आस्था का महाकुंभ
21 January 2013

दुनिया में पानी के बहुत से मेले लगते हैं, लेकिन कुंभ जैसा कोई नहीं। स्वीडन की स्टॉकहोम, ऑस्ट्रेलिया की ब्रिसबेन, अमेरिका की हडसन, कनाडा की ओटावा...जाने कितने ही नदी उत्सव साल-दर-साल आयोजित होते ही हैं, लेकिन कुंभ!.. कुंभ की बात ही कुछ और है। जाति, धर्म, अमीरी, गरीबी.. यहां तक कि राष्ट्र की सरहदें भी कुंभ में कोई मायने नहीं रखती। साधु-संत-समाज-देशी-विदेशी... इस आयोजन में आकर सभी जैसे खो जाते हैं। कुंभ में आकर ऐसा लगता ही नहीं कि हम भिन्न हैं। हालांकि पिछले 50 वर्षों में बहुत कुछ बदला है, बावजूद इसके यह सिलसिला बरस.. दो बरस नहीं, हजारों बरसों से बदस्तूर जारी है। छः बरस में अर्धकुंभ, 12 में कुंभ और 144 बरस में महाकुंभ! ये सभी मुझे आश्चर्यचकित भी करते हैं और मन में जिज्ञासा भी जगाते हैं।




महाकुम्भ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह मेला प्रति 12 वर्षों के अन्तराल पर आयोजित किया जाता है। खगोल गणनाओं के अनुसार, यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमाँ, वृश्चिक राशी में, और वृहस्पति, मेष राशी में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को 'कुम्भ स्बान-योग' कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलिक माना जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है।


महाकुंभ का यह महान मिलन किसी नास्तिक के लिए कोई घटना नहीं है, वैज्ञानिक मस्तिष्क के लिए तो यह एक हानिकर रूढ़ि भी है, क्योंकि गंगा और यमुना, दोनों नदियों में इतना प्रदूषण बहता रहता है कि उनके पानी का स्पर्श भी संक्रमण का कारण बन सकता है और आधुनिक व्यक्ति के लिए यह इस पर निर्भर है कि उसकी आधुनिकता किस प्रकार की है। मैंने बहुत-से ऐसे आधुनिक देखे हैं और उनके बारे में सुना है जो नियमित रूप से हरिद्वार, वैष्णो देवी, प्रयाग, तिरुपति आदि जाते हैं। ये अपनी आधुनिकता और अपनी आस्थाओं को अलग-अलग कमरों में रखते हैं और एक की दूसरे से भिड़ंत नहीं होने देते। इनमें उच्च कोटि के वैज्ञानिक भी हैं, जो किसी नए ढंग की मिसाइल का एक्सपेरिमेंट करने या आकाश में चंद्रयान छोड़ने के पहले ईश्वर के दरबार में हाजिरी दे आना जरूरी समझते हैं और ऐसे आधुनिक भी, जो बड़े से बड़े त्योहार के दिन भी अपना मधुपर्व मनाते हैं और मौज-मस्ती तथा नाचने-गाने में अपनी समस्त ऊर्जा लगा देते हैं। इनके लिए छुट्टी का कोई भी दिन सुखवाद के देवता को अर्घ्य चढ़ाने का दिन होता है।




कुंभ धार्मिक आस्था का अद्वितीय प्रदर्शन है। संगम तट श्रद्धालुओं से अटा पड़ा है। इस बार व्यवस्था में उन लोगों पर भी ध्यान है जो प्रायः वंचित रह जाते थे। इसी के मद्देनजर नौ घंटे से अधिक ड्यूटी करने वाले सिपाहियों को लंच पैकेट देने का फैसला लिया गया है। साथ में मेला क्षेत्र में खाद्यान्न की कलाबाजारी रोकने के लिए भी कड़ी व्यवस्था की गई है। मेला की तैयारी भी तेजी से आगे बढ़ रही है और 18 पेंटून पुल बनकर तैयार हो गए हैं। मेला क्षेत्र में रह रहे कल्पवासियों व अन्य तीर्थयात्रियों को प्रदत्त की जा रही शासकीय सेवाओं के संबंध में शिकायतों के निस्तारण हेतु एक व्यापक कार्य योजना तैयार की गई है। विशेष कर स्वास्थ्य एवं सफाई, जल निगम, बिजली खाद्य एवं आपूर्ति, दुग्ध आदि विभागों के तहत किसी सामान्य तीर्थ यात्री/ कल्पवासियों द्वारा किसी भी शासकीय सेवा से संबंधित तीन प्रकार से शिकायतें दर्ज कराई जा सकती हैं जिसमें विभिन्न विभागों द्वारा स्थापित सेक्टर कार्यालय में पहुंच कर शिकायत दर्ज कराना, मेले में संबंधित केंद्रीय कंट्रोल रूम में शिकायत दर्ज कराना व अपने मोबाइल के माध्यम से विभागीय सेक्टर कार्यालय में शिकायत दर्ज कराना।

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