औसत से 27 फीसदी कम बरसा है मानसून

1 Aug 2012
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राजस्थान पर अकाल का साया एक बार फिर से मंडराने लगा है। वैसे भी राजस्थान और अकाल का चोली-दामन सा नाता है। राजस्थान के निवासियों को किसी न किसी रूप में लगभग हमेशा ही अकाल का सामना करना पड़ता रहा है। अकाल की सबसे भीषण मार सन् 2002-03 के दौरा पड़ी जब राजस्थान के करीब 41 हजार गांव इसकी चपेट में आए थे।

राजस्थान एक बार फिर सूखे का सामना करने जा रहा है। प्रदेश में अब तक मानसून की मेहरबानी बेहद कम रही है। सूखे की आहट को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी राजस्थान सरकार को सचेत कर दिया है। मानसून की स्थिति को देखें तो राजस्थान में एक जून से 20 जूलाई तक 33 जिलों में से 18 में सामान्य से कम तथा पांच जिलों में ना के बराबर बरसात हुई है। मात्र दस जिले ही ऐसे हैं कि जहां औसत पानी बरसा है। सामान्यतः राजस्थान में इस दौरान 172 मिमी वर्षा होती है लेकिन इस साल मात्र 125 मिमी बरसात ही दर्ज की जा सकी है जो कि औसत से 27 फीसदी कम है। राजस्थान के अधिकांश बांध और तालाब रीते पड़े हैं।

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के कुल 723 बड़े बांधों में से 470 बिल्कुल रीते पड़े हैं जबकि 242 बांधों में बहुत थोड़ा पानी ही आ सका है। मात्र 11 बांध ही अब तक भर पाए हैं। बड़ी क्षमता वाले 274 बांधों में से 136 बिल्कुल खाली हैं जबकि 133 में आंशिक पानी ही आया है। केवल पांच बांध ही अब तक भर सके हैं। इसी तरह 440 छोटे बांधों में भी ज्यादातर सुखे पड़े हैं। बरसात की कमी के चलते राजस्थान में खरीफ की फसल की बुवाई भी नहीं हो पा रही है। वर्ष 2008 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में कुल जोत योग्य 27,259 हजार हेक्टेयर जमीन में से 7,910 हजार हेक्टेयर ही सिंचित भूमि है। सिंचित भाग में 2,411 हजार हेक्टेयर में कुओं से सिंचाई होती है।

शेष भाग में नहरों, तालाबों और अन्य साधनों से सिंचाई होती है। प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में कुओं में जलस्तर 300 फुट नीचे है। राज्य के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़ आदि जिलों में 500 फुट तक गहरे कुएं खोदने पर भी पानी नहीं मिलता। कुछ जगह पानी फ्लोराइड युक्त व खारा भी होता है जो कि सिंचाई एवं पेयजल हेतु उपयुक्त नहीं होता। राज्य की 75 प्रतिशत खेती वर्षा पर निर्भर रहती है। राज्य के अधिकतर क्षेत्र मं, सिंचाई कुओं से होती है तथा कम वर्षा के समय अक्सर कुएं सूख जाते हैं अथवा जलस्तर बहुत नीचे चला जाता है। समय पर पर्याप्त वर्षा न होने के कारण खरीफ व रबी दोनों ही फसलें खराब हो जाती हैं।

इन हालात में राजस्थान पर अकाल का साया एक बार फिर से मंडराने लगा है। वैसे भी राजस्थान और अकाल का चोली-दामन सा नाता है। राजस्थान के निवासियों को किसी न किसी रूप में लगभग हमेशा ही अकाल का सामना करना पड़ता रहा है। राजस्थान बनने के पश्चात केवल वर्ष 1959-60, 1973-74, 1975-76, 1976-77, 1990-91 व 1994-95 में ही प्रदेश में अकाल नहीं पड़ा अन्यथा हर साल राजस्थान के लोगों को अकाल से जूझना पड़ता है। अकाल की सबसे भीषण मार सन् 2002-03 के दौरा पड़ी जब राजस्थान के करीब 41 हजार गांव इसकी चपेट में आए थे। पिछले साल भी राजस्थान के 11 जिलों दौसा, बीकानेर, चूरू जैसलमेर, अजमेर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, जयपुर और नागौर के 3739 गांवों को अकालग्रस्त घोषित किया गया था। इस बार बरसात की कमी को देखते हुए राजस्थान सरकार ने चार जिलों में राहत कार्य जुलाई महीने के अंत तक जारी रखने की घोषणा की है।

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