बारुद के हवाले ब्रजभूमि

12 Sep 2011
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भारत की जनता वनों, पर्वतों एवं गांव-गांव में स्थित आस्था के छोटे-छोटे केन्द्रों के बल पर ही अपने विश्वास को कायम रख सकी थी। ब्रज के पर्वतों में कोई छोटी मोटी धरोहर नहीं बल्कि भारत के उस महानायक के भौतिक प्रमाण हैं जिसने इस देश को एक नई दिशा दिखाई थी। इनके महत्व को कम करके यदि कोई आंकता है तो निश्चित रूप से उसे भारत की समझ नहीं है।

सूचना क्रांति के इस युग में हम प्राय: यह मान बैठते हैं कि इस दुनिया में जो कुछ भी महत्वपूर्ण हो रहा है, उसकी जानकारी हमें सुलभ है, पर यदि हम ध्यान से देखें तो यह बात सही नहीं है। फिल्मी स्टार, बड़े-बड़े नेता या उन नेताओं की संतानें कैसे खाती हैं, कैसे सोती हैं इसकी जानकारी तो हमें आधुनिक संचार माध्यमों से खूब मिलती है, किंतु समाज में घटित होने वाली वे घटनाएं जो अंदर ही अंदर हमें खोखला बना रही हैं, उनके बारे में हम लगभग अनजान ही हैं। शायद आप में से बहुत कम लोग जानते होंगे कि दिल्ली से 115 किलोमीटर दूर ब्रजक्षेत्र में स्थित पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व के पवित्र स्थलों को डायनामाइट से उड़ाकर उन्हें कानूनी और गैर कानूनी दोनों तरीके से पत्थर निकालने के लिए नष्ट किया जा रहा है। भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़े कई दिव्य पर्वतों को नष्ट कर दिया गया है और कुछ पर्वत अपने विनाश की प्रतीक्षा कर रहे हैं। विडंबना यह है कि कभी हम इतिहास की पुस्तकों में विदेशी आक्रमणकारियों के ऐसे कृत्यों को पढ़कर क्रोधित हो उठते थे किंतु अब जब खुद हमारी चुनी हुई सरकारें यह काम कर रही हैं तो हम बेखबर हैं।

राजस्थान, उत्तरप्रदेश और हरियाणा में चौरासी कोस के दायरे में फैले ब्रज क्षेत्र में अधिकतर पहाड़ राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित हैं। पहली बार 1989 में सरकार की ओर से पत्थर व्यवसायियों को कुछ पहाड़ों को तोड़कर पत्थर निकालने का पट्टा प्रदान किया गया। पट्टा इस शर्त पर दिया गया कि पत्थर व्यवसायी खदान की स्पष्ट रूप से हदबंदी करेंगे और पत्थर निकालते समय कचड़े और धूल-धुएं के निपटारे तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण सहित वे अन्य सभी कदम उठाएंगे जिनका पट्टे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था। पट्टा मिलते ही पत्थर व्यवसायियों ने ब्रज के पर्वतों पर अपना शिकंजा कसना शुरू किया। पट्टे की शर्तों को धता बताते हुए उन्होंने डायनामाइट और बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग करना शुरू कर दिया ताकि कम समय में अधिक से अधिक पत्थर निकाला जा सके। राजस्थान में वसुन्धरा राजे की भाजपा सरकार के पिछले दो वर्षों में यह प्रक्रिया और तेज हुई है। जरूरत तो इस बात की थी कि सरकार ब्रज के पर्वतों में खनन करने का कोई पट्टा ही न देती परंतु अगर दे ही दिया तो उसकी शर्तों को कड़ाई से लागू करवाती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। खदान माफिया की खुली लूट जारी है। भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से खदान माफिया अपनी हवस बेरोक-टोक पूरी करने में लगा है।

जब ब्रजवासियों को लगा कि सरकार इस मामले में कुछ नहीं करेगी तो उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। माननीय न्यायालय ने 24 फरवरी, 2004 को इस मामले में एक जांच समिति का गठन किया। जांच समिति की रिपोर्ट और संबंधित पक्षों की बात सुनने के बाद 18 मई, 2004 को माननीय न्यायालय ने अपना निर्णय दिया। इस निर्णय में न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा, “हम इस बात से बेहद नाराज हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति लिए बिना जो अवैध खनन हो रहा है उसे राजस्थान सरकार प्रश्रय दे रही है। पर्यावरण संवेदनशील खनन प्रक्रिया को लागू करने के अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में राज्य सरकार पूर्ण रूपेण असफल रही है। इन हालातों में हम राज्य सरकार को निर्देश देते हैं कि वह कानून के अनुसार कार्यवाही करे और कानून की अवहेलना करके व केंद्रीय सरकार के 27 जनवरी 1994 व 10 जून 2003 की अधिसूचना की उपेक्षा करके जो खनन हो रहा है उसे तुंरत रोके।यह स्पष्ट है कि राजस्थान सरकार हमारे आदेशों के अनुपालन में असफल रही है और उसने अवैध खनन होने दिया है।

समूचा प्रदेश पानी की कमी से ग्रसित है। इस प्रकार की खनन गतिविधियाँ पानी के स्रोतों को भी प्रभावित करेंगी। इस सबके बावजूद राज्य सरकार ने पर्यावरण के विनष्टीकरण को रोकने की दिशा में कोई प्रभावशाली कदम नहीं उठाया है। न केवल पर्यावरण अपितु विरासत को भी इस खनन से खतरा पैदा हो गया है। भरतपुर जिले की कामा तहसील में 5 प्रसिद्ध जैन मन्दिरों के अलावा भगवान श्रीकृष्ण का एक मन्दिर है और सुप्रसिद्ध व्योमासुर गुफा भी है। इन स्थलियों को हर कीमत पर बचाया जाना चाहिए। राज्य सरकार की असंवेदनशीलता के कारण पर्यावरण को अप्रतिम क्षति पहुंची है।” यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि ब्रज क्षेत्र में हो रहा खनन कार्य उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों के भी खिलाफ है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं विधिवेत्ता श्री एम.सी. मेहता का कहना है कि पूरा ब्रज क्षेत्र ताज ट्रिपेजियम जोन में आता है जहां खनन और पत्थर क्रेशर सहित सभी प्रदूषणकारी गतिविधियों पर रोक लगी है। यहां जो भी खनन हो रहा है, वह सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना करके हो रहा है। न्यायालय के इन निर्देशों का ईमानदारी से पालन करने की बजाय राजस्थान सरकार ने 27 जनवरी, 2005 को एक तुगलकी फरमान जारी किया कि ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग से 500 मीटर दूर तक कोई खनन न किया जाए। खनन का विरोध कर रहे साधुओं और ब्रजवासियों का कहना है कि ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा का कोई निर्धारित मार्ग नहीं है। हर सम्प्रदाय अपनी मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग मार्ग का अनुसरण करता है। ब्रज के सभी पर्वतों की परिक्रमा वर्ष भर होती रहती है। परिक्रमा मार्ग भी इसी अनुसार बदलता रहता है।

संत और भक्त मानते हैं कि 500 मीटर का यह आदेश अविवेकपूर्ण और हास्यास्पद है। यदि एक लीला स्थली एक पहाड़ के शिखर पर है और दूसरी लीला स्थली दूसरे पहाड़ के शिखर पर है तो इस आदेश के अनुसार 5-5 सौ मीटर की परिधि छोड़ कर शेष पर्वत को काटने दिया जाएगा और इस तरह भगवान की लीला स्थलियां काटे हुए टीलों के ऊपर टंग जाएंगी। सत्य तो यह है कि ब्रज का हर पर्वत महत्वपूर्ण है और उसकी हर कीमत पर रक्षा होनी चाहिए। वैसे यह बताना आवश्यक है कि सरकार अपने इस 500 मीटर वाले आदेश का पालन करवाने में भी असफल ही रही है। जब ब्रज की जनता और कृष्ण भक्तों ने महसूस किया कि सरकार इस मामले में खनन माफिया का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है तो उन्होंने आंदोलन करने का निर्णय लिया। उन्होंने बरसाना के विरक्त संत श्री रमेश बाबा की प्रेरणा से ब्रजरक्षक दल नामक एक स्वयंसेवी संस्था का गठन किया। 4 अप्रैल, 2005 को भरतपुर जिले के गांव के 6000 से ज्यादा ग्रामवासियों ने ब्रजरक्षक दल के साथ मिलकर भारी प्रदर्शन किया। इस गांव में भगवान की लीला से जुड़ी जड़खोर की गुफा और सौगंधिनी शिला है। आंदोलन कई दिन तक चलता रहा। 21 अप्रैल को ग्रामवासियों और खान माफिया के बीच संघर्ष हुआ। निहत्थे ग्रामवासियों पर गोली चलाई गई जिसमें कुछ लोग घायल भी हो गए। तब से यह गांव खान माफिया के निशाने पर है। इसी गांव में दिनांक 11 अप्रैल, 2006 को ब्रजरक्षक दल के युवा कार्यकर्ता श्री सियाराम गुर्जर की खान माफिया के इशारे पर हत्या कर दी गई।ब्रजवासियों के आंदोलन से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी ध्यान इस ओर गया। बोर्ड की एक टीम ने समूचे ब्रज क्षेत्र, जिसमें भरतपुर जिले की डीग व कामा तहसीलें भी शामिल हैं, में हो रही खनन गतिविधियों का मुआयना किया। अपनी 14 नवम्बर 2005 की रिपोर्ट में बोर्ड ने राजस्थान सरकार के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां की हैं। जांच समिति ने ब्रज के खनन के संबंध में निम्न संस्तुतियां की हैं:

1. सभी प्रकार की खनन गतिविधियों को फौरन बंद किया जाए।
2. जिन पहाड़ों को तोड़ दिया गया है वहां मिट्टी भरकर वृक्षारोपण किया जाए।
3. खनन से जो पत्थर उछल कर सारे इलाके में फैल गए हैं उन्हें हटाया जाए।
4. पर्वतों को तोड़ने के लिए जो भी मशीनें और उपकरण लगाए गए हैं उन्हें हटाया जाए।
5. स्टोन क्रशर वालों को दी गई सभी अनुमति रद्द की जाए।
6. स्थानीय गांवों और धर्म स्थानों को जानेवाली सभी सड़कों की मरम्मत की जाए।
7. इस सब विनाश से ब्रज के पर्यावरण पर पड़े प्रभाव का आकलन कराया जाए।
8. पूरे क्षेत्र के पर्यावरण प्रबंधन और उसको लागू करने के लिए एक वृहद् योजना बनाई जाए।’

अब तक दिए गए अन्य निर्देशों एवं नियमों की तरह राजस्थान सरकार ने बोर्ड की रिपोर्ट को भी अनदेखा कर दिया। किंतु वह ब्रजवासियों के आंदोलन को रोक नहीं पाई। ब्रज रक्षक दल एवं अन्य कई संगठनों ने इस विषय पर पूरे देश में जनजागरण का कार्य जारी रखा। इस विषय पर विदेशों में बसे अप्रवासी भारतीयों में भी जागृति आई है। वे यह जानकर सदमें में हैं कि राजस्थान की भाजपा सरकार हिन्दू संस्कृति का ऐसा विनाश करवा रही है जबकि वह विश्व भर में प्रचार करती है कि केवल उसे ही हिन्दुओं के हक की चिन्ता है जबकि शेष राजनैतिक दल हिन्दू संस्कृति को नष्ट करने पर तुले हैं। अमरीकी भारतीयों ने ब्रज के पर्वतों की रक्षा के लिए एक व्यापक हस्ताक्षर अभियान चला रखा है। वे वाशिंगटन में इंडिया काकस के सदस्यों से भी मिल रहे हैं और भारी तादाद में ईमेल भेजकर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। ऐसे ही एक ईमेल में भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक सन्दीप पुरी ने लिखा, “कभी हम इतिहास की पुस्तकों में ही पढ़ते थे कि विदेशी आक्रमणकारियों और निरंकुश शासकों ने हमारी सांस्कृतिक विरासत और मन्दिरों का ध्वंस किया, अब यही काम खुद हमारी चुनी हुई सरकारें कर रही हैं। जो लोग मूक दर्शक बनकर यह सब देख रहे हैं, उनके लिए यह शर्म की बात है। हमें हर कीमत पर इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए।”

इसी तरह संयुक्त राष्ट्र संघ (न्यूयार्क) से जुड़ी पत्रकार प्रीति देवरा ने सिंगापुर से लिखा, “मैं इस आंदोलन को हृदय से अपना समर्पण देती हूं। यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की रक्षा का मामला है। कुछ स्वार्थी तत्वों के लाभ के लिए हमें इसकी बलि नहीं चढ़ने देनी चाहिए।” देश-विदेश में हो रहे इस विरोध के बावजूद ब्रज की पहाड़ियों का खनन अबाध गति से आज भी चल रहा है। इसे देखते हुए ब्रज रक्षक दल ने अपने विरोध को और तेज करने का फैसला किया है। अन्य विरोध प्रदर्शनों की श्रृंखला में दल की ओर से दिनांक 22 अप्रैल, 2006 को दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन किया गया जिसमें राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक श्री के.एन. गोविन्दाचार्य सहित कई प्रमुख व्यक्तियों ने भाग लिया। जंतर मंतर पर शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन आज भी जारी है। ब्रज के दिव्य पहाड़ों में खनन का विरोध करते हुए सैकड़ों संत एवं कृष्ण भक्त आज भी जंतर-मंतर पर अनिश्चित कालीन धरने पर बैठे हुए हैं। प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों राजस्थान की भाजपा सरकार ब्रजवासियों एवं देश-विदेश के कृष्ण भक्तों के विरोध को ताक पर रखते हुए ब्रज के पर्वतों का खनन करवा रही है? हम यह नहीं कह सकते कि सरकार में बैठे लोग हिन्दू धर्म स्थलों को एक षड़यंत्र के तहत नष्ट करना चाहते हैं जैसा कि गुलामी के समय विदेशी शासकों ने किया।

अगर ध्यान से देखें तो इस खनन के पीछे सरकारी अफसरों एवं नेताओं की किसी भी तरीके से पैसा कमाने की हवस तो है ही लेकिन असली कारण कुछ और है। वास्तव में सारी समस्या के मूल में नेताओ की सोच जिम्मेदार है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा नेतृत्व की उस सोच का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसके अनुसार मंदिरों की स्थापना और वहां की जाने वाली पूजा तो महत्वपूर्ण है किन्तु मंदिर के बाहर यहां-वहां मौजूद आस्था केन्द्रों को दिया जाने वाला महत्व गैरजरूरी लगता है। उन्हें कहीं न कहीं ये चीजें पिछड़ेपन का प्रतीक लगती हैं। भारत और भारतीयता से दिन-प्रतिदिन दूर होते जा रहे भाजपा नेताओं को शायद याद नहीं कि जब भारत के बड़े-बड़े मंदिर विदेशियों द्वारा या तो ढहा दिए गए या उनके कठोर नियंत्रण में थे, तब भारत की जनता वनों, पर्वतों एवं गांव-गांव में स्थित आस्था के छोटे-छोटे केन्द्रों के बल पर ही अपने विश्वास को कायम रख सकी थी। ब्रज के पर्वतों में कोई छोटी मोटी धरोहर नहीं बल्कि भारत के उस महानायक के भौतिक प्रमाण हैं जिसने इस देश को एक नई दिशा दिखाई थी। इनके महत्व को कम करके यदि कोई आंकता है तो निश्चित रूप से उसे भारत की समझ नहीं है।
 

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