
अगर हम दिल्ली की ही बात करें, तो पिछले दो-तीन सालों से यहाँ प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों की मात्रा सामान्य काफी ज्यादा रही है। प्रदूषण को लेकर काम करने वाले दुनिया के तमाम संगठन दिल्ली की आबोहवा को लेकर चिन्ता जता चुके हैं।
दिल्ली में प्रदूषण की कई वजहें बताई जाती हैं। मसलन वाहनों की अधिक संख्या, पंजाब व हरियाणा में पराली जलाना आदि। दिल्ली में प्रदूषण से निबटने के लिये कई एहतियाती कदम उठाए जाने का मशविरा दिया गया है।
वायु प्रदूषण को लेकर चिन्तित होने की जरूरत इसलिये है, क्योंकि जीवन के लिये बहुत खतरनाक होता है।
डाउन टू अर्थ मैगजीन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर आठवीं मौत का कारण प्रदूषण है।
प्रदूषण को लेकर दिल्ली जैसे हालात या दिल्ली जैसी चर्चा अन्य शहरों में भी दिखने लगे हैं। इनमें बिहार के शहर भी शामिल हो गए हैं।
हाल के कुछ महीनों में प्रदूषण को लेकर बिहार खासा चर्चा में है। यहाँ के कुछ शहरों में प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है।
बढ़ता प्रदूषण यहाँ रहने वाले लोगों के सेहत के लिये बड़ा खतरा बनकर उभरा है और हालात अगर ऐसे ही बने रहे, तो आने वाले दिन मुश्किल भरे होने वाले हैं।
हाल के दिनों में वायु प्रदूषण के मामले में बिहार ने दूसरे राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है। नवम्बर में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से जारी प्रदूषण आँकड़े बताते हैं कि वायु प्रदूषण के मामले में पटना ने बदनाम (प्रदूषण के मामले में) दिल्ली को भी पछाड़ दिया था।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी आँकड़ों के मुताबिक पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स 307 और 318 दर्ज किया गया, जो सबसे खतरनाक है। 0 से 50 तक एयर क्वालिटी स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक माना जाता है। इस लिहाज से देखें, तो एयर क्वालिटी इंडेक्स सामान्य से छह गुना ज्यादा था।
इसी तरह दूसरे तरह के पॉलुटेंट्स की मात्रा भी सामान्य से काफी ज्यादा थी।
दूसरी ओर, इसी साल मार्च में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रदूषण को लेकर कुछ आँकड़े जारी किये।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 4300 शहरों के एयर मॉनीटरिंग स्टेशनों से आँकड़े जुटाकर सबसे प्रदूषित शहरों की फेहरिस्त तैयार की। इस फेहरिस्त में 12 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों को शामिल किया गया, जिनमें 11 शहर भारत के थे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पाया कि 12 शहरों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की मात्रा सामान्य से काफी ज्यादा है। भारत के शहरों में सबसे ज्यादा प्रदूषण कानपुर में देखा गया।
प्रदूषित शहरों की सूची में बिहार के तीन शहर शामिल हैं– गया, पटना और मुजफ्फरपुर।
गया में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 की मात्रा 149 रही जबकि पटना में यह 144 दर्ज किया गया। मुजफ्फरपुर में इन दो शहरों की तुलना में कम प्रदूषण देखा गया। मुजफ्फरपुर में पीएम 2.5 की मात्रा 120 दर्ज की गई।
प्रदूषण के मामले में बिहार कभी भी खतरनाक स्थिति में नहीं रहा, लेकिन बीते कुछेक सालों में बिहार के शहरों में प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है। प्रदूषण के स्तर का अन्दाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कई इलाकों में जाने पर आँखों में जलन होने लगती है।
दूसरी तरफ, कुछ आँकड़ों से यह भी पता चल रहा है कि प्रदूषण से होने वाले बीमारियों के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। हालांकि इन आँकड़ों को प्रदूषण से जोड़ने के लिये पुख्ता प्रमाण नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें प्रदूषण का बड़ा रोल है।
बिहार सरकार का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो आँकड़े दिये हैं, वे पूरी तरह सच नहीं हैं और प्रदूषण को लेकर बिहार की तस्वीर उतनी चिन्ताजनक नहीं है, जितनी बताई जा रही है।
बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी मानते हैं कि पटना और दूसरे शहरों में प्रदूषण तो है, लेकिन उतनी भी चिन्ताजनक नहीं है। उन्होंने कहा है कि पटना में प्रदूषण तो है, लेकिन हालात उतनी नाजुक नहीं है जितनी बताई जा रही है।
उन्होंने यह भी माना कि राजधानी पटना में वाहनों की संख्या में इजाफा हुआ है। उन्होंने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा था, ‘पटना में वाहनों की संख्या बढ़ रही है, जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है। लेकिन, लोगों को वाहन खरीदने की आजादी है और हम उन्हें रोक नहीं सकते हैं।’
हालांकि, पटना में कम प्रदूषण होने के राज्य सरकार के इस दावे को पुष्ट करने के लिये बिहार सरकार के अपने दावे हैं और इन दावों में कुछ हद तक सच्चाई भी है।
पटना की बात करें, तो यहाँ प्रदूषण मापने का यंत्र केवल एक स्थान पर लगाया गया है। प्रदूषण से जुड़े आँकड़े इसी पॉल्यूशन मॉनीटरिंग स्टेशन से लिये जाते हैं। ये मॉनीटरिंग स्टेशन शहर के व्यस्ततम सड़क पर है। इस सड़क से होकर सबसे ज्यादा वाहन चलते हैं, इसलिये इस स्टेशन से लिये गए आँकड़ों में प्रदूषण की मात्रा अधिक देखी जा रही है।
बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आला अधिकारियों का कहना है कि पटना बहुत बड़ा शहर है और इतने बड़े शहर में प्रदूषण के स्तर के बारे में पता लगाने के लिये एक मॉनीटरिंग स्टेशन नाकाफी है।
हालांकि, अधिकारियों की बात कुछ हद तक सही है, लेकिन सवाल तो फिर भी ये उठता है कि अगर मॉनीटरिंग स्टेशन अपर्याप्त हैं, तो इसकी जवाबदेही किसकी है? जाहिर सी बात है कि यह सरकार का काम है और सरकार इस मोर्चे पर विफल साबित हुई है।
दूसरी बात ये कि अगर सरकार यह दावा कर रही है कि एक ही मॉनीटरिंग स्टेशन है और उसके आँकड़ों से पूरे पटना की तस्वीर नहीं मिल सकती है, तो आशंका यह भी हो सकती है कि पटना के दूसरे इलाकों में प्रदूषण का स्तर और ज्यादा होगा।
बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन अशोक घोष कहते हैं, ‘यहाँ एक ही मॉनीटरिंग स्टेशन है और वह तारामंडल में स्थित है। इस एक मॉनीटरिंग स्टेशन से पूरे पटना की आबोहवा का अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता है। हाँ, ये हम भी मानते हैं कि पटना में प्रदूषण है और इससे निबटने के लिये हम प्रतिबद्ध हैं।’
पटना में प्रदूषण की बात करें, तो इसकी कई वजहें हैं। पहली वजह ये है कि यहाँ वाहनों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है और साथ ही पुराने वाहन भी चल रहे हैं। पुरानी गाड़ियाँ सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं। दूसरी तरफ, पटना में चलने वाले बहुत सारे पुराने ऑटोरिक्शा में मिलावटी तेल का इस्तेमाल होता है, जो प्रदूषण में बड़ी भूमिका निभाता है। पुराना आटोरिक्शा चलाने वाले एक ड्राइवर ने बताया, ‘नए आटोरिक्शा के लिये परमिट नहीं मिल रहा है इसलिये हमलोग पुराना ऑटोरिक्शा चलाने को विवश हैं।’
इसके अलावा शहर में बहुत सारे जूस के खोमचे भी चलते हैं जहाँ डीजल चालित मशीन के जरिए गन्ने से जूस निकाला जाता है। यह मशीन दिन भर चलती है, भले ही ग्राहक आये-न-आये। जूस का खोमचा चलाने वाले एक दुकानदार ने कहा कि रोजाना करीब पाँच लीटर डीजल वह खर्च करते हैं। डीजल चालित इन खोमचों की भी प्रदूषण फैलाने में भूमिका है।
यही नहीं, पटना में कंस्ट्रक्शन का काम भी खूब हो रहा है। जगह-जगह रोड, पुलिस और बिल्डिंग बन रही है, जहाँ से बालू सीमेंट आबोहवा में फैल रहा है और प्रदूषण बढ़ा रहा है। बताया जाता है कि कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट की तरफ से नियम बनाया गया है कि अगर किसी बिल्डिंग की मरम्मत हो रही है, तो उसे चारों तरफ से ढँका जाना चाहिए ताकि धूल बाहर न निकले, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।
बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जुड़े अधिकारियों की मानें, तो कंस्ट्रक्शन कम्पनियाँ इस नियम का पालन नहीं कर रही हैं।
दूसरी तरफ, प्रदूषण खासकर पटना में धूल-कणों की बढ़ती मात्रा की एक बड़ी वजह पटना से सटी गंगा नदी का मार्ग बदलना भी है। पहले गंगा नदी एकदम पटना से सटकर बहती थी, लेकिन धीरे-धीरे यह पटना से दूर होती गई और अपने पीछे बालू छोड़ गई। पटना की तरफ जब हवा बहती है, तो बालू के ये कण हवा के साथ पटना में आ जाते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है।
मुजफ्फरपुर और गया की बात करें, तो इन दोनों शहरों में भी पुराने वाहनों की संख्या अधिक है। खासकर ऑटोरिक्शा तो बहुत ही ज्यादा चलते हैं। इन दोनों शहरों में धूलकण भी बहुत हैं।
बताया जा रहा है कि मुजफ्फरपुर में ऑटोरिक्शा की जगह ई-रिक्शा चलाने की योजना है। ई-रिक्शा बैटरी से चलता है और बैटरी बिजली से चार्ज किया जाता है। इससे किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता है।
लेकिन, अफसोस की बात है कि इन समस्याओं के समाधान के लिये बहुत ठोस प्रयास नहीं किये जा रहे हैं।
बताया जाता है कि पटना में प्रदूषण नियंत्रण के लिये राज्य सरकार ने एक एक्शन प्लान साल भर पहले ही तैयार कर लिया था, लेकिन उसे अमलीजामा नहीं पहनाया गया।
अलबत्ता, सरकार की तरफ से कुछ आश्वासन जरूर दिये गए हैं। मसलन शहर में ग्रीनरी का दायरा बढ़ाने की बात चल रही है। इसके साथ ही पता यह भी चला है कि गंगा नदी के सूख चुके हिस्से में पेड़-पौधे लगाए जाएँगे, ताकि वहाँ का धूल-कण उड़कर शहर में प्रवेश नहीं कर सके।
अशोक घोष कहते हैं, ‘हमने सरकार से कहा है कि गंगा नदी का जो हिस्सा सूख चुका है, वहाँ पेड़-पौधे लगाए जाएँ। इससे वहाँ की बालू भरी धूल शहर में प्रवेश नहीं कर पाएगी, जिससे प्रदूषण कम होगा।’
सूत्रों की मानें, तो पटना में जगह-जगह पार्क भी तैयार करने की योजना है और उन पार्कों में ज्यादा-से-ज्यादा पेड़ लगाए जाएँगे, ताकि आबोहवा साफ रहे।
प्रदूषण बेहद संगीन मसला है। प्रदूषण की वजह से हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है, इसलिये इस मामले को लेकर ढुलमुल रवैया बड़े नुकसान का बायस बन सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार को त्वरित कार्रवाई करने की जरूरत है।
सरकार को चाहिए कि प्रदूषण से जुड़े तमाम विभागों व अफसरों के साथ मिलकर कारगर योजना तैयार करे और किसी भी तरह का समझौता किये बगैर योजना को लागू करे।
यही नहीं, प्रदूषण के चलते अब तक लोगों पर किस तरह का प्रभाव पड़ा है, इसका आकलन भी बहुत जरूरी है। सम्प्रति सरकार के पास ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे पता चल सके कि प्रदूषण ने यहाँ रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर कितना असर डाला है। लोगों के स्वास्थ्य की जाँच कर प्रदूषण के परिणामों का आकलन किया जाये, तो प्रदूषण के स्तर को लेकर भी कुछ ठोस आँकड़े मिल सकते हैं।
अतः सरकार को योजना तैयार करने के साथ ही लोगों के स्वास्थ्य की जाँच भी की जानी चाहिए। इससे प्रदूषण से निबटने में सरकार को बहुत सहूलियत होगी और भविष्य की योजनाएँ तैयार करने में भी मदद मिलेगी।