आसान नहीं है गंगा की शुद्धि का मसला

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ऐसा लगता है कि गंगा की शुद्धि का मसला जितना आसान समझा जा रहा था उतना है नहीं। असलियत यह है कि भले मोदी सरकार इस बाबत लाख दावे करे लेकिन केन्द्र सरकार के सात मंत्रालयों की लाख कोशिशों के बावजूद 2014 से लेकर आज तक गंगा की एक बूँद भी साफ नहीं हो पाई है। 2017 के पाँच महीने पूरे होने को हैं, परिणाम वही ढाक के तीन पात के रूप में सामने आए हैं। कहने का तात्पर्य यह कि इस बारे में अभी तक तो कुछ सार्थक परिणाम सामने आए नहीं हैं जबकि इस परियोजना को 2018 में पूरा होने का दावा किया जा रहा था। गंगा आज भी मैली है। दावे कुछ भी किए जायें असलियत यह है कि आज भी गंगा में कारखानों से गिरने वाले रसायन-युक्त अवशेष और गंदे नालों पर अंकुश नहीं लग सका है। नतीजन उसमें ऑक्सीजन की मात्रा बराबर कम होती जा रही है।

दुख इस बात का है कि इस बाबत राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अधिकारियों को कई बार चेतावनी दे चुका है, जवाब तलब कर चुका है और लताड़ भी लगा चुका है कि इस मामले में लापरवाही क्यों बरती जा रही है और उसका कारण क्या है? एनजीटी ने तो गंगा सफाई के मसले पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अधिकारी को लताड़ लगाते हुए कहा था कि गंगा सफाई के नाम पर संसाधनों और समय का सिर्फ नुकसान ही किया जा रहा है। विभागों में आपसी तालमेल और संवाद न होने से गंगा में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर अंकुश के लिये कोई ठोस योजना तैयार नहीं हो सकी है।

साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई करते हुए कहा है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारों पर कूड़े को जलाने से रोकने के मामले में वह पूरी तरह नाकाम रही है। जबकि पिछले साल दिसम्बर माह में एनजीटी ने पर्यावरण संरक्षण के मद्देनज़र कूड़ा जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। यही नहीं नदी के किनारे कूड़ा इकट्ठा नहीं करने के हमारे आदेश के अनुपालन में भी वह विफल रही है।

एनजीटी ने बीते दिनों गंगा की सफाई के मामले की सुनवाई के दौरान आदेश दिया कि गंगा की सहायक नदी रामगंगा के किनारे ई-कचरा फेंकने वालों पर एक लाख रुपया मुआवजे के तौर पर जुर्माना लगाया जाये। एनजीटी की पीठ ने कहा कि हमारे संज्ञान में आया है कि विभिन्न उद्योगों से बड़ी मात्रा में पाउडर के रूप में निकलने वाले हानिकारक ई-कचरे का निपटारा रामगंगा नदी के किनारे किया जा रहा है। यह खतरनाक कचरा अत्यधिक प्रदूषित है और मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिये हानिकारक है। दुख की बात यह है कि अधिकारी इसके निपटान की जिम्मेदारी से बच रहे हैं और इसका दोष एक-दूसरे पर मढ़ रहे हैं। नदी किनारे पड़े ई-कचरे को तत्काल हटाया जाये और यह स्पष्ट किया कि नदी किनारे ई-कचरे डालने वाले उद्योगों को कचरे का अवैध तरीके से नदी किनारे निपटान करते पाये जानेे पर हर घटना पर मुआवजा देना होगा और अधिकरण के आदेश का उल्लंघन करने वाले उद्योग से मुआवजे की रकम इलाके का डिवीजनल मजिस्ट्रेट वसूल करेगा।

सबसे बड़ी बात यह कि इस मिशन की घोषणा हुए तकरीबन तीन बरस हो रहे हैं और इसका बजट लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस बारे में कोई सफाई नहीं दी जा रही है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और इसका कारण क्या है। विडम्बना यह है कि गंगा साफ नहीं है, उसमें उतना पानी नहीं है लेकिन कोलकाता से वाराणसी तक उसमें माल ढुलाई और नदी यात्रा की योजना बनायी जा रही है।

हमारी केन्द्रीय जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने मिशन की घोषणा के बाद कहा था कि गंगा एक साल में साफ हो जायेगी और इसका असर अक्टूबर 2015 में दिखने लगेगा। मार्च 2017 में उन्होंने कहा कि गंगा सफाई में आठ महीने की देरी होगी। अब जल संसाधन मंत्रालय द्वारा कहा जा रहा है कि विभिन्न चरणों की समय सीमा कम करते हुए सात साल में अविरल गंगा का लक्ष्य तय किया गया है। यानी 2024 में चुनाव से पहले यह पूरा हो पायेगा। मंत्रालय की मानें तो आने वाले तीन सालों में गंगा को अविरल बना देंगे और 2018 तक गंगा पर सभी सूचीबद्ध नालों पर स्थापित हो रहे सीवेज शोधन संयत्र यानी एसटीपी चालू कर दिए जायेंगे। अब उमा भारती जी कह रही हैं कि उन्हें भरोसा है कि 2019-20 तक गंगा को निर्मल कर लिया जायेगा। सवाल यह उठता है कि मंत्री महोदया के दावे को सही माना जाये या उनके ही मंत्रालय के कथन को, यह विचारणीय है।

इस बाबत मंत्रालय का कहना है कि मिशन के शुरुआती दौर में गंगा में गिरने वाले नालों को लेकर जो कार्ययोजना बनायी गई थी उसमें सूचीबद्ध 144 नालों का जिक्र था। उनको रोकने पर ही सारी कार्ययोजना बनायी गई थी। उस समय गंगा के प्रवाह क्षेत्र में गाँवों, कस्बों, शहरों तक में हजारों ऐसे नाले हैं, जिनको सूचीबद्ध नहीं किया था। यही कारण रहा कि वे नाले एसटीपी के दायरे में नहीं आ सके। अब कहीं जाकर जल संसाधन मंत्रालय, राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय इस तरह के नालों को गंगा में गिरने से रोकने के काम में जुट गए हैं। जाहिर है यह लापरवाही का ही नतीजा है। अब दावा किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में भाजपा की सरकारें आ जाने के कारण केन्द्र और राज्य के बीच बेहतर तालमेल होगा। क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योेगी आदित्य नाथ की इसमें विशेष रुचि है और उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत तो पार्टी के गंगा प्रकोष्ठ के संयोजक भी हैं।

सरकार की मानें तो पिछले ढाई साल में इन दोनों राज्यों में दूसरे दलों की सरकारों के होने से जल संसाधन मंत्रालय को पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पा रहा था जिससे गंगा सफाई के काम में समस्या आ रही थी। जबकि झारखण्ड में भाजपा की सरकार होने से बीते ढ़ाई साल में वहाँ ज्यादा तेजी से काम हुआ है। लेकिन ऊपर से यानी इन दोनों राज्यों में सफाई के काम में ढिलाई कहें या बिल्कुल न होने से वह ज्यादा प्रभावी नहीं हो पा रही थी।

अभी जो अहम सवाल है कि जब गंगा अपने मायके यानी उत्तराखण्ड और उसके बाद उत्तर प्रदेश में ही साफ नहीं है, तो बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में गंगा की सफाई की बात करना ही बेमानी है। उमा भारती जी नर्मदा को विश्व की सबसे स्वच्छ नदी मानती हैं और कहती हैं कि नर्मदा से गंगा की तुलना नहीं की जा सकती। गंगा दुनिया की सर्वाधिक दस प्रदूषित नदियों में एक है। समझ नहीं आता कि जब नर्मदा साफ हो सकती है तो गंगा क्यों नहीं। जबकि दोनों नदियाँ देश में धार्मिक आस्था के मामले में शीर्ष पर हैं। उसमें गंगा तो सर्वोपरि है जिसे पुुण्य सलिला, पतित पावनी, मोक्ष दायिनी माना गया है और उमा भारती जी माँ मानती हैं। समझ नहीं आता कि जब टेम्स नदी जिसे 1957 में मृत मान लिया गया था, अब वह दुनिया की साफ नदियों में गिनी जाती है। कोलोराडो नदी भी प्रदूषण की शिकार थी, अमेरिका और मैक्सिको ने 1990 में मिलकर उसे प्रदूषण मुक्त किया। अब वह साफ नदियों में शुमार है।

1986 में राइन नदी यूरोप की सबसे प्रदूषित नदियों में गिनी जाती थी लेकिन तकरीबन आधे दर्जन देशों से गुजरने वाली राइन अपसी सहयोग की बदौलत आज साफ है। फिर गंगा क्यों नहीं साफ हो सकती। उसमें किंतु-परंतु और विलम्ब क्यों? विडम्बना यह कि यह उस देश में हो रहा है जहाँ के लोग सबसे ज्यादा धर्मभीरू हैं जो नदियों में स्नान कर अपने को धन्य मानते हैं। उमा भारती जी यमुना की भी शुद्धि करने का दावा करती हैं। अभी कुछेक बरस पहले ही की बात है जब यमुना को टेम्स बनाने का भी दावा किया गया था। यहाँ विचारणीय यह है कि जब गंगा का ही भविष्य अंधकार में है, उस हालत में यमुना का क्या होगा।

सम्पर्क
ज्ञानेन्द्र रावत

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं पर्यावरणविद अध्यक्ष, राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति, ए-326, जीडीए फ्लैट्स, फर्स्ट फ्लोर, मिलन विहार, फेज-2, अभय खण्ड-3, समीप मदर डेयरी, इंदिरापुरम, गाजियाबाद-201010, उ.प्र. मोबाइल: 9891573982, ई-मेल: rawat.gyanendra@rediffmail.com, rawat.gyanendra@gmail.com
 

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