आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस : एक बहुमुखी विषय


अभी हाल में ही हमारी किताब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का विमोचन पद्मभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणाजी, पद्मश्री श्री अनिल जोशी जी एवं हमारे संस्थान के निदेशक प्रो. अनिल कुमार गुप्ता जी के कर कमलों द्वारा हुआ (चित्र 1 एवं 2)। हमारे बहुत से सहयोगियों ने जोकि विज्ञान अनुसंधान में कार्यरत नहीं हैं, मुझसे इस किताब के बारे में पूछा। उनकी इस किताब के बारे में उत्सुकता को देखते हुये, मैंने किताब की मुख्य जानकारियों को सरल भाषा में इस लेख में सृजित किया है। आशा है प्रस्तुत जानकारियाँ सभी को इस विषय को समझाने में सहायक होंगी।

प्रारंभ से ही, मानव-जाति अपने जीवन को सरल बनाने के लिये अपने चारों ओर के वातावरण में उपलब्ध तत्वों का प्रयोग करने का प्रयास करती रही है। इस परंपरा को बनाये हुए, लोगों ने प्राचीन काल से ही अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिये मशीनों की अवधारणा पर कार्य किया है। इन विचारों के विकास की शुरुआत प्राचीन ग्रीस से मानी जा सकती है और उनके धर्म-ग्रंथों में बुद्धिमान मशीनों का जिक्र मिलता है (उदाहरण हेफीस्थस और पिग्मेलियन)। अधिकांश लोग इतिहास में कैल्क्युलेटर के विकास के बारे में जानते हैं। चीन में प्रयोग किया जाने वाला अबैकस कैल्क्युलेटर का सबसे पहला रूप था।

भारत में पहली शताब्दी के सूत्रों से अबैकस के उपयोग एवं ज्ञान को ‘अभीधर्माकोश’ में संजोया गया है। लगभग पाँचवी शताब्दी में भारतीय गणकों ने अबैकस को उपयोग करने के नये तरीके विकसित कर लिये थे हिंदुकोश में अबैकस के खाली कॉलम को दर्शित करने के लिये शून्य का उपयोग करते थे। मिस्र के लोगों ने भी गणना करने वाली एक मशीन का आविष्कार किया था, जिसमें पत्थर के टुकड़ों का प्रयोग किया जाता था। ग्रीक और रोमन लोग भी इसी तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे। ये प्रारंभिक प्रयास मानवीय तर्क-शक्ति की नकल गैर-मानवीय रूपों में करने की इच्छा को प्रतिबिंबित करते हैं।

Fig-1Fig-2अनेक सदियों से यह इच्छा मानवीय चेतना के पीछे रही है, और समय-समय पर इसमें हुई उन्नति ने ‘सोचनेवाली मशीनों’ के निर्माण के लक्ष्य को आगे बढ़ाया है। बीसवीं सदी के दौरान इस संदर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार हुए, जिससे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के वास्तविक प्रत्यक्षीकरण की संभावना बढ़ती हुई दिखाई देने लगी।

आर्टिफिशल इंटेलीजेंस (ऐआई) विज्ञान की एक शाखा है, जो जटिल समस्याओं के समाधान ढूंढने में मशीनों की सहायता करती है, ताकि वे मानवों-जैसी शैली में अधिक बेहतर ढंग से कार्य कर सकें। सामान्यत: एआई में मानवीय बुद्धिमत्ता की विशेषताओं को एल्गोरिद्म के विकास में लागू किया जाता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को अनेक दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। बुद्धिमत्ता के दृष्टिकोण से कृत्रिम बुद्धिमत्ता मशीनों को ‘‘बुद्धिमान’’ बनाने का कार्य है, ताकि वे उसी प्रकार कार्य कर सकें, जिस तरह कोई मनुष्य किसी कार्य को करता है सामान्यत: एआई को कम्प्यूटर विज्ञान से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन अन्य क्षेत्रों जैसे गणित, मनोविज्ञान, बोध, जीव-विज्ञान, मौसम विज्ञान, भू-विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान और दर्शन-शास्त्र आदि, से भी इसका महत्त्वपूर्ण संबंध है। इन सभी क्षेत्रों से प्राप्त ज्ञान को एक साथ संयोजित करने की क्षमता अंतत: कृत्रिम रूप से बुद्धिमत्ता का निर्माण करने की प्रक्रिया के विकास के लिये ही लाभदायक होती है। एआई कम्प्यूटर विज्ञान का एक भाग है, जो बुद्धिमान सिस्टम के निर्माण से संबंधित है, अर्थात ऐसे कम्प्यूटर सिस्टम जो मानवीय व्यवहार में पाई जाने वाली बुद्धिमत्ता, जैसे भाषा को समझना, सीखना, तर्क-शक्ति का प्रयोग करना और समस्यायें सुलझाना आदि विशेषताओं को प्रदर्शित करें।

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस वर्तमान समय के अनेक नवीन अनुप्रयोगों की एक प्रमुख प्रोद्योगिकी है, जिनमें बैंकिंग सिस्टम, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी का पता लगाने वाले सिस्टम, आवाज को समझने वाले टेलीफोन सिस्टम, वे सॉफ्टवेयर सिस्टम, जो आपके सामने कोई समस्या उत्पन्न होते ही इस पर ध्यान देते हैं और उपयुक्त समाधान प्रस्तुत करते हैं। विभिन्न शोधकर्ताओं द्वारा दी गई एआई की विभिन्न परिभाषायें निम्नलिखित हैं :

हर्बटे साइमन के अनुसार, ‘‘प्रोग्रामों को बुद्धिमान तब माना जाता है, जब वे ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करें, जैसा व्यवहार मनुष्यों द्वारा किये जाने पर उन्हें बुद्धिमत्तापूर्ण माना जाएगा।’’ एलेन रिच और केविन नाइट के अनुसार ‘‘एआई इस बात का अध्ययन है कि कम्प्यूटरों को उन कार्यों को कर पाने में किस प्रकार सक्षम बनाया जाए, जिन्हें इस समय लोग अधिक बेहतर ढंग से करते हैं।’’ क्लॉडसन बॉर्नस्टीन के अनुसार ‘‘एआई सामान्य समझ का विज्ञान है।’’ डगलस बेकर के अनुसार एआई कम्प्यूटर को उन कार्यों को कर पाने में सक्षम बनाने का प्रयास है जिनके बारे में लोगों की धारणा है कि वे कार्य कम्प्यूटरों द्वारा नहीं किए जा सकते। किएस्ट्रो टेलर के अनुसार ‘‘एआई कम्प्यूटरों को वे कार्य कर पाने की क्षमता प्रदान करने का प्रयास है, जो कार्य लोग फिल्मों में करते हैं।’’ पैट्रिक एच. विंस्टन के अनुसार, ‘‘एआई उन विचारों का अध्ययन है, जो कम्प्यूटरों को बुद्धिमान बनने की क्षमता प्रदान करते हैं।’’ रिच और नाइट द्वारा दी गई परिभाषा में यह निहित है कि कुछ क्षेत्रों में कम्प्यूटरों का प्रदर्शन मनुष्यों से बेहतर होता है। जैसे -

1. अंकों की गणना के कार्य में कम्प्यूटरों की गति अधिक तेज होती है।
2. कम्प्यूटर अपनी मेमोरी में सूचना की अधिक मात्रा रख सकते हैं।
3. दोहरावपूर्ण कार्यों को कम्प्यूटर ‘‘थकान’’ के बिना कितनी भी बार कर सकते हैं।

लेकिन मनुष्य उन गतिविधियों में कम्प्यूटरों की तुलना में बहुत अधिक और बेहतर प्रदर्शन करते हैं, जिनमें बुद्धि की आवश्यकता होती है। जैसे -

1. कम्प्यूटर इसे प्रदान की जाने वाली सूचना को केवल प्रोसेस करता है, जबकि मनुष्य इससे भी अधिक कार्य कर सकते हैं।
2. मनुष्य जो सुनते और देखते हैं, वे उस बात का अर्थ निकाल सकते हैं।
3. अपने सामान्य-ज्ञान का प्रयोग करके मनुष्य नये विचार प्रस्तुत कर सकते हैं।

एआई का लक्ष्य उन गतिविधियों में कम्प्यूटरों के प्रदर्शन में सुधार करना है, जिनमें लोग बेहतर ढंग से कार्य करते हैं, अर्थात एआई का लक्ष्य कम्प्यूटरों को अधिक बुद्धिमान बनाना है।

1970 के दशक के अंतिम भाग में विश्व के प्रमुख देशों में एआई के महत्व को पहचाना जाने लगा। जिन देशों ने एआई में छिपी संभावनाओं को पहचान लिया था, उनके नेता एआई के क्षेत्र में व्यापक अनुसंधान कार्यक्रमों के लिये धन प्रदान करने हेतु आवश्यक संसाधनों के लिये लंबी-अवधि की प्रतिबद्धताओं की अनुमति पाने के इच्छुक थे। जापानियों ने सबसे पहले अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की। उन्होंने एआई अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में एक अत्यधिक महत्वाकांक्षी प्रोग्राम शुरू किया। फिफ्थ जनरेशन के नाम से प्रसिद्ध इस प्लान की आधिकारिक घोषणा अक्टूबर 1981 में की गई। इसमें सुपर कम्प्यूटरों के विकास के लिये एक दस वर्षीय कार्यक्रम के क्रियान्वयन का विचार व्यक्त किया गया था। यह सरकार तथा कम्प्यूटर उत्पादों के निर्माण, रोबोटिक्स तथा अन्य संबंधित क्षेत्रों में रुचि रखने वाली कम्पनियों का एक सहयोगपूर्ण प्रयास था।

जापानियों के बाद, विश्व के अन्य प्रमुख देशों ने भी अपने-अपने एआई कार्यक्रमों की योजनाओं की घोषणा की। ब्रिटेन ने पर्याप्त बजट के साथ एल्वी प्रोजेक्ट नामक एक प्लान की शुरुआत की। उसका लक्ष्य जापानियों जितना महत्वाकांक्षी तो नहीं था, लेकिन वह इस दौड़ में ब्रिटेन को बराबर पर बनाये रखने के लिये काफी था। यूरोपीय कॉमन मार्केट के देशों ने एक साथ मिलकर एक पृथक सहयोगपूर्ण प्लान की शुरुआत की है और इस प्रोग्राम को ‘‘एस्प्रिट’’ नाम दिया गया है। फ्रांसीसियों का भी अपना प्लान था। कनाडा, सोवियत यूनियन, इटली, आॅस्ट्रिया, आइरिश रिपब्लिक तथा सिंगापुर सहित अन्य देशों ने भी शोध और विकास कार्य के लिये फंड देने की घोषणा की।

संयुक्त राज्य अमरीका ने एआई पर कार्य करने की कोई योजना नहीं बनाई है। हालाँकि, कुछ संगठनों द्वारा एआई रिसर्च में आगे बढ़ने के लिये कदम उठाये गये हैं। सबसे पहले 1983 में कुछ प्राइवेट कंपनियों ने मिलकर एआई पर लागू होने वाली उन्नत तकनीकों, जैसे वीएलएसआई, का विकास करने के लिये एक संघ की स्थापना की। इस संघ को माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन के नाम से जाना जाता है और एक मुख्यालय अमरीका के टेक्सास राज्य के ऑस्टिन नगर में है। इसके बाद रक्षा-विभाग के डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी एआई में अनुसंधान के लिये दिया जाने वाला फंड बढ़ा दिया गया, जिसमें तीन प्रमुख कार्यक्रमों के विकास के लिये सहायता शामिल है; (1) एक ऑटोनोमस लैंड वेहीकल का विकास, जोकि एक चालक रहित सैन्य वाहन होगा; (2) पायलट के सहायक का विकास, अर्थात एक एक्सपर्ट सिस्टम, जो फाइटर पाइलटों को सहायता प्रदान करेगा और (3) रणनीतिक कम्प्यूटिंग प्रोग्राम जोकि एआई पर आधारित सैन्य सुपर-कम्प्यूटर प्रोजेक्ट था।

इसके अतिरिक्त, अधिकांश बड़ी कम्पनियाँ, जैसे आईबीएम, डीईसी, एटी एंड टी, ह्युलेट पैकार्ड, टेक्सास इंस्टुमेंट्स और जेरॉक्स के भी अपने अनुसंधान कार्यक्रम हैं। अनेक छोटी कम्पनियों के भी अपने-अपने विशिष्ट अनुसंधान कार्यक्रम हैं। एआई सिस्टमों की चार बुनियादी विशेषतायें हैं : मनुष्यों की तरह कार्य करने वाले सिस्टम, मनुष्यों की तरह विचार करने वाले सिस्टम, तार्किक रूप से विचार करने वाले सिस्टम और तार्किक रूप से कार्य करने वाले सिस्टम।

मनुष्यों की तरह कार्य करने वाले सिस्टम : ब्रिटिश तर्कशास्त्री और कम्प्यूटर विशेषज्ञ ‘‘एलन मथिसन ट्युनिंग’’ ने बुद्धिमत्ता की कार्यात्मक परिभाषा प्रदर्शित करने और प्रदान करने के लिये एक परीक्षण प्रस्तावित किया। यह परीक्षण इस प्रकार है कि एक कमरे में एक मनुष्य और एक एआई आधारित सिस्टम होंगे। उनके बीच एक प्रश्नकर्ता को प्रयोग किया जायेगा। यह प्रश्नकर्ता उन दोनों में से किसी को भी सीधे देख या सुन नहीं सकता। वह केवल एक टर्मिनल के माध्यम से ही संपर्क कर सकता है। वह केवल उसके द्वारा पूछे गये प्रश्नों पर उनके द्वारा दिये गये उत्तरों के आधार पर उन्हें अलग-अलग पहचानने का प्रयास करेगा। यदि प्रश्नकर्ता उनके बीच अंतर कर पाने में विफल रहता है, तो एआई आधारित सिस्टम को अपेक्षित बुद्धिमत्ता प्रदर्शित करने और अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सफल माना जायेगा। अर्थात सिस्टम मानवीय रूप कार्य कर सकता है। यदि प्रश्नकर्ता अंतर कर पाने में सफल रहा है, जिसके लिये मानवीय विशेषज्ञता आवश्यक होती है। ट्युरिंग टेस्ट ने बुद्धिमत्ता का निर्धारण करने के लिये एक मानक प्रदान किया। यह जीवित प्राणियों के प्रति पक्षपातपूर्ण समर्थन को दूर करने में भी सहायता प्रदान करती है क्योंकि प्रश्नकर्ता केवल प्रश्नों के उत्तरों की सामग्री पर ही ध्यान केंद्रित करता है।

मनुष्य की तरह कार्य कर पाने के लिये एक सिस्टम में निम्नलिखित क्षमतायें होनी चाहिये : प्राकृतिक भाषा को प्रोसेस करने की क्षमता, ताकि यह प्राकृतिक भाषा को समझ सके और अंग्रेजी में संवाद कर सके। स्वचालित तर्क-शक्ति, ताकि यह नई अवधारणाओं को सीख सके व उन्हें नॉलेज-बेस में रख सके। उसमें तर्कपूर्ण ढंग से विचार कर पाने और नये निष्कर्ष निकाल पाने की क्षमता भी होनी चाहिये। मशीन प्रशिक्षण, ताकि नए परिवर्तनों को स्वीकार किया जा सके और पैटर्न की पहचान की जा सके। वस्तुओं का बोध कर पाने के लिये दृष्टि की और गतिविधियों के लिये रोबोटिक्स की आवश्यकता होती है। मनुष्यों की तरह विचार करने वाले सिस्टम ऐसा माना जाता है कि एआई आधारित सिस्टम मानवीय रूप से विचार करेंगे। जब हमें इसका परीक्षण करने की आवश्यकता हो, तो हमें मानवीय विचारों को उसी समय ग्रहण करना होगा, जिस समय वे उत्पन्न हो रहे हैं। एक बार जब हमारे पास मानवीय मस्तिष्क के संबंध में पर्याप्त सिद्धांत एकत्रित हो जाएँ, तो हम इस बात का परीक्षण कर सकते हैं कि प्रोग्राम का इनपुट/आउटपुट और टाइमिंग व्यवहार मनुष्यों से मेल खाता है या नहीं।

वास्तविक संज्ञानात्म विज्ञान वास्तविक मनुष्यों की पड़ताल करता है और इस विज्ञान का प्रयोग दृष्टि, प्राकृतिक भाषा आदि के क्षेत्र में एक साथ किया जाता है। तार्किक रूप से विचार करने वाले सिस्टम, कोई सिस्टम केवल तभी सही तथ्य दे सकता है, जब वह सही ढंग से तर्कपूर्वक विचार कर सके। ‘‘अरस्तू’’ पश्चिमी दर्शन-शास्त्र के एक व्यापक सिस्टम का निर्माण करने वाला पहला व्यक्ति था, जिसने नैतिकता और तर्क, विज्ञान, राजनीति और मेटाफिजिक्स को एक साथ संयोजित किया। वह ‘‘सही सोच’’ को कूटबद्ध करने वाला व्यक्ति भी था।

उदाहरणार्थ, यदि हमें बताया गया हो कि ‘‘रॉनी एक पुरुष है’’ और ‘‘सभी पुरुष नश्वर है’’, तो इन दो कथनों के द्वारा यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि रॉनी नश्वर है। यह अपेक्षित है कि ये तथ्य मस्तिष्क को संचालित करें और तर्क को प्रारंभ करें। समस्याओं को तार्किक रूप से व्यक्त किया जाना चाहिये और इसके बाद हमें समस्याओं के हल ढूंढने चाहिये। तर्क की अवधारणा का प्रयोग करके समस्याओं को सुलझाने वाला प्रोग्राम एक बुद्धिमान सिस्टम के निर्माण में सहायता प्रदान करता है। इस विधि में आने वाली समस्या को अनौपचारिक ज्ञान का प्रयोग करके और इसे तार्किक विधि के लिये आवश्यक औपचारिक शब्दावली में वर्णित करके व्यक्त किया जाता है।

तार्किक रूप से कार्य करने वाले सिस्टम : तार्किक रूप से कार्य करने का अर्थ है, यह निष्कर्ष निकालना कि कोई विशिष्ट कार्य किसी लक्ष्य को प्राप्त करेगा। कभी-कभी ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिनमें तार्किक रूप से कार्य करते समय कोई निष्कर्ष शामिल न हो। उदाहरण के लिये, गर्म पानी से अपना हाथ खींचना। इसके एक प्रतिक्रियात्मक कार्य के रूप में वर्णित किया जाता है। इसके साथ ज्ञान और तर्क को प्रदर्शित करने की कोई विधि आवश्यक होती है, ताकि नए निष्कर्ष निकाले जा सकें या विविध प्रकार की स्थितियों में निर्णय लिये जा सकें। वस्तुत: सही निष्कर्ष केवल तर्क की प्राप्ति की ओर ही ले जाता है और इसलिये यह वैज्ञानिक विकास का अनुगामी होता है।

एआई का स्कोप व प्रयोग के क्षेत्र : इंजीनियरिंग, चिकित्सा और शोध के अनेक क्षेत्रों में एआई के लिये बहुत अधिक स्कोप है। एआई के अनुप्रयोग ही शोध को संचालित करने वाली शक्ति हैं। ऐसे सिस्टमों के अनेक व्यवहारिक उपयोग हैं। एआई के कुछ महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग जैसे पैटर्न रिकग्निशिन, रोबोटिक्स, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग न्यूरल नेटवर्क और आर्टिफिशियल लाइफ एवं एक्सपर्ट सिस्टम तथा गेम्स है।

पैटर्न रिकग्निशन : पैटर्न रिकग्निशन में विशिष्ट सैंपल्स के विशिष्ट लक्षणों का निर्धारण करना और उन्हें विभिन्न श्रेणियों में रखना शामिल होता है। सामान्यत: ऐसा मशीन लर्निंग तकनीकों के द्वारा किया जाता है, जिसमें सिस्टम को दिए गए डेटा में परिवर्तन करने की अनुमति दी जाती है। इसका प्रयोग भाषणों में एकल शब्दों को पहचानने, आवाज की पहचान करने, स्कैन किए गए ऑब्जेक्ट्स को उनके टाइप के अनुसार सॉर्ट करने और अनचाहे चित्रों को हटाने आदि के लिये किया जा सकता है। व्यवहार में ऐसा करने का एक तरीका सैंपल की विशेषताओं के एक समुच्चय के रूप में प्रस्तुत करना है, उदाहरणार्थ, ध्वनि के लिये आवाज के उतार-चढ़ाव, स्वर, स्वर-विशेषता, और सहजता, का प्रयोग किया जाता है।

इसके बाद एक ट्रेनिंग-सेट का निर्माण किया जाता है, अर्थात सैंपल्स का एक सेट जिसमें परिणाम ज्ञात होते हैं, उदाहरण चेहरे की पहचान के लिये फ्रेड की आँखें हरे रंग की हैं और उसके बाल भूरे हैं, हेनरी की आँखें नीली हैं और बालों का रंग सुनहरा है। इस ट्रेनिंग सेट की सहायता से प्रशिक्षण कार्य विधियाँ ध्वनि या चित्र के ज्ञात प्रकारों के साथ विशेषताओं का संबंध जोड़ने का प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं। प्रतिनिधित्व के आधार पर, कम या अधिक सैंपल्स की आवश्यकता हो सकती है। सांकेतिक प्रदर्शन में, कम संख्या में उदाहरणों की आवश्यकता होती है, जबकि अस्पष्ट प्रशिक्षण के लिये बड़े ट्रेनिंग सेट आवश्यक होते हैं, उदाहरणार्थ-न्यूरल नेटवर्क में।

रोबोटिक्स : रोबोट मनुष्य के स्वचालित रूप की तरह दिखाई देता है। यह एक बुद्धिमान और आज्ञाकारी, लेकिन अव्यक्तिगत मशीन का विकास है। रोबोट शब्द की उत्पत्ति ‘रोबोटा’ शब्द से हुई है, जिसका प्रयोग ‘बंधुआ मजदूरी’ के लिये किया जाता है। अनेक रोबोट्स को संचालित करने के लिये मानवीय ऑपरेटर की या उनके पूरे मिशन के दौरन सूक्ष्म मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। हालाँकि, रोबोट्स की शुरुआत मशीनों में कुछ मात्रा में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग करने के उद्देश्य से हुई थी और धीरे-धीरे अधिक स्वतंत्र होते जा रहे हैं। अधिकांश आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस अंतत: रोबोटिक्स की ओर ले जाती है। यह कम्प्यूटर से संबंधित है, जो संवेदक इनपुट के प्रतिक्रिया दे सकें तथा गति कर सकें। अधिकांश न्यूरल नेटवर्किंग, नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग, इमेज रिकिग्निशन, स्पीच रिकग्निशिन/सिंथसिस रिसर्च का लक्ष्य अंतत: अपनी टेक्नोलॉजी को रोबोटिक्स के प्रतिमान में शामिल करना होता है, अर्थात एक पूर्णत: मानव जैसा रोबोट। रोबोटिक्स की मुख्य विशेषता गतिशीलता है, उदाहरण किसी मैकेनिकल उपकरण को किस प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है, ताकि यह अपने शरीर के अंगों को एक निश्चित स्वरूप में चलाए या कमरे में चहलकदमी करे?

ऐसा इन कार्यों को एक वर्चुअल सिम्युलेशन में सीखकर और फिर इन्हें वास्तविक रोबोट पर लागू करके किया जा सकता है। व्यावहारिक रूप से, रोबोट के हाथ-पैरों को हिलाने के लिये, हाथों में गतिशीलता की कुछ संभावनायें हैं : कंधों को दो धुरियों के अनुसार घुमाया जा सकता है और कोहनी भी दो बुनियादी प्रकारों से घुमाई जा सकती है। इनमें से प्रत्येक संभावना को स्वतंत्रता की श्रेणी कहा जाता है। सामान्यत: एक की गतिशीलता के लिये एक नियंत्रक का प्रयोग किया जाता है। इसके लिये नियंत्रकों के इष्टतम संयोजन को सीखना आवश्यकता है; ताकि वे किसी कार्य को पूर्ण करने के लिये सफलतापूर्वक सहयोग कर सकें।

नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एन एल पी) : यह टेक्स्ट से अर्थ निकालने का कार्य है, जिसे गणनात्मक भाषा-शास्त्र भी कहा जाता है। एक बार जब अर्थ को प्रोसेस कर लिया जाता है, तो इसकी व्याख्या करके इसे समझा जा सकता है। एन एल पी में, वैध वाक्यों की बुनियादी संरचना मानवीय रूप से परिभाषित करनी होती है और दिये गये वाक्य के साथ टेम्पलेट का मिलान करने के लिये सर्च का प्रयोग किया जाता है। अस्पष्ट वाक्यों को समझने और क्रियाओं के काल व वचनों का मिलान करने में बहुत अधिक समय लगाया जाता है। यदि प्रोग्रामर वाक्यों के टेम्पलेट बनाने में पर्याप्त समय लगाए तो परिणाम बहुत उत्साहवर्धक होंगे। परंतु, वाक्यों के नये प्रकारों और नई भाषा के लिये इस उबाऊ कार्य को पुन: प्रारंभ से दोहराने की आवश्यकता होती है नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग में सांख्यिकीय विश्लेषण का प्रयोग भी किया जाता है।

न्यूरल नेटवर्क और आर्टिफिशियल लाइफ : न्यूरल नेटवर्क सूचना को उसी प्रकार प्रोसेस करते हैं, जिस प्रकार मनुष्यों के मस्तिष्क में ऐसा किया जाता है। एक न्यूरल नेटवर्क आपस में बहुत अधिक निकटता से जुड़े हुए तत्वों की एक बड़ी संख्या होती है। इन्हें न्यूरॉन्स कहा जाता है और ये किसी समस्या को सुलझाने के लिये समानांतर रूप से कार्य करते हैं। न्यूरल नेटवर्कों में सीखने, याद रखने और डेटा के बीच संबंध स्थापित करने की क्षमता होती है। आर्टिफिशियल लाइफ भी आर्टिफिशल इंटेलीजेंस का एक लोकप्रिय पहलू है, जिसमें जीवित प्रणालियों, जैसे चीटियों के बिलों, ततैया के छत्ते, बड़ें जंगलों, शहरों और महानगरों के मॉडल बनाना और नकल करना शामिल होता है। ऐसे सिस्टम को परिभाषित करना आवश्यक होता है, जो जटिल व्यक्तियों पर आधारित हों व सीखने में सक्षम हों।

एक्सपर्ट सिस्टम तथा गेम्स : एक्सपर्ट सिस्टम्स पर रिसर्च का लक्ष्य एक विशेषज्ञ के ज्ञान व अनुभव को एक प्रोग्राम में रखना और इस प्रोग्राम का प्रयोग चिकित्सा, व्यापार, मैनेजमेंट आदि जैसे किसी विशिष्ट क्षेत्र के विशेषज्ञ के रूप में करना था। एक्सपर्ट सिस्टम्स का प्रयोग सहकर्मियों के रूप में किया जा सकता है। एक्सपर्ट सिस्टम्स पर जारी रिसर्च में हुए विकास के साथ ही एक नये प्रकार की इंजीनियरिंग का भी आगमन हुआ है : नॉलेज इंजीनियरिंग, नॉलेज इंजीनियर का कार्य एक विशेषज्ञ के ज्ञान को लेकर उसे ऐसे प्रारूप में बदलना होता है, जिसे कम्प्यूटरों द्वारा समझा जा सके। हालाँकि, एक्सपर्ट सिस्टम्स की भी अपनी सीमायें होती हैं। एक्सपर्ट सिस्टम्स को विकसित होने, इनका परीक्षण करने और इन्हें डबिग करने में बहुत अधिक समय लगता है। एक्सपर्ट सिस्टम्स में मानवीय बुद्धिमत्ता का निर्माण करने वाले अधिक सूक्ष्म गुण, जैसे अंर्तज्ञान नहीं होते। मानवीय विशेषज्ञों के विपरीत एक्सपर्ट सिस्टम अपनी गलतियों से सीख ले पाने में सक्षम नहीं थे। एक बार किसी एक्सपर्ट सिस्टम्स में कोई त्रुटि प्राप्त होने पर, इस त्रुटि को सुधारने के तरीके से इंजीनियर द्वारा पुन: प्रोग्राम किया जाना ही है।

‘वीडियो गेम्स’ का विकास एआई के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। एआई कम्प्यूटरों को अपने यूजर्स/प्लेयर्स के बारे में सीखने और इसलिये गेम को यथासंभव चुनौतीपूर्ण बनाने की सुविधा देता है। ये गेम्स खिलाड़ी को खेलने की शैली को याद रखते हैं और इसलिये वे इसके अनुसार अगले राउंड में परिवर्तन करते हैं क्योंकि गेम में प्रयुक्त आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के द्वारा खेल के दौरान एक बैक-अप का प्रयोग किया जाता है।

उपरोक्त आर्टिफिशल इंटेलीजेंस की व्याख्या के आधार पर हम कह सकते हैं कि आने वाले समय में मानव जाति पूरी तरह से एआई पर निर्भर होगी इसलिये इस ज्ञान को पूर्णतया समझने की अति आवश्यकता है।

सम्पर्क


सुशील कुमार एवं रमा सुशील
वा. हि. भ. सं., देहरादून।


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