अपाहिज जिन्दगी

Panchagain, Patti Panchgain, Panchagain Kheda, Agraमशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ ने लिखा है-
जिन्दगी क्या किसी मुफलिस की कबा (कपड़ा) है जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं। 

 

फैज़ ने ये पंक्तियाँ किन हालातों में लिखी होंगी पता नहीं लेकिन ऐतिहासिक शहर आगरा से लगभग 20-25 किलोमीटर दूर स्थित गाँव पचगाँय के लोगों की जिन्दगी सचमुच उस गरीब के कपड़ों जैसी है जिनमें हर पल दर्द के पैबन्द लगते हैं।

गाँव की आबादी तकरीबन 900-1000 होगी। गाँव पक्की सड़क से जुड़ा हुआ भी है। आमतौर पर पक्की सड़क से जुड़ाव विकास का पैमाना होता है। इस गाँव के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया खेती है पर कई परिवार ऐसे भी हैं जिनके पास अपनी जमीन नहीं। कुल मिलाकर यहाँ समृद्ध और दरिद्र दोनों तरह के परिवार रहते हैं। इसी तथाकथित विकसित गाँव में दर्जनों लोगों को फ्लोराइड हर घड़ी दर्द दे रहा है। यह फ्लोराइड कहीं और से नहीं बल्कि जिन्दगी देने वाले पेयजल से उनके शरीर में जा रहा है।

फ्लोराइड ने इस गाँव में ऐसा कहर बरपाया है कि लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वे जी रहे हैं या मर रहे हैं। सरकार की ओर से कुछ वर्ष पहले वाटर फिल्टर लगाए गए थे। जिसका होना ना होना एक बराबर है। यानि किसी काम के नहीं। इसी मशीन से 100 कदम दूर अपने घर के बाहर कुर्सी पर बैठे 40 वर्षीय थान सिंह के चेहरे पर बेबसी साफ देखी जा सकती है।

फ्लोराइड ने थान सिंह को लगभग अपाहिज बना दिया है। वे न तो खुद से उठ पाते हैं न बैठ पाते हैं और न ही झुककर कुछ उठा पाते हैं। चलते भी हैं तो लाठी के सहारे। थान सिंह कहते हैं, ‘लाठी पकड़के चल्यो तो क्या चल्यो? (लाठी पकड़कर चलना भी कोई चलना है?)’

उनसे बात करते हुए अचानक हमारी नजर उनकी लुंगी पर पड़ी। जिसमें असंख्य छेद मानो उनकी बेबसी बयाँ कर रहे हों। पूछने पर सिंह कहते हैं, ‘बीड़ी पीते हुए वह लुंगी पर गिर जाये तो बीड़ी उठा नहीं पाता हूँ। बेबस बैठा रहता हूँ, लुंगी जल जाती है। इससे बड़ी लाचारी और क्या हो सकती है?’

5 वर्ष पहले उनके जोड़ों में दर्द हुआ था। वे डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने बताया कि स्केलेटल फ्लोरोसिस है। सिंह को रोज कम-से-कम 6 गोलियाँ खानी पड़ती है और नियमित अवधि पर डॉक्टर से चेकअप करवाना पड़ता है।

गाँव में निजी कम्पनियाँ 10 रुपए में 20 लीटर पानी पहुँचाती हैं। थान सिंह कहीं दूर देखते हुए कहते हैं, ‘न खेत है न नौकरी, पानी खरीदकर कहाँ से पिएँ?’

Panchagain, Patti Panchgain, Panchagain Kheda, Agraथान सिंह के घर से हम थोड़ा आगे बढ़े तो खपरैल से बना एक घर दिखा। वहीं घर के सामने खटिया पर बैठे अधेड़ मिल गए। नाम बताया कालीचरण सिंह। कालीचरण का सहारा भी लाठी ही है। चेहरा बिल्कुल जर्द है। बीमारी की बात चली तो वे बोले, ‘पिछले तीन सालों में आगरा के सभी डॉक्टरों को दिखा चुका हूँ लेकिन तबीयत में सुधार नहीं है। डॉक्टर कहते हैं कि मुझे कैल्शियम सूट नहीं करता है।’ कालीचरण से बातचीत का सिलसिला खत्म हुआ भी नहीं था कच्ची सड़क से एक किशोर आता दिख गया। मैला-कुचैला कपड़ा पहने किशोर लंगड़ाता हुआ चल रहा था। उसने अपना नाम दीपक सिंह बताया। उसके दोनों पैर पूरी तरह टेढ़े थे। 16 वर्षीय दीपक के परिजनों को पता ही नहीं है कि उसे यह बीमारी फ्लोराइड ने दी है। वह चलता है तो उसे बेइन्तहा दर्द होता है लेकिन वह बेचारा क्या करे। दीपक बहुत मायूस होकर कहता है, ‘डॉक्टर के पास गए थे तो डॉक्टर ने कहा कि इलाज में बहुत खर्च आएगा। हमारे पास खेत नहीं है और पिताजी छोटी-मोटी नौकरी करते हैं। इलाज के पैसे कहाँ से आएँगे?’

दीपक से बातचीत का सिलसिला चल ही रहा था कि नजर 17 वर्षीय किशोर पर गई। ठिगनी कदकाठी। रंग साँवला। चेहरा भावशून्य। स्थानीय लोगों ने चुहलबाजी करते हुए उससे कहा कि फोटू लैंगे तुम्हारे आ जाओ तो वह मुस्करा दिया। इस मुस्कराहट के पीछे एक दर्द भी छिपा था। विकलांग होने का दर्द। बातचीत शुरू हुई तो उसने अपना नाम गुरुदयाल सिंह बताया। उसके पैर भी टेढ़े हो गए हैं। उससे जब पूछा गया कि उसका पैर ऐसा क्यों हो गया तो उसने बुदबुदाया-पता नहीं। उससे अगला सवाल किया गया कि वह इलाज करवा रहा है तो इसका जवाब भी उसने ‘ना’ में ही दिया।

इसी गाँव में एक महिला भी मिली। उसके बारे में स्थानीय लोगों ने कहा कि उसकी जब शादी हुई थी तो वह 6 फीट लम्बी थी। अभी वह तीन फीट की हो गई है। नाम है मीना देवी। उम्र महज 42 साल। मीना देवी की कमर झुककर 90 डिग्री का कोण बना रही है। वह चलती है तो बस जमीन देखती है। सामने से आ रहे किसी भी व्यक्ति को देखने के लिये उसे सिर बहुत ऊँचा उठाना पड़ता है।

Panchagain, Patti Panchgain, Panchagain Kheda, Agra6 साल पहले उसे फ्लोराइड ने अपनी जद में ले लिया। फ्लोरोसिस के दंश झेल रही मीना देवी मुँह पर घूँघट डाले कहती है, ‘पहले तो पता नहीं चला था कि क्यों हो रहा है। जब तबीयत बहुत खराब हुई तो डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर ने कहा कि फ्लोराइड युक्त पानी पीने से यह रोग हुआ है।’ यह सुनकर मीना के होश फाख्ता (उड़) हो गए थे कि जिस पानी को जिन्दा रहने के लिये लोग पीते हैं वह बीमारी दे रहा है।

ये सारे चरित्र महज बानगी हैं। इस गाँव में ऐसे लोगों की संख्या बहुत है। इनमें से कुछ की हालत बहुत खराब है जबकि कुछ की हालत 2-3 सालों में खराब हो जाएगी।

आगरा के शाहगंज में एक क्लीनिक में बैठने वाले हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवेन्द्र कुमार शर्मा कहते हैं, ‘पचगाँय में फ्लोराइड का कहर सबसे ज्यादा है। मेरे पास 3-4 मरीज आते हैं जिनकी हालत बेहद संगीन है। दिक्कत ये है कि ये लोग बीमार होने के बावजूद फ्लोराइड युक्त पानी ही पी रहे हैं, ऐसे में दवा से भला क्या फायदा होगा?’

आगरा जिले के बरौली अहिर ब्लॉक में पचगाँय खेड़ा ग्राम पंचायत है जिसमें तीन गाँव है- पचगाँय, पट्टी पचगाँय और पचगाँय खेड़ा।

पचगाँय गाँव कृष्ण की भूमि ब्रज की चौहद्दी के करीब स्थित है। यहाँ ब्रजभाषा बोली जाती है और मोरों की संख्या अधिक है। घरों के मुंडेरों, सड़कों पर, खेतों में यहाँ तक कि आँगन में भी मोरों को चहलकदमी करते हुए देखा जाता है। माना जाता है कि जहाँ मोर होते हैं वहाँ सुख-समृद्धि का बसेरा होता है लेकिन इस गाँव में यह बात बेमानी लगती है। मोरों की बोली के साथ विकलांगता का क्रन्दन भी मौजूद है यहाँ।

आश्चर्य की बात है कि अब तक किये गए तमाम सर्वेक्षणों में पट्टी पचगाँय और पचगाँय खेड़ा में फ्लोराइड का जिक्र तो मिलता है लेकिन पचगाँय का कहीं नाम नहीं आता लेकिन सबसे अधिक मरीज पचगाँय में ही हैं।

जिओलॉजिकल सर्वे आफ इण्डिया और केन्द्र सरकार के पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम के तहत किये गए अलग-अलग सर्वेक्षण की रिपोर्टों में पचगाँय का नाम नहीं है। अलबत्ता पट्टी पचगाँय और पचगाँय खेड़ा के बारे में बताया गया है कि ये दोनों गाँव बुरी तरह प्रभावित हैं।

केन्द्र सरकार के पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय के नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम के तहत सर्वेक्षण तो हाल ही में किया गया है लेकिन आश्चर्य की बात है कि सर्वेक्षण टीम की नजर इस गाँव पर नहीं पड़ी।

Panchagain, Patti Panchgain, Panchagain Kheda, Agraफ्लोराइड एक रसायन है जिसका इस्तेमाल हाइड्रोजन फ्लोराइड बनाने में किया जाता है। फ्लोराइड जमीन के भीतर के चट्टानों में विद्यमान है। ये चट्टानें जब पानी के सम्पर्क में आती हैं तो फ्लोराइड पानी में घुल जाता है और लोगों तक पहुँचता है।

पानी में फ्लोराइड की मात्रा अगर 1.5 मिलीग्राम (प्रतिलीटर) तक हो तो कोई नुकसान नहीं होता। इसकी मात्रा अगर इससे अधिक हो तो डेंटल फ्लोरोसिस और स्केलेटल फ्लोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल, फ्लोराइड मानव शरीर में पहुँचकर मैग्नीशियम, कैल्शियम और विटामिन-सी को सोख लेता है जिसके चलते ये बीमारियाँ होती हैं।

डेंटल फ्लोरोसिस में सामने के दाँतों में सफेद और पीले दाग पड़ जाते हैं। स्केलेटल फ्लोरोसिस में हाथ और पैरों की हडि्डयाँ टेढ़ी हो जाती हैं जिस कारण लोगों का चलना-फिरना मुहाल हो जाता है। इन बीमारियों का पता अगर शुरुआती दौर में चल जाये तो इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन जरा-सी देर होने पर बीमारी मौत के साथ ही जाती है।

अफसोस की बात है कि इस गाँव में फ्लोरोसिस का इतना कहर है लेकिन ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि यह होता क्यों है। यही वजह है कि पीड़ित लोग अब भी वही पानी पी रहे हैं जिससे उन्हें रोग हो रहा है। जिन्हें पता है वे इस बात से अनजान हैं कि उन्हें किस तरह के खानपान से इसका असर कम किया जा सकता है।

दीपक सिंह के भाई से जब दीपक की विकलांगता के बारे में पूछा गया तो उसका कहना था, ‘एक बार दीपक की तबीयत खराब हो गई थी। हो सकता है उसी वक्त हवा (भूत-प्रेत का असर) लग गई होगी जिस कारण उसके पैर टेढ़े हो गए।’

यहाँ के लोगों को नहीं मालूम कि दूध, सहजन, आँवला, अण्डे जैसे खाद्यानों से फ्लोरोसिस का असर कम किया जा सकता है। लोगों से जब इस सम्बन्ध में पूछा गया तो उनका कहना था-हमें तो कोउ ना बतायो (हमें तो किसी ने नहीं बताया)।

विशेषज्ञों ने कहा कि जागरुकता से फ्लोरोसिस को फैलने से रोका जा सकता है। अगर लोगों को बताया जाये कि फ्लोरोसिस क्यों होता है और खानपान से इसे किस तरह कम किया जा सकता है तो तस्वीरें बदलेंगी।

स्थानीय लोग बताते हैं, ‘इस गाँव में आखिरी बार पानी के नमूने की जाँच 5 वर्ष पहले की गई थी।’ स्थानीय निवासी रवि मोहन सिंह कहते हैं, ‘पिछले 5 वर्षों में एक बार भी यहाँ के पानी की जाँच नहीं हुई है। यहाँ दो वाटर प्यूरिफायर हैं जिनमें से एक तो बहुत दिनों से बन्द पड़ा है और दूसरे में साफ पानी आ रहा है या गन्दा इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है।’

गौर करने वाली बात है कि आगरा के इस क्षेत्र का सर्वेक्षण बहुत पहले से होता आ रहा है। इन सर्वेक्षणों में पानी में सामान्य से अधिक फ्लोराइड होने का दावा किया जाता रहा है लेकिन सरकारी स्तर पर किसी प्रकार की सक्रियता नहीं दिखा। न तो प्रभावितों को शुद्ध पेयजल मुहैया करवाया गया। सरकार की निष्क्रियता का ही परिणाम है कि इस गाँव पर फ्लोरोसिस का कोढ़ चस्पा हो गया है।

पचगाँय से लौटते समय शाम हो चली थी। खेतों में मोरों का झुंड दाने चुग रहा था और किसी को आवाज लगा रहा था। गाँव में लोग अपनी दयनीय हालत पर आँसू बहा रहे थे। पक्की सड़क से होते हुए हम कुछ ही मिनटों में ऐतिहासिक शहर आगरा में पहुँच गए थे। चकाचौंध से भरा आगरा शहर। ताजमहल का शहर आगरा। किले का शहर आगरा।

गाँव जाकर देख सका कि उस गाँव और इस शहर के बीच बहुत लम्बा फासला है। आजादी के बाद शहर बहुत आगे निकल गया मगर इस गाँव के लोगों की जिन्दगी... अब भी वहीं ठहरी है...।

 

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