भारत की वो संस्थाएं जो कर रही हैं पर्यावरण को हरा भरा

7 Jun 2019
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इको सिख संस्था।
इको सिख संस्था।

'पवन गुरु, पाणी पिता, माता धरती महत्त' श्री गुरु नानक देव जी द्वारा कहे गए ये शब्द गुरबाणी का हिस्सा हैं। यह प्रकृति के प्रति उनका सम्मान तो दिखाते ही हैं, साथ ही मनुष्य को वायु को गुरु, पानी को पिता और धरती को मां का दर्जा देने की शिक्षा भी देते हैं। हवा, पानी और धरती की दशा सुधारने के लिए सबसे अच्छे साथी पेड़ ही सिद्ध हो सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि पर्यावरण प्रेम के इस संदेश को जिस देश की धरती पर गुरबाणी में लिखा गया, वही प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या के मामले में संसार में सबसे पीछे है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि हर व्यक्ति साल में कम से कम पांच पेड़ लगाये और उनका संरक्षण करें।

ईको सिख लगाएंगे पेड़

गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के मौके पर ईकोसिख नामक संस्था विश्व भर में 550 जंगल उगाने का प्रयास कर रही है। इसमें करीब 10 लाख पेड़ उगाने का लक्ष्य रखा गया है। आस्था के साथ जुड़े होने के नाते इन्हें पवित्र जंगलों के रूप में संरक्षित भी रखा जाएगा। संस्था का दक्षिण एशिया का मुख्यालय लुधियाना में है और भारत में इनकी 27 टीमें हैं। लुधियाना में असिस्टेंट प्रोजेक्ट मैनेजर पवनीत सिंह कहते हैं कि पंजाब में हम पांच जंगल (बठिंडा, चंडीगढ़, गुरदासपुर, तलवंडी तथा समाना) में लगा चुके हैं और एक जंगल राजस्थान के जोधपुर में लगाया है।

'एफ्फॉरेस्ट' संस्था से वर्कशॉप लगवाकर हमारी संस्था के सदस्यों ने जंगल उगाने की तकनीक सीखी। इसके अंतर्गत छोटी जमीन पर भी मियावाकी तरीके से जंगल लगाना संभव हो पाता है। करीब 170 लोगों ने हमें संपर्क किया कि वह जंगल लगवाना चाहते हैं। इनमें से कुछ जम्मू, दिल्ली, गुजरात व राजस्थान से भी हैं। विदेशों में वॉशिंगटन, यूके, हांगकांग और पाकिस्तान के कसूर में ईकोसिख संस्था द्वारा जंगल लगाए गए हैं। साथ ही इन में लगाए जाने वाले पेड़ों को जियोटैग भी किया जा रहा है इसकी जानकारी गुरु नानक 550 नामक ऐप पर डाली जा रही है।

जरूरत है ज्यादा

जंगल प्रकृति की नेमत हैं। जिन्हें इंसान केवल नष्ट ही कर रहे हैं। प्रकृति के इस उपहार को बचाने का काम कर रहे हैं शुभेंदु शर्मा। देश-विदेश में जंगल उगाने का काम कर रहे काशीपुर उत्तराखंड के शुभेंदु बंगलुरु में टोयोटा कंपनी में बतौर इंजीनियर कार्यरत थे। जापान के वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी की जंगल लगाने के बारे में एक वर्कशॉप से प्रभावित होकर जून 2009 में उन्होंने नौकरी छोड़ कर इसी काम को अपना लिया। शुभेंदु कहते हैं कि मैंने मियावाकी से सीखा कि अपने पर्यावरण को कार्बन न्यूट्रल बनाना है तो इसके लिए जंगल लगाने होंगे।

इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ अब जंगल लगा रहे हैं शुभेंदु शर्मा।इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ अब जंगल लगा रहे हैं शुभेंदु शर्मा।

करीब 6 महीने उनके साथ स्वयंसेवक के रूप में काम करने के बाद जंगल लगाने की शुरुआत अपने घर से की और उसे एफ्फॉरेस्ट की शुरुआत की। अब अनेक लोग हमारी वेबसाइट में तकनीक को सीखकर जंगल लगा रहे हैं। अब तक एफ्फॉरेस्ट विश्व में 144 जंगल उगा चुकी है, जिनमें करीब 110 भारत में हैं। पिछले दिनों बाबा आम्टे की संस्था ने आनंदवन में श्रम संस्कार छावनी का आयोजन कर हमसे जंगल लगाने सीखे और करीब 12 हज़ार पेड़ लगाए हैं।

तरु से पर्यावरण संरक्षण

देहरादून की संस्था 'संकल्प तरु' देश के 16 राज्यों में अब तक 7 लाख 90 हज़ार पेड़ लगाने का दावा करती है। संस्था की सीनियर कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट किरण शर्मा का कहना है कि लद्दाख, पंजाब, मुंबई, अहमदाबाद, राजस्थान, कानपुर, कर्नाटक आदि में उनकी संस्था द्वारा लगाए पेड़ों में से 95 प्रतिशत जीवित हैं। उनकी संस्था का लक्ष्य पर्यावरण संरक्षण के साथ साथ महिला सशक्तिकरण तथा गरीब किसानों की सहायता करना भी है। वे कहती हैं कि छायादार घने पेड़ों के अलावा फलों वाले पौधे लगवा कर हम किसानों को आजीविका कमाने का साधन भी उपलब्ध करवाते हैं। 

अपूर्वा भंडारी द्वारा शुरू की गई इस संस्था द्वारा देश में के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में अधिक से अधिक पेड़ लगाने को प्राथमिकता दी जाती है। शिक्षा संस्थाओं या हाउसिंग सोसायटी में पेड़ लगाने के पीछे उनका मकसद रहता है कि पेड़ों को अच्छी देखभाल मिल सके। साथ ही सामाजिक तौर पर नई पीढ़ी इस जिम्मेदारी को पूरी तरह समझ सके।

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