बुंदेलखंड में भूगर्भ जलस्तर 3 मीटर तक खिसका

23 Feb 2010
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पांच स्थानों पर 2 मीटर, 18 स्थलों पर 1 मीटर गहराया, केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने बारिश के बाद की स्थिति बताई, गर्मी में और नीचे जाएगा।

बांदा । ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की’। बुंदेलखंड में भूगर्भ जलस्तर की यही स्थिति है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड द्वारा बुंदेलखंड में भूगर्भ जलस्तर के उपलब्ध कराए गए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। तीन जनपदों के कुछ स्थानों पर जलस्तर 3 मीटर से अधिक नीचे खिसक गया है। 18 स्थानों पर एक मीटर से अधिक जलस्तर घटा है। यह स्थिति तीन माह पूर्व की है। भूमि जल बोर्ड ने अगस्त से नवंबर 2009 के आंकड़े बताए हैं।

जलस्तर ऊपर उठाने की बुंदेलखंड में तमाम केंद्रीय और राज्य सरकार की योजनाएं चल रही हैं। स्वंयसेवी संगठन भी जुटे हुए हैं। लेकिन नतीजा ‘ढाक का तीन पात’ बना हुआ है। हालात सुधरने के बजाए और बिगड़ रहे हैं। सूचना अधिकार अधिनियम के तहत केंद्रीय भूमि जल बोर्ड द्वारा उप्लब्ध कराए गए बुंदेलखंड के आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। जल बोर्ड ने अगस्त से नवंबर 2009 के बीच बुंदेलखंड के जलस्तर का सर्वेक्षण कराया था। इसमें जो स्थिति सामने आई है उसके मुताबिक हमीरपुर जनपद के मोदहा, चित्रकूट जनपद के हरीसनपुरा और ललितपुर जनपद के मंडौरा में भूगर्भ जल स्तर तीन मीटर से अधिक नीचे चला गया है। मोदहा में 7.60 मीटर से बढ़कर 11.45 मीटर, हरीसनपुरा में 14.10 से 17.13 मीटर और मंडौरा में 3.3 से बढ़कर 7.10 मीटर गहराई पर पानी चला गया है। पांच स्थानों पर जलस्तर दो मीटर से ज्यादा नीचे खिसका है। इनमें बांदा जनपद का चिल्ला गांव, चित्रकूट जनपद का पसोज और हमीरपुर जनपद का खन्ना इंगहेटा व टेड़ा शामिल हैं। 19 से अधिक स्थानों पर एक मीटर से ज्यादा भूजल नीचे जा चुका है। इनमें बांदा, बंदौला, चित्रकूट में पुखरी पुरवा, प्रसिद्धपुर और रायपुरा, हमीरपुर में कुरारा, जालौन में डकोर किशोर मौजा, क्योंझारी, महोबा, चुर्खी, झांसी में दरुआ सागर, एरच, पंद्योहा मोड़ और ललितपुर में बांसी व वनपुर शामिल हैं। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने यह सूचनाएं अखिल भारतीय बुंदेलखंड विकास मंच के राष्ट्रीय महासचिव नसीर अहमद सिद्दिकी को उपलब्ध कराई है। बुंदेलखंड के सभी सात जनपदों के 45 ब्लाकों में केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने 136 स्थानों पर भूगर्भ जलस्तर मापने के स्थान बनाए हुए हैं। गौरतलब है कि जलस्तर की यह हालत बारिश के बाद के दिनों की है। मार्च से जून तक की स्थिति और गंभीर होने के आसार हैं। सिद्दिकी ने कहा कि केन-बेतवा गठजोड़ से पहले भूगर्भ जलस्तर को बचाने की जरूरत है।

 

शहर भी संकट में, 65 सेमी प्रतिवर्ष गिरावट

भूगर्भ जल निदेशालय की सर्वे रिपोर्ट ने चेताया

बांदा। प्रदेश सरकार में कई रसूखदार मत्रियों के गृह जनपद का मंडल मुख्यालय बांदा शहर भी भूगर्भ जलस्तर संकट की चपेट में हैं। यहाँ तेजी से खिसक रहा जलस्तर प्रदेश के महानगरों से भी ज्यादा चिंताजनक है।

भूगर्भ जल निदेशालय ने बांदा शहर के बाशिंदो को निकट भविष्य में पानी के लिए होने वाली परेशानी से अगाह किया है। निदेशालय कि सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि भारी जल दोहन से बांदा शहर में प्रति वर्ष 65 सेमी. भूजल स्तर में गिरावट आ रही है। यह अन्य शहरों की तुलना में बहुत ज्यादा है। लखनऊ में मात्र 56 सेमी., कानपुर में 45 सेमी., झांसी में 50 सेमी. और आगरा में 40 सेमी. प्रतिवर्ष की गिरावट दर्ज की गई है। निदेशालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि बादा नगर में भूगर्भ की अनुपलब्धता सर्वाधिक गंभीर होते जा रही है। यहाँ जल संरक्षण एवं संवर्धन किया जाना नितांत आवश्यक है।

निदेशालय ने कहा है कि अनुयोजित शहरीकरण और बढ़ते कंक्रीटीकरण ने वर्षा जल को भूमि में समाहित होने के रास्ते लगभग बंद कर दिए हैं।

 

बचाव के प्रस्ताव ठंडे बस्ते में

बांदा। बुंदेलखंड में गहरा रहे भूगर्भ जल संकट को लेकर प्रदेश सरकार शायद गंभीर नहीं है। यही वजह है कि भूगर्भ जल विभाग द्वारा यहां के लिए बनाई गई कई योजनाएं धूल खा रही हैं। करीब पांच वर्ष पूर्व भूगर्भ निदेशालय ने कहा था कि बुंदेलखंड में जल संरक्षण और संग्रहण की प्रबल संभावनाएं हैं। वर्षा जल संचयन और संवर्धन से पेयजल उपलब्ध कराने के लिए भूगर्भ जल विभाग ने 2 करोड़ 7 लाख की एक योजना शासन को भेजी थी। इस पर आज तक कार्यवाही नहीं हुई। इसके अलावा बांदा में एक रेन सेंटर की स्थापना का भी प्रस्ताव किया था। इस सेंटर में यह सिखाने का प्रस्ताव है कि वर्षा जल को तकनीकी रूप से कैसे जमीन के अंदर भेजा जा सकता है। इच्छुक लोगों को प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारी और तकनीकी कर्मचारी प्रशिक्षण देंगें । सेंटर में एक छोटा पुस्तकालय भी होगा। जिसमें पानी से संबंधित किताबें और एटलस आदि भी होंगे। देश दुनियाँ में पानी के क्षेत्र में किए जा रहे महत्वपूर्ण कार्यों की सीडी और वीडियो फिल्म दिखाने की व्यवस्था भी होगी। यह प्रस्ताव भूगर्भ जल विभाग के तत्कालीन अभियंता एएच जैदी ने शासन को भेजे थे।

 

तालाब प्रदूषित, जैव रसायन पाए गए।

बांदा। मंडल मुख्यालय बांदा शहर के तालाब अतिक्रमण और प्रदूषण का शिकार हैं। भूगर्भ जल निदेशालय ने खबरदार किया है कि बांदा के तलाबों का 75 प्रतिशत प्रदूषण शहर के ठोस अवशिष्ट डंप करने, खुले शौच के लिए प्रयोग करने और रनऑफ आदि से हुआ है।

नबाब टैंक, प्रागी तालाब, छाबी तालाब, केदारदास तालाब, बाबा तालाब आदि में जैव रसायन ऑक्सीजन 6.5 मिलीग्राम से 15.5 मिलीग्राम तक प्रति लीटर हैं। वनस्पति और जीव-जंतु के लिए भूजल की कमी से नगर के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है।

यह भी कहा है कि बुंदेलखंड विंध्य पठारी क्षेत्र में स्थित नागर क्षेत्र बांदा सेंडीमेंट्स शैल समूह के अंतर्गत आता है। यहां का स्ट्रेटा की डिस्चार्ज क्षमता काफी कम है। जबकि प्रदेश में सबसे अधिक गहराई वाला जलस्तर क्षेत्र बेतवा और यमुना नदियों की पाटियों में पाया जाता है। इसमें बांदा, हमीरपुर, जालौन, झांसी, इटावा, आगरा और इलाहाबाद शहर स्थित हैं।

 

 

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