भारत का जल संसाधन विकास - भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का उल्लेखनीय योगदान (Water Resource Development of India - Notable contribution of Bharat Ratna Baba Saheb Dr. Ambedkar)


1940 के दशक में देश की आर्थिक नीति तय हो रही थी। उसकी स्थापना और स्वीकारना शुरू हुआ था। केन्द्र शासन कैबिनेट का पूर्ण विकास समिति ने सिंचाई विद्युत तथा औद्योगिक विकास की नीति अपनाने के लिये अनुशासनात्मक प्रक्रिया पूरी की। जल विकास 1935 के कानून के तहत सिंचाई तथा बिजली शक्ति राज्यशासन तथा प्रान्तीय सरकार के अधीनस्थ विषय थे।

जल एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। जल संसाधन का सम्बन्ध सम्पूर्ण मानव जीवन, मानव सभ्यता एवं संस्कृति से निकट तथा बहुत गहरा रहा है। जल मानव जीवन के लिये नितान्त आवश्यक तथा पवित्र माना जाता है। इसीलिये जल संसाधनों की राष्ट्रीय स्तर पर नियोजन, विकास, कार्यान्वयन और प्रबन्धन की आवश्यकता है। राष्ट्रीय जलनीति यह स्पष्ट करती है कि जल एक दुर्लभ और पवित्र राष्ट्रीय साधन है। उसका संवर्धन, प्रगति और आयोजन होना जरूरी है। जल संसाधन की परियोजनाएँ बहुउद्देशीय होनी चाहिए जैसे कि पेयजल, सिंचाई, जल विद्युत निर्माण, बाढ़ नियंत्रण नौचालन तथा उद्योग के लिये होनी चाहिए।

देश की जलनीति बनाने तथा जल संसाधन विकास के लिये बहुत सारे शास्त्रज्ञों तथा अभियन्ताओं ने अपना योगदान दिया है। इन विभूतियों में सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया, डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर; रायबहादुर डॉक्टर ए एन खोसला; डॉक्टर के एल राव; डॉक्टर मेघनाद साहा; मानसिंग विशेष अभियन्ता (सिंचाई), बंगाल सरकार; ए करीम, उप मुख्य अभियन्ता (बिहार सिंचाई विभाग); एच.सी. प्रयिर, सचिव, बी एल सबरवाल; जे के रसेल; डब्ल्यू एल व्हर्दवीन, डी एल मजुमदार सर इगलिस आदि का जल संसाधन विकास के लिये विशेष योगदान रहा है।

भारत निरन्तर विकास की दिशा में बढ़ रहा है। औद्योगिक उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ अनेक संस्थान भी विकसित हुए हैं। विकास की उपलब्धि के फलस्वरूप हमारे देश ने विश्व के अग्रगण्य औद्योगिक देशों में स्थान प्राप्त कर लिया है। विकास के कारण लोगों में आर्थिक सम्पन्नता आई है। लोगों का जीवन-स्तर भी सुधरा है। तथापि, इस विकास के लिये जल संसाधन क्षेत्र का एक अहम योगदान रहा है। देश के विकास के लिये, डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर सन 1942 से 1946 के दौरान वायसराय के मंत्रिमण्डल में श्रम मंत्री के रूप में थे। उन्होंने बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास, जल संसाधन का उपयोग, रेलवे और जलमार्ग, तकनीकी बिजली बोर्ड का निर्माण, केन्द्रीय जलमार्ग, सिंचाई तथा नौचालन आयोग; केन्द्रीय जल आयोग, दामोदर नदी घाटी निगम, महानदी पर हीराकुंड बाँध का निर्माण और सोन नदी परियोजना यशस्वी करने के लिये योगदान दिया है। इससे कम लोग परिचित हैं। डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर की अर्थशास्त्र, राज्यशास्त्र तथा संवैधानिक कानून के क्षेत्र में बुद्धिमत्ता तथा कल्पना अलौकिक थी। श्रम मंत्रालय को जल एवं विद्युत नीति और नियोजन के फायदे को समझना डॉक्टर अम्बेडकर की भूमिका के पहलू को उजागर करना जरूरी है।

प्रारम्भ में, तीन पंचवार्षिक योजनाओं के अन्तर्गत, देश की जलविद्युत ऊर्जा निर्माण में अनेक बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को कार्यान्वित किया गया। जिसमें से भाखड़ा नांगल, हीराकुंड, चंबल, दामोदर, रिहंद, कोयना, पेरियार, सब्रीगिरी, कुदाह, शरावती, माचकुंद, अपर सिलेरू, बालीमेला, उमियाम आदि अधिक प्रचलित हैं, इसमें डॉक्टर अम्बेडकर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लेख का उद्देश्य, भारत में दामोदर, महानदी विकास तथा निर्माण में लोकप्रिय बहुउद्देशीय नदी विकास बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, नौचालन तथा जलविद्युत ऊर्जा निर्माण के बारे में डॉक्टर अम्बेडकर की भूमिका उजागर करना तथा जनजागृति लाना है।

डॉक्टर अम्बेडकर एक बहुमुखी व्यक्तित्व


डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर इस देश के प्रथम श्रेणी के पुरुष ही नहीं बल्की भारतीय संविधान के शिल्पकार के रूप में माने जाते हैं। वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अनेक विषयों मेें अपने वैचारिक चिन्तन प्रस्तुत किये थे। उन्होंने देश को विकास की संकल्पना तथा परियोजनाओं का उपहार दिया है। वह एक इतिहासकार, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, अनुसन्धानक, विधिवेत्ता, प्रभावी वक्ता, पत्रकार, समाज के मार्गदर्शन संशोधक एवं ग्रंथकार के रूप में प्रख्यात थे। वे सन 1913 से 1916 तक और सन 1920 से 1923 तक विकसित देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु गए थे। भारतीय समाज निर्माण के लिये ही नहीं बल्कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है, उस समय वे अन्तरराष्ट्रीय स्तर के विचारकों के सम्पर्क बनाए हुए थे।

सिडनी वेब और बिट्रियस वेब उस समाजशास्त्र दम्पत्ती ने 21 किताबें लिखीं उन सिडनी वेब के साथ बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेकडकर सामाजिक समस्याओं पर दीर्घ चर्चा कर सकते थे। प्रोफेसर एडवीन आर. सेलिग्मन जागतिक कीर्ति के अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने ‘इकोनॉमिक इंटरप्रिटेशन ऑफ हिस्ट्री’ नामक ग्रंथ निर्माण में मार्क्सवादी विचारों की चर्चा को योगदान दिया था। प्रोफेसर चिटणीस अपनी निजी चर्चा में ऐसा बताते थे कि डॉक्टर अम्बेडकर पर सेलिग्मन के विचारों का प्रभाव था। उस सेलिग्मन के साथ डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर आर्थिक प्रश्नों पर घंटों तक वैचारिक आदान-प्रदान कर सकते थे। डॉक्टर एए गोल्डन विझर जैसे मानव-वंश-शास्त्री के साथ वे सम्पर्क बनाए हुए थे। 1 मई 1916 में जीवन के 23 साल की उम्र में उन्होंने कोलम्बिया युनिवर्सिटी में आयोजित संगोष्ठी में ‘भारत में जातिप्रथा- संरचना, उत्पत्ति और विकास’ पर शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया था। उस समय डॉक्टर केलकर जैसे भारतीयों ने भी उनकी प्रशंसा की थी। ऐसा माना जाता है कि सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ प्रोफेसर हेरॉल्ड लॉस्की की ‘ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स’ और ‘पार्लमेंटरी गवर्नमेट इन इंग्लैंड’ नामक दो किताबें पढ़े बिना कोई भी राजकीय तत्व आगे बढ़ नहीं सकता। एस ए लॉस्ली के साथ अम्बेकडकर सम्पर्क बनाए हुए थे। उस समय लंदन में अध्ययन करते समय डॉक्टर अम्बेडकर ने ‘भारत के लोकतांत्रिक प्रशासन में प्रतिनिधियों की जिम्मेवारियों’ नामक लेख प्रस्तुत करके वहाँ छात्रसंघ के सामने रखा था। इस लेख में उनकी मार्मिकता, स्पष्टवादिता और उत्तेजक विचारों के मिश्रण ने वहाँ के विश्वविद्यालय कार्यशाला में हलचल मचा दी थी। उस समय प्रोफेसर लास्की ने बाबासाहेब को ‘छिपा हुआ क्रान्तिकारी’ के नाम से सम्बोधित किया था।

सन 1918 में डॉक्टर बर्टान्ड रसेल ने एक किताब लिखी थी ‘दी प्रिन्सीपल ऑफ सोशल री-कन्स्ट्रक्शन ऑफ सोसायटी’ यह किताब पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी थी। डॉक्टर अम्बेडकर ने ‘इण्डियन इकोनॉमिक सोसायटी जर्नल’ में मिस्टर रसेल एंड सोशल री-कन्स्ट्रक्शन’ पर समीक्षा लिखकर रसेल के समर्थकों को आश्चर्यचकित किया था। इतना ही नहीं, डॉक्टर अम्बेडर के 21 ग्रंथी, 175 लेख, 200 साक्षात्कार, 315 भाषण, 600 प्रार्थना-पत्र पत्रिका, ज्ञापन-पत्र तथा पत्राचार 22 खण्डों में महाराष्ट्र सरकार ने प्रकाशित किये हैं। इंटरनेट पर बहुत सारी वेबसाइट उनके नाम पर प्रचलित हैं। अब तक 105 लेखकों ने डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर पर चरित्र लिखने का प्रयास किया है। उनमें अगर डॉक्टर धनंजय कीर लिखित चरित्र अगर हम पढ़ते हैं तो महसूस होता है कि अम्बेडकर सिर्फ दलितों के ही नहीं बल्कि वे सभी आम लोगों के मुक्तिदाता थे। इसलिये डॉक्टर अम्बेडकर को दलितों का ही नहीं बल्कि सर्वजनों का नेता कहना उचित होगा। इस प्रकार अम्बेडकर ने भारत के निर्माण में अपना योगदान दिया है।

डॉक्टर अम्बेडकर ने भारतीय समाज को अनेक उपहार दिये


डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर का सम्पूर्ण जीवन दमन, शोषण और अन्याय के विरुद्ध अविरल क्रान्ति की शौर्य गाथा है। जिन्होंने पत्थर को ईश्वर समझने वाली हिन्दू संस्कृति में लापता हुए मानवतावाद तथा पद-दलितों के अधिकारों को बहाल किया। उन्होंने आत्मज्ञान, आत्म-प्रतिष्ठा तथा समता के लिये संघर्ष, वंचित रहे समाज को जनजागृति का सन्देश, इस अस्पृश्य भारत को दिया। डॉ. बाबासाहेब का पूरा जीवन स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, न्याय जैसे इन तत्वों के प्रचार-प्रसार के लिये संघर्ष में बीता, हम उनका सन 1916 में लिखा हुआ ‘जाति निर्मूलन’ से लेकर 1956 के ‘बुद्ध और उनका धम्म’ का ग्रंथसफर करते हैं तो बाबासाहेब रचित ग्रंथों के हर पन्ने पर समानता, स्वतंत्रता तथा सहानुभूति, न्याय जैसे इन मूल्यों का समर्थन करते हुए दिखाई देते हैं। उन्होंने रोटी के लिये कभी संघर्ष नहीं किया। उन्होंने धर्म, धर्मग्रंथ, पुरोहितशाही, पुनर्जन्म, पूर्वजन्म, ईश्वर, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, मोक्ष, आत्मा, परलोक आदि वर्ण-व्यवस्था तथा जाति-व्यवस्था को समर्थन करने वाली संकल्पना के मूल आधार पर ही प्रहार किया है। उन्होंने इस देश में जाति, धर्म तथा भेदों की दांभिकता के विरुद्ध शंख फूँका, वह ऐसा समाज चाहते थे जिसमें वर्ण और जाति का आधार नहीं बल्कि समानता, स्वतंत्रता, सहानुभूति तथा मानवीय गरिमा सर्वाेपरि हो और समाज में जन्म, वंश और लिङ्ग के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव की कोई गुंजाईश न हो।

उन्होंने समाजवादी समाज की संरचना को अपने जीवन का मिशन बना लिया था। समतावादी समाज के निर्माण की प्रतिबद्धता के कारण डॉक्टर अम्बेडकर ने विभिन्न धर्मों की सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था का अध्ययन एवं तुलनात्मक चिन्तन-मनन किया। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर बीसवीं सदी के ऐसे महान योद्धा थे, जिन्होंने अपने बुद्धिमत्ता की भावना से हिन्दू हेकड़ों और कट्टरपंथी हिन्दू धुरिणों को बुद्धिवाद से ललकारा। समाज के शोषितों, उपेक्षितों, वंचित घटकों को सामाजिक न्याय तथा स्वतंत्रता दिलाने के लिये, मानव मुक्ति के लिये उन्होंने संघर्ष किया। मनुस्मृति दहन, महाड़ का तालाब सत्याग्रह, नासिक कालाराम मन्दिर प्रवेश, पुणे का पर्वती मन्दिर सत्याग्रह, पुणे करार, धर्मान्तरण की घोषणा, स्वतंत्र मजदूर पक्ष की स्थापना सायमन कमीशन की हक और अधिकार के लिये दिये हुए ज्ञापनपत्र, ये सभी घटना, प्रसंग, मानवमुक्ति के लिये उनके संघर्ष थे। जन-प्रबोधन के लिये मूकनायक, जनता, बहिष्कृत-भारत और समता ऐसी पत्रकारिता का भी प्रयोग किया। अपने भाषण और लेखन द्वारा निरन्तर जागृत किया। दलितों अछूत, अस्पर्श समूह को सामाजिक, राजनीतिक अधिकार और स्वतंत्रता के प्रश्न की ओर सम्पूर्ण देश का ध्यान आकर्षित किया। उपेक्षित शोषित, वंचितों की आर्थिक गुलामी नष्ट कर समानता की नींव पर सामाजिक दर्जा प्रस्थापित करना, सामाजिक स्वतंत्रता बहाल करना, विषमता नष्ट करना और शिक्षा को प्राधान्य देना उनके जीवन के प्रमुख अंग थे।

बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर ने भारतीय समाज को भारतीय संविधान, लोकतंत्र समाजवाद, समाजवादी धर्म और सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक न्याय और अधिकार दिया।

डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर ने भारत की जलनीति में बहुउद्देशीय परियोजना विकास को बढ़ावा दिया। जल संसाधन विकास में उनका योगदान अहम तथा उल्लेखनीय है।

डॉक्टर अम्बेडकर की जल संवर्धक भूमिका


20 जुलाई 1942 को वाइसराय के मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री के रूप में कार्य ग्रहण किया। श्रम विभाग के साथ-साथ उनको सिंचाई और विद्युत शक्ति विभाग का भी कार्यभार सौंपा गया था। तब डॉक्टर अम्बेडकर ने युद्धोत्तर पुनर्निर्माण समिति द्वारा अपनी जल संसाधन तथा बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास की नीति अपनाई। इस समिति में केन्द्र सरकार प्रान्तीय सरकार, रियासतों की सरकारें तथा व्यापार, उद्योग और वाणिज्य के प्रतिनिधि भी शामिल थे। मंत्री के रूप में उन तीनों विभागों के सचिव बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर की अध्यक्षता में कार्य करते थे। डॉक्टर अम्बेडकर के जलसंवर्धन के बारे में विचार उल्लेखनीय तथा सराहनीय थे।

डॉक्टर बाबा साहेब कहते थे, ‘‘यह सोचना गलत है कि पानी की बहुतायत कोई संकट है मनुष्य को पानी की बहुतायत के बजाय पानी की कमी के कारण ज्यादा कष्ट भोगने पड़ते हैं। कठिनाई यह है कि प्रकृति जल प्रदान करने में केवल कंजूसी ही नहीं करती, कभी सूखे से सताती है तो कभी तूफान ला देती है। परन्तु इससे इस तथ्य पर कोई अन्तर नहीं पड़ता कि जल एक सम्पदा है। इसका वितरण अनिश्चित है। इसके लिये हमें प्रकृति से शिकायत नहीं करनी चाहिए बल्कि जल संरक्षण करना चाहिए।’’

जनहित के लिये यदि पानी का संरक्षण अनिवार्य है, तो पुश्ता बनाने की योजना भी गलत है। यह ऐसा तरीका है जिससे जल संरक्षण का अन्तिम लक्ष्य प्राप्त नहीं होता इसलिये इसे त्याग दिया जाना चाहिए। ओडिशा का डेल्टा ही एकमात्र उदाहरण नहीं हैं जहाँ अत्यधिक पानी आता है और उसके कारण बहुतायत से संकट उत्पन्न होता है। अमेरिका में भी यही समस्या है। वहाँ की कुछ नदियों मिसौरी, मियामी और हेतेसी ने भी ऐसी समस्या उत्पन्न की है।

डॉक्टर बाबासाहेब कहते थे कि ओडिशा को भी वही तरीका अपनाना चाहिए जो नदियों की समस्या से निपटाने के लिये अमेरिका ने अपनाया है, वह तरीका है पानी का स्थायी भण्डार रखने के लिये कई जगह नदियों पर बाँध बनाना। ऐसे बाँध सिंचाई के साथ अन्य कई लक्ष्य भी साधते हैं। महानदी में बह जाने वाले पूरे पानी का भण्डारण सम्भव है। इतनी भूमि होने पर, दस लाख एकड़ जमीन की सिंचाई हो सकती है। जलाशयों में एकत्र जल से बिजली उत्पादन भी हो सकता है।’’ उपरिनिर्दिष्ट विषयों पर डॉक्टर अम्बेडकर के अपने खुद के विचार थे।

सन 1942-46 में राष्ट्रीय जलनीति अपनाई गई। तब बाबा साहेब अम्बेडकर स्वयं भी सम्बोधित विचार-विमर्श में सक्रिय सहभागी थे। 15 नवम्बर 1943 से लेकर 8 नवम्बर 1945 तक उन्होंने श्रममंत्री के रूप में पाँच संगोष्ठियों को सम्बोधित किया था। इस उपलक्ष्य में उन्होंने तकनीकी संस्थाओं का निर्माण किया। केन्द्रीय जलमार्ग, ऊर्जा तथा अन्तर राष्ट्रीय नौचालन आयोग के बाद में नामान्तरण केन्द्रीय जल आयोग हुआ। बहुउद्देशीय जलसंसाधन विकास, दामोदर नदी घाटी परियोजना, महानदी बहुउद्देशीय परियोजना आदि संकल्पनाओं का निर्माण किया गया। डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर ने भारत की जिन दो बड़ी परियोजनाओं का निश्चय किया वह हैं- दामोदर और महानदी परियोजना।

दामोदर नदी घाटी प्राधिकरण का गठन


डॉक्टर अम्बेडकर 3 जनवरी 1944 की दामोदर नदी घाटी परियोजना की पहली संगोष्ठी में कहा था कि दामोदर परियोजना बहुउद्देशीय होनी चाहिए। इस परियोजना का बाढ़ की समस्या के साथ-साथ सिंचाई, ऊर्जा और नौचालन के लिये इस्तेमाल होना जरूरी हैै। इसलिये नदी घाटी प्राधिकरण, केन्द्रीय जल तथा सिंचाई नौचालन आयोग, केन्द्रीय तकनीकी ऊर्जा मण्डल के निर्माण में उनका योगदान रहा। पानी के बहुउद्देशीय विकास के लिये उनके द्वारा उठाए गए कदम साहसी कदम माने जाते हैं।

उस समय बंगाल की दामोदर नदी में ‘दुःख का मूल’ कहीं जाने वाली दामोदर वस्तुतः भारत की राष्ट्रीय समस्या के रूप में उभरकर आ रही थी। बाढ़ की समस्या बहुत गम्भीर थी। अनाज की कमी तथा यातायात की समस्या खड़ी हुई थी। 17 जुलाई 1943 को दामोदर नदी में आई बाढ़ के कारण गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया था। पाँच दिनों के लगातार जल रिसाव के कारण यह दरार 1000 फुट चौड़ी हो गई। इस प्रकार आई बाढ़ से 70 से अधिक गाँव प्रभावित हुए थे। 18 हजार मकान नष्ट हो गए थे। इस बाढ़ में मानव जीवन की हानि बहुत हुआ करती थी। इसलिये उस समय के बंगाल के राज्यपाल लार्ड ई जी केसी ने श्री महाराजाधिकार वर्धमान की अध्यक्षता में एक दस सदस्यीय जल समिति गठित की थी। जिसमें मेघनाद साहा जैसे विख्यात वैज्ञानिक भी शामिल थे। श्री मेघनाद साहा अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य थे। समिति ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की, वह राज्यपाल द्वारा केन्द्र सरकार के पास उचित कार्यवाई के लिये भेजी गई। बंगाल की समस्या हल करने के लिये डॉक्टर अम्बेडकर ने गवर्नर जनरल लॉर्ड वेव्हेल अभियन्ता के साथ काम करने की इच्छा प्रकट की थी।

अमेरिका की टेनेसी नदी घाटी परियोजना के आधार पर आयोजन करना निश्चित किया गया। बाढ़ नियंत्रण, जल सिंचाई और जल विद्युत निर्माण इन तीन लक्ष्यों की पूर्ति के लिये केन्द्र सरकार के अधीन डब्ल्यू एल व्हर्दवान नामक एक अमेरिकन ने दामोदर नदी घाटी परियोजना का प्रस्ताव तैयार किया। प्राथमिक प्रतिवेदन के अनुसार, एक दस लाख क्यूसेक्स के बाढ़ के आधार पर आठ बाँधों के निर्माण की योजना बनाई गई। तिलैया, देवोलबारी, मैथन, बाँध बराकर नदी पर बेरमो, अयर सनोलापुर बाँध दामोदर नदी पर, बोकोरे तथा कोनार बाँध का बनाया जाना तय हो गया। इसके उपरान्त चार विशाल बाँधों का निर्माण हुआ। उनका मुख्य उद्देश्य ऊर्जा निर्माण, कृषि सिंचाई, तापीय केन्द्र और औद्योगिक विकास के लिये किया गया। तिलैया बाँध 45 मीटर ऊँचाई, कोनार बाँध 58 मीटर ऊँचाई, मैथॉन बाँध 56 मीटर ऊँचाई और पानशेत बाँध 49 मीटर ऊँचाई का निर्माण क्रमशः 1953, 1955, 1957 और 1959 वर्ष में पूरा हुआ।

दामोदर नदी घाटी परियोजना से बहुउद्देशीय विकास-बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और परिणामस्वरूप अकाल से मुक्ति तथा बिजली आपूर्ति की सम्भावना थी। इसलिये बंगाल और बिहार की सरकार ने इसका उत्साह से स्वागत किया। क्योंकि इस परियोजना से: (1) 4,700,00 एकड़ क्षेत्र में नियमित जलाशय से जल उपलब्ध होने वाला था, (2) 760,000 एकड़ क्षेत्र की अविरत सिंचाई के लिये पर्याप्त जल उपलब्धता (3) 300,000 किलो वॉट बिजली (4) 50 लाख लोगों का प्रत्यक्ष रूप से कल्याण होने वाला था।

महानदी घाटी बहुउद्देशीय परियोजना


डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर ने कटक में ‘ओडिशा की नदियों के विकास’ की बहुउद्देशीय परियोजना पर सम्बोधन दिया। बीज भाषण उद्बोधक तथा महत्त्वपूर्ण है। डॉक्टर अम्बेडकर ओडिशा की बाढ़ की समस्या से मुक्ति चाहते थे। ओडिशा में मलेरिया से भी मुक्ति पाना चाहते थे। नौचालन तथा सस्ती बिजली तैयार करके वे अपनी जनता का जीवनमान स्तर सुधारना चाहते थे। उसके सभी उद्देश्य सौभाग्य से एक योजना से पूरे हो सकते हैं। अर्थात जलाशयों का निर्माण और नदियों के बह जाने वाले पानी का भण्डारण

इस बाढ़ की समस्या का सुलझाने के लिये सन् 1928 में उड़ीसा में आई बाढ़ की जाँच के लिये सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया के नेतृत्व में उड़ीसा बाढ़ नियंत्रण जाँच समिति का गठन किया गया। विश्वेश्वरया जैसे प्रख्यात अभियन्ता ने दो रिपोर्ट पेश की थीं। उस समय डॉक्टर अम्बेडकर दामोदर नदी परियोजना में व्यस्त थे। उनके कार्य की सराहना करते हुए उड़ीसा के प्रसिद्ध नेता हरकिशन मेहताब ने बाबा साहेब को पत्र लिखा और महानदी घाटी बहुउद्देशीय परियोजना का विकास करने की इच्छा प्रकट की।

सन 1945 में उड़ीसा नदी बाढ़ समस्या भारत सरकार के पास सुलझाने के लिये भेजी गई। वैसे डाक्टर ए एन खोसला, केन्द्रीय जलमार्ग, सिंचाई तथा नौचालन आयोग के अध्यक्ष के नाते भेंट की। उड़ीसा राज्य के गवर्नर के सलाहकार बी के गोखले तथा मुख्य अभियन्ता रायबाहदुर ब्रिज नारायण इस नतीजे पर पहुँचे की उड़ीसा राज्य की बाढ़, अकाल, गरीबी और बीमारी के निर्मूलन के लिये नदी जैसे जल सम्पदा का जलाशय का निर्माण करके पानी का नियंत्रण, संवर्धन तथा विनियोग कर सकते हैं। इस प्रकार बाढ़ नियंत्रण करके सिंचाई, नौचालन जल विद्युत निर्मिती, मत्स्यपालन और मनोरंजन के लिये पानी का उपयोग हो सकता है।

सन 1937 में, सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया के प्रतिवेदन ने बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास करने की सिफारिश की थी। बहुउद्देशीय विकास अमेरिका में टेनेसी नदी घाटी परियोजना, कोलम्बिया बेसिन विकास के अन्तर्गत घाटी विकास किया गया था।

डॉक्टर ए एन खोसला के नेतृत्व में महानदी पर बाँध निर्माण करने का फैसला किया गया।

1. इन तीनों बाँधों के निर्माण में अतिरिक्त जल का इस्तेमाल बाढ़ नियंत्रण ही नहीं बल्कि सिंचाई, नौचालन और उर्जा निर्माण के लिये करना।

2. बाँध पर नौचालन जलपाश के निर्माण तथा यथासम्भव मध्यस्थ स्थान पर समुद्र के मुख से 500 किलोमीटर की दूरी तक महानदी नौचालन को बनाए रखना।

3. चिरस्थायी सिंचाई के लिये नहर प्रणाली का निर्माण करना।
4. सस्ती ऊर्जा का प्रयोग, कृषि उद्योग एवं क्षेत्र की बड़ी खनिज सम्पत्ति के उचित लाभ उठाने के लिये तीन बाँधों पर ऊर्जा संयंत्र निर्माण।

5. जल विकास और मलेरिया रोधी कार्य।
6. मत्स्यपालन एवं उत्पादन की सुविधा का प्रबन्ध।
इस प्रकार नदी विकास प्रबन्धन के लिये देश स्तर पर जलनीति का निर्माण हो गया।

राष्ट्रीय जलनीति का उदय


सन 1942-46 के कालखण्ड में डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर का भारत की विकास नीति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी देश की जल और विद्युत ऊर्जा नीति स्थापना में अहम भूमिका है।

1940 के दशक में देश की आर्थिक नीति तय हो रही थी। उसकी स्थापना और स्वीकारना शुरू हुआ था। केन्द्र शासन कैबिनेट का पूर्ण विकास समिति ने सिंचाई विद्युत तथा औद्योगिक विकास की नीति अपनाने के लिये अनुशासनात्मक प्रक्रिया पूरी की। जल विकास 1935 के कानून के तहत सिंचाई तथा बिजली शक्ति राज्यशासन तथा प्रान्तीय सरकार के अधीनस्थ विषय थे। डॉ अम्बेडकर क्षेत्रीय विकास तथा बहुउद्देशीय विकास परियोजना द्वारा पूरे देश के अन्दर जलसंसाधन नीति लागू करना चाहते थे। इसलिये पानी का विषय उन्होंने केन्द्र सरकार के अधीन लाया। बाबा साहेब ने संविधान में प्रावधान किया क्योंकि उस दौरान बाबासाहेब श्रम मंत्री तथा राज्य घटना मसौदा समिति के अध्यक्ष की दोहरी भूमिका कर रहे थे। इस नीति को अपनाने के लिये श्रम विभाग ने दो तकनीकी संस्थानों की नवम्बर 1944 में केन्द्रीय तकनीकी विद्युत मंडल (CTBT) तथा 5 अप्रैल 1945 में केन्द्रीय जलमार्ग सिंचाई तथा नौचालन आयोग (CWINC) स्थापना की। केन्द्रीय विद्युत मण्डल को देश के आँकड़े संकलन करना, सर्वे संचालित करना और विद्युत योजना तैयार करना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपे गए। इससे पूरे देश में विद्युत शक्ति पूर्ति, नियोजन, आवंटन तथा कार्यान्वयन इस प्रक्रिया को बढ़ावा मिला। आज के ‘केन्द्रीय जल आयोग’ को जल संसाधन कार्य, तथ्य संकलन, नियोजन, समन्वयन तथा कार्यान्वयन करने की भूमिका सौंपी, जल संसाधन के नियोजनबद्ध संवर्धन करने का अहम काम भी सौंपा गया।

अन्तरराष्ट्रीय नदी घाटी विकास केन्द्र शासन के दायरे में लाया गया, राज्य, प्रान्तीय तथा केन्द्र सरकार के संयुक्त वर्तमान विकास करने का प्रावधना लाया गया। इस राष्ट्रीय जलनीति को बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास परियोजना का अंग माना गया। जिससे क्षेत्रिय विकास करने के लिये नियोजन में जल संसाधनों को बहुउद्देशीय उपयोग और सामाजिक आर्थिक तथा पर्यावरण विकास के महत्त्वपूर्ण पहलू माने जाने की शुरुआत हो गई। इसलिये दामोदर, महानदी, सोन नदी और कोसी नदी का पहली बार बहुउद्देशीय उपक्रम माना जाता है।

उपसंहार


डॉक्टर बाबा साहब अम्बेडकर ने इस देश की पूरी जल संसाधन विकास नीति बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमें बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिन 14 अप्रैल को ‘जल संसाधन दिवस’ के रूप में मनाना चाहिए। उनका व्यक्तित्व तथा विचारधारा पूर्णतः और सही मायने में समझने की नितान्त आवश्यकता है। राष्ट्र कौन सी दिशा में जाना चाहिए, उसका सटीक आरेखन ही उनके विचारों में स्पष्ट दिखाई देता है, अर्थ-विषयक, कृषि-विषयक, पर्यावरणवादी तथा जलसंसाधन विषयक दृष्टिकोण पूरी गम्भीरता से न लेने से ऐसी दुर्दशा देश को झेलनी पड़ रही है। डॉक्टर अम्बेडकर का बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास का मॉडल आज हिमालय की बहती नदियों के बारे में अमल किया जा सकता है, गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना कोसी, गंडक आदि नदियों के जल प्रबन्धन के बारे में सोचना जरूरी हुआ है। पानी की दुर्लभता, पानी की बढ़ती माँग, बढ़ते हुए शहरीकरण, गहराते पर्यावरण की समस्या में बदलाव से देश को जल संकट हो सकता है, सन 2050 ज्यादा दूर नहीं है, जल की आवश्यकता के लिये अभी से जल के प्रबन्धन, नियोजन तथा संवर्धन के बारे में प्रणाली विकसित कर जल बचाया जा सकता है। बहुउद्देशीय विकास पहलू स्वीकार कर नदियों पर विचार करना अनिवार्य किया जा सकता है।

-सहायक ग्रंथालय एवं सूचना अधिकारी
केन्द्रीय जल और विद्युत अनुसंधानशाला
खड़कवासला, पुणे-411024

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading