अवैध खनन का मायाजाल

1 Aug 2011
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कर्नाटक के लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े ने राज्य में अवैध खनन की गतिविधियों का खुलासा करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा चार अन्य मंत्रियों को इसके लिए दोषी ठहराया है। कर्नाटक तो सिर्फ एक बानगी है। हकीकत में अवैध खनन का यह गोरखधंधा देश के सभी खनिज बहुल राज्यों में चल रहा है। पहले चोरी छिपे चलने वाला यह धंधा अब खुलेआम होता है और खनन माफिया-अफसर और नेताओं का गठजोड़ इसके जरिये न सिर्फ अरबों कमा रहा है बल्कि देश के खजाने को अरबों का चूना भी लगा रहा है। देश में अवैध खनन की स्थिति पर नईदुनिया की पड़तालः
अवैध खननअवैध खननअवैध खनन का मायाजाल समझना हो तो पश्चिम बंगाल के रानीगंज-आसनसोल कोयलांचल को देखना चाहिए। देश के कोयला क्षेत्र का दिल कहे जाने वाले इस इलाके को अवैध खनन माफिया ने लुप्तप्राय होने की कगार पर पहुंचा दिया है। रानीगंज कोयलांचल का 1530 किलोमीटर का क्षेत्र बारूद के ढेर पर बैठा है। यहां जमीन के अंदर आग सुलग रही है। आग जब तीखी गंध वाली मीथेन गैस को साथ लेकर बाहर निकलती है, तो सौ-सौ मीटर की चौड़ाई वाले भूमिगत कोयले के सीम को राख करती है। खुली खदानों से कोयले का अवैध खनन, भूमिगत खदानों से कोयला निकालने के बाद बालू भरने में कोताही और मिथेन गैस भंडार का पता चलने के बावजूद उसके भंडारण या उत्खनन के बारे में अब तक अनिर्णय पर प्रकृति जैसे खफा हो गई है। राजनीतिक पार्टियां-सरकारी अफसर और कोयला माफिया का गठबंधन मानव जीवन के दैनंदिन सवालों पर भारी पड़ रहा है। इलाके में 19 खुली खदानें हैं जहां काम बंद है। इन्हें बालू से भरने के लिए निविदाएं मंगाने की योजनाएं फाइलों में दबी हैं। हालांकि, कोल माफिया के लिए इन खदानों में काम बंद नहीं है।

छोटे-छोटे रैट होल्स के जरिए खनन जारी है। एक टन कोयला निकालने पर छह सौ रुपए। इसे कोयला माफिया 1300 रुपए के भाव में बेचता है। अधिकांश खरीददार स्पांज आयरन इकाइयां और रोलिंग मिल्स हैं, जो कोलकाता तक फैली हैं। एक टन कोयले की अधिकृत कीमत 2800 रुपए है। जाहिर है, सस्ता माल किसे नहीं भाता है। अब देखा जाए कि असर क्या पड़ता है। कोयला कंपनियां खनन करते हुए स्टॉपिंग प्वाइंट (जहां से कोयला निकालना आर्थिक रूप से मुफीद नहीं पड़ता) तक पहुंचती हैं और काम रोक देती हैं। कोल माफिया का काम यहां से शुरू होता है। खुली खदानों के पास रैट होल्स में जितने भीतर तक की खुदाई होगी, उतनी ही कमाई भी। भले ही मौत साथ-साथ चलती है। निमचा इलाके में दो साल पहले ऐसे ही एक रैट होल से निकली आग की लपट ने शाम्डी गांव को ही निगल लिया। वहां दो सौ मीटर जमीन फटी और मीथेन गैस रिसने लगी। इन इलाकों में जमीन के भीतर तेजी से आग फैल रही है लेकिन कोयला माफिया का काम अबाध जारी है। कोल इंडिया सूत्रों के अनुसार, हर साल लगभग 30 लाख टन कोयला साइकिलों पर ढोकर खनन माफिया पार कर देता है। अंदाजा लगाइए-सिर्फ झरिया कोयलांचल में सरकार को कितने के राजस्व की क्षति हो रही है। देश भर के आंकड़ों की बात करें तो कोयला उत्पादन करने वाले 17 राज्यों में पिछले पांच साल के दौरान अवैध खनन के 1,82,000 मामले दर्ज किए गए हैं। अधिकांश मामले बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और महाराष्ट्र के हैं।

कोयला ही नहीं, लोहा, अल्युमिनियम, अभ्रक, तांबा, मैंगनीज समेत कई अन्य कीमती खनिजों के प्राकृतिक भंडारों में अवैध खनन माफिया का बोलबाला है। खनन माफिया-अफसर और राजनीतिक दलों के नेताओं की तिकड़ी की मिलीभगत में हर साल करोड़ों की रॉयल्टी का चूना देश को लग रहा है। उड़ीसा में अवैध खनन माफिया के द्वारा सरकारी खजाने को 630 करोड़ रुपए का चूना लगाने की बात सीएजी की रिपोर्ट में सामने आई है। राज्य सरकार वहां जांच करा रही है। 125 खदानों में काम बंद करा दिया गया है। उड़ीसा में भी अफसरों की मिलीभगत की बातें सामने आई हैं। वहां प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने तीन साल पहले ही लौह अयस्क और मैंगनीज की खदानों में अवैध खनन को लेकर चेतावनी दी थी लेकिन सरकार चुप बैठी रही। दूसरे राज्यों में ऑडिट के दौरान अवैध खनन को लेकर सवाल उठते रहे हैं। उड़ीसा और कर्नाटक के अलावा झारखंड, आंध्र प्रदेश, गोवा और बंगाल की कुछ खदानों से लौह अयस्क का अंधाधुंध अवैध खनन जारी है। सरकारी दस्तावेजों में भी इन तथ्यों की पुष्टि की जाती रही है लेकिन मुख्य रूप से नक्सली समस्या को वजह बताकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती रही है। जबकि, तथ्यों से साफ है कि खनन माफिया से हाथ मिलाकर कई बड़ी कंपनियों ने वारे-न्यारे किए हैं। अवैध खनन में 1990 से इजाफा हुआ, जब नई औद्योगिक नीति के तहत औद्योगिकरण को बढ़ावा दिया गया।

अवैध खनन को एक तरह से कहें तो धीरे-धीरे व्यवस्थागत स्वीकृति मिलती जा रही है। खनन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश में अवैध खनन के मामले सबसे अधिक दर्ज किए गए हैं। 2006 से 2010 तक अवैध खनन के कुल एक लाख 61 हजार 140 मामले सामने आए जिनमें 39670 मामले आंध्र प्रदेश के थे। गुजरात 24936 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर है। महाराष्ट्र (22885 मामले), मध्य प्रदेश (17397), कर्नाटक (12191), राजस्थान (11513), केरल (8204), छत्तीसगढ़ (7402), तमिलनाडु (5191), हरियाणा (3897), हिमाचल प्रदेश (2095), गोवा (492), झारखंड (953), पश्चिम बंगाल (901) आदि राज्यों में अवैध खनन माफिया की सक्रियता पर अंकुश लगाने में सरकारी एजेंसियां नाकाम हैं। कुछ राज्यों को छोड़कर अधिकांश में एफआईआर तक नहीं दर्ज कराया गया। अवैध खनन को लेकर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में सरकारी स्तर पर गंभीरता दिखती है। देशभर में महज 44 हजार 445 मामलों में कार्रवाई हुई है। आंध्र प्रदेश में तो एक भी मामला न तो पुलिस तक और न ही अदालत तक पहुंचा है। छत्तीगढ़ में 2383 मामले कोर्ट तक पहुंचे। गुजरात (158 पुलिस में, आठ अदालत में), हरियाणा (पुलिस में 103, कोर्ट में 138), हिमाचल प्रदेश में 711 मामले अदालत में, झारखंड में (205 पुलिस में, 39 अदालत में), कर्नाटक में (959 पुलिस में, 771 कोर्ट में), मध्य प्रदेश (पुलिस में पांच, कोर्ट में 16157 मामले), महाराष्ट्र में (20197 पुलिस में, 13 कोर्ट में), उड़ीसा (पुलिस में 57, कोर्ट में 86), राजस्थान (पुलिस में 607, कोर्ट में 59), तमिलनाडु में (579 पुलिस में, 421 कोर्ट में), बंगाल में (974 पुलिस में, 91 कोर्ट में)। बंगाल में गैर सरकारी संगठन सक्रिय हैं। पुलिस में प्राथमिकी है लेकिन पुलिस जांच कछुआ चाल से चलती है।

कोल इंडिया और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (रॉ मैटीरियल डिवीजन) में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार खनन नीतियां बदलने की कवायद कर रही है। मुख्य उद्देश्य अवैध खनन पर अंकुश लगाना और लीज लाइसेंस का बेजा इस्तेमाल रोकना है। हाल में कोलकाता आए खनन सचिव एस विजय कुमार ने एक बैठक में कहा कि ‘मिनरल कंजरवेशन ऐंड डेवलपमेंट रूल्स’ से संशोधन का प्रस्ताव है। इसके तहत खनन कंपनियों और खनिज विपणन कंपनियों के आंकड़े राष्ट्रीय डेटाबेस से जोड़ दिए जाएंगे। खनन से लेकर विपणन और निर्यात तक विभिन्न स्तरों पर राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियां आंकड़ों का मिलना करेंगी। 50 हजार मीट्रिक टन से कम निर्यात करने वाली कंपनियां केंद्र सरकार की कंपनी एमएमटीसी के जरिए काम करेंगी। अन्य कंपनियों को भारत सरकार की नोडल एजेंसी इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस आईबीएम में खुद को पंजीकृत कराना होगा। इसके अलावा जल्द ही कोल नेशनलाइजेशन की धारा तीन और माइन्स एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेग्युलेशन एक्ट) में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी किया जाएगा। इसके तहत स्टील, ऊर्जा और सीमेंट कंपनियों को कोयला ब्लॉक्स के आवंटन के लिए खुली नीलामी की जाएगी लेकिन खनन उद्योग क्षेत्र से जुड़े लोग सरकारी स्तर पर सिर्फ लाइसेंसिंग नीति में सुधार की ताजा कवायद को नाकाफी मानते हैं।

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