भारत के सिर, एक बार फिर जहरभरा जहाज

31 Oct 2009
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पानी- पर्यावरण का नाश करता शिपब्रेकिंग उद्योग
पानी- पर्यावरण का नाश करता शिपब्रेकिंग उद्योग

जेसिका! ना ना नहीं, दिल्ली की मशहूर मॉडल जेसिका नहीं, यह एमएस जेसिका गुजरात के अलंग समुद्र तट पर खड़े एक जहाज का नाम है जिसने 4 अगस्त 2009 की सुबह छह मजदूरों की जान ले ली लेकिन दिल्ली के किसी अखबार में इस जेसिका के कारनामे की खबर नहीं छपी.

हो सकता है दिल्ली का मीडिया सिर्फ उन्हीं जेसिकाओं पर ध्यान देता हो जो कि दिल्ली तथाकथित अर्बन सोसलाइट जमात का हिस्सा हो लेकिन एमएस जेसिका नामक इस जहाज को तोड़ते हुए जिन छह मजदूरों की मौत हुई उसको सिर्फ मौत मानकर शोक व्यक्त नहीं किया जा सकता. वे छह मौते जिंदा जलकर हुई थीं. छह मजदूर उस कबाड़रूपी जहाज के इंजन रूम में इंजन को काटकर जहाज से अलग करने का काम कर रहे थे. एक जोरदार धमाका हुआ और छह के छह मजदूर जिंदा जलकर खाक हो गये.

जिंदा जलकर मरने वाले ये छह मजदूर न पहले थे और न आखिरी. अलंग के समुद्री तट पर जहां पुराने जहाजों को अवैध तरीके से लाया जाता है और उससे भी अमानवीय तरीके से तोड़ा जाता है, मजदूरों को मारने का गढ़ बन गया है. जिस तरह से इस तट पर विदेशों से अवैध तरीके से जहाज लाये जाते हैं उसी तरह उससे भी अमानवीय तरीके से यहां मजदूरों से काम लिया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरण सचिव की अध्यक्षता में जिस अध्ययन दल का गठन किया गया था उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शिपब्रेकिंग उद्योग में मजदूरों के मरने की दर 1000 में 2 है. भारत सरकार खदान उद्योग को मजदूरों के लिहाज से सबसे खतरनाक उद्योग मानती है लेकिन वहां भी प्रति हजार मजदूरों की जीवन हानि की दर 0.34 प्रतिशत है. अब इस लिहाज से देखें तो अलंग में मरनेवाले मजदूरों के दर को खतरे के किस मानक में रखेंगे? मानों यहां मजदूरों को मरे हुए जहाजों के जरिये मारने के लिए ही लाया जाता है. इन्हीं जहाजों के बेड़े में पिछले हफ्ते एक और जहाज आकर शामिल हो गया है जिसका नाम है- प्लेटिनम-2.

प्लेटिनम-2 का पुराना नाम एसएस ओसिनिक और एसएस इन्डिपेन्डेन्स है. 1951 में इस जहाज को अमेरिका के बेथलहम कारपोरेशन ने बनाया था. इस जहाज के जरिये अमेरिका ने अपना माल कन्टेनरों में भरकर पूरी दुनिया में भेजा और दुनियाभर में अपने लिए बाजार तैयार करने तथा आपूर्ति के लिए इस जहाज का इस्तेमाल किया. आठ सालों तक अमेरिकी एक्सपोर्ट को सिरे चढ़ाने के बाद इसे 1959 में वार शिप में तब्दील कर दिया गया. अपने जीवन में कई रूप धारण करने के बाद आखिरी बार एसएस ओसिनिक के रूप में 8 फरवरी 2008 को सैन फ्रांसिस्को से सिंगापुर के लिए चला. लेकिन जल्द ही सुधार किया गया कि यह जहाज सिंगापुर नहीं बल्कि दुबई जा रहा है. इस पर पर्यावरण पर काम करनेवाले लोगों के कान खड़े हो गये और उन्होंने इस जहाज के बारे में शिकायत की. पर्यावरणविदों ने कहा कि इसे बांग्लादेश के चटगांव शिपब्रेकिंग यार्ड में भेजा जा रहा है जिस पर अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजंसी ने इस जहाज के आखिरी मालिक ग्लोबल मार्केटिंग सिस्टम्स पर 5,18,500 डॉलर का जुर्माना कर दिया.

जहाज भारत की समुद्री सीमा में पहुंचकर भारत के कानून और प्रशासन दोनों का ही मजाक उड़ा रहा है. ऐसे कई अंतरारष्ट्रीय कानून हैं जिसका पालन नहीं किया गया है. इसलिए कायदे से ले क्लेमेन्सू की तर्ज पर इस जहाज को भी वापस जाना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो अमेरिका में 300 और जहाज लाइन में लगे हैं जो भारत के अलंग शिपब्रेकिंग यार्ड पहुंचने की बाट जोह रहे हैं. लाखों टन वजनी ये जहाज भारत के मजदूरों और पर्यावरण पर किस तरह का कहर बनकर टूटेंगे इसकी कल्पना करने मात्र से सिहरन उठने लगती है.इस घटनाक्रम के बाद यह जहाज एक तरह से लापता हो गया था लेकिन अचानक ही अलंग में प्रकट हुआ. 23,719 टन वजनवाला यह जहाज अपने ऊपर लगभग 250 टन एसबेस्टस और 210 टन पीसीबी लादे अलंग के समुद्र तट तक कैसे आ गया यह आज सबसे बड़ा रहस्य बन गया है. इस रहस्य को भेदने में कई रहस्य और खड़े हो जाते हैं जो भारत में व्यापार के नाम पर फैले भ्रष्टाचार की अंतहीन कहानी कहते हैं. प्लेटिनम-2 नामक इस जहाज के आखिरी मालिक ग्लोबल मार्केटिंग सिस्टम के मालिक श्रीमान अनिल शर्मा हैं जो कि बिना शक भारतीय हैं. इसी ग्लोबल मार्केटिंग सिस्टम पर अमेरिकी पर्यावरण एजंसी ने पांच लाख अठारह हजार डॉलर का जुर्माना किया था. अनिल शर्मा ने आनन-फानन में एक दूसरी कंपनी बनायी जिसका नाम रखा प्लेटिनम इन्वेस्टमेन्ट सर्विस कारपोरेशन. इसका मुख्यालय मोनोरोविया, लाइबेरिया में बताया गया. इसी प्लेटिनम इन्वेस्टमेन्ट सर्विस कारपोरेशन ने एसएस ओशिनिक नामक इस जहाज का नया नाम रखा प्लेटिनम-2 और उसे लीला शिप रिसाइक्लर्स लिमिटेड को बेच दिया. लीला शिप रिसायक्लर्स लिमिटेड का अलंग शिपब्रेकिंग यार्ड-2 में कार्यशाला है जहां जहाजों को तोड़ा जाता है. इसमें आश्चर्यजनक और चौंकानेवाला तथ्य सिर्फ इतना है कि इस लीला शिप के मालिक कोई और नहीं बल्कि अनिल शर्मा के भाई कोमल शर्मा हैं.

इसलिए इस जहाज को भारतीय कबाड़ कारोबार में छिपे भ्रष्टाचार के सहारे अलंग के माथे पर लाकर मढ़ दिया गया जहां से यह न जाने कितने मजदूरों की जान को जोखिम में डालेगा. सरकारें मजदूरों के साथ कम ही होती है इसलिए गुजरात सरकार और केन्द्र सरकार दोनों ही इस मामले में हीला-हवाली कर रही हैं और कभी जांच कराने और कभी क्लीनचिट देने के नाम पर इस जहाज को हर हाल में अलंग के समुद्र तट पर रोककर रखना चाहती हैं. प्लेटिनम-2 का भारत के समुद्र तट पर आ जाना ही देश के कानून, प्रशासन और सरकारों का सबसे बड़ा मजाक है जो हमें यह बताता है कि कबाड़ के कारोबार के नाम पर बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए. हमारा मानना है कि यह जहाज भारत की समुद्री सीमा में पहुंचकर भारत के कानून और प्रशासन दोनों का ही मजाक उड़ा रहा है. ऐसे कई अंतरारष्ट्रीय कानून हैं जिसका पालन नहीं किया गया है. इसलिए कायदे से ले क्लेमेन्सू की तर्ज पर इस जहाज को भी वापस जाना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो अमेरिका में 300 और जहाज लाइन में लगे हैं जो भारत के अलंग शिपब्रेकिंग यार्ड पहुंचने की बाट जोह रहे हैं. लाखों टन वजनी ये जहाज भारत के मजदूरों और पर्यावरण पर किस तरह का कहर बनकर टूटेंगे इसकी कल्पना करने मात्र से सिहरन उठने लगती है. एमएस जेसिका हमें बार बार यही याद दिला रही है.
 

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