बुन्देलखण्ड को सूखाने की कोशिश

6 Nov 2015
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पिछले एक दशक में जितनी भी पेयजल और दूसरी योजनाएँ बुन्देलखण्ड क्षेत्र में चलाई गई हैं वह सभी अफसरों और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के गठजोड़ के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं। आज पूरे क्षेत्र में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है। बीते एक दशक में 3261 किसानों ने आत्महत्याएँ की इनका राष्ट्रीयकृत और क्षेत्रीय बैंकों का करीब 9095 करोड़ रुपया कर्ज है। अक्सर सभी पार्टियाँ चुनावों में किसानों के कर्ज माफी की घोषणा की बात करती हैं और यही कारण है कि किसान कर्ज नहीं चुकाते और इसके जाल में अपनी जान गवाँ देते हैं।

बुन्देलखण्ड क्षेत्र के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य के अधिकांश हिस्सों के तालाब, कुएँ और नदियाँ सूख गई हैं, यहाँ के निवासी पानी के लिये बेहाल हैं। चन्देलकालीन ऐतिहासिक सरोवरों में पानी तहलटी में हैं, नदियों की धारा टूट चुकी हैं।

बेतवा-केन-उर्मिल-धसान जैसी छोटी बड़ी नदियाँ संकट में हैं। पानी के इस संकट की मुख्य वजह इस साल बहुत कम बारिश का होना है। बुन्देलखण्ड के पानी से हो रही भारी दिक्कतों के लिये लोग राजनेताओं और अफसरों के गठजोड़ को जिम्मेदार मानते हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिये ठेकेदारों को छूट दिये हैं।

केन्द्र सरकार ने बुन्देलखण्ड इलाके के तालाबों की सिल्ट सफाई के लिये करोड़ों रुपए दिये, लेकिन इन जलस्रोतों की सफाई का काम कागजों तक सिमटा रह गया। बुन्देलखण्ड के सभी जनपदों में सभी प्राचीन जलस्रोत सूखते नजर आ रहे हैं।

पर्यावरण से खिलवाड़ की खुली छूट ने जंगलों और पहाड़ों पर अवैध खनन को बढ़ावा दिया। अब नदियों से वैध और अवैध तरीकों से बालू, मोरंग खोदी जा रही है। इसमें अधिकांश सांसद, विधायक और पूर्व माननीय शामिल हैं, जिनके इशारों पर प्रशासन नतमस्तक रहता है। इनका चरित्र भी सत्ता के साथ बदलता है।

यादव ट्रांसपोर्ट कंस्ट्रक्शन नाम से कोई समूह कई जिलों से बिना ठेके के ही बालू निकाल रहा है। इस तरह दिन रात एक नदी से 500 से हजार ट्रक बालू निकाली जा रही है। इससे नदियों पर विपरित प्रभाव पड़ रहा है। इसके बाद भी प्रशासन का इस पर्यावरण लूट पर किसी का कोई ध्यान नहीं है।

क्षेत्र की नदियों पर प्रशासन आजादी के बाद से अब तक पुलों का निर्माण नहीं करा सका है, लेकिन इस धंधे में लगे माफिया रातों रात पुलों का निर्माण कराकर अवैध खनन कर रहे हैं और नदी की धारा भी तोड़ रहे हैं। प्रशासन इन अवैध पुलों को तोड़ने के लिये भी महीनों हिम्मत नहीं जुटा पाता है।

पर्यावरण विशेषज्ञों की राय में बुन्देलखण्ड के तालाबों-नदियों में पानी न होने पर एक राय यह है कि जब तक नदियों की तलहटी को खोदकर खनन किया जाएगा तो इस क्षेत्र में पानी की समस्या दिनों-दिन गहराती ही जाएगी।

पिछले एक दशक में जितनी भी पेयजल और दूसरी योजनाएँ बुन्देलखण्ड क्षेत्र में चलाई गई हैं वह सभी अफसरों और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के गठजोड़ के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं। आज पूरे क्षेत्र में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है।

बीते एक दशक में 3261 किसानों ने आत्महत्याएँ की इनका राष्ट्रीयकृत और क्षेत्रीय बैंकों का करीब 9095 करोड़ रुपया कर्ज है। अक्सर सभी पार्टियाँ चुनावों में किसानों के कर्ज माफी की घोषणा की बात करती हैं और यही कारण है कि किसान कर्ज नहीं चुकाते और इसके जाल में अपनी जान गवाँ देते हैं।

महोबा जिले में पेयजल के लिये साल 1978 में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों के बीच करार के बाद महोबा (उत्तर प्रदेश) और छतरपुर (मध्य प्रदेश) जनपदों के तहसील में उर्मिल बाँध का निर्माण हुआ था। यह साल 1995 में 33.22 करोड़ रुपए की लागत से पूरा हुआ।

करार के मुताबिक 40.60 फीसद जल बँटवारे और बाँध के रख-रखाव पर होने वाले खर्च का मानक भी तय किया गया था, लेकिन बाँध निर्माण के बाद से मध्य प्रदेश सरकार ने आज तक फूटी कौड़ी उत्तर प्रदेश सरकार को नहीं दी। जबकि पेयजल मध्य प्रदेश को भी जाता है। साल 1995 से अब तक इस मुद्दे पर कई बार बात हो चुकी है, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।

बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सातों जिलों से 32 लाख लोग अपना घर परिवार, पशु, खेतीबाड़ी छोड़कर दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में महानगरों की ओर पलायन कर गए हैं। इसमें पेयजल संकट की भी बड़ी भूमिका है।

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