बाँधों के विकल्प की दिशाएँ

18 Feb 2017
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लोगों को पानी, बिजली प्रदान करने एवं बाढ़ से सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिये बेहतर विकल्प मौजूद हैं। ये विकल्प बड़े बाँधों के मुकाबले अक्सर किफायती, जल्द बनने वाले एवं लोगों व पर्यावरण के लिये कम नुक़सानदेह होते हैं।

विश्व भर में बाँध प्रभावित समुदायों ने बड़े बाँधों के विकल्प के बारे में जानकारी एकत्र की है। लोगों ने उन जानकारियों को बेहतर विकल्प के समर्थन में सरकारों पर दबाव बनाने के लिये इस्तेमाल किया है। उनके प्रयासों से कुछ विनाशकारी एवं अनावश्यक बाँधों को रोकने में सफलता मिली है।

इस अध्याय में, हम बाँधों के कुछ विकल्पों पर चर्चा एवं उन सफल कार्यवाहियों को रेंखाकित कर रहे हैं जिसे समुदायों एवं स्वैच्छिक संगठनों ने बेहतर विकल्प के तौर पर अपनाया है। हम आशा करते हैं कि यह अध्याय आपको विकल्पों के बारे में विचार देगा जिसके लिये आप अपने अभियान के दौरान दबाव बना सकते हैं। चूँकि हरेक क्षेत्र की आवश्यकताएँ भिन्न होती है, इसलिये आपको अपने क्षेत्र के लिये सबसे अच्छा विकल्प चुनना होगा।

ऊर्जा के विकल्प


कई ऐसे वैकल्पिक तरीके हैं जिससे सरकारें अपने नागरिकों को बिजली उपलब्ध करा सकती हैं। इनमें बिजली की माँग को कम करना, मौजूदा बिजली संयत्रों, उपकरणों व पारेषण लाइनों में सुधार करना एवं नये ऊर्जा के स्रोत तैयार करना शामिल है।

माँग कम करना


फ़ैक्टरियों, व्यापारियों एवं शहरों में रहने वाले लोगों को प्रोत्साहित करके ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल से सरकारें ऊर्जा की माँग को कम कर सकती हैं। इसकी लागत कम होती है एवं यह नये ऊर्जा संयंत्रों व नये बाँध निर्माण के मुकाबले पर्यावरण के लिये बेहतर है। दिन में जिस समय बिजली की महत्तम माँग होती है उस समय माँग को कम करने से बाँध बनाने की जरूरत कम हो सकती है।

ऊर्जा बचाने के कुछ तरीकों के अंतर्गत लोगों को कम बिजली इस्तेमाल करने वाले मशीनों एवं बल्बों की कीमत अदायगी में मदद करना (सब्सिडी देना) शामिल है। सरकारें ऐसा कर सकती हैं कि जो कम्पनियाँ एवं नागरिक ज्यादा ऊर्जा खपत वाले मशीन इस्तेमाल करते हैं, वे ज्यादा कर अदा करें।

सरकारें लोगों एवं उद्योगों को दिन के अलग-अलग समय में बिजली इस्तेमाल के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं। तब बिजली संयंत्र एवं बाँध बनाने की आवश्यकता कम होगी।

मौजूदा बाँधों एवं पारेषण लाइनों में सुधार करना


बांध, नदी एवं अधिकारपारेषण लाइन बिजली संयंत्रों से लोगों, शहरों एवं फ़ैक्टरियों तक ऊर्जा पहुँचाते हैं। कई देशों में, खराब गुणवत्ता वाली पारेषण लाइनें काफी मात्रा में बिजली क्षति करती हैं। पारेषण लाइनों को मरम्मत करके अक्सर बिजली बचाई जा सकती है। भारत में मध्य प्रदेश जैसे राज्य में आज भी बिजली के अनुपयुक्त पारेषण व वितरण की वजह से उत्पादित बिजली में से 47 प्रतिशत उपभोक्ता तक पहुँचने से पहले ही कम हो जाती है। यह घाटा 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

मौजूदा बाँधों या बिजली संयंत्रों में भी सुधार किए जा सकते हैं।

संयंत्रों की सफाई करके, गाद हटाकर एवं अन्य तकनीकी सुधार करके, बिजली संयंत्रों द्वारा ज्यादा बिजली पैदा की जा सकती है। इन सुधारों की लागत कम होते हैं व नये बिजली संयंत्र निर्माण के मुकाबले कम समय लेते हैं। पनबिजली उत्पादन में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महत्तम उत्पादन महत्तम माँग के समय हो। बाँधों के जलग्रहण क्षेत्र के ठीक रख-रखाव से बाँधों में आने वाली गाद कम की जा सकती है।

बेहतर ऊर्जा स्रोत बनाएँ


यहाँ पर ऊर्जा उत्पादन के कुछ तरीके दिये गये हैं जोकि बड़े बाँधों के मुकाबले पर्यावरण एवं लोगों के लिये कम नुक़सानदेह है। इनमें से कई विकल्प बड़े शहरों, फ़ैक्टरियों एवं ग्रामीण इलाकों में बिजली प्रदान करने के लिये इस्तेमाल किये जा सकते हैं।

छोटे जलविद्युत (पनबिजली)


बांध, नदी एवं अधिकारछोटे पनबिजली बाँध सामान्यतया कुछ मीटर लम्बे होते हैं। ये मिट्टी, पत्थर या लकड़ी से बन सकते हैं। छोटे बाँधों में अक्सर जलाशय नहीं होता, इसलिये सामान्यतया लोगों को विस्थापित नहीं करते हैं। नदी का बहाव ज्यादा नहीं बदलता। बहुत छोटे सूक्ष्म पनबिजली परियोजनाओं में अक्सर बाँध नहीं बनते। वे बिजली पैदा करने के लिये नदियों से थोड़ा सा पानी मोड़ते हैं।

छोटी पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना एवं प्रबंधन स्थानीय ग्रामीणों द्वारा किया जा सकता है। चीन, भारत एवं नेपाल में हजारों छोटी पनबिजली परियोजनाएँ गाँवों एवं शहरों में बिजली आपूर्ति करती हैं।

जैव ऊर्जा


बांध, नदी एवं अधिकारकई देशों में, जैव ऊर्जा एक आम ऊर्जा स्रोत है। जैव ऊर्जा में वे समस्त रद्दी (अवशिष्ट) सामग्री शामिल होती है, जोकि पौधों एवं जानवरों से उपलब्ध होती है। जानवरों एवं खेती के कूड़ों का इस्तेमाल स्टोव, गैस उत्पादन व भवनों को गर्म करने में होता है।

जैव ऊर्जा का इस्तेमाल व्यापक स्तर पर भी हो सकता है। जिन देशों में गन्ने का उत्पादन होता है, वहाँ कम्पनियों ने गन्ने के खुज्जी को जलाकर बिजली पैदा करना शुरू कर दिया है। चावल के भूसी एवं लकड़ी के कूड़े को भी इस्तेमाल किया जा सकता है। गन्ने से शक्कर के उत्पादन के दौरान इेथेनॉल बनाया जा सकता है, जिसका उपयोग पेट्रोल में मिश्रण के लिये शुरू हो चुका है।

सौर ऊर्जा


सूर्य से बिजली एकत्र करके पानी गर्म करने या बिजली पैदा करने के लिये सौर पैनल को छत पर लगाया जा सकता है। बड़े पैनल ज्यादा सूर्य की गर्मी संग्रह करते हैं एवं ज्यादा ऊर्जा पैदा करते हैं। अभी यह महँगा विकल्प है लेकिन भविष्य में इसका चलन बढ़ेगा।

पवन ऊर्जा


बड़े बाँधों के मुकाबले हवा (पवन) से पैदा होने वाली बिजली पर्यावरण के लिये कम नुक़सानदेह होती है। जर्मनी एवं स्पेन जैसे कई यूरोपीय देशों में पवन टरबाइन द्वारा काफी मात्रा में बिजली पैदा की जाती है। अब भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका एवं ब्राजील जैसे देश स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने के लिये कई पवन टरबाइन लगा रही हैं। भारत में आज 6000 मेगावाट से ज्यादा पवन ऊर्जा संयंत्र कार्यरत है। यू.एस.ए. में पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता अब 11600 मेगावाट है और वहाँ की सरकार का लक्ष्य है कि सन 2030 तक कुल बिजली का 20 प्रतिशत पवन ऊर्जा से मिले।

भूतापीय बिजली


जमीन के अन्दर की गर्मी को उपयोग करके भूतापीय बिजली बनाई जाती है। ये गर्मी जमीन के अन्दर के पानी के जलाशय को गर्म करके भाप बनाते हैं। गर्म भूतापीय पानी को जमीन की सतह पर लाने के लिये कुएँ खोदे जा सकते हैं। तब ये तरल पदार्थ ऊर्जा संयंत्रों में बिजली बनाने के लिये उपयोग किये जा सकते हैं। फिलीपीन्स एवं अल-सल्वाडोर करीब अपनी 25 फीसदी बिजली भूतापीय स्रोतों से पैदा करते हैं।

बांध, नदी एवं अधिकार

 

युगांडा में स्वैच्छिक संस्थाओं ने बेहतर विकल्पों की पहचान की


युगांडा सरकार एवं विश्व बैंक ने बहुत पहले से कहा है कि युगांडा की ऊर्जा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये बुजागली बाँध की आवश्यकता है। लेकिन युगांडा के स्वैच्छिक संगठन ऐसे विकल्प तलाशना चाहते थे जोकि पर्यावरण के लिये कम नुक़सानदेह एवं लोगों के लिये बेहतर हों। इसलिये उनलोगों ने व्यापक स्तर पर विकल्प की तलाश शुरू की।


अप्रैल 2003 में, यूगांडा की एक स्वैच्छिक संस्था, नेशनल एसोसिएशन ऑफ प्रोफेशनल एनवायरमेंटलिस्ट (एनएपीई) ने युगांडा के लिये सबसे अच्छे विकल्प के तौर पर समझे जाने वाले भूतापीय ऊर्जा पर एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया। विश्व भर के भूतापीय विशेषज्ञ, सरकारी अधिकारी, पर्यावरणीय समूह एवं आम लोगों ने सम्मेलन में भाग लिया।


सम्मेलन के बाद, युगांडा के ऊर्जा मंत्रालय ने देश में ऊर्जा के विकल्प के अध्ययन के लिये एक समूह का गठन किया। यह एनएपीई का ही प्रयास है कि अब युगांडा में पनबिजली को ऊर्जा के एकमात्र विकल्प के तौर पर नहीं देखा जाता है। अब भूतापीय ऊर्जा जैसे बेहतर, किफायती एवं स्वच्छ विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।

 

पानी की माँग पूरा करने के लिये विकल्प


विश्व भर में नदियों को बाँध दिया गया है एवं नमभूमियों को जल आपूर्ति के लिये खाली कर दिया गया है। लेकिन उनमें से बिना कार्यक्षम सिंचाई एवं जल आपूर्ति व्यवस्था से जो रिसाव होता है, उससे काफी मात्रा में पानी बेकार चला जाता है। जो लोग शहरों में रहते हैं अक्सर पानी बेकार में गँवाते हैं। यदि पानी का बेहतर प्रबंध किया जाय तो वह हरेक व्यक्ति के जरूरत के लिये काफी होगा। नीचे कुछ विचार दिये जा रहें है जो मददगार हो सकते हैं।

माँग कम करना


बड़े स्तर की खेती काफी मात्रा में साफ पानी का इस्तेमाल एवं नुकसान करती हैं। बड़े खेतों की सिंचाई व्यवस्था में अक्सर खेतों में पौधों की आवश्यकता से ज्यादा पानी डाला जाता है। अतिरिक्त पानी मिट्टी को नष्ट कर देते हैं। पानी बचाने के लिये ज्यादा कार्यक्षम किस्म की सिंचाई व्यवस्था इस्तेमाल में लाई जा सकती है। ड्रिप सिंचाई में पानी का ज्यादा बेहतर उपयोग होता है क्योंकि इसमें पानी सीधे पौधों के जड़ों में डाला जाता है। ड्रिप सिंचाई पानी की बचत करता है एवं यह पौधों एवं मिट्टी के लिये बेहतर होता है।

बड़े किसान एवं बड़ी कृषि कम्पनियाँ कई बार सूखे इलाके में ज्यादा पानी खपत वाले फसल उगाते हैं, जैसे कि चावल एवं गन्ना। बड़े किसानों एवं कम्पनियों को कम पानी वाले फसल उगाने के लिये प्रोत्साहित करके पानी की बचत की जा सकती है। धान के फसल की नयी पद्धति जिसे SRI (System of Rice Intesification) या मेडागास्कर पद्धति (क्योंकि यह पद्धति अफ्रीका महाद्वीप के इस देश में शुरु हुई थी) कहते हैं, उससे पानी की प्रति हेक्टेयर जरूरत 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा कम की जा सकती है। इसके साथ ही उत्पादकता में 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा वृद्धि की जा सकती है। विश्व के 24 देशों में एवं भारत के 10 राज्यों में पिछले पाँच साल से हजारों हेक्टेयर में किसानों द्वारा सफल प्रयोग किया जा चुका है। भारत में भूजल देश की वास्तविक जीवन-रेखा है, जिसका हाल आज काफी बुरा है क्योंकि बड़े बाँधों के पीछे की अंधी दौड़ में हमने भूजल को रिचार्ज करने वाले तंत्र को खत्म कर दिया है और दूसरी तरफ हम भूजल का बेतहाशा उपयोग कर रहे हैं। बारिश के पानी को रोककर उससे भूजल को रिचार्ज करना सबसे सही तरीका है।

वर्षाजल संग्रह करें


समुदायों के लिये पानी उपलब्धता में सुधार के लिये वर्षाजल संग्रहण किफायती एवं प्रभावी तरीका है। लोग आपने छत में बरसने वाले पानी को अपने घर के बगल में टंकी या गड्ढे बनाकर वर्षाजल का संग्रहण कर सकते हैं। घरेलू इस्तेमाल के लिये वर्षाजल एकत्र करने के लिये बड़े मिट्टी के बर्तन भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं।

बांध, नदी एवं अधिकारखेती के लिये, ऊपर से नीचे बहने वाले वर्षाजल के संग्रह के लिये लोग अक्सर छोटे बाँध या तटबंध बना देते हैं। जमीन पानी को सोख लेते हैं। पानी हासिल करने के लिये कुएँ खोदे जा सकते हैं। अन्य तरीके हैं कि नदियों पर छोटे बाँध एवं नहर बनाए जाएँ। पानी को छोटी लकड़ी, पत्थर या मिट्टी के बाँध से रोका जाता है और तब खेत की ओर मोड़ा जाता है।

बाढ़ प्रबंधन के विकल्प


बड़े बाँध कई बार बाढ़ नियंत्रण के लिये बनाए जाते हैं। हालाँकि, वास्तव में जब बड़ी बाढ़ आती है तो बड़े बाँध बाढ़ से होने वाले नुकसान को बदतर बना सकते हैं। बाढ़ को कम करने एवं उन्हें कम विनाशकारी बनाने के लिये कई तरीके हैं। इसमें जलागम क्षेत्र (वाटरशेड) की रक्षा करना एवं बाढ़ चेतावनी प्रणाली विकसित करना शामिल है।

वाटरशेड की रक्षा एवं उन्हें कायम करना


बाढ़ों से होने वाले नुकसानों को रोकने के सबसे अच्छे तरीकों में से एक है जलागम इलाकों की रक्षा करना एवं उन्हें कायम रखना। अच्छे नमभूमि, बाढ़ मैदान (flood plain) एवं जंगल पानी रोककर बाढ़ में कमी करते हैं। वे एक स्पंज की तरह काम करते हैं। पेड़ बाढ़ के पानी के रफ्तार को कम कर देते हैं एवं पानी को बाढ़ मैदान में ज्यादा धीरे से फैलाते हैं। तूफान के समय एवं जब पानी का स्तर ऊँचा होता है तब नमभूमि पानी को सोख लेते हैं। जब पानी का स्तर कम होता है तब, नमभूमि उन्हें धीरे-धीरे छोड़ते हैं।

बांध, नदी एवं अधिकारआज, कई नमभूमियों, बाढ़ मैदान एवं जंगलों को बड़े बाँध, सड़क, घर एवं उद्योगों के निर्माण के लिये नष्ट कर दिया गया है। बेहतर बाढ़ नियंत्रण के लिये इन प्राकृतिक संसाधनों की अवश्य रक्षा की जानी चाहिए। यदि वे नष्ट हो चुके हैं तो, उन्हें फिर से कायम करना चाहिए।

बाढ़ चेतावनी प्रणाली विकसित करें


सरकारें बाढ़ चेतावनी प्रणाली में निवेश कर सकती हैं ताकि लोग पहले से ही जान जाएं कि कब बाढ़ आने वाली है। इससे लोगों के जान-माल की बचत एवं बाढ़ के नुकसानों में कमी आ सकती है। पूर्व चेतावनी प्रणाली नदी के आस-पास रहने वाले लोगों को आगाह करती है कि कब बाढ़ आने वाली है। इसमें शहरों में लाउडस्पीकर लगाना एवं आपातकालीन योजनाएँ शामिल हो सकती हैं कि बाढ़ आने पर क्या करना है। अन्य प्रणालियों के अंतर्गत लोग नदी के स्तर पर ध्यान दें कि उसमें कितना पानी है। जब पानी एक निर्धारित स्तर से ऊपर बढ़ता है तो, लोग समझ जाएँ कि बाढ़ आने वाली है।

आज जब रिमोट सेंसिंग तथा अन्य तरीके से बारिश का अनुमान नदी के जलागम क्षेत्र के लिये वर्षा के पहले किया जा सकता है, जब वर्षा के वास्तविक आंकड़े जुटाए जा सकते हैं और जब मॉडलिंग से ऐसी वर्षा के आधार पर नदी के प्रवाह का अनुमान किया जा सकता है तब यह और भी जरूरी है कि इन सबका इस्तेमाल बाढ़ के पूर्वानुमान तथा बाढ़ चेतावनी प्रणाली के लिये किया जाए। बाँधों के सही संचालन में भी इसका इस्तेमाल होना चाहिए। परंतु बिहार में जहाँ तटबंध टूटने से बाढ़ आती है वहाँ इस तरह का पूर्वानुमान भी मुश्किल है।

बांध, नदी एवं अधिकार

राजस्थान में वर्षाजल संग्रहण से बदलता जीवन


बांध, नदी एवं अधिकारवर्ष 1986 में, भारत के राजस्थान राज्य में अलवर जिला रेगिस्तान की तरह था। लोगों के पास घरेलू इस्तेमाल एवं खेत के लिये पर्याप्त पानी नहीं होता था। ऐसे समय में, लोगों एवं खेती के लिये पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिये, एक समूह, तरुण भारत संघ का गठन हुआ। तरुण भारत संघ के गठनकर्ताओं ने ध्यान दिया कि राजस्थान के लोग वर्षाजल एकत्र किया करते थे। जब तरुण भारत संघ ने अपना काम प्रारम्भ किया तब, वर्षाजल जोहड़ इत्यादि में एकत्र करने वाले ढाँचे करीब-करीब समाप्त हो चुके थे एवं काफी दिनों से किसी ने उनका रख-रखाव नहीं किया था।

तरुण भारत संघ ने वर्षाजल एकत्र करने वाले उन ढाँचो पर ध्यान दिया एवं छोटे मिट्टी के बाँधों को फिर से बनाया, जिन्हें उनके पुरखों ने वर्षाजल को रोकने एवं संरक्षित करने के लिये नालों व नदियों पर बनाया था। राजस्थान में अब 10,000 से ज्यादा छोटे बाँध एवं मिट्टी के तटबंध हैं, जोकि 1000 से ज्यादा गाँवों के लिये पानी एकत्र करते हैं। ये छोटे बाँधों एवं तटबंधों का ही कमाल है कि उस इलाके में भूजल का स्तर ऊपर उठ गया है, एवं कुछ जो नदियाँ सूख जाया करती थी, वे अब पूरे साल बहती हैं। इससे करीब 7,00,000 लोगों का जीवन बदल गया है, उनके पास अब घरेलू उपयोग, जानवरों एवं फसलों के लिये आसानी से पानी मौजूद है।

राजस्थान की मंडलवास गाँव की एक बुजुर्ग महिला का कहना है कि, ‘‘हमसे पहले वाली पीढ़ी का भविष्य बेहतर नहीं था जैसा कि हमारा है। पानी की वजह से हम सुखी हैं, हमारे जानवर खुशहाल हैं एवं वन्यजीव खुशहाल हैं। हमारी फसलों की पैदावार बढ़ गई है, हमारे जंगल हरे-भरे हैं, हमारे पास जलाऊ लकड़ी, जानवरों के लिये चारा एवं हमारे कुँओं में पानी मौजूद है।’’

चर्चा के लिये सवाल:


.- यह कहानी आपके समुदाय से किस प्रकार जुड़ी हुई है?

- क्या आपके इलाके में वर्षाजल एकत्र करने के लिये कोई पारंपरिक व्यवस्था है?

- क्या उन व्यवस्थाओं के नवीनीकरण से आपके पानी की उपलब्धता बढ़ सकती है?

- यदि आप काफी संख्या में लोगों को अपनी जल आपूर्ति के लिये तैयार कर लेते हैं तो, यह आपको बाँध परियोजना को रोकने में मदद करेगा?

निष्कर्ष


हम उम्मीद करते हैं कि यह कार्यवाही गाइड (मार्गदर्शिका) आपको जानकारी देता है और आपको विनाशकारी बाँधों के खिलाफ लड़ने के लिये मदद करता है। हम आशा करते हैं कि अन्य समुदायों की सफलताएँ आपको प्रेरित करेंगी ताकि आप अपने अधिकार एवं आजीविका की रक्षा कर सकें। आप अपने संघर्ष में अकेले नहीं हैं।

जैसा कि बाँध प्रभावित लोगों एवं स्वैच्छिक संगठनों ने 1997 में कहा :

‘‘हम मजबूत हैं, विचार अलग-अलग हो सकते हैं पर हम सब एक हैं एवं हमारे मुद्दे, वजह न्यायपूर्ण हैं। हमने विनाशकारी बाँधों को रोका है एवं बाँध निर्माताओं पर दबाव बनाया है कि हमारे अधिकारों की रक्षा करें। हमने अतीत में विनाशकारी बाँध रोके हैं एवं भविष्य में और भी ज्यादा रोकेंगे।’’

(ब्राजील के क्यूरिटिबा में 14 मार्च 1997 को हुई ‘‘बाँधों से प्रभावित लोगों की पहली अन्तरराष्ट्रीय गोष्ठी’’ की उदघोषणा।)

ये शब्द सही साबित हुए हैं। एक साथ मिलकर, हम विनाशकारी बाँधों को रोक सकते हैं एवं लोगों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। एक साथ मिलकर हम लोगों की बिजली एवं पानी की आवश्यकता को समुदाय एवं पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बगैर ही पूरा कर सकते हैं।

एक साथ मिलकर हम बेहतर भविष्य बना सकते हैं।

बांध, नदी एवं अधिकार

प्रमुख सम्पर्क (Important Contacts)


इंटरनेशनल रिवर्स नेटवर्क, 1847 बर्कले वे, बर्कले सीए 94703, (संयुक्त राज्य अमेरिका), फोन: (1) (510) 848 1155ईमेल: info@irn.org, वेब: www.irn.org

International Rivers Network, 1847 Berkeley Way, Berkeley CA 94703, (USA), Phone: + 1 510 848 1155 Email: info@irn.org, Web: www.irn.org.

बाँधों, नदियों एवं लोगों का दक्षिण एशिया नेटवर्क (सैण्ड्रप) 86-डी, एडी ब्लॉक, शालीमार बाग, दिल्ली - 110 088, फोन: (91) (11) 2748 4654, ईमेल: ht.sandrp@gmail.com, वेब: www.sandrp.in

श्रीपाद धर्माधिकारी, मंथन अध्ययन केन्द्र, प्लॉट न. 119, सतपुड़ा एस्टेट, दशहरा मैदान रोड, बड़वानी - 451 551 (मध्य प्रदेश), फोन (91) (7290) 222857/94273 45415, ईमेल: manthan_b@sancharnet.in, वेब: www.manthan-india.org

श्री एस उन्नीकृष्णन/ सुश्री लता, चालकुडी पूझा संरक्षण समिति कार्तिक, मनालाट्टील, पोस्ट- ओलुर, त्रिसुर - 680 306 (केरल), फोन: (91) (487) 235 3021/ 552 4110/ 98473 71337, ईमेल: chalakudyriver@rediffmail.com

श्री विल्फ्रेड डिकोस्टा, इंसाफ (इंडियन सोशल एक्शन फोरम) ए - 124/6, कटवरिया सराय, नयी दिल्ली - 110 016, फोन: (91) (11) 2651 7814, ईमेल: insafdelhi@gmail.com, insaf@vsnl.com

श्री रविन्द्रनाथ, रूरल वालेण्टियर सेन्टर, ग्राम व पोस्ट: अकाजान, वाया -सिलापाथर, जिला धेमाजी - 787 059 (असम), फोन: (91) (3753) 246306/ 246436/ 245758, ईमेल : ruralvolunteerscentre@yahoo.com

श्री दिनेश कुमार मिश्र, बाढ़ मुक्ति अभियान, डी - 29, वसुन्धरा एस्टेट, एनएच 33, पोस्ट- एमजीएमसी, जमशेदपुर - 831 081 (झारखण्ड), फोन - (91) 94313 03360/(657) 657 4059, ईमेल: dineshkmishra@rediffmail.com

सुश्री मेधा पाटकर/ आशीष मंडलोई, नर्मदा बचाओ आन्दोलन 62, महात्मा गांधी मार्ग, बड़वानी - 451 551 (मध्य प्रदेश)फोन: (91) (7290) 222464, ईमेल: medha@narmada.org, badwani@narmada.org, वेब: www.narmada.org

एवं

सुश्री चितरूपा पालित / आलोक अग्रवाल, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, जेल रोड, मण्डलेश्वर, जिला - खारगोन (मध्य प्रदेश), फोन: (91) (7283) 233162/94250, 56802/94250 87827, ईमेल: nobigdam@bsnl.in

श्री लियो सलडान्हा, एनवायरमेंट सपोर्ट ग्रुप, 105 - ईस्ट एण्ड ‘बी’ मेन रोड, जयानगर, ब्लॉक संख्या 9, बंग्लौर - 560 069 (कर्नाटक) फोन: (91) (80) 2653 1339/2244 1977, ईमेल: esg@esgindia.org, esg@bgl.vsnl.net.in, वेब: www.esgindia.org

श्री स्मितु कोठारी/हिमांशु उपाध्याय, इंटरकल्चरल रिसोर्सेज सी - 72, साउथ एक्सटेंशन पार्ट-2, नयी दिल्ली - 110 049फोन: (91) (11) 6566 5677, ईमेल: info@icrindia.org वेब: www.icrindia.org

श्री आशीष कोठारी/ सुश्री मंजु मेनन / नीरज कल्पवृक्ष, अपार्टमेंट 5, श्री दत्तकृपा, 908, डेक्कन जिमखाना पूना - 411 004 (महाराष्ट्र), फोन: (91) (20) 25654239/25675450, ईमेल: kvriksh@vsnl.com, वेब: www.kalpavriksh.com

विजयन एम जे/ अशोक शर्मा, दिल्ली फोरम, एफ - 10/12, मालवीय नगर, नई दिल्ली - 110 017, फोन: (91) (11) 2668 0883/ 2668 0914, ईमेल: dforum@bol.net.in

श्री विल्फ्रेड डिकोस्टा, इंसाफ (इंडियन सोशल एक्शन फोरम) ए - 124/6, कटवरिया सराय, नई दिल्ली - 110 016, फोन: (91) (11) 2651 7814, ईमेल: insafdelhi@gmail.com, insaf@vsnl.com

श्री विमल भाई, माटू, डी - 334, फ्लैट न. 10, दूसरा तल गणेश नगर, पाण्डव नगर कॉम्पलेक्स, दिल्ली - 110 092, फोन: (91) (11) 2248 5545, ईमेल: matuporg@gmail.com

श्री राजेश/तुलतुल, एकल्व्य, ई - 7/एचआईजी - 453, अरेरा कॉलोनी, भोपाल - 462 016 (मध्य प्रदेश) फोन: (91) (755) 2463 380/2461 703, ईमेल: eklavyamp@vsnl.com

श्री गोपाल सिवाकोटि ‘चिन्तन’, वाटर एण्ड एनर्जी यूजर्स फेडरेशन - नेपाल, पोस्ट बॉक्स न. 2125 60, न्यू प्लाजा मार्ग काठमांडू (नेपाल), फोन: (977) (1) 442 9741, ईमेल: gopalchintan@gmail.com, वेब: www.wafed-nepal.org

Mr. Gopal Siwakoti ‘Chintan’, Water and Energy Users Federation–Nepal, G.P.O Box 2125, 60 New Plaza Marga, Kathmandu, Nepal, Phone: +977 1 442 9741, Email: gopalchintan@gmail.com, Web: www.wafed-nepal.org

श्री अमजद नजीर, सुंगी डवलपमेंट फाउंडेशन, एच 7-ए, गली न. 10, एफ - 8/3, इस्लामाबाद (पाकिस्तान), फोन: (92) (51) 228 2481, ईमेल: amjad.nazeer@sungi.org, वेब: www.sungi.org

Mr. Amjad Nazeer, Sungi Development Foundation H.7–A, Street 10, F–8/3 Islamabad, Pakistan, Phone: +92 51 228 2481, Email: amjad.nazeer@sungi.org, Web: www.sungi.org

Bangladesh Poribesh Andolan, 9/12, Block-D, Lalmatia Dhaka – 1207 (Bangladesh), Email: memory14@agni.com

 

बाँध, नदी एवं अधिकार

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

पुस्तक परिचय - बाँध, नदी एवं अधिकार

2

कठिन शब्द

3

बाँधों के बारे में मूलभूत जानकारियाँ

4

बाँधों के असर

5

विनाशकारी बाँधों के खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय आन्दोलन

6

विनाशकारी बाँधों के खिलाफ कैसे संघर्ष करें

7

बाँधों के विकल्प की दिशाएँ

 

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