असहनीय ध्वनि प्रदूषण

विश्व के सबसे शोरभरे शहरों को लेकर हुए सर्वेक्षण में भारत को एक तरह से तीनों स्वर्ण, रजत व ताम्र पदक प्राप्त हुए हैं। इसमें राजधानी दिल्ली प्रथम आई है, जिसमें 70 लाख से अधिक वाहन प्रतिदिन सड़कों पर दौड़ते हैं। दिल्ली के बाद मुंबई और कोलकाता का यही हाल है।भारत के अस्त-व्यस्त शहरों एवं नागरिकों पर दम घोटू धुआं और बदबूदार कचड़े के ढेरों के साथ ध्वनि विस्तारक तथा कारों, ट्रकों और चिंघाड़ती बसों से बमबारी करते हार्न लगातार आक्रमण करते रहते हैं। शहरों और नगरों में ध्वनि प्रदूषण असहनीय होता जा रहा है। यह लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। इस वजह से सुनने की समस्या, नींद में गड़बड़ी, हृदयरोग, कार्यस्थल एवं विद्यालयों में कार्यक्षमता में दिक्कतें आदि उस सामाजिक महामारी के कुछ लक्षण हैं, जिससे राष्ट्रभर में न केवल तनाव में वृद्धि हो रही है, बल्कि पर्यावरण का ह्रास भी हो रहा है।

किसी समय उत्सवधर्मिता को इस असाधारण राष्ट्र के आकर्षण का एक हिस्सा माना जाता था। लेकिन निम्नस्तरीय सेनीटेशन, बदबूदार झुग्गी बस्तियां और खुले सीवर के बाद शोर, वायु एवं जल प्रदूषण को अब एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा माने जाने लगा है तथा इस पर शीघ्र सरकारी व सामुदायिक कार्रवाई की मांग की जा रही है। विश्व के सबसे शोरभरे शहरों को लेकर हुए सर्वेक्षण में भारत को एक तरह से तीनों, स्वर्ण, रजत व ताम्र पदक प्राप्त हुए हैं। इसमें राजधानी दिल्ली प्रथम आई है, जिसमें 70 लाख से अधिक वाहन प्रतिदिन सड़कों पर दौड़ते हैं। दिल्ली के बाद मुंबई और कोलकाता का यही हाल है।

गौरतलब है कि कर्कशता में सर्वाधिक योगदान कार एवं मोटर साइकलें करती हैं। यहां वाहन चालन को शोरभरा बना दिया गया है और बजाए पीछे (बैकव्यू) देखने वाले कांच के प्रयोग के, आगे निकलने या ओवर टेक करने का प्रयास किया जाता है। बीसीसी, के अनुसार मुड़ने के दौरान या किसी चौराहे, दोराहे पर पहुंचकर रफ्तार धीमी करने के बजाए ड्राइवर तेज हार्न बजाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। वे साइकिल चालक, पदयात्री, बच्चों, कुत्ताें, गायों और उन सभी को, जो दुर्भाग्यवश उनसे धीमे चलते हैं, के कान के पास ही जोर से भोंपू बजाते हैं।

विद्यालयों एवं अस्पतालों के आस-पास हार्न बजाने की अनुमति नहीं है, लेकिन यह ऐसा कानून है जिसे व्यापक रूप से लागू नहीं किया गया है तथा खतरनाक तरीके से इसकी अनदेखी की गई है। छोटे कुत्ताें की ही तरह छोटे वाहन सबसे ज्यादा शोर करते हैं। दिनभर व्यस्त रहने वाली सड़कें रात में सूनी तो होती हैं, लेकिन इस दौरान ट्रक उन पर जबरिया काबिज हो जाते हैं जो 118 डेसीबल के अपने हार्न से इन सड़कों पर राज करते हुए गुजरते हैं। शहरी क्षेत्रों में विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देश में शोर का लेवल लगभग 50 डेसीबल का है। वहीं 85 डेसीबल से ऊपर का कैसा भी शोर कानों को नुकसान पहुंचा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में सन् 2010 में सड़क दुर्घटनाओं के 2,31,027 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी। वहीं बहुत खराब रख-रखाव वाली व क्षमता से बहुत अधिक भरी बसें अपनी कमाई बढ़ाने के लिए हार्न के सहारे तेज रफ्तार से अपने एक स्टॉप से दूसरे स्टॉप के बीच में अंधाधुंध दौड़ती नजर आती हैं।

यदि नियम की बात करें तो सड़क पर किसी भी तरह की विनम्रता कमोबेश नदारद है। भारत में कानूनों को विदेशी मेहमानों के समक्ष उधार गहनों की तरह प्रस्तुत किया जाता है और बाद में उनसे लोकतांत्रिक धूल इकट्ठा करने को कह दिया जाता है।

दिल्ली से लेकर नीचे तक के सभी राजनीतिज्ञों ने भ्रष्टाचार एवं बेईमानी का स्वर फैलाकर समाज के सभी वर्गो यानी ट्रक ड्राइवर से लेकर कॉरपोरेट के लोगों तक को यह संदेश दिया है कि कानून का कोई अर्थ नहीं है। न तो उन्हें लागू करने के लिए और न ही उनका पालन करने के लिए किसी को बाध्य किया जाएगा।

अंधेरा होने के बाद आपको तब बहुत ही रंगीन शोर दिखाई पड़ता है जब अंधेरी सड़कों पर मोटर साइकिल, कार, ट्रक और ट्रैक्टर भी बिना अपनी हेडलाइट के अक्सर गलत दिशा में चलते दिखाई पड़ते हैं। यह शोरभरी लापरवाही व नियमों की अवहेलना से भरा वाहन चालन न केवल खतरनाक है बल्कि कईयों के लिए मौत का सामान भी बन जाता है। वैसे यह सभी के लिए जोखिम भरा तो है ही। ध्वनि प्रदूषण, चाहे किसी भी तरह का क्यों न हो, कुल मिलाकर वह अस्वास्थ्यकर, अरुचिकर और नागरिकों की निजता का जबर्दस्त अतिक्रमण है।

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