बाढ़ में पेयजल का उपाय

13 Dec 2008
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flood and drinking water
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स्थानीय उपाय


वर्षा ऋतु के दौरान चार जिलों खगड़िया, सहरसा, सुपौल व मधुबनी में क्रमश: 1170 मिलीमीटर (मिमी), 1132 मिमी, 1344 मिमी और 1305 मिमी प्रतिवर्ष औसत बारिश होती है। हालांकि इन जिलों का संयुक्त औसत वर्षा 1250 मिमी है। और वर्षा ऋतु के समय अधिकतर बारिश अनुमानित 56 दिनों में होती है। लेकिन दुर्भाग्यवश ये वर्षा का बहुमूल्य पानी पूरी तरह से बेकार चला जाता है और असहाय ग्रामीणों को गन्दे पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

प्रतिवर्ष, औसत वर्षा और वर्षा ऋतु में बारिश होने वाले कुल दिनों को ध्यान में रखते हुए, स्थानीय वर्षाजल संग्रहण तकनीक लोगों को स्वच्छ पीने का पानी मुहैया कराने में काफी मददगार साबित हो सकता है।

 

वर्षाजल संग्रहण तकनीक


मेघ पाईन अभियान अपने पहले चरण में, चार चुने गए जिलों के एक-एक बाढ़ प्रभावित पंचायत में विकेन्द्रित, सरल व टिकाऊ वर्षाजल संग्रहण तकनीक का प्रचार करेगा। इस अभियान की रणनीति वर्षाजल संग्रहण तकनीक को स्थानीय बनाने की होगी ताकि बाढ़ से प्रभावित विभिन्न क्षेत्रों के लोग इस तकनीक को आसानी से अपना सकें और बाढ़ के दौरान स्वच्छ पेयजल पी सके। यह उपाय काफी आसान है। गांव वालों को इस तकनीक को समझते हुए पूर्णरूप से वर्षाजल संग्रहण करना होगा और इसे गैलन में जमा करना होगा ताकि इस संरक्षित पानी को बारिश के दौरान व बारिश के बीच के सूखे दिनों के समय उपयोग कर सकें। वर्षाजल संग्रहण के लिए निम्नलिखति संसाधनों की आवश्यकता होगी-

- पॉलीथीन शीट
- बाँस
- रस्सी
- गैलन

बाढ़ की तीव्रता और जल जमाव के स्तर को देखते हुए स्थानीय लोग निम्नलिखित क्षेत्रों में अपना बचाव करते हैं।

- तटबंध और गांव के आसपास के ऊँचे स्थान या
- बाढ़ के पानी से घिरे अपने-अपने घरों में

इन क्षेत्रों में खासकर पीने के पानी की समस्या हल करने के लिए वर्षाजल संग्रहण की आवश्यकता है। परन्तु विभिन्न क्षेत्रों के लिए वर्षाजल संग्रहण तकनीक अलग होगी

 

 

 

तटबंध और ऊँचे स्थानों के लिए


बाढ़ के दौरान तटबंध और गांव के पास के ऊँचे स्थानों पर लोगों और पशुओं के जमा हो जाने के कारण वहां की स्थिति काफी अस्त-व्यस्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में खाली स्थान की कमी के कारण सिर्फ वर्षाजल संग्रहण के लिए एक भी ढांचा खड़ा करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए ऐसे स्थानों पर वर्षाजल संग्रहण पॉलीथीन शीट से बने अस्थाई घरों (जो आमतौर पर लोगों द्वारा बाढ़ के समय बनाये जाते हैं) से ही हो सकता है। बाढ़ के समय पॉलीथीन शीट को बाँस के ढ़ांचे पर डालकर रहने की व्यवस्था की जाती है।

गांव के लोग ऐसे ढ़ाचे को चारों कोने से जमीन के स्तर तक लाकर छोटे-छोटे बाँस के खूँटों से बाँध देते है, ताकि बगल से साँप या और कोई खतरनाक जीव-जन्तु तम्बू में प्रवेश न कर सके। वर्षाजल संग्रहण करने के लिए इन्हीं पॉलीथीन शीट से बनी अस्थाई घरों का प्रयोग किया जा सकता है। जिसका यह मतलब हुआ कि पॉलीथीन शीट पर पड़ने वाले वर्षाजल को तरीके से पीने के लिए इकट्ठा किया जा सकता है। वर्षाजल संग्रहण करने के लिए अस्थाई घर बनाते समय निम्नलिखित बिन्दुओं का पालन करें -

- सबसे पहले पॉलीथीन शीट के आकार एवं खाली स्थान के आधार पर अपने अस्थाई घर का ढांचा बाँस से बनायें
- ढांचा बनाते समय यह ध्यान में रखना पड़ेगा कि उसी घर के छत से वर्षाजल पीने के लिए इकटठा किया जायेगा
- ज्यादातर तटबंधों और अन्य ऊँचे स्थानों पर बने अस्थाई घर के ढ़ाचे के लिए लोग 6 गड्ढ़े खोदते हैं
- इन अस्थाई घरों से वर्षाजल संग्रहण करने के लिए चार और गङ्ढें खोदने पड़ेगें- यह अतिरिक्त चार गङ्ढों में बाँस के चार खम्भें गाड़ दें
- इसके अतिरिक्त बीच के दो गड्ढ़ों में दूसरे खम्बों के तुलना में बाँस का एक लम्बा चौखट गाड़ दें
- बाकी बचे चार गड्ढ़ों में बाँस के चार छोटे-छोटे खूंटे गाड़ दें ताकि पॉलीथीन शीट के छौर को जमीन के स्तर तक बांधा जा सके
- पॉलीथीन शीट को तैयार ढांचा पर रखें और सभी महत्वपूर्ण जगहों पर रस्सी की मदद से कसकर बाँध दें
- जो चार अतिरिक्त बाँस गाड़े गये थे उन पर पॉलीथीन शीट ऊपर से दें और उस पर बाँस तिरछा बांधे ताकि पॉलीथीन शीट से वर्षाजल तटबंध के बजाय गैलन में जाय
- तिरछे बाँस की लम्बाई अस्थाई घर के छत से थोड़ा आगे निकला होना चाहिए ताकि समय आने पर वर्षाजल को बड़े गैलन में इकट्ठा किया जा सके
- जमीन और तिरछे बाँस के बीच की दूरी इतनी होनी चाहिए ताकि खाली स्थान में एक बड़ा गैलन आसानी से रखा जा सके और जमा किया गया वर्षाजल आस-पास के कीचड़ के छींटें पड़ने से दूषित न हो

उपायउपाय

 

 

बाढ़ के पानी से घिरे घरों के लिए


बाढ़ की भयानक रूप के कारण तटबंधों के दोनों तरफ रह रहे लोगों की जिन्दगी असमंजस में पड़ जाती है। वे इस संशय में रहते हैं कि अपने घरों में ही रहें या तटबंधों पर पलायन करें। बाढ़ के समय अपने घरों में रह रहे लोगों की जिन्दगी काफी असहाय होती है और पेयजल की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ता है। बाढ़ के समय घरों में रहने वाले लोगों की व्यवस्था तटबंधों पर रह रहे लोगों से थोड़ा भिन्न होता है। इन लोगों को किसी अस्थाई स्थान पर नहीं जाना पड़ता जबतक बाढ़ का पानी उनके घरों में न घुस जाए। अत: एक अस्थाई वर्षाजल संग्रहण ढाँचा बनाने का उपाय काफी फायदेमंद होगा।

बाढ़ के पानी से घिरे घरों के लिए वर्षाजल संग्रहण हेतु निम्नलिखित संसाधनों की आवश्यकता होगी -

- पॉलीथीन शीट
- बाँस
- रस्सी
- गैलन

वर्षाजल संग्रहण की अस्थाई प्रणाली खुले स्थान में लगाया जा सकती है, जैसे आंगन, मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर, यदि घर पक्का हो तो गलियारे में अथवा घर के ठीक आगे किसी उच्चे चबुतरे पर। इस प्रणाली को कार्यान्यवित करने का तरीका निम्नलिखित है।

- पॉलीथीन शीट के आकार के अनुसार चार छोटे गड्ढ़े खोदें
- इन चारों गड्ढ़ों में बाँस के चार खम्भे को मजबूती से लगायें
- पॉलीथीन शीट को रस्सी की मदद से चार बाँस के खम्भों से कसकर
बांध दें ताकि जोरदार बारिश और ऑंधी में भी यह क्षतिग्रस्त न हो
- पॉलीथीन शीट के बीच एक छेद करें ताकि वर्षाजल आसानी से इस छेद के द्वारा नीचे रखे गये गैलन में जमा हो सके
- पॉलीथीन शीट की जमीन से एक उपयुक्त ऊँचाई होनी चाहिए ताकि बारिश के दौरान आसपास के छींटों से गैलन में इकट्ठा होता पानी दूषित न हो

उपायउपाय

वर्षाजल संग्रहण की क्षमता


खगड़िया, सहरसा, सुपौल और मधुबनी में संयुक्त रूप से प्रतिवर्ष होने वाली औसत वर्षा लगभग 1250 मि.मी. है। जून से लेकर सितम्बर महीने तक कुल 56 दिन वर्षा होती है। यह सलाह दी जाती है कि वर्षाजल संग्रहण स्वच्छ तरीके से किया जाए ताकि संग्रहित जल स्वच्छ व सुरक्षित रहे। चूँकि आसपास के इलाके में कोई औद्योगिक इकाई नहीं है इसलिए वर्षाजल की गुणवत्ता को भी कोई खतरा नहीं है।

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