और अब सियाचिन ... (Siachen Glacier Dispute)


क्या ग्लेशियर पिघलने के साथ बदल सकती है भारत और पाकिस्तान के बीच दुनिया के सबसे दुर्गम युद्ध क्षेत्र की सामरिक भूमिका

.सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया के सबसे ऊँचे युद्ध के मैदान के रूप में जाना जाता है। लम्बे समय से पाकिस्तान और भारत के बीच सैन्य संघर्ष की धुरी रहा है। जब से भारत के सशस्त्र बलों ने सालतोरो चोटी और 1984 में काराकोरम पर्वत श्रृंखला में गुजरने वाले कम-से-कम तीन पहाड़ों को अपने कब्जे में ले लिया है तब से यह दुर्गम क्षेत्र दोनों देशों की उच्च सैन्य इकाइयों की तैनाती के साथ एक सामरिक हॉटस्पॉट बन गया है। इस लम्बी लड़ाई में सबसे बड़ा प्राकृतिक जोखिम हैः ग्लेशियर का पिघलना। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि सियाचिन ग्लेशियर पिघल रहा है। इस बारे में श्रीशन वेंकटेश ने विदेश और सामरिक मामलों के विशेषज्ञों से जाना कि पिघलते ग्लेशियर दोनों देशों के भू-राजनैतिक सम्बन्धों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं…

गोपालस्वामी पार्थसारथी, पूर्व राजदूत और एक सुरक्षा विशेषज्ञः निस्संदेह यह सच है कि सियाचिन ग्लेशियर का पिघलना एक पारिस्थितिकी एवं पर्यावरणीय आपदा है। क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग निश्चित ही चिन्ता का विषय है। लेकिन सियाचिन ग्लेशियर के पिघलने से इस क्षेत्र में भारत की रणनीतिक उपस्थिति या भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर बहुत असर पड़ने वाला नहीं है। सामरिक दृष्टि से सियाचिन ग्लेशियर का महत्त्व कमोबेश अकादमिक है। मैं कहना चाहूँगा कि सियाचिन ग्लेशियर के पश्चिम में सालतोरो पर्वत श्रेणी इस लिहाज से अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह पश्चिम में पाकिस्तान और पूर्व में चीन के बीच की विभाजन रेखा का काम करती है। सियाचिन ग्लेशियर के पिघलने से ज्यादा सालतोरो रेंज में सैन्य मौजूदगी कम होने का रणनीतिक असर भारत-पाक सम्बन्धों पर अधिक पड़ेगा।

मनोज जोशी, आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशनः लगता नहीं कि ग्लेशियर का पिघलना भारत-पाक सम्बन्धों को प्रभावित करेगा। हालाँकि, पाकिस्तान सियाचिन के आस-पास हिमालय ग्लेशियर पिघलने के लिये इस क्षेत्र में भारत की सैन्य उपस्थिति पर उंगली उठाता रहा है। लेकिन ग्लेशियर पिघलने के बावजूद सालतोरो रेंज और सियाचिन में भारत के सैनिकों की उपस्थिति बनी रहने के आसार हैं। नुबरा और सिंधु नदियों में पानी का एक बहुत बड़ा हिस्सा इन ग्लेशियरों से आता है, और इनके पिघलने के भयानक परिणाम होंगे, खासकर पाकिस्तान पर। फिर भी रणनीतिक तौर पर ग्लेशियर के पिघलने से कोई बड़ा असर पड़ने की उम्मीद कम है। सियाचिन जैसी कठिन परिस्थितियों में सैन्य उपस्थिति एक बड़ा जोखिम है, लेकिन यह भी देखना चाहिए कि लगातार हिमस्खलन और प्रतिकूल परिस्थितियाँ सिर्फ सियाचिन तक सीमित नहीं हैं। कई ऊँचे सीमावर्ती क्षेत्रों में भी इसी प्रकार की स्थितियाँ हैं। निस्संदेह, सियाचिन से सैनिकों का हटना एक आदर्श विकल्प होगा, जिससे दोनों तरफ होने वाली जान-माल की क्षति थम सकेगी। लेकिन फिलहाल ऐसा होता दिखाई नहीं पड़ रहा है।

अनिमेष रॉल, सोसाइटी फॉर द स्टडी ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्टः दोनों पक्षों की ओर से सशस्त्र बलों की उपस्थिति ग्लेशियरों के लिये भारी पर्यावरणीय नुकसान है। सियाचिन ग्लेशियर पर अपनी मजबूत किलेबंदी के कथित रणनीतिक लाभ के अलावा यह क्षेत्र भारत व पाकिस्तान के लिये शुद्ध पानी का प्रमुख स्रोत है। रिमो नाम के एक सहायक हिमनद के साथ सियाचिन ग्लेशियर नुबरा, श्योक और आखिर में सिंधु नदी में पानी पहुँचाता है। विवादास्पद सवाल यह है कि सियाचिन में ग्लेशियर पिघल गए तो क्या होगा? यह एक ऐसी आशंका है कि जो पहले पिघल रहे ग्लेशियरों और अचानक बाढ़ व भूस्खलन के खतरे को देखते हुए की जा रही है। पहले भी सियाचिन से सैनिकों को हटाने के लिये कई बार प्रयास हुए, जो नाकाम रहे। कई लोगों का तर्क है कि इस क्षेत्र को एक शांति पार्क में बदल देना चाहिए या फिर यहाँ भौगोलिक एवं हिमनद अध्ययन के लिये एक वैज्ञानिक शोध केन्द्र की स्थापना की जाए, जिसका फायदा दोनों देशों को मिले। क्षेत्र में व्यापक सैन्य उपस्थिति के चलते पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखते हुए दोनों देशों को आगे आकर समझना चाहिए कि सियाचिन किसी का नहीं है। सियाचिन ग्लेशियर के समृद्ध एवं विविधता से भरपूर संसाधनों खासकर पानी का फायदा लेने के लिये मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading