बुन्देलखण्ड में पानी के लिये लोग खून के प्यासे

30 Dec 2017
0 mins read
fight for water
fight for water

आँकड़ों के मुताबिक बुन्देलखण्ड के 24 विकासखण्डों में भूजल दोहन सबसे अधिक हो रहा है। इनमें पाँच विकासखण्डों में तो स्थिति बहुत ही विकट है। लगातार सूखे की मार झेल रहे लोगों के लिये हर साल पेट भर अनाज के लिये आठ से दस महीने पलायन कर परदेस जाकर काम करना इनकी नियति बन चुका है। इससे बड़ी बदकिस्मती इनके लिये और क्या होगी कि इनमें से अधिकांश के पास खेती लायक जमीन होने के बाद भी इन्हें पलायन करना पड़ रहा है। लगातार सूखे की मार झेल रहे बुन्देलखण्ड में पानी की किल्लत अभी से महसूस होने लगी है। यहाँ लोग इस साल दिसम्बर महीने से ही बूँद-बूँद पानी को तरसने लगे हैं।

इलाके के लाखों लोग खेतीबाड़ी छोड़कर दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों में मेहनत-मजदूरी करने के लिये परिवार के साथ पलायन कर चुके हैं। ज्यादातर गाँवों में बूढ़ों और कुछ बच्चों के सिवाय कोई नहीं है। एक तरफ शासन द्वारा इस क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित कर मुआवजा बाँटने की तैयारी की जा रही है तो वहीं पानी की समस्या अब इतना विकराल रूप ले चुकी है कि पानी के लिये भाई-ही-भाई के खून का प्यासा हो चला है।

बीते दशकों में यहाँ हर तीसरे साल और अभी तीन-चार सालों से लगातार सूखा पड़ रहा है। बीते पाँच सालों में यहाँ हालात लगातार चिन्ताजनक होते जा रहे हैं। इस साल बहुत ही कम बारिश होने से संकट और भी विकराल हो गया है। यहाँ जिन्दा रहने के लिये पीने का पानी भी खरीदना पड़ रहा है। खेतों में जहाँ थोड़ा-बहुत पानी बचा है, वहाँ हालात मार-काट तक पहुँच चुके हैं।

पानी के लिये सगे भाई ही आपस में एक दूसरे का खून बहाने को आमादा हैं। ऐसा ही एक मामला दो दिन पहले सामने आया है जहाँ मध्य प्रदेश की सरहद से सटे उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के एक ही परिवार के दो सगे भाइयों में पानी के बँटवारे को लेकर खूनी संघर्ष हो गया जिसमें एक भाई ने दूसरे भाई का अपहरण कर पहले तो मार-पीट की फिर उसे सरहद पार कर दूसरे राज्य मध्य प्रदेश के जंगल में फेंक दिया।

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में राजनगर थाना क्षेत्र के गाँव गोपालगंज में सडक किनारे जंगल में रस्सियों से बँधा एक शख्स जख्मी हालत में मिला। स्थानीय लोगों की सूचना पर पहुँची पुलिस ने उसे अस्पताल में दाखिल कराया। तहकीकात में खुलासा हुआ कि सीमावर्ती राज्य उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के गरोठा विधानसभा निवासी मूरत सिंह यादव को उसके भाई ने कुछ दिनों पहले अगवा कर उसके साथ जमकर मारपीट की थी। जिसकी रिपोर्ट गुमशुदा के रूप में सम्बन्धित थाने में दर्ज है।

पीड़ित मुरतसिंह यादव ने बताया कि उसका अपने बड़े भाई चरण सिंह से खेत में एक हफ्ते पहले पानी को लेकर विवाद हुआ था, इसे लेकर उसके पुत्र प्रहलाद और पुष्पेन्द्र के साथ दो अन्य लोगों ने मुझे खेत में से पकड़ा और कोई नशीला पदार्थ खिलाकर मुझे बारह दिनों तक बन्धक बनाए रखा। इस दौरान उन्होंने मेरे साथ कई बार मारपीट भी की। बीती रात मारपीट ज्यादा होने से वह बेहोश हो गया तो कुछ लोग उसे यहाँ छोड़कर रात के अन्धेरे में भाग गए।

लोग बताते हैं कि पानी को लेकर खून बहाने का यह कोई पहला मामला नहीं है, बीते साल भी यहाँ के थानों में इस तरह के कई मामले दर्ज होते रहे हैं, लेकिन बड़ी बात यह है कि पानी को लेकर खतरनाक हालात यहाँ इस बार दिसम्बर के महीने से ही बन गए हैं तो आने वाले महीनों में और खासकर गर्मियों में क्या हालात होंगे। यह कल्पना भी भयावह लगती है।

मध्य प्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात जिलों वाले इस बुन्देलखण्ड इलाके में बीते 25 सालों में स्थितियाँ गम्भीर से गम्भीरतम होती गई है। 2007 के बाद स्थितियाँ तेजी से बिगड़ी हैं। यहाँ का भूजल स्तर कई जगह 400 फीट से भी नीचे चला गया है। आँकड़ों के मुताबिक बुन्देलखण्ड के 24 विकासखण्डों में भूजल दोहन सबसे अधिक हो रहा है। इनमें पाँच विकासखण्डों में तो स्थिति बहुत ही विकट है।

लगातार सूखे की मार झेल रहे लोगों के लिये हर साल पेट भर अनाज के लिये आठ से दस महीने पलायन कर परदेस जाकर काम करना इनकी नियति बन चुका है। इससे बड़ी बदकिस्मती इनके लिये और क्या होगी कि इनमें से अधिकांश के पास खेती लायक जमीन होने के बाद भी इन्हें पलायन करना पड़ रहा है। पन्ना जिले के बराछ गाँव के पवन ने बताया कि अकेले उनके गाँव के एक हजार लोगों में से करीब-करीब आधे यानी पाँच सौ लोग पलायन कर चुके हैं। यह स्थिति उनके अकेले गाँव की नहीं है, कमोबेश आसपास के सभी गाँवों की यही स्थिति है।

यहीं के रहने वाले बसंतीलाल कहते हैं कि उनके पास गाँव में खेती के लिये जमीन तो है लेकिन बिन पानी सब सून। पानी ही नहीं तो खेती का क्या करें। उनका कहना है कि हमारे पास पानी नहीं तो हमने मजदूरी कर परिवार का पेट भरना चाहा लेकिन गाँव और आसपास सब तरफ पानी नहीं होने से एक जैसी स्थितियाँ हैं। जैसी हमारी, वैसी ही सबकी। इसीलिये घर-परिवार के सभी बारह मेम्बर दिल्ली जा रहे हैं। उन्होंने दिल्ली नहीं देखी है लेकिन इसी गाँव के कुछ लोग पहले वहाँ जा चुके हैं। उन्हीं के भरोसे वे भी जा रहे हैं। वे निराश होकर कहते हैं-किस्मत का खेल है, यह जहाँ ले जाये।

इधर के रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंड इन दिनों बाहर जाने वाले लोगों के सामान और उनकी भीड़ से अटे पड़े हैं। अपने परिवार और भारी-भरकम पोटलियों में घर-गृहस्थी का सामान समेटे ये लोग काम की तलाश में अपने घर-गाँव से बेदखल होकर शहरों-कस्बों की खाक छानने और त्रासद स्थितियों में रहने को अभिशप्त हैं। कहने को गाँव में रोजगार उपलब्ध कराने के लिये मनरेगा जैसी योजनाएँ हैं, लेकिन इससे उलट अकेले बुन्देलखण्ड इलाके से हर दिन पाँच हजार से ज्यादा लोग पलायन कर रहे हैं।

पीड़ित मूरत सिंह यादवअब तो बुन्देलखण्ड की पहचान ही सूखा, पलायन, भूखमरी, बेकारी और बूँद–बूँद पानी को तरसते अंचल के रूप में हो चुकी है। हर साल यहाँ से पलायन होता है लेकिन इस साल हालात बीते सालों से कहीं ज्यादा त्रासदी वाले हैं। लोग दिल्ली, नोएडा, गुड़गाँव, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा से लेकर जम्मू-कश्मीर तक जा रहे हैं।

उधर गाँवों में पीने के पानी के लिये दो से दस किमी तक घूमना पड़ता है। बारिश बहुत कम होने से कुएँ-कुण्डियों से लेकर नदी-तालाब सब सूखे पड़े हैं। लोग बेहाल हैं। बारिश की कमी से खेती नहीं हुई तो लोगों को अन्न के दानों के लिये मोहताज होना पड़ रहा है। छतरपुर बस स्टैंड पर पानी पीने के लिये भी दो रुपए प्रति गिलास चुकाना पड़ता है।

मध्य प्रदेश की सरकार ने छतरपुर, टीकमगढ़, सागर, पन्ना, दतिया और दमोह जिले को सूखाग्रस्त घोषित किया है तथा सूखे की हालिया स्थिति से निपटने के लिये हालिया 3900 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि की माँग केन्द्र से की है, हालांकि अब तक कोई राशि नहीं मिली है। खुद राज्य सरकार ने अपने कोष से 450 करोड़ रुपए की राशि फसल क्षतिपूर्ति और पीने के पानी की योजनाओं के लिये मंजूर की है, लेकिन अभी तक इसका भी कोई उपयोग नहीं हो सका है।

यहाँ कभी बारहों महीने बहने वाली सदानीरा नदियाँ बहती रहती थीं, लेकिन अब बारिश खत्म होते ही इनकी धार भी सूखने लगती हैं। केन, बेतवा, सोन, धसान, सुनार, कोपरा, बेबस, व्यारमा और मीठासन जैसी दो दर्जन छोटी-बड़ी नदियाँ अब अक्टूबर-नवम्बर में ही सूखने लगती हैं।

यदि समय रहते इन नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जाता और इनके बेहतर जल प्रबन्धन को बनाए रखा जाता तो हालात इतने बेकाबू नहीं होते। बात इतनी ही नहीं है। इन नदियों से पीने का पानी का उपयोग जहाँ कई गाँव करते थे, वहाँ नदियाँ सूखने से हैण्डपम्प का उपयोग किया जा रहा है।

जल संसाधन विभाग के मुताबिक पन्ना और छतरपुर जिले सहित बुन्देलखण्ड के कई गाँवों में फ्लोराइड युक्त पाई मिलने से हैण्डपम्प का पानी पीने योग्य नहीं है। यहाँ के कई नगरों की नल जल योजनाएँ भी बरसों से अधूरी पड़ी हैं। पन्ना में ही देवेन्द्र नगर, अमानगंज सहित कई नगरों में करोड़ों की प्रस्तावित योजनाएँ पूरी नहीं हो सकी हैं।

बुन्देलखण्ड की यह हालत इसलिये हुई है कि न तो यहाँ के लोगों या जनप्रतिनिधियों ने और न ही अफसरों और सरकारों ने आज तक कभी यहाँ के पारम्परिक जलस्रोतों की कभी कोई साज-सम्भाल नहीं की। यहाँ की नदियों के साथ पीढ़ियों के बने पुरातन तालाबों पर भी अतिक्रमण कर उन्हें नेस्तनाबूद कर दिया गया।

यहाँ के लोगों की मानें तो इलाके में रियासतकाल और उससे पहले के करीब तेरह हजार तालाब हुआ करते, लेकिन आज की स्थिति में देखें तो इनमें से महज दस फीसदी यानी तेरह सौ तालाब ही जमीन पर नजर आएँगे। इनमें भी कई अतिक्रमण के कारण अपने तयशुदा आकार से छोटे ही मिलेंगे। ज्यादातर तालाबों में मिट्टी भरकर वहाँ खेती के लिये जमीन बना ली गई। लेकिन अब वह जमीन भी प्यासी होने से खेती के काम नहीं आ रही।

यहाँ चन्देलकाल में राजाओं ने ग्यारह सौ तालाब बनवाए थे। इनकी साफ-सफाई नहीं होने से ये गन्दगी के ढेर बने हुए हैं तो कई पाट दिये गए। भयावह सूखे के बावजूद तालाबों के सीमांकन को लेकर कोई कार्यवाही नहीं गई है। बीते सालों में केन्द्र सरकार के विशेष पैकेज का बड़ा हिस्सा फौरी तौर पर राहत पहुँचाने जैसे कामों पर ही खर्च किया गया है। स्थायी और मुकम्मल कामों के लिये कोई खास जतन नहीं किया गया है। यही कारण है कि अब यहाँ पानी के बदले खून बहाने की नौबत आ पहुँची है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading