आत्मनिर्भरता चाहिए तो विज्ञानियों को किसान बनना होगा

10 Feb 2020
0 mins read
पद्मभूषण डाॅ.अनिल प्रकाश जोशी का साक्षात्कार।
पद्मभूषण डाॅ.अनिल प्रकाश जोशी का साक्षात्कार।

हेस्को के संस्थापक डाॅ. अनिल प्रकाश जोशी पर्यावरण के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम है। पर्यावरण संरक्षण के लिए उनके कार्य और योगदान को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है, लेकिन पर्यावरण के लिए उठाए जा रहे कदम से वें नाखुश हैं और सरकार एवं जनता से जल्द पहल करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने ग्राॅस इनवायरमेंट प्रोडक्ट (जीईपी) का मसौदा भी पेश किया है। यही नहीं डाॅ. जोशी विभिन्न कार्यक्रमों और लेखों के माध्यम से देश में खेती किसानी की बदहाली पर चिंता व्यक्त करते हुए लोगों को जागरूक करने का भी प्रयास कर रहे है। 

हाल ही में पद्म भूषण सम्मान से विभूषित हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन (हेस्को) के संस्थापक डॉ. अनिल प्रकाश जोशी रविवार को भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के स्थापना दिवस समारोह में शिरकत करने करनाल पहुंचे थे। यहां उन्होंने संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को व्हीट मैन ऑफ इंडिया की नई पहचान दी। ऋषि तुल्य जीवन जीने वाले, पृथ्वी और प्रकृति को बचाने के लिए सर्वस्व समर्पित कर चुके पद्म भूषण डॉ. जोशी ने प्रकृति को बचाने का आह्वान किया। कार्यक्रम में उनके संबोधन के बाद दैनिक जागरण के मुख्य संवाददाता पवन शर्मा से उन्होंने विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-

आज आपने आइआइडब्ल्यूबीआर के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को व्हीट मैन ऑफ इंडिया का नाम दिया। इसके पीछे क्या उद्देश्य है ?

देखिए, यह चमत्कार ही है कि आज पूरे देश में गेहूं के कुल रकबे के 60 फीसद हिस्से पर उन्हीं किस्मों की पैदावार है, जो डॉ. ज्ञानेंद्र के दिशा-निर्देशन में विकसित हुईं। अनाज की कमी दूर करने से लेकर कुपोषण का संकट हल करने में उनकी भूमिका अतुलनीय है। मैं संदेश देना चाहता हूं कि जो शख्सियत इतनी खामोशी से देश के लिए इतना कुछ कर रही है, उसे इतना ही सम्मान भी मिले। मैं चाहता हूं कि पूरी दुनिया में यह संदेश जाना चाहिए।

पर्यावरण और प्राकृतिक संपदाओं पर कैसा खतरा देख रहे हैं ?

जल, जंगल से लेकर जमीन तक, सब खतरे में हैं। लेकिन कोई इनकी बात तक नहीं करना चाहता। सब आंकड़ों के खेल में उलझे हैं। लोग ऑक्सीजन मास्क लगा रहे हैं। बीमारियां बढ़ रही हैं। पहाड़ों की शुद्ध हवा बिक रही है। खेतीबाड़ी पर गहरा संकट है। प्रकृति और पृथ्वी का अस्तित्व मिट रहा है। अब भी नहीं संभले तो अगली पीढ़ियां अपने पूर्वजों का तर्पण तक नहीं करना चाहेंगी।

इस समस्या का क्या समाधान है ?

सबसे पहले खोखले दावों के जाल और आंकड़ों के कागजी खेल से बाहर निकलना होगा। बजट में सब जीडीपी की तो खूब बात करते हैं लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का कोई जिक्र नहीं होता। न ही इनके संरक्षण की बात उठती है। इसीलिए मैंने ग्रॉस इनवायरमेंट प्रोडक्ट (जीईपी) का मसौदा पेश किया है, ताकि यह लेखा-जोखा सामने आ सके कि धरती की आबोहवा और हमारी प्राणवायु के मूल स्रोत किस हाल में हैं ? सरकार उनके लिए क्या कर रही है ? इनके बचाव के लिए क्या योजना है ?

विज्ञानी समुदाय की भूमिका को कैसे आंकते हैं ?

इस देश को यदि सही मायने में आत्मनिर्भरता चाहिए तो हमारे विज्ञानियों को किसान बनना होगा। वैज्ञानिक जब तक किसान नहीं बनेंगे, तब तक खेती-बाड़ी व किसान के मुद्दों को नहीं समझ सकते। हर किसान वैज्ञानिक की भूमिका में आ सकता है, यदि वैज्ञानिकों और किसानों के बीच के गैप को खत्म कर दिया जाए। साढ़े छह लाख गांव इस देश की अर्थव्यवस्था तय करते हैं। दुर्भाग्य यह है कि गांवों का कभी नाम नहीं होता।

क्या देश का पर्यावरण पारिस्थितिकी तंत्र अंधाधुंध विकास की कीमत चुका रहा है ?

निस्संदेह। दरअसल, पिछले दो दशक में दुनिया की बढ़ती जीडीपी की सबसे बड़ी मार पर्यावरण पर पड़ी। इसका परिणाम नदियों के सूखने, धरती की उर्वरा-शक्ति के क्षरण, जलवायु संकट व ग्लोबल वार्मिंग आदि के रूप में दिख रहा है। व्यापारिक सभ्यता ने इसे मुनाफे का साधन बना लिया है। इससे प्राकृतिक संसाधन और कमजोर होते चले गए। हममें से किसी ने नहीं सोचा था कि कभी बंद बोतलों में पानी बिकेगा। आज यह हजारों करोड़ रुपये का व्यापार बन गया है। यदि प्रकृति-प्रदत्त यह संसाधन बोतलों में बंद न होकर नदी-नालों, कुओं, पोखरों में होता तो प्राकृतिक चक्र पर विपरीत प्रभाव न पड़ता। दुर्भाग्य की बात यह है कि सरकार ने प्रकृति के संरक्षण की दिशा में बड़े कदम अभी तक नहीं उठाए हैं। ऐसा करना बहुत जरूरी है। जब तक सरकार जागेगी, बहुत देर हो चुकी होगी।

देश के नीति निर्धारकों और सरकार से क्या कहना चाहेंगे ?

मैं चाहता हूं कि इस देश के अन्नदाता यानि किसानों को उस तकनीक, शोध-अनुसंधान का वास्तविक लाभ मिले, जिसका इस्तेमाल करके आज न केवल हिंदुस्तान बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर गिनती के पूंजीपति कब्जा जमा चुके हैं। इसके लिए हर किसी को आवाज उठानी होगी।

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading