भारत के समुद्री मछुवारों की जीविकोपार्जन समस्याएँ

24 Apr 2018
0 mins read


भूमिका
भारतीय मात्स्यिकी भारत की अनन्य आर्थिक मेखला में वितरित समुद्री मात्स्यिकी सम्पदाओं के ज्यादातर उत्पादन में और विदेशी मुद्रा अर्जित करने में तुले हुए हैं। यद्यपि, मछलियों के बढ़ते हुए सन्दोहन, अन्त में देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के प्रयोजन में आता है तथापि मछुआरों की जीविका को सुधारने में कम महत्त्व ही दिया जाता है। मछुआरे और मत्स्य कृषक मछली सम्पत्ति और देश की अर्थव्यवस्था के बीच की एक अनिवार्य कड़ी होते हुए भी उनके आवश्यकताओं और हितों पर बहुत कम मान्यता दी गई है। ऐसी स्थिति के लिये कई अन्तरनिहित बातें संजात हुई हैं और इनमें सुधार लाने के लिये अनुसन्धानकर्ताओं, प्रशासकों और नीति बनाने वाले अधिकारियों और गैर सरकारी संगठनों के संयोजित प्रयास की जरूरत है ताकि ये गरीबी, ऋण बाध्यता और बेरोजगारी जैसी बुराईयों से छुटकारा पाया जा सके और उनकी जीविका रीतियों में उन्नयन आ जा सके।

समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र की वर्तमान स्थिति
भौगोलिक आधार पर भारतीय समुद्री मात्स्यिकी का क्षेत्र विस्तार 8137 किमी तटीय प्रदेश और 2.02 दशलक्ष किमी2 महाद्वीपीय उपतट और 3937 मत्स्यपालन गाँव हैं। 1896 परम्परागत मछली उत्पादन केन्द्र, 33 लघु मत्स्यपालन बन्दरगाह और 6 मुख्य मत्स्यपालन बन्दरगाह हैं जहाँ से 208,000 साधारण नाव, 55000 तट पर उतराई करने वाले छोटे जलयान मोटर (Out Board) से सज्जित है, 51250 यंत्रीकृत जलयान (मुख्यत: नितलस्थ, महाजाल और पर्ससीन) और 180 गहरा समुद्र मत्स्यन को उपयुक्त जलयान जिसमें से 80 का अभी प्रचालन होता है। मछली पकड़ने के बाद से सम्बन्धित अवसंरचनाओं में हिमीकरण संयंत्र कानिंग संयंत्र, बर्फ बनाने वाले संयंत्र, मत्स्य चूर्ण बनाने वाले संयंत्र, शीत संग्रहण और विशल्कन शेड हैं जो कुल एक दशलक्ष लोगों को मत्स्य पालन और दूसरी 0.8 दशलक्ष लोगों को मत्स्य पकड़ने के बाद की कार्रवाई के काम में लगाते हैं।

वर्ष 2000 में पकड़ी गई समुद्री मछलियों का प्रथम मूल्य 10,000 करोड़ रुपए थे। लाभदायक और व्यवस्थित समुद्री खाद्य की निर्यात पेशे का मूल्य 6300/- करोड़ रुपए से अधिक है। संप्रति अनुमानित समुद्री मत्स्य पकड़ 2.8 दशलक्ष टन है जिसका योगदान वेलापवर्ती और तलमज्जी मछलियों, शिंगटियों और मोलस्क जैसे कवच प्राणी मछलियों से है। इनमें से सुरमई, शिंगटी, पांफ्रट, लॉबस्टर, और स्किवड निर्यात योग्य है। दूसरे जैसे सिल्वर बेल्लीस, रिबणफिश, फ्लाटफिश, क्रॉकर्स, एंचोवीस, तारली, सूत्र पख मीन, तुम्बिल बांगडा इत्यादी समुद्री मछलियाँ सीधे पकाकर खाने में, नमकीन और गैर नमकीन रूप में धूप में सुखाए उत्पन्नों और गीला नमकीन रूप में उपयोग कर सकते हैं।

इसके अलावा, कई प्रकार के उत्पाद जैसे सुरा, पख, सुरा यकृत-तेल, मछली का आमाशय, अइसिनग्लस, कटलफिश हड्डी, शुक्ति कवच चूर्ण, कैटिन सुरा त्वचा, सुरा इत्यादि लघु, उद्योग में उपयोग करने वाले हैं। इसके अलावा, मूल्य वर्धित पदार्थों जैसे मछली अचार, पख मछली, शिंगटी का कटलट, फिश वेफर फिश फ्लेक्स, फिश सूप, फिश बोल्स और शुष्क जेलिफिश भी बना सकते हैं। समुद्री अलंकार मछली का संवर्धन और एक लाभदायक वाणिज्यिक तकनीक है जिससे विदेशी मुद्रा कमा सकते हैं।

प्रौद्योगिकीयों से मछुआरों का प्रबलीकरण
एक हद तक भारत के मात्स्यिकी क्षेत्र का विकास लघुतम मछुआरों और कृषकों को प्रौद्योगिकियों से प्रबल करने में निर्भर है। मानव सम्पदा विकास कार्यक्रमों में नीचे पड़े समुदाय के सदस्यों को स्फूर्ति प्रदान करना प्रबलीकरण है। वृहत और सूक्ष्म तरीकों के कार्यकलापों से जानकारी और शिक्षा प्रदान करके उनकी भागीदारी से मुख्य धारा में लाना ही प्रबलीकरण है।

मछुआरों के आवश्यकताओं और प्रश्नों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये किये सर्वेक्षणों से सूचना मिली है कि मछुआरों और उनकी महिलाओं को मछली पकड़ने की नई प्रौद्योगिकियों की जानकारी और एकान्तर रोजगारी (मत्स्यन न होने वाले मौसम में) पर सूचनाएँ प्रदान करनी चाहिए। अच्छा पोषण, ईंधन और प्राथमिक स्वास्थ्य परिचर्या भी अन्य प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं मछुआरों की आमदनी बढ़ाने में बाधा डालने वाले अन्य प्रश्न शिक्षा का अभाव ऋण, निपुणता का अभाव, उद्यमों का अभाव, प्रतिकूल मौसम में मत्स्यन में होने वाला विघ्न और मछली पकड़ से मिलने वाली अनियमित आमदनी है। पीने के पानी के अभाव, एकान्तर चूल्हा का अभाव, शिक्षा और मनोरंजन के लिये अपर्याप्त अवसंरचना और स्वास्थ्य परिचर्या की जानकारी के अभाव से मछुआरों को और भी कठिनाइयाँ भोगनी पड़ती है।

इससे छुटकारा पाने के लिये मछली पकड़ने का जाल बनाना, मत्स्य कृषि, चिंगट की खाद्य का निर्माण, मछली संसाधन, रसोईघर के पास बागवान बनाना, ईंधन दक्ष चूल्हा वितरण, प्रेशर कुकर वितरण और प्राथमिक स्वास्थ्य परिचर्या और स्वास्थ्य शिक्षा, आबादी शिक्षा और पर्यावरणीय स्वास्थ्य रक्षा इत्यादि प्रौद्योगिकियों में उन्हें लगाए जा सकते हैं। इन सूचनाओं को मछुआरों तक पहुँचाने के लिये घर-घर और कृषि क्षेत्र में जाकर उनसे भेंट करना है, प्रशिक्षण/प्रदर्शन करना है, भाषण देना है, आयुर्विज्ञान की शिविर अभियान और साहित्य सामग्री द्वारा जानकारी प्रदान करना है।

इस कार्य में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के अधीन कार्यरत केन्द्रीय समुद्री, मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान, केन्द्रीय मात्स्यिकी प्रौद्योगिकी संस्थान, केन्द्रीय खारा-पानी जल कृषि अनुसन्धान संस्थान और केरल कृषि विश्वविद्यालय ने जाल बनाने, चिंगटों का खाद्य निर्माण, मछली संसाधन, अलंकार मत्स्य कृषि, केकड़ा कृषि, सम्मिश्र मछली/मुर्गी पालन, किताब बनाने और धूमहीन चूल्हा वितरण करना इत्यादि कार्यक्रम कार्यान्वित किया है। इसके अलावा, मात्स्यिकी विकास के लिये पर्यावरणीय, कानूनी मामलों में, पोषण, आबादी और नेतृत्व शिक्षा में जानकारी अभियान शुरू किया जाना आवश्यक है।

मछुआरों के कल्याण के लिये आगे की कार्रवाइयाँ
मत्स्यन तटीय प्रदेश के कुल दस लाख मछुआरों के एकमात्र आजीविका मार्ग है और उनके आर्थिक व सामाजिक कल्याण पर उचित प्राथमिकता दिया जाना अनिवार्य है। परम्परागत और तटीय मछुआरों को गम्भीर सागरीय क्षेत्र के पणधारियों के साथ फाक्स में लाने के लिये 'राष्ट्रीय मात्स्यिकी पॉलिसी' ने सिफारिश किया है कि :-

1. पूरे देश के मछुआरों से सम्बन्धित जनांकिकी की आँकड़ा उपलब्ध करवाने के लिये एक विस्तृत जनगणना की जाये जिससे क्षेत्र को मजबूत किया जा सके।
2. विविध क्षेत्रों में आयोजित करने वाले कल्याण कार्यों में समानता लाई जाएँ।
3. मछुआरों की कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन गैर-सरकारी संगठन और स्थानीय नेताओं के प्रमुख सहकारियों के सहयोग से किया जाये।

वर्गीय संघर्ष
समुद्री मात्स्यिकी के अन्दर संघर्ष साधारण है। इसमें सशक्त संघर्ष, तटीय और उपतट में मत्स्यन करने वाले परम्परागत मछुआरे और वाणिज्यिक यंत्रीकृत बेड़ों से मत्स्यन करने वालों के बीच में होता है। तटीय मात्स्यिकी ज्यादातर परम्परागत तकनीकों पर आधारित हैं जिसमें कम पूँजीकरण और यंत्रीकरण हुआ है और यह अपने संघटन से कमजोर है। परम्परागत मछुआ सेक्टर के हितों को संरक्षित रखने के लिये, यह अनुबन्धित किया है कि परम्परागत (परम्परागत और गैर-मोटरीकृत) यानों को निश्चित गहराई और दूर में परिचालित करने के क्षेत्र का नियतन करें और इसके पार के क्षेत्र को यंत्रीकृत और मोटर सज्जित यानों के लिये नियमन करें। इसके अतिरिक्त, 'उत्तरदायी मात्स्यिकी की आचरण संहिता और राष्ट्रीय मास्त्यिकी पॉलिसी' ने अनुबन्ध किया है कि :

1. तटीय प्रदेश के प्रशासन आयोजन और विकास के बारे में निर्णय लेने की प्रणाली में मात्स्यिकी सेक्टर के और मास्त्यिकी समुदायों के सदस्यों से सलाह ली जाये। 'उत्तरदायित्त्वपूर्ण मात्स्यिकी की आचरण संहिता' अनुच्छेद 10.1.5 के अनुसार, मास्त्यिकी सेक्टर के अन्दर उत्पन्न होने वाले संघर्षों को शान्त करने के लिये उचित कार्यविधि और रीतियों को संस्थापित करना है।

मछुआरों के कल्याण के लिये कार्यकलाप
मात्स्यिकी एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ मछुआरों के रोजगार का ज्यादा अवसर है और मात्स्यिकी में मछुआरों की भूमिका आजकल साबित भी हुई है। केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान और केन्द्रीय मात्स्यिकी प्रौद्योगिकी संस्थान ने कई नई परियोजनाएँ जैसे 'तटीय प्रदेश की महिलाओं के लिये लाभदायक रोजगारी' का कार्यान्वयन किया है जहाँ मछुआरों का विविधीकृत उत्पन्न जैसे मछली फिंगर्स, कटलट, वेफर्स, अचार, सूप का चूर्ण, मछली का शोरबा, अन्य पकाने/सजाने योग्य पदार्थों का प्रबन्ध करने में, संसाधित करने में और मुरब्बा डालने में प्रशिक्षण देते हैं। 'केरल सरकार के मछली के संसाधन और विक्रय' नामक और एक परियोजना में स्वास्थ्य तरीकों से पखमछली और कवच मछली के प्रबन्धन संसाधन और विविधिकृत उत्पन्नों की तैयारी और बिक्री में मास्त्यिकी गाँवों के मछुआरा दलों को शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

इस परियोजना में गाँवों की मछुआ महिलाओं को कई विषयों में कम अवधि का प्रशिक्षण देता है और इन प्रशिक्षित महिलाओं ने मिलकर उत्पादन और ब्रिकी यूनिटों का संस्थापन किया जाता है। कई व्यक्तियों और लघु उद्योग पर आधारित पारिवारिक परियोजनाएँ इसके परिणामस्वरूप शुरू हुई है। महिला सरकारी समितियाँ, कोचिन वनिता मछली संसाधन 'अलाइड इंडस्ट्रियल सहकारी समिति' और हरिजन महिला मछली संसाधन यूनिट इनमें से कुछ ऐसे अभिकरण है।

मछुआरों के लिये आगामी विकासात्मक कार्यक्रम
महिलाओं के सहयोग के लिये अनुयोज्य प्रौद्योगिकी जैसी मत्स्य कृषि, मत्स्य ग्रहण, संसाधन और बिक्री पहचानना है। महिलाओं का स्वास्थ्य, पोषण और खाद्य सुरक्षा, नैपुण्य बढ़ाना, आमदनी कमाना, नेतृत्व शिक्षा और बिक्री की क्षमता बढ़ाने वाले कार्यक्रमों के लिये प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

ऐसे कार्यक्रम को कार्यान्वित करने के लिये निम्नलिखित अनुसूची का उपयोग किया जा सकता है।

1. महिला विकास के लिये उपलब्ध सभी पैकेजों को अभिनिर्धारण करने के लिये एक राष्ट्रीय केन्द्र की आवश्यकता है। ग्रामीण महिलाओं के बीच में जानकारियाँ बाँटने के लिये प्रादेशिक केन्द्र खोला जाना चाहिए। यहाँ, इन जानकारियों के बारे में शिक्षण देने वाले और उनको प्रशिक्षण देने वाले भी होने चाहिए।

2. अनुसन्धान और विकास संगठनों, अपनी प्रौद्योगिकियाँ मुफ्त में अन्तरित करें। अनुसन्धान और विकास के संगठन, अपनी अवसरंचनाएँ, महिला संगठन के कार्यक्रम को कार्यान्वित करने के लिये उपलब्ध कराए जाएँ।

3. व्यवसाय/मात्स्यिकी विभाग, महिला ठेकेदारों को स्थायी सरकारी ऋण और अन्य मदद प्रदान करें।

4. बिक्री में होने वाले प्रतिबन्धों का सामना करने के लिये केन्द्र राज्य और सार्वजनिक सेक्टर के अभिकरण महिलाओं द्वारा उत्पादित उत्पन्नों की खरीदी करें।

5. महिलाओं को अपने कार्य स्थल में स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण का प्रबन्धन करें।

6. संगोष्ठी, विचार गोष्ठी और कार्यशाला के आवधिक आयोजन से प्रगति से प्रगति की सूचना दें।

प्राकृतिक विपत्तियाँ : मछुआरों के समुद्र के पास के तटीय प्रदेश में बसने के कारण वे प्राकृतिक विपत्तियाँ जैसे भूकम्प तूफान, प्रभंजन और महासागरीय ज्वालामुखियों के बुरे असर के पात्र बन सकते हैं। ये विपत्तियाँ, मत्स्यपालन और मास्त्यिकी की सामग्री और उनके जीवन पर भी खतरा डाल सकती है।

हाल की सुनामी जो (सागर के नितल में होने वाली ज्वालामुखी) 26 दिसम्बर, 2005 को दक्षिण भारत के तटीय प्रदेश में हुई थी, ने कई परिवारों को उजाड़ा जीवन और मात्स्यिकी सामग्री का नाश कर दिया। 'तिरुनेलवेली' और 'टूटीकोरिन' के तटीय प्रदेश में संचालित एक सर्वेक्षण के अनुसार उन 12 गाँव जहाँ की 100 प्रतिशत आबादी मछुआरा समुदाय का है, कुल 9859 घरों का नाश हुआ जबकि 8732 जाल, 781 नाव, 1566 'कटामरन' और 178 इंजिनों को नुकसान हुआ और इस दुर्घटना में नौ लोगों की मृत्यु हुई।

केरल में कोल्लम जिला के आलंगाड पंचायत में 3300 घरों का नाश हुआ, 60 डिप जाल (मूल्य : 35,000 रु. प्रति जाल का) पूरी तरह से नष्ट हो गया। सक्रिय मछुआरे का औसत प्रति दिन नष्ट 150/- रु. है और कुल जोड़ कर रु. 1.8 लाख था। एक प्राथमिक जाँच के आधार पर केरल के मात्स्यिकी सेक्टर को हुआ नाश एक सौ करोड़ रुपए थे।

पुनर्धिवास कार्रवाइयाँ :
पुनर्धिवास और पुनर्निर्माण रिपोर्ट के अनुसार, मछुआरे समुदाय और मछली सम्बन्धी मजदूरों के संघों का पुनर्धिवास कार्यक्रमों में सीधा सम्मिलित करना है। सूनामी के बाद के मात्स्यिकी सेक्टर के पुनर्धिवास प्रामाणिक और उत्तरदायी मात्स्यिकी की रूपरेखा के अनुसार होनी चाहिए और ऐसे कार्रवाइयों को प्रबलित मात्स्यिकी संचालन से भरी रोजगारी का प्रोत्साहन देनी चाहिए जो प्रत्यक्ष में गरीबी हटाने में और खाद्य सुरक्षा में योग दे सकें। सभी पुनर्धिवास कार्रवाइयाँ ऐसी होनी चाहिए मछुआरे अपने तटीय प्रदेश में बसने का अधिकार सुरक्षित रखें। ऐसी दुर्घटनाओं के बाद मछुआरों को आजीविका के लिये मत्स्य कृषि की अवधारणा देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, तटीय प्रदेश को सुरक्षित रखने के लिये समुद्री दीवार बनाना है और क्षरण प्रतिरोधक 'मैंग्रोव' और कश्वरेना पेड़ से बायोशील्ड से तटीय प्रदेश को सुरक्षित रखना चाहिए।

उपसंहार : तटीय प्रदेश में बसने वाले मछुआरों की गरीबी कम करने में मात्स्यिकी की महत्त्वपूर्ण सार्थकता है। समुद्र तट में बसने वाले मछुआरे समूह-जिसमें करीब दस लाख मछुआरे परिवार हैं जो कई कठिनाइयों का सामना करके राष्ट्र को मत्स्य संपत्ति सौंपते हैं उनका अपनी अर्ह की शिक्षा, आमदनी, स्वास्थ्य और जीवन सुरक्षा प्रदान किया जाना चाहिए। प्रशासकों, पॉलिसी बनाने वालों और वित्तीय संगठनों को उचित अनुचिंतन करना चाहिए जिससे वे अच्छा एवं सुरक्षित जिन्दगी जो ऋण से, बेरोजगारी से और स्वास्थ्य दुर्घटनाओं से मुक्त होकर जी सकें।
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading