बारिश हुई कम, पर पानी का नहीं गम

13 Jul 2015
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जल प्रबंधन से दूर हो गयी गंगानगर कन्या आश्रम की पानी की परेशानी

मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र गंभीर पेयजल संकट वाला क्षेत्र है, इसी क्षेत्र में धार जिले के गंगानगर गांव के बालिका आश्रम में ऐसा प्रयोग किया गया कि बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे इस आश्रम में झुलसती गर्मी में भी पानी की कमी नहीं होती। राजु कुमार की रिपोर्ट

गंगानगर आश्रम में कुशल जल प्रबंधन के तहत सबसे पहले वर्षा जल संग्रहण टैंक का निर्माण किया गया, इसमें एक 50,000 लीटर, दो 4,000 लीटर एवं एक 2,000 लीटर का फेरोसिमेंट टैंक बनाया गया। वर्षा का जल संचित करने के लिये छतों को पाइप के जरिये चारों तरफ से टंकियों से जोड़ा गया है। इसमें वर्षा जल संग्रहित होने लगा। गंगानगर आश्रम में रीयूज वाटर सिस्टम को बनाया गया है। इस सिस्टम से आश्रम के आठ स्नानघरों को जोड़ा गया।

मध्य प्रदेश में इस बार औसत से कम बारिश हुई है। पिछले कुछ सालों से पानी की गंभीर संकट झेल रहे मध्यप्रदेश के लिए यह साल कुछ अच्छा नहीं रहा। पिछले कुछ सालों से पानी को लेकर दर्जन से भी ज्यादा जानें जा चुकी हैं। गांव हो या शहर, सभी जगह पानी की किल्लत बरकरार है। प्रदेश के मालवा एवं बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी की सबसे ज्यादा कमी होती है। लेकिन मालवा में एक ऐसी जगह भी है, जहां कम बारिश के बावजूद लोगों में पानी को लेकर चिंता नहीं है। वह जगह है - धार जिले के तिरला विकासखंड के गंगानगर कन्या आश्रम।

पांच साल पहले तक गंगानगर कन्या आश्रम में पानी बड़ी किल्लत थी। डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित एक हैंडपंप से लड़कियां सुबह-शाम पानी लाने जाती थी, जिसमें उन्हें प्रतिदिन चार घंटे समय गंवाना पड़ता था। इसके साथ ही ग्रामीणों से बकझक और कुछ दूर स्थित बालक आश्रम के बालकों से झूमाझटकी भी करनी पड़ती थी।

आश्रम की संचालिका श्रीमती सज्जन चैहान कहती हैं, 'सबकुछ असहज था। आश्रम में पीने भर पानी ही इकट्ठा हो पाता था। ऐसे में नहाना तो दूर, हाथ धोने के लिए भी पानी मिलना मुश्किल था। साफ-सफाई के अभाव में लड़कियों को उल्टी-दस्त सहित कई बीमारियों की शिकायत अक्सर बनी रहती थी।'

गंगानगर कन्या आश्रम के लिए 2006 एक सौगात भरा साल रहा, जब यूनीसेफ, आदिवासी कल्याण विभाग एवं स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने मिलकर इस आश्रम को जल एवं स्वच्छता कार्यक्रम के तहत विकसित करना शुरू किया।

स्थानीय सहयोगी वसुधा विकास संस्थान की निदेशक गायत्री परिहार का कहना है, '2006 में जब हम आश्रम गए, तो समझ में आया कि यदि डेढ़ एकड़ क्षेत्र के इस आश्रम में वर्षा जल का कुशल प्रबंधन किया जाए, तो पानी की कमी को दूर किया जा सकता है। इसके बाद रूफवाटर हार्वेस्टिंग से होते हुए कुशल जल प्रबंधन का सफर तय किया गया। आश्रम में 275 बालिकाएं रहती हैं, पर उन्हें सपने में भी नहीं आता कि पानी की कमी होगी।'

यूनीसेफ, मध्यप्रदेश में कार्यरत बाल पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ। ग्रेगॅर वान मेडूयजा का कहना है, 'कुशल जल प्रबंधन एक ऐसी अवधारणा है, जिसके माध्यम से सूखे या कम पानी वाले ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल एवं स्वच्छता संबंधी सेवाओं को प्रदान किया जाता है, इसमें पानी के पुनर्उपयोग को लेकर डब्ल्यूएचओ द्वारा की गई अनुशंसाओं को ध्यान में रखा जाता है। मध्यप्रदेश में बड़ी संख्या में आदिवासी बच्चे साल में 10 से 11 महीने तक आदिवासी आश्रमों में रहते हैं। इसी को ध्यान में रखकर यूनीसेफ स्थानीय निकायों के साथ मिलकर कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से पेयजल में फ्लोराइड को नियंत्रित करने, पेयजल की उपलब्धता को बढ़ाने और स्वच्छता बढ़ावा देने का काम करती है। पानी की मांग एवं उपलब्ध स्रोतों को ध्यान में रखकर कुशल जल प्रबंधन किया जाता है, जिससे कि शुद्ध जल एवं अन्य उपयोग के लिए जल की व्यवस्था हो सके।

गंगानगर आश्रम में कुशल जल प्रबंधन के तहत सबसे पहले वर्षा जल संग्रहण टैंक का निर्माण किया गया, इसमें एक 50,000 लीटर, दो 4,000 लीटर एवं एक 2,000 लीटर का फेरोसिमेंट टैंक बनाया गया। वर्षा का जल संचित करने के लिये छतों को पाइप के जरिये चारों तरफ से टंकियों से जोड़ा गया है। इसमें वर्षा जल संग्रहित होने लगा। गंगानगर आश्रम में रीयूज वाटर सिस्टम को बनाया गया है। इस सिस्टम से आश्रम के आठ स्नानघरों को जोड़ा गया।

जहां से निकलने वाले पानी को एक छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ा गया है। वह यहां एनएरोबिक पॉण्ड में आता है, फिर वहां से पानी फैक्यूलटेटिव पॉण्ड में चला जाता है। एक के बाद एक पॉण्ड से गुजरते हुए पानी आगे रॉक फिल्टर की ओर चला जाता है। रॉक फिल्टर में पानी पहले बड़े पत्थरों से फिर छोटे पत्थरों से फिल्टर होते हुए एक पाइप के सहारे बाहर निकल जाता है।

इस तरह से गंदे पानी को ग्रे वाटर में बदल कर ऊंचाई पर स्थित टंकी में भरा जाता है, जहां से उसका सीधे शौचालयों की फ्लशिंग तथा बागवानी में उपयोग किया जाता है। इस तरीके से रोजाना लगभग छह हजार लीटर पानी का पुनः उपयोग किया जाता है। पानी का पेयजल के रूप में लंबे समय तक उपयोग बरकरार रहे इसके लिए बेकार बहने वाले पानी का पुनर्उपयोग फ्लशिंग एवं बागवानी संबंधी कार्यों में किया जाना बेहतर विकल्प है।

पेयजल को टंकी में चढ़ाने के लिए आश्रम में झूला पंप लगाया गया है। हाथ धोने के लिए 5 हैंडवाशिंग स्टेप्स लगाए गए हैं। बालिकाओं द्वारा इस्तेमाल नैपकिन के निस्तारण के लिए एक शौचालय को इंसिनेरेटर इकाई को लगाया गया है। शारीरिक साफ-सफाई के लिए हैंड मेड सस्ते सेनेटरी नैपकिन बनाने की यूनिट भी आश्रम में लगाया गया है।

आश्रम की साफ-सफाई एवं पानी के प्रबंधन के लिए आश्रम संचालक के साथ-साथ बालिकाएं भी तत्पर दिखाई पड़ती हैं। इसके लिए कुछ बालिकाओं का एक समूह बनाया गया है, जिसकी अध्यक्ष कविता है। समूह की अन्य बालिकाओं को स्वास्थ्य मंत्री, जल मंत्री, वन मंत्री, साफ-सफाई मंत्री आदि कहा जाता है। यानी हर काम के लिए एक बालिका को जिम्मेदार बनाना।

रविवार को होने वाली बैठक में आगे की रणनीति एवं पीछे की समीक्षा। 8वीं में पढ़ने वाली रीना एवं रंजना बताती है, 'तीन साल से आश्रम में हूं, पर घर की याद नहीं आती। यहां मम्मी-पापा हमारा बहुत ख्याल रखते हैं।' मम्मी यानी आश्रम संचालिका एवं पापा यानी आश्रम संचालिका के पति बाबूलाल चैहान।

कविता ने पढ़ाया कोपेनहेगेन में जल प्रबंधन का पाठ

28 नवंबर से 4 दिसंबर 2009 को कोपेनहेगेन में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित बैठक के समय यूनीसेफ द्वारा आयोजित बाल जलवायु मंच में भाग लेने के लिए गंगानगर आश्रम की सुश्री कविता चैहान गई थी। वहां पर कविता ने 60 देश के प्रतिनिधि बच्चों के बीच गंगानगर मॉडल के बारे में बताया। कविता का कहना है, 'वहां अन्य देशों के बच्चों ने सिर्फ समस्याओं के बारे में बताया, पर मैंने समस्या एवं उसके समाधान के लिए किए गए उपायों के बारे में भी बताया। अन्य देश के बच्चों ने मुझसे बहुत ज्यादा जानकारी ली।' कविता ने वहां कुशल जल प्रबंधन के मॉडल को भी प्रस्तुत किया।
इसी साल आश्रम में आई 7वीं कक्षा की सोनू का कहना है, 'यहां बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हम लोग सफाई का ध्यान रखते हैं।' बालिकाओं के समूह की अध्यक्ष कविता बताती है, 'यहां पानी के गलत इस्तेमाल एवं बर्बादी पर सजा का प्रावधान है, जिसकी वजह से कोई पानी को बर्बाद नहीं करता। यहां सजा का मतलब थोड़ा ज्यादा साफ-सफाई करवाना है।'

बाबूलाल चैहान का कहना है, 'बच्चों में डायरिया एक आम बीमारी है, जो गंदे पानी का इस्तेमाल एवं हाथ धुलाई के अभाव में होता है। गंगानगर में जिस तरह से जल प्रबंधन किया गया है, वह अनुकरणीय है। यहां पानी की हर बूंद को बचाया जाता है। गंगानगर आश्रम की अब यह स्थिति है कि गर्मी की छुट्टी में शिक्षा विभाग भी शिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम यही करने लगा है।'

गंगानगर कन्या आश्रम एक अनुकरणीय उदाहरण है। तकनीकी सहायता के बाद आश्रम के संचालक एवं बालिकाओं ने कुशल प्रबंधन की मिसाल पेश की है, जिसकी वजह से आज जिले एवं प्रदेश में जल संकट के बावजूद उन्हें जल संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है।

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