बहुत लंबा सफर तय करती है बारिश

20 Jul 2011
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बच्चों, यह तो आप जानते ही हो कि आजकल मॉनसून का मौसम चल रही है जिसमें खूब बरसात होती है, लेकिन क्या आप यह भी जानते हो कि बारिश होती कैसे है? चलिए, आज बारिश के सफर पर ही बात करते हैं। यह तो आपको मालूम ही होगा कि बारिश वाष्पीकरण की वजह से होती है, लेकिन वाष्पीकरण तो हमारे घरों में भी होता रहता है। आपने देखा ही होगा कि कूलर का सारा पानी वाष्प बनकर खत्म हो जाता है, धूप-हवा में पड़े भीगे कपड़े भी सूख जाते हैं। इससे संपर्क में आने वाली आस-पास की हवा में नमी जरूर आ जाती है, लेकिन बारिश नहीं होती। फिर बारिश कैसे होती है? असल में, पानी के वाष्प बनकर उड़ जाने और फिर बारिश के रूप में बरसने के बीच एक लंबी प्रक्रिया होती है। पानी के वाष्पीकरण के बाद यह भी जरूरी होता है कि नमी वाली यह हवा अपने उस गर्म वातावरण को छोड़ कर ठंडे वातावरण की ओर बढ़े जिससे जल वाष्प में सघनता पैदा हो सके। गर्मियों के मौसम में जब तापमान ज्यादा होता है तब समुद्र, नदियों, झीलों वगैरह का पानी धूप में गर्म होकर धीरे-धीरे वाष्प बनकर हवा में मिलने लगता है। इस प्रकिया को ही हम वाष्पीकरण कहते हैं।

हल्की होने के कारण यह जल वाष्प हवा में ऊपर उठने लगती है। हम जानते हैं कि जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती है, तापमान कम होने लगता है। ऊपर जाने पर तापमान में आई इस कमी से वाष्पकण धीरे-धीरे सघनित होने लगते हैं। एक-दूसरे के करीब आने लगते हैं जिससे पानी की बहुत ही नन्हीं-नन्हीं बूंदें बनने लगती हैं। ऐसा होने पर बादलों का निर्माण होने लगता है। हवा के साथ जब ये बादल अधिक तापमान वाले स्थान से कम तापमान वाले स्थानों की ओर जाने लगते हैं तो वातावरण में पाए जाने वाले धूल-कणों की वजह से बादलों की ये नन्हीं बूंदें एक-दूसरे के और पास आकर और ज्यादा सघनित होने लगती हैं। इस तरह वाष्पकणों की सघनता बढ़ने से बारिश की बूंदों का निर्माण होता है और अपने बढ़ते वजन के कारण ये बूंदें जमीन पर गिरती हैं। आकाश से गिरती पानी की ये बूंदें हमें बारिश के रूप में दिखाई देती हैं।

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