बढ़ती आबादी के कारण जीना होगा मुहाल

world population day
world population day


विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई पर विशेष

.आज दुनिया बढ़ती आबादी के विकराल संकट का सामना कर रही है। यह समूची दुनिया के लिये भयावह चुनौती है। असलियत यह है कि इस सदी के अंत तक दुनिया की आबादी साढ़े बारह अरब का आंकड़ा पार कर जायेगी। विश्व की आबादी इस समय सात अरब को पार कर चुकी है और हर साल इसमें अस्सी लाख की बढ़ोत्तरी हो रही है। शायद यही वजह रही है जिसके चलते दुनिया के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कहा है कि पृथ्वी पर टिके रहने में हमारी प्रजाति का कोई दीर्घकालिक भविष्य नहीं है। यदि मनुष्य बचे रहना चाहता है तो उसे 200 से 500 साल के अंदर पृथ्वी को छोड़कर अंतरिक्ष में नया ठिकाना खोज लेना होगा। बढ़ती आबादी समूची दुनिया के लिये एक बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है। सदी के अंत तक आबादी की भयावहता की आशंका से सभी चिंतित हैं। दरअसल आने वाले 83 सालों के दौरान सबसे ज्यादा आबादी अफ्रीका में बढ़ेगी।

दुनिया में आबादी की भयावह तस्वीर खींचने में अफ्रीका प्रमुख भूमिका निबाहेगा। यहाँ सब सहारा अफ्रीका में आबादी के बढ़कर चौगुणा होने का अंदेशा है। आज यहाँ तकरीबन 1.2 अरब लोग हैं जो बढ़कर इस सदी के अंत तक चार अरब का आंकड़ा पार कर जायेंगे। अफ्रीकी देशों के अलावा दुनिया की आबादी में बढ़ोत्तरी में इंडोनेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और अमेरिका महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाहेंगे। अमेरिका की आबादी में सबसे ज्यादा दूसरे देशों से आकर बसने वाले बढ़ोत्तरी करेंगे। अनुमान है कि अमेरिका में अगले चार दशकों में चालीस लाख लोग सालाना जायेंगे।

एशिया महाद्वीप को लें, यहाँ विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाले देश चीन और भारत बसते हैं। 2050 तक इन दोनो देशों की आबादी पाँच अरब का आंकड़ा पार कर जायेगी। संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग की 25वीं रिपोर्ट की मानें तो भारत की आबादी 2024 तक चीन की आबादी को पार कर जायेगी। उसके अनुसार भारत की आबादी 2030 तक 1.5 अरब हो जायेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आबादी आज 1.34 अरब है और चीन की 1.41 अरब है। इन दोनों की विश्व आबादी में क्रमशः 18 और 19 फीसदी की हिस्सेदारी है। दोनों देशों की आबादी 2024 में 1.44 अरब के आस-पास होगी। भारत की आबादी 2030 में 1.5 अरब और 2050 में 1.66 अरब होने का अनुमान है।

असलियत यह है कि विश्व की 84 फीसदी आबादी एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में रहती है। इसमें अकेले चीन और भारत की आबादी ही तकरीब 38 फीसदी से ज्यादा है। इस समय दुनिया में गरीबी-भूख से लगभग बीस-इकतीस करोड़ से ज्यादा लोग त्रस्त हैं। यह दुनिया की पूरी आबादी का तकरीब 15 फीसदी है। देखा जाये तो दुनिया में हर सात में एक व्यक्ति भूख और कुपोषण का शिकार है। इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा यानी तकरीब एक अरब विकासशील देशों का है जिनमें भारत और चीन जैसी उभरती आर्थिक महाशक्तियाँ हैं जो दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाले देश हैं।

यहाँ सबसे बड़ा और अहम सवाल यह है कि दिनोंदिन आबादी के इस बढ़ते सैलाब की जरूरतों की पूर्ति कैसे संभव होगी। संयुक्त राष्ट्र और वाशिंगटन यूनीवर्सिटी के वैश्विक जनसंख्या सम्बंधी अध्ययन में इस तथ्य को उजागर किया गया है कि 2100 में जब दुनिया की आबादी 12 अरब के करीब हो जायेगी, तब इतने लोगों का जीवन-यापन आसान नहीं होगा। उस समय स्थितियाँ और बिगड़ेंगी। जबकि हालात गवाह हैं कि बढ़ती आबादी के चलते संसाधनों पर दिन-ब-दिन बोझ बढ़ता चला जा रहा है। यह कटु सत्य है कि आबादी के लिहाज से संसाधन अपर्याप्त हैं। नतीजतन आज करोड़ों लोग भूख-प्यास, आवास और उर्जा की कमी का सामना कर रहे हैं।

पृथ्वी पर पहले से ही 925 मिलियन लोग भूख से त्रस्त हैं। सदी के अंत तक साढ़े बारह अरब की आबादी में भूख से त्रस्त लोगों की तादाद निश्चित तौर पर बढ़ेगी। इस समस्या से निपटने में ग्लोबल वार्मिंग बहुत बड़ी रुकावट बनेगी। बढ़ता तापमान विपरीत प्रभाव डालेगा जिससे सूखे का खतरा बढ़ेगा। पर्यावरण प्रभावित होगा सो अलग। सूखे के कारण 20 से 40 फीसदी तक फसलें प्रभावित होंगी। परिणामतः उत्पादन कम होगा। तात्पर्य यह कि करोड़ों लोगों के पेट भरने के लिये नए तरीके खोजने होंगे।

पोस्टर : बूंद-बूंद नहीं बरतेंगे, तो बूंद-बूंद को तरसेंगेपोस्टर : बूंद-बूंद नहीं बरतेंगे, तो बूंद-बूंद को तरसेंगे

पानी की जरूरत में लगातार हो रही वृद्धि, भूमिगत जल के बेतहाशा दोहन से भूजल के स्तर में जिस तेजी से कमी आ रही है और जिस तेजी से पानी की उपलब्धता दिनोंदिन कम होती जा रही है, उसे देखते हुए लगता है वर्ष 2100 में पानी के लिये लोग तरस जायेंगे। वैसे वर्ष 2025 में पानी के लिये दुनिया में युद्ध की भविष्यवाणी तो बहुत पहले ही की जा चुकी है। पानी की कमी और वह भी प्रदूषित पानी के कारण हैजा, ट्रैकोमा, डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियों के साथ कुपोषण के मामलों में भी बढ़ोत्तरी की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। उस स्थिति में जबकि समूची दुनिया में दो अरब लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है। तात्पर्य यह कि दुनिया की दो अरब आबादी को आज मजबूरी में दूषित पानी पीना पड़ रहा है। इनमें से 63 करोड़ लोग भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में रहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में दो अरब लोग दूषित मलयुक्त पेयजल के स्रोत का इस्तेमाल करते हैं। इसके चलते वे हैजा, आंत्रशोध आदि पेट की गंभीर बीमारियों के शिकार होते हैं।

यही नहीं दुनिया में पाँच लाख लोगों की मौत दूषित जल की वजह से होती है। इसकी असली वजह दुनिया के 80 फीसदी देशों के पास पीने का साफ पानी मुहैया कराने के लिये पर्याप्त बजट का न होना है। इसके लिये 114 अरब डॉलर का अतिरिक्त बजट उन्हें चाहिए। खेती पर निर्भर लोगों को बढ़ते तापमान के बीच खाद्यान्न पैदा करने में और मवेशियों को चारा जुटाने में आज के मुकाबले और मुश्किलों का सामना करना होगा। जिस तेजी से तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले की खपत पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए तब तक इनके पर्याप्त रह पाने की उम्मीद न के बराबर है। आकलन इस बात के प्रमाण हैं कि वर्ष 2040 तक तेल के उपयोग में पाँच से दस फीसदी तक की कमी आयेगी। गैस के और तेजी से कम होने की उम्मीद है। अक्षय उर्जा यानी पवन और सौर उर्जा के उपयोग में जिस रफ्तार में वृद्धि हो रही है, उसे देखते हुए इसमें और तेजी से लगातार बढ़ोतरी होगी। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता।

बढ़ते शहरीकरण के चलते तब तक पृथ्वी पर 80 फीसदी लोग शहरों में रह रहे होंगे। तब कई मेगा सिटी और नये शहर जिनकी जनसंख्या 20 मिलियन से ज्यादा होगी, अस्त्त्वि में आ चुके होंगे। भारत शहरी क्रांति के कगार पर है। यहाँ नये-नये शहर और कस्बे तेजी से बढ़ रहे हैं। परिणामस्वरूप खेती योग्य जमीन तेजी से कम होती जा रही है। जंगल खत्म हो रहे हैं, नतीजतन पक्षियों और वन्यजीवों के आवास स्थल भी उसी तेजी से लुप्त होते जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यहाँ शहरों और कस्बों की आबादी 2031 तक 60 करोड़ का आंकड़ा पार कर जायेगी। आने वाले 20 सालों में देश में शहरी आधारभूत संरचना में 827 अरब डॉलर तक के निवेश की जरूरत होगी। इनमें से दो तिहाई राशि तो शहरी सड़कों और यातायात ढाँचे को दुरुस्त करने में खर्च होगी।

दरअसल भारत में शहरीकरण का मौजूदा चलन शहरों के बाहरी इलाकों में विस्तार पा रहा है। इसमें काफी कुछ गैर नियोजित तरीके से तथा शहरी मापदण्डों और उपनियमों के बाहर हो रहा है। आबादी के इस अभूतपूर्व विस्तार से स्थानीय निकायों पर संसाधनों की भारी कमी के बीच भारी बोझ पड़ रहा है। यह आने वाले सालों में सीमा से बाहर हो जायेगा। देश की 23 करोड़ आबादी नाइट्रेट के घेरे में है। पीने के पानी में नाइट्रेट की बढ़ी हुई मात्रा के कारण लोग पेट के कैंसर, स्नायु तंत्र व दिल की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। देश में 6.3 करोड़ ग्रामीण लोगों को साफ पानी नसीब नहीं है। यहाँ बढ़ते शहरी प्रदूषण के कारण 44 फीसदी कार्बन उत्सर्जन होता है।

वर्ष 2050 तक समय से पहले होने वाली मौतों का एक अहम कारण वायु प्रदूषण होगा। पर्यावरण में दिनोंदिन हो रही गिरावट के कारण 80 अरब डॉलर सालाना की दर से जीडीपी घट रही है। सीएसडीएस और केएसएस के सर्वे की मानें तो देश में नौकरी और रोजगार के मौके कम हैं। 18 फीसदी नौजवानों का मानना है कि देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। सदी के अंत तक वृद्धों की तादाद दुनिया भर में 23 फीसदी के करीब होगी। जीवन प्रत्याशा वर्ष 2100 में बढ़कर 81 साल हो जायेगी जो आज 68 साल है। इन हालातों में सम्पूर्ण जनसंख्या के बेहतर जीवन की आशा कैसे की जा सकती है। विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई के दिन जनसंख्या नियंत्रण के संकल्प लेने से कुछ नहीं होने वाला, उस संकल्प को जमीन पर उतारना होगा। तभी कुछ बेहतर भविष्य की उम्मीद की जा सकती है अन्यथा नहीं।

ज्ञानेन्द्र रावत
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं पर्यावरणविद अध्यक्ष, राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति, ए-326, जीडीए फ्लैट्स, फर्स्ट फ्लोर, मिलन विहार, फेज-2, अभय खण्ड-3, समीप मदर डेयरी, इंदिरापुरम, गाजियाबाद-201010, उ.प्र., मोबाइल: 9891573982, ई-मेल: rawat.gyanendra@rediffmail.com, rawat.gyanendra@gmail.com
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading