अर्बन फॉरेस्ट्री से कम होगा प्रदूषण

13 Apr 2018
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आजकल बड़े शहरों में अर्बन फॉरेस्ट्री का कॉन्सेप्ट अपनाया जा रहा है। जिसके जरिये शहरी क्षेत्र में छोटे-छोटे जंगल डेवलप किये जाते हैं। इसमें दो पेड़ों के बीच का गैप भी कम रखा जाता है। छत्तीसगढ़ के रायपुर, बंगलुरु जैसे शहरों में यह कॉन्सेप्ट अपनाया गया है। देहरादून में भी इसकी आवश्यकता है।

“वायु प्रदूषण बड़ी समस्या बनती जा रही है, जल्द ही इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके बुरे परिणाम सामने आएँगे। अर्बन फॉरेस्ट्री के जरिये वायु प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। वहीं, एयर एक्शन प्लान की भी आवश्यकता है।” ये बातें बृहस्पतिवार को राजपुर रोड स्थित एक होटल में पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, क्लीन एयर एशिया और गति फाउण्डेशन की ओर से आयोजित कार्यशाला में वक्ताओं ने कही।

वायु प्रदूषण को लेकर हुई दो दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन वक्ताओं ने एयर एक्शन प्लान पर चर्चा की। कार्यशाला में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि ने कहा कि बीते कुछ वर्षों में राजधानी में वायु प्रदूषण काफी बढ़ा है। घंटाघर, सर्वे चौक, आईएसबीटी, महाराजा अग्रसेन चौक आदि जगहों पर प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है। इसे लेकर जल्द एयर एक्शन प्लान बनाने की जरूरत है।

क्लीन एयर एशिया की कंट्री डायरेक्टर प्रार्थना बोरा ने कहा कि वायु प्रदूषण को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला में पहली बार प्रशासनिक नेतृत्व का एक मंच पर आना अच्छी बात है। अब दूरगामी योजना की आवश्यकता है। गति फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने कहा कि वायु प्रदूषण फैलने की मुख्य वजह वाहनों से निकलने वाला धुआँ, कंस्ट्रक्शन के चलते उड़ने वाली धूल और कूड़ा जलाने से फैलने वाली जहरीली गैस है।

वर्तमान में राजधानी में करीब नौ लाख वाहन हैं। ऐसे में इस पर नियंत्रण करने के लिये नीति बनाने की जरूरत है। मौके पर जिलाधिकारी एसए मुरुगेशन, नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरके सिंह, आरटीओ सुधांशु गर्ग के साथ ही स्वास्थ्य विभाग, वन विभाग और एमडीडीए के अधिकारी मौजूद रहे।

ऐसे लग सकता है वायु प्रदूषण पर अंकुश

अर्बन फॉरेस्ट्री : वायु प्रदूषण पर नियंत्रण बड़ी चुनौती है। आजकल बड़े शहरों में अर्बन फॉरेस्ट्री का कॉन्सेप्ट अपनाया जा रहा है। जिसके जरिये शहरी क्षेत्र में छोटे-छोटे जंगल डेवलप किये जाते हैं। इसमें दो पेड़ों के बीच का गैप भी कम रखा जाता है। छत्तीसगढ़ के रायपुर, बंगलुरु जैसे शहरों में यह कॉन्सेप्ट अपनाया गया है। देहरादून में भी इसकी आवश्यकता है।

कूड़ा प्रबन्धन : शहर में रोजाना 350 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। जैविक कूड़ा और ई-कचरा भी निकल रहा है, लेकिन अभी तक इसके निस्तारण को लेकर कोई प्लान नहीं बनाया गया है। भविष्य में इसकी मात्रा में काफी इजाफा होगा, ऐसे में इसे लेकर जल्द योजना बनाने की आवश्यकता है।

पौधरोपण : शहरी क्षेत्र बढ़ने के साथ ही जंगल खत्म होते जा रहे हैं। काफी संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं। इससे भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ज्यादा-से-ज्यादा पौधरोपण करना चाहिए, जिससे हरियाली बनी रहे और बढ़ते प्रदूषण भी नियंत्रित हो।

केन्द्रीय समेत अन्य संस्थानों ने लिया हिस्सा

कार्यशाला में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (आईआईपी), बीएचईएल, यूएनडीपी जैसे केन्द्रीय संस्थानों के साथ ही आईआईएम, डीआईटी, यूपीएस के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे। पूर्व सेक्रेटरी विभापुरी दास, मुख्य सचिव एचके दास, डॉ. आरबीएफ रावत, चंदन सिंह रावत, पर्यावरण कंट्रोल बोर्ड एसएस पाल, अमित पोखरियाल, वसुंधरा, भोजवेद, डॉ. सुनील पांडे, आशुतोष कंडवाल, प्रेरणा, ऋषभ श्रीवास्तव, प्यारेलाल मौजूद रहे।

सरकार को भेजेंगे एयर एक्शन प्लान

गति फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने बताया कि जल्द ही एयर एक्शन प्लान बनाने पर कार्य शुरू किया जायेगा। जिसके बाद उसे राज्य सरकार को भेजा जायेगा। वहाँ से अनुमति मिलने के बाद सम्बन्धित विभागों को जिम्मेदारी मिलेगी। इसके बाद वायु प्रदूषण को रोकने की दिशा में कार्य शुरू होने की सम्भावना है।

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