भानुप्रताप शुक्ल की याद में

7 Sep 2015
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देहरादून के इण्डियन पब्लिक स्कूल का शैक्षिक वातावरण आधुनिकता और गुरुकुलीय परम्परा का समन्वय है। मशहूर पत्रकार भानुप्रताप शुक्ल की स्मृति में सन् 2007 से यहाँ नियमित एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। जिसमें विभिन्न विद्यालयों के छात्रों के बीच निबन्ध एवं भाषण प्रतियोगिता होती है।

उम्दा शैक्षिक माहौल के लिये मशहूर देहरादून के कुछ जाने-माने विद्यालयों में से एक है- इण्डियन पब्लिक स्कूल। बीते 10 अगस्त को यहाँ एक ऐसा आयोजन हुआ जिसका जिक्र किया जाना जरूरी है।

आयोजन आशु-निबन्ध लेखन और आशु-भाषण प्रतियोगिता का था, लेकिन इस मायने में विशिष्ट था कि यह अपने वक्त के मशहूर पत्रकार और चिन्तक पं. भानुप्रताप शुक्ल की स्मृति में आयोजित किया गया था। सन् 2007 से हर साल नियमित रूप से होने वाले इस कार्यक्रम में आस-पास के करीब दो दर्जन विद्यालय के बच्चे शामिल थे।

तथाकथित आधुनिकता से अभिशप्त मौजूद शैक्षिक माहौल में किसी विद्यालय का एक महत्त्वपूर्ण आयोजन सरोकारी लेखन को समर्पित एक व्यक्तित्व के नाम पर समर्पित हो तो एक महत्त्वपूर्ण बात है ही। इस बहाने पं. शुक्ल के व्यक्तित्व के कई पहलू सामने आये, जो विद्यार्थियों के लिये प्रेरणास्रोत हो सकते हैं।

इस पूरे आयोजन की यह भी विशिष्टता थी कि इसका स्वरूप वाद-विवाद वगैरह की आमतौर पर होने वाली प्रतियोगिताओं से कुछ अलग था। बच्चों को विषय पहले से नहीं दिये गए थे और घर से रट्टामार किस्म की तैयारी करने की कोई गुंजाईश नहीं थी। निबन्ध मौके पर दिये गए विषयों पर लिखना था, तो भाषण भी तत्काल मिले विषयों पर ही देना था।

पक्ष-विपक्ष में खड़े होकर बोलने के बजाय प्राप्त विषय पर समग्रता में अपनी बात रखनी थी। सम्भाषण में इस बात की पूरी गुंजाईश होती है कि वक्ता किसी का पक्षकार बनने के बजाय अपने खुद के विचार, अपनी खुद की मान्यताएँ अपनी खुद की तर्कबुद्धि के साथ सामने रख सके। और वास्तव में, इण्डियन पब्लिक स्कूल के इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों की यह मेधा काफी मुखर रूप में देखने को मिली।

निर्णायकों में इस लेखक के अलावा प्रसिद्ध गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र, साहित्यकार सुभाष पन्त, एसजीआरआर. स्कूल की सेवानिवृत्त प्रधानाचार्या बसन्ती मठपाल, दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव जैसे विद्वान लोग मौजूद थे, पर उनके सामने भी कई कई मेधावी बच्चों के बीच यह तय कर पाना मुश्किल था कि विजेता कौन हो।

आशुभाषण में दिये गए विषय भी कोई कम रोचक नहीं थे। मसलन, ‘जल बचाओ कल बचाओ’, ‘इंटरनेट के लाभ तथा हानियाँ’, ‘हिमालय’, ‘कन्या भ्रूण हत्या’, ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’, ‘बालश्रम के दलदल में फँसा बचपन’, ‘आरक्षण कितना जरूरी’, ‘बिखरते संयुक्त परिवार’, ‘विकास के साथ विनाश’, ‘युवाओं की बदलती हुई मानसिकता’, ‘ईमानदारी’, ‘सिनेमा-गुणवत्ता में गिरावट’, ‘कलाम का व्यक्तित्व’, ‘समय का सदुपयोग’ आदि-आदि।

अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों ने भी जैसी अच्छी हिन्दी बोली, उसमें हिन्दी के प्रति उम्मीद जगती है। हिन्दी पर छाए संकट की चर्चा आमतौर पर सुनने को मिल जाती है, पर विद्यार्थियों की साफ-सुथरी हिन्दी सुनकर समझा जा सकता है कि मीडिया और सत्ता ही मिलकर हिन्दी के खिलाफ माहौल बनाने में लगे हैं, अन्यथा आमजन हिन्दी में व्यवहार करना पसन्द करता है।

विजेता विद्यार्थियों में निबन्ध लेखन में समर वैली की छात्रा स्निग्धा डोभाल ने प्रथम स्थान, जीआरडी, निरंजनपुर के छात्र समीर यादव ने द्वीतीय स्थान तथा केन्द्रीय विद्यालय की नीलम नेगी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। आशुभाषण प्रतियोगिता में प्रथम और तृतीय स्थान पर इण्डियन पब्लिक स्कूल के छात्र केशव खेर और सौरभ कुमार तथा द्वीतीय स्थान पर समर वैली की छात्रा स्निग्धा डोभाल रही। प्रथम पुरस्कार 51 हजार रुपए और द्वीतीय 25 हजार रुपये तथा तृतीय 10 हजार रुपये का रखा गया था।

अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर व ‘अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद’ के विशिष्ट सदस्य राजकुमार भाटिया आयोजन के मुख्य अतिथि तथा चन्द्रशेखर प्रसाद सिन्हा विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम के अन्त में निर्णायक मण्डल और अतिथियों के लिये करीब सवा सौ एकड़ में फैले विद्यालय परिसर के भ्रमण का कार्यक्रम भी रखा गया। निदेशक एके. सिंह और प्रधानाचार्य संजीव कुमार सिन्हा ने परिसर में चल रही गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।

परिसर के एक कोने में पल रही विभिन्न किस्म की करीब डेढ़ सौ गायों को देखना दिलचस्प था। यही पर दो हंसों का एक जोड़ा भी आप देख सकते हैं और वे लोगों से इतने घुलमिल गए हैं कि आप उनके साथ चहलकदमी कर सकते हैं। बहरहाल, इसके कर्ता-धर्ता रवीन्द्र किशोर सिन्हा ने आधुनिक और गुरुकुलीय विशेषताओं का समन्वय करके ‘इण्डियन पब्लिक स्कूल’ के रूप में एक उम्मीद तो जगाई ही है।

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