरण स्थापित किया जाता है।

आठ अधिकरणों में से केवल तीन ने अपने निर्णय दिये हैं जो राज्यों ने मंजूर किये हैं। हालांकि, कावेरी और रावी-व्यास जल विवाद अधिकरण क्रमशः 26 और 30 वर्षों से बने हुए हैं फिर भी ये अभी तक कोई सफल निर्णय देने में सक्षम नहीं हो पाये हैं। इसके अतिरिक्त मौजूदा अधिनियम में किसी अधिकरण द्वारा निर्णय देने की समय-सीमा तय करने अथवा अधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य की अधिकतम आयु तय करने का कोई प्रावधान नहीं है।

अधिकरण के अध्यक्ष के कार्यालय में कोई पद रिक्त होने या सदस्य का पद रिक्त होने की स्थिति में कार्य को जारी रखने की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही अधिकरण की रिपोर्ट प्रकाशित करने की कोई निश्चित समय-सीमा है। इन सभी कमियों के चलते जल विवादों के विषय में निर्णय देने में विलम्ब होता रहा है।
 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading