अर्थव्यवस्था भी खतरे में पड़ जाएगी गंगा की तबाही से

13 Jul 2012
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नदी को बचाने के लिए गंगा सेवा मिशन की पहल, गोष्ठी कल से


एक तरफ सरकारी एजेंसियां गंगा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिकीय प्रवाह की बात करती हैं, तो दूसरी तरफ कुछ राजनीतिकों और पूंजीपतियों के समूह जल और दूसरे प्राकृतिक संसाधनों की हत्या की योजनाएं बनाते नजर आते हैं। हम गंगा को नुकसान पहुंचा कर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बड़ी संख्या में विदेशी सिर्फ गंगा को देखने आते हैं। इसलिए हम पर्यटन व्यवसाय का भी नुकसान कर रहे हैं। गंगा एक नदी नहीं, बल्कि समूची संस्कृति और विरासत है। इससे हिंदू ही नहीं मुसलमानों की भी आस्थाएं जुड़ी हैं।

‘गंगा सेवा मिशन’ का मानना है कि हम गंगा को नुकसान पहुंचा कर अपनी समृद्ध संस्कृति को ही नष्ट नहीं कर रहे, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। मिशन ने गुरुवार को यह दावा भी किया कि उत्तराखंड में बने टिहरी बांध का उद्देश्य आज तक पूरा नहीं हुआ है। खासतौर से बिजली उत्पादन का जो लक्ष्य रखा गया था, वह हासिल नहीं हो पाया। इसलिए पूर्ववर्ती परियोजनाओं की समीक्षा होनी चाहिए।संकटग्रस्त गंगा को पुनर्जीवन देने की कवायद शुरू करवाने के मकसद से ‘गंगा सेवा मिशन’ एक नई वैचारिक पहल करने जा रहा है। इस पहल का मकसद ‘अविरल और निर्मल गंगा’ के लिए कुछ व्यावहारिक नतीजों पर पहुंचना है। इस दिशा में काम कर रहे सभी संगठनों, बुद्धिजीवियों को एक साथ लाते हुए यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 14 और 15 जुलाई को 10 बजे से दो दिवसीय गोष्ठी का आयोजन ‘गंगा सेवा मिशन’, ‘हजरत सलीम चिश्ती फाउंडेशन’ और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सहयोग से किया जाएगा।

गंगा सेवा मिशन के स्वामी आनंद स्वरूप ने गुरुवार को यहां एक प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि गंगा नदी आज समाप्त होने के कगार पर है। एक तरफ सरकारी एजेंसियां गंगा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिकीय प्रवाह की बात करती हैं, तो दूसरी तरफ कुछ राजनीतिकों और पूंजीपतियों के समूह जल और दूसरे प्राकृतिक संसाधनों की हत्या की योजनाएं बनाते नजर आते हैं। हम गंगा को नुकसान पहुंचा कर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बड़ी संख्या में विदेशी सिर्फ गंगा को देखने आते हैं। इसलिए हम पर्यटन व्यवसाय का भी नुकसान कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जो इस संगोष्ठी का उद्घाटन कर सकते हैं, पहले ही यह घोषणा कर चुके हैं कि उनकी सरकार गंगा में प्राकृतिक प्रवाह के लिए संकल्पबद्ध है। हम इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री से यह जानने को उत्सुक हैं कि भारत सरकार ने इस दिशा में पिछले सौ दिनों में क्या कदम उठाएं हैं। इस अवसर पर यह जानने का प्रयास भी किया जाएगा कि आईआईटी-रुड़की और वन्यजीव संस्थान, देहरादून के शोध के तथ्यों की सरकारी समीक्षा और कार्ययोजना का क्या प्रारूप बना है। उन्होंने पूछा कि गंगा पर बनाए जा रहे बांध पानी के प्रवाह को बाधित किए बिना बनाए जा रहे हैं, यह कहना क्या वास्तव में तथ्यों का सही आकलन है और इन बांधों का हिमालय के पर्यावरण पर क्या असर पड़ेगा। स्वामी ने कहा कि समूचे हिमालय में भारी पारिस्थितिकीय असंतुलन हो रहा है।

स्वामी आनंदस्वरूप ने बताया कि गंगा घाटी के पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी गोष्ठी में आमंत्रित किया गया है। ये राज्य हैं- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और दिल्ली। उत्तराखंड में गंगा पर बन रहे बांधों के विरोध के संदर्भ में जब उनसे पूछा गया कि बांध नहीं होंगे तो बिजली कैसे मिलेगी, तो उन्होंने कहा कि पहले टिहरी जैसी परियोजनाओं का आकलन और समीक्षा की जानी चाहिए कि क्या उनका उद्देश्य पूरा हुआ। उन्होंने गंगा कार्य योजना (गैप) के पहले और दूसरे चरण में भी अनियमितता होने का आरोप लगाते हुए इनकी समीक्षा और सीबीआई से इनकी जांच कराने की मांग की।

स्वामी ने उत्तराखंड में कई बांध बनाने की तैयारी किए जाने का दावा करते हुए कहा कि ऐसा ही रहा तो कुछ समय बाद गंगा में एक बूंद पानी नहीं दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि संगोष्ठी में हम कुछ वैकल्पिक सुझाव भी देंगे जिनके तहत गंगा के अलावा दूसरे जल स्रोतों से बिजली प्राप्त करने की कार्ययोजना बनाई जा सकती है। उनका इशारा घराट जैसी छोटी इकाइयों की तरफ था। उन्होंने कहा कि दो दिन के इस मंथन में गंगा घाटी में जनहित के लिए जल के समुचित उपयोग या जल के व्यवसायीकरण, स्थानीय शहरी और ग्रामीण स्वशासन द्वारा मल प्रवाह और औद्योगिक जल प्रदूषण पर नियंत्रण व नदियों से नहरों को दिए जाने वाले जल के समुचित प्रबंधन पर विचार होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस मंथन में अमृत जरूर निकलेगा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि गंगा को संसाधन नहीं माना जाना चाहिए।

इस सिलसिले में उनके पास क्या कार्ययोजना है यह पूछे जाने पर डॉ. ओंकार मित्तल ने कहा कि हमारे पास अलग से कोई कार्ययोजना नहीं है। अरुण कुमार ‘पानीबाबा’ ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सिंचाई के लिए नदी की हत्या नहीं की जा सकती। हम सरकार को सुझाव दे सकते हैं। उस पर वैज्ञानिक काम कर सकते हैं। हम जलधारा से कुछ पानी निकाल सकते हैं। पानी जरूर निकालें, पर एक विधिवत व्यवस्था के तहत। इस मामले में अराजकता नहीं हो सकती।

स्वामी आनंदस्वरूप ने स्पष्ट किया कि हम बांध या बिजली पैदा किए जाने के विरोधी नहीं हैं, हम अराजकता के विरोधी हैं। इस मौके पर हजरत चिश्ती फाउंडेशन के पीरजादा रईस मियां चिश्ती ने कहा - मैं मुसलमान और सूफी होने की हैसियत से कहता हूं कि हम हर पाक चीज को बचाने की वकालत करते हैं। गंगा क्योंकि पाक है, इसलिए हम उसे बचाने की बात करते हैं। इसका पाक-साफ होना जरूरी है। यह नदी नहीं, बल्कि समूची संस्कृति और विरासत है। इससे हिंदू ही नहीं मुसलमानों की भी आस्थाएं जुड़ी हैं।

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