बिखर रहा गांवों और शहरों को स्वच्छ बनाने का सपना

बक्सर जिले में स्वच्छता व पेयजल के लिए करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद लोगों को स्वच्छता व स्वच्छ पेयजल नहीं मिल रहा हैं। वहीं शौचालय बनाने के लिये प्रत्येक पंचायत के विभिन्न गांवों में होड़ लगी है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही हैं। ‘हर घर का बस एक ही नारा, शुद्घ जल एवं शौचालय हमारा’ के स्लोगन के साथ जिला जल एवं स्वच्छता अभियान समिति ने जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया। इसके लिए ब्रह्मपुर, चक्की, सिमरी, नावानगर, केसठ, चौगाई, डुमरांव में प्रखंड स्तर पर पंचायत प्रतिनिधियों के समक्ष कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कई योजनाओं से बने करीब 85 फीसदी निर्माणाधीन शौचालय बंद पड़े हैं। आज भी खुले में शौच कर रहे हैं लोग।डुमरांव प्रखंड के 16 पंचायत के गांवों में शौचालय बनाकर निर्मल ग्राम बनाने की योजनाओं पर विभागीय दावों की हवा निकल रही है। यह योजना कहीं विभागीय लापरवाही तो कहीं जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण दम तोड़ रही है। वहीं जिले के मुख्य दियरांचल क्षेत्र में लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। बक्सर-आरा एनएच 84 से सटे उत्तर दिशा में नैनीजोर से बक्सर तक लोग शुद्घ पेयजल की कमी को झेल रहे हैं।

क्षेत्र के सिमरी, राजापुर, बलिहार, नैनीजोर, जवहीं दियर, चक्की के अलावा दर्जनों गांव में स्वच्छता व स्वच्छ पेयजल की स्थिति बदतर है। चापाकल लगाने के समय बरती जा रही अनियमितता के कारण कुछ माह में ही चापाकल दम तोड़ देता है। चापाकल प्रत्येक साल लगते है लेकिन 100 में 95 फीसदी मृत हो जाते हैं। कई पंचायतों को निर्मल गांव घोषित किया गया, लेकिन पेयजल सहित स्वच्छता पर यह घोषणा अनुपयोगी साबित हो रही है। निर्मल ग्राम के निवासी मदन शुक्ला कहते हैं कि निर्मल ग्राम घोषित है लेकिन मानक कागजों पर ही दिखता है।

गांवों में योजना हकीकत से दूर


स्वच्छता पेयजल योजना पंचायत के गांवों में सच्चाई से कोसों दूर है। आज भी खुले में शौच करने वालों की संख्या ज्यादा है। हालांकि सरकारी घोषणा के अनुसार वर्ष 2012-13 में ही एपीएल व बीपीएल परिवारों को शौचालय उपलब्ध करा देने की बात कही गयी है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वैयक्तिक शौचालय, विद्यालय शौचालय, आंगनबाड़ी शौचालय, सामुदायिक शौचालय व मनरेगा के तहत बने शौचालयों की संख्या नगण्य है। इंदिरा आवास की बात की जाए तो डुमरांव प्रखंड के 1797 इंदिरा आवासों में सिर्फ 784 ही शौचालय का लक्ष्य पूरा किया है। गांवों में कागज पर जो दिखता है वो धरातल पर कम ही दिखता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि गांव में योजना हकीकत से काफी दूर है।

अधिकांश शौचालय आधे-अधूरे


प्रखंडों में करीब 85 फीसदी तक यह योजना गांव व मुहल्लों में पूरी नजर नहीं आती है। इस योजना के तहत गांवों में कहीं गढ़े खोदकर तो कहीं बिना सीट के ढक्कन रख खानापूर्ति कर दी गयी है। कई योजनाओं से बने करीब 85 फीसदी निर्माणाधीन शौचालय बंद पड़े हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि निर्मल ग्राम बनाने की योजना कितनी कारगर साबित हो रही है। शौचालय तो बने है लेकिन बहुत ही कम लोग उपयोग में लाते है। शौचालय के दिवारों पर गोईठा थापा जाता हैं।

स्वच्छता का सपना कागजों पर सिमटा


चौसा, धनसोई, राजपुर, केसठ, चौगाई, चक्की प्रखंडों में स्वच्छता व पेजयल पर लोगों का कहना है कि पेयजल के लिए प्रत्येक साल चापाकल लगता है और कुछ माह में ही चापाकल दम तोड़ देता है। वहीं स्वच्छता की बात करें तो जागरूकता के लिए रथ भ्रमण करता है और नुक्कड़ सभाएं होती हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और दिखता हैं शौचालय के नाम पर केवल फोटो खिंचाने का काम होता है। लोग कहते हैं कि पैसा मिलेगा तो ही शौचालय बनेगा, लेकिन सरकारी नियम है पहले शौचालय का फोटो लाओ, उसके बाद राशि मिलेगी। शौचालय बने या न बने लेकिन कागजों पर शौचालय का सपना जरूर बुना जा रहा है।

केस स्टडी-1
ब्रह्मपुर प्रखंड में पूर्व मंत्री प्रेम कुमार ने 1 करोड़ 95 लाख की लागत से बनने वाले पानी टंकी का 2008 में उदघाटन किया, लेकिन लोगों को आज तक इससे पेयजल सुविधा नसीब नही हो पायी। इसका कारण है जर्जर पाइप का मरम्मत न होना बताया जाता है। स्वच्छता की बात की जाए तो प्रखंड के विभिन्न गांवों के सड़कों के किनारे शौच किये जाते हैं। स्वच्छता अभियान के लिए नुक्कड़ पर जागरूकता एवं रथ हर जगह घुमते रहते हैं लेकिन इसका प्रभाव नहीं पड़ता। स्वच्छता व स्वच्छ पेयजल क्षेत्र के लिए चुनौती बन गई है।

केस स्टडी-2
डुमरांव प्रखंड मुख्यालय में बने पानी टंकी भी क्षेत्र में शोभा बढ़ा रही हैं। उद्घाटन के बाद कुछ दिनों तक पानी टंकी से लोगों को सुविधा मिली, लेकिन उसके बाद सरकारी उदासीनता का शिकार हो गया। डुमरांव शहर में भी लोगों को स्वच्छ पेयजल नसीब नहीं होता है। इसका भी कारण पाइप का जर्जर होना है। वहीं नगर में बने लोगों के लिए शौचालय गंदगी का अंबार और सुअरों का रैन बसेरा बन गया है।

केस स्टडी-3
भोजपुर में भी स्वच्छता व स्वच्छ पेयजल नहीं मिल रहा है। पुराने भोजपुर में पानी टंकी का निर्माण हुआ, लेकिन लोगों को इसका लाभ नहीं मिल सका। पंचायत में बने पानी टंकी ज्यादातर खराब ही रहता है। पूरे गांव में पेयजल पहुंचाने के लिए पाइप बिछाया गया, लेकिन जगह-जगह पाइप फूटे हैं जिससे पानी सड़क पर बहता रहता है। वहीं पुराना भोजपुर-सिमरी मार्ग पर सड़क के किनारे व खेतों की पगडंडियों पर महिला-पुरुष शौच करते हैं जिससे स्वच्छता के दावों की कलई खुलती दिखाई पड़ती हैं। पेयजल की बात करें तो पानी टंकी शोभा बढ़ा रही हैं। अगर घरों में चापाकल न हो तो लोग पेयजल के लिए दर-दर भटकते-फिरते दिखाई देते।

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