भारत में कृषि-आधारित उद्योगों का अवलोकन

26 Dec 2019
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भारत में कृषि-आधारित उद्योगों का अवलोकन
भारत में कृषि-आधारित उद्योगों का अवलोकन

कृषि-आधारित उद्योग देश के भीतर और बाहर प्रतिस्पर्धी लाभ की धारणा के अनुरूप हैं। वे अधिशेष ग्रामीण श्रम को रोजगार प्रदान करने के लिए एक सुरक्षा कवच की भूमिका निभा सकते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी/ प्रच्छन्न रोजगार की समस्या का समाधान कर सकते हैं। यहाँ वास्तविक चुनौती यह है कि सरकार अपनी योजनाबद्ध और नीतिगत हस्तक्षेप को कितने प्रभावी ढंग से लागू करती है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी सामाजिक-आर्थिक संरचना, कृषि उत्पादन प्रणाली और बुनियादी कृषि विनिर्माण विशेषताओं की पहचान को कम किए बिना एक सर्वांगीण औद्योगिक विकास सुनिश्चित किया जा सके।

विकासशील राष्ट्रों की आर्थिक नीतियों ने हमेशा न केवल उत्पाद और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से, बल्कि प्रसंस्करण और विनिर्माण के माध्यम से कृषि उत्पादों में प्रणालीगत मूल्य-संवर्धन द्वारा किसानों की आय बढ़ाने की वकालत की है। भारत की विशाल जनसंख्या अभी भी कृषि और सम्बद्ध गतिविधियों में लगी हुई है। भारतीय किसान काफी हद तक असंगठित हैं। वे अपने विपणन योग्य अधिशेष के निपटान के लिए बाहरी एजेंसियों पर निर्भर रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पूंजीगत सम्पत्ति की कमी के कारण उन्हें बिचौलियों/कमीशन एजेंटों को अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। प्राथमिक कृषि उत्पादन से कम आय और प्रसंस्करण तथा कृषि-मूल्य श्रृंखला में निवेश की कमी के कारण कृषि के मुनाफे में तेजी से कमी आई है एवं कृषि कार्य अब गम्भीर दवाब में आ गया है।

ग्रामीण और शहरी भारत में औद्योगिक परिदृश्य

केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (तालिका-1) के वार्षिक सर्वेक्षण में रिपोर्ट की गई संगठित विनिर्माण इकाइयों के औद्योगिक आंकड़े बताते हैं कि 2017-18 में ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा कारखानों की संख्या कम थी। हालांकि, उनके कुल उत्पादन और क्षेत्र में शुद्ध वर्धित मूल्य के सम्बन्ध में समानता थी। इससे पता चलता है कि अधिक ग्रामीण औद्योगिक इकाइयों की स्थापना ग्रामीण अधिशेष श्रम को न केवल रोजगार प्रदान करने में अहम भूमिका निभाएगी परन्तु, कुल औद्योगिक उत्पादन और मूल्यवर्धन में भी बड़े पैमाने पर योगदान देंगी।

कृषि-आधारित उद्योग- परिभाषा और प्रकार

ग्रामीण क्षेत्रों और उनके आस-पास कृषि-आधारित उद्योगों का विकास कृषि को स्वीकार्य और आकर्षक बनाने तथा स्थिरता प्रदान करने की क्षमता रखता है। ‘कृषि उद्योग’ एक सर्वव्यापी अभिव्यक्ति है जिसमें विभिन्न औद्योगिक, प्रसंस्करण और विनिर्माण गतिविधियों का समावेश कृषि पर आधारित कच्चे माल पर होता है और उन गतिविधियों और सेवाओं को भी समाहित करता है जो इनपुट के रूप में कृषि से प्राप्त होती हैं। कृषि और उद्योग किसी भी विकासशील राष्ट्र की विकास प्रक्रिया में उनकी परस्पर निर्भरता और आपसी सम्बन्धों के कारण एक-दूसरे के पूरक हैं। कृषि उद्योग को इनपुट प्रदान करती है और औद्योगिक उत्पादन का उपयोग कृषि में इसके उत्पादन और उत्पादकता आधार का विस्तार करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार, कृषि उद्योग न केवल कृषि से प्राप्त कच्चे माल का उपयोग करने वाली गतिविधियों को शामिल करता है, बल्कि उन्हें भी शामिल करता है जो आधुनिक कृषि व्यवसाय के लिए इनपुट भी प्रदान करते हैं।

इनपुट-आउटपुट अनुबंधन और कृषि व उद्योग एक-दूसरे पर आधारित होने के कारण कृषि उद्योग दो प्रकार के हो सकते हैं-(क) प्रसंस्करण उद्योग या कृषि-आधारित उद्योग और (ख) इनपुट आपूर्ति उद्यो या कृषि उद्योग। इस प्रकार, प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन और उत्पादकता वृद्धि के लिए तैयार और विनिर्माण आदानों के माध्यम से कृषि का समर्थन करने वाली एजेंसियों को ‘कृषि उद्योग’ कहा जाता है, जबकि कृषि-आधारित उद्योग प्रक्रिया और मूल्य ऐसे कृषि संसाधनों को जोड़ते हैं जिनमें जमीन और पेड़-पौधे , फल और सब्जियों इत्यादि के साथ-साथ उनके दिन-प्रतिदिन के कार्यों में उपयोगी पशुधन शामिल हैं। अन्तरराष्ट्रीय मानक औद्योगिक वर्गीकरण ढांचे के अनुसार, कृषि-आधारित उद्योग में खाद्य और पेय, कपड़ा, जूते और परिधान, चमड़ा, रबर, कागज और लकड़ी, तम्बाकू उत्पाद के विनिर्माण/प्रसंस्करण शामिल हैं।

कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा क्यों ?

भारत में विश्व की 10वीं सबसे बड़ी कृषि योग्य भूमि 20 कृषि जलवायु क्षेत्र और 15 प्रमुख जलवायु हैं। जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है  कि वर्ष 2001 में देश में कुल कृषकों की संख्या 12.73 करोड़ से घटकर 11.88 करोड़ कृषक रह गई है। इसका कारण कृषि प्रसंस्करण और विनिर्माण के माध्यम से मूल्य-संवर्धन, अपव्यय में कमी और वृद्धिशील आय पर पर्याप्त ध्यान दिए बिना भारतीय कृषि का अत्यधिक उत्पादोन्मुखीकरण होना हो सकता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी ने अपनी वर्ष 2015 कीक रिपोर्ट में ‘भारत में वस्तुओं और प्रमुख फसलों की कटाई और कटाई के उपरांत होने वाली मात्रात्मक हानियों का आकलन’ शीर्षक से रिपोर्ट दी है । रिपोर्ट के अनुसार कृषि जिंसों की कटाई और कटाई के बाद का नुकसान अनाज के लिए 4.65-5.99 प्रतिशत, दालों के लिए 6.36-8.41 प्रतिशत, तिलहन के लिए 3.08-9.96 प्रतिशत, फलों के लिए 6.7-15.88 प्रतिशत और सब्जियों के लिए 4.58-12.44 प्रतिशत होते हैं। मात्रात्मक नुकसान का कुल अनुमानित आर्थिक मूल्य 2014 की औसत वार्षिक कीमतों पर 9651 करोड़ रुपए पाया गया। इस प्रकार, नुकसान को काफी हद तक कम करने, आधुनिक कृषि प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी के संवर्धन और उसे अपनाने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक संख्या में कृषि उद्योगों की स्थापना करना समय की मांग है।

कृषि अर्थव्यवस्था के समग्र विकास का यही सही अवसर है क्योंकि शायद ही 2 से 3 प्रतिशत कृषि वस्तुओं का प्रसंस्करण किया जाता है। भारतीय कृषि में मौजूदा मूल्यों में आ रही कमी के परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश करना आवश्यक है ताकि उपयुक्त बुनियादी ढांचे का विकास हो सके और ग्रामीण क्षेत्रों में तथा आस-पास के आधुनिक कृषि-आधारित उद्योगों की स्थापना के लिए निजी-सार्वजनिक भागीदारी को आकर्षित किया जा सके।

कृषि-आधारित उद्योगों की विशेषताएं

भारत में कृषि आधारित उद्योगों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है- (1) फल एवं सब्जी प्रसंस्करण इकाइयों, डेयरी संयंत्रों, चावल मिलों, दाल मिलों आदि को शामिल करने वाली कृषि-प्रसंस्करण इकाइयां; (2) चीनी, डेयरी, बेकरी, साल्वेंट निष्कर्षण, कपड़ा इकाइयों आदि को शामिल करने वाली कृषि निर्माण इकाइयां; (3) कृषि, कृषि औजार, बीज उद्योग, सिंचाई उपकरण, उर्वरक, कीटनाशक आदि के मशीनीकरण को शामिल करने वाली कृषि-इनपुट निर्माण इकाईयां। तालिका-2 में उपलब्ध जानकारियों की समीक्षा से, भारत के कृषि-आधारित उद्योगों की जटिल और विविधतापूर्ण प्रकृति को दर्शाया गया है।

ग्रामीण और कृषि-आधारित उद्योग उत्पादन, वितरण, विनिर्माण और विपणन चरणों में रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद करते हैं। तालिका-3 चुनिंदा कृषि उद्योगों की प्रमुख विशेषताओं का परीक्षण करती है। वर्ष 2017-18 में कृषि-आधारित उद्योगों का 45.3 प्रतिशत कुल शुद्ध मूल्य संवर्धन के लिए केवल 24.1 प्रतिशत साझा किया गया, भले ही कुल श्रमिकों का 44.2 प्रतिशत इस क्षेत्र में लगे हुए थे। इससे पता चलता है कि कृषि-आधारित औद्योगिक परिदृश्य ने स्थाई रूप से उपलब्ध संसाधनों और सरकार द्वारा विभिन्न सब्सिडी-उन्मुख केन्द्रीय योजनाओं के माध्यम से किए गए प्रयासों के लाभों को पूरी तरह से भुनाया नहीं है। वर्ष 2017-18 में कुल 1.07 लाख कृषि-आधारित इकाईयां थीं। कृषि उद्योगों की कुल संख्या में खाद्य उत्पादों और पेय पदार्थों के निर्माता कम्पनियों का 38 प्रतिशत हिस्सा है और कुल शुद्ध मूल्य में 36.8 प्रतिशत हिस्सा है। कृषि-आधारित उद्योगों में आसान मुद्दों की पहचान करने और समयबद्ध तरीके से हल करने से कृषि-आधारित उद्योगों को अधिक दृश्यमान और परिश्रमिक बनाने की एक बड़ी क्षमता है।

चुनिंदा सरकारी पहल की समीक्षा

(अ) खाद्य प्रसंस्करण और पेय पदार्थ

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों और मूल्यवर्धन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न केन्द्रीय क्षेत्र की योजनाओं को लागू करता है। इसने हाल ही में नई केंद्रीय क्षेत्र योजना-प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत अपनी योजनाओं को 2016-20 की अवधि के लिए रुपए 6,000 करोड़ के आवंटन के साथ पुनः संरचित किया है। योजना में निम्नलिखित घटक संस्थापित किए गए हैं- (अ) मेगा फूड पार्क (ब) एकीकृत कोल्ड चेन तथा मूल्यवर्धित आधारभूत ढांचा (स) खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता आश्वासन आधारभूत ढांचा (द) मानव संसाधन विकास तथा संस्थाएं। प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना (पीएमकेएसवाई) में तीन नई योजनाएं शामिल हैं; कृषि प्रसंस्करण समूहों के लिए आधारभूत संरचना, विनिर्माण और विपणन सुविधाओं का निर्माण तथा खाद्य प्रसंस्करण/संरक्षण इकाइयों की स्थापना में सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला के साथ मजबूत आधुनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के उद्देश्य से खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण क्षमता का निर्माण/विस्तार। प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना (पीएमकेएसवाई) के घटक जैसे एकीकृत कोल्डचेन और मूल्यवर्धन आधारभूत ढांचा एवं विनिर्माण और विपणन सुविधाओं का निर्माण, कृषि उत्पादन की कटाई और फसल के बाद के नुकसान को कम करने और ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र में परिश्रमिक आय और पर्याप्त रोजगार सुनिश्चित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

(ब) कपड़ा उद्योग

कपड़ा उद्योग को अत्यधिक रोजगार प्रदान करने वाला माना जाता है। यह 4.5 करोड़ लोगों को सीधे और अन्य 6 करोड़ लोगों को सम्बद्ध क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करता है, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और ग्रामीण आबादी भी शामिल है। भारतीय कपास कपड़ा उद्योग काफी हद तक असंगठित है और उच्च-उत्पादन तथा श्रम लागत से ग्रस्त है। उद्योग के अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं- पुरानी होती मशीनरी, कच्चे माल की गुणवत्ता और घरेलू व अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में मूल्यवर्धित कपास उत्पादों के लिए समुचित-स्तर का अभाव। वस्त्र उद्योग को विश्व-स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने, निर्यात को बढ़ावा देने और आधुनिकीकरण को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से सरकार ने कई योजनाबद्ध पहल की है जैसे कि-एकीकृत टेक्सटाइल पार्क हेतु योजना एकीकृत प्रसंस्करण विकास योजना, समूहबद्ध कार्ययोजना, सामान्य सुविधा केन्द्र तथा संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना, पॉवरलूम क्षेत्र के विकास के लिए योजना (पॉवर-टेकस) समर्थ-कपड़ा उद्योग क्षेत्र में क्षमता निर्माण की योजना, व्यापक हथकरघा, समूह विकास योजना, राज्य और केन्द्र की कर और लेवी छूट आदि।

(स) जूट उद्योग

भारत में जूट उद्योग की स्थापित क्षमता 16.5 लाख मीट्रिक टन है, जिसमें से 11.5 लाख मीट्रिक टन जूट का उत्पादन होता है। ऐसा अतिरिक्त क्षमता विपणन और आधुनिक तकनीक और उपकरणों को लाने का प्रयास किया है। राष्ट्रीय जूट बोर्ड योजनाबद्ध हस्तक्षेप एवं अन्य बातों के साथ-साथ जूट मिलों को उनके मुद्दों और चुनौतियों को हल करने के लिए पूंजीगत आर्थिक सहायता प्रदान करता है।

(द) खादी और ग्रामोद्योग

देश में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय का खादी और ग्रामोद्योग आयोग विभिन्न फसल-उपरांत कृषि और खाद्य-आधारित सूक्ष्म उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा देता है जैसे दालों और अनाज, फलों और सब्जियों, ग्रामीण तेल उद्योग, ब्रेड बेकिंग आदि का प्रसंस्करण। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के माध्यम से, खादी और ग्रामोद्योग आयोग गैर-कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर पैदा करने की कोशिश करता है, जिसमें अन्य बातों का समावेश है (i) कृषि-आधारित और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (ii) वन आधारित उद्योग (iii) हस्तनिर्मित कागज और (iv) फाइबर/कपड़ा उद्योग।

(ड़) पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन

रोजगार और आय-सृजन क्षमता को ध्यान में रखते हुए, सरकार विभिन्न योजनाओं को लागू करती है। जैसेकि इस उप-क्षेत्र में  कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए डेयरी गतिविधियों में डेयरी उद्यमिता विकास योजना, डेयरी प्रसंस्करणक और अवसंरचना विकास कोष, डेयरी गतिविधियों में सहायक डेयरी सहकारी समितियां और किसान उत्पादक संगठनों का एकीकरण, एकीकृत विकास व प्रबंधन तथा मत्स्य पालन एवं मत्स्य पालन आधारभूत संरचना विकास निधि का समावेश।

कृषि-आधारित उद्योग मुद्दों और समस्याओं की समीक्षा

कृषि आधारित औद्योगिक क्षेत्र, ग्रामीण क्षेत्रों में समान आय और रोजगार के अवसरों को सुनिश्चित करने के लिए अपनी उच्च-क्षमता के बावजूद अविकसित रह गया है। उपलब्ध जानकारियों की समीक्षा इंगित करती है कि भारत में कृषि-आधारित इकाइयों के प्रलंबित मुद्दों का समाधान किया जाना है जैसैकि, वित्त, औद्योगिक नीति, अनुसंधान और विकास, बुनियादी सुविधाएं विपणन, उत्पादन और मानव संसाधन सम्बन्धी चिंताएं। तालिका-4 भारत में कृषि-आधारित उद्योगों के समक्ष समस्याओं एवं सम्बद्ध प्रमुख मुद्दों को दर्शाया गया है।

निष्कर्ष

भारतीय योजनाकारों और नीति निर्माताओं ने हमेशा ग्रामीण और कृषि औद्योगीकरण को प्रोत्साहित किया है। कृषि उद्योगों के निहित लाभ स्थानीय कृषि संसाधनों का अधिकतम उपयोग, बड़े पैमाने पर निवेश को जुटाना, रोजगार अवसरों का सृजन, संकटपूर्ण ग्रामीण-शहरी प्रवास की रोकथाम, क्षेत्रों में असमानता में कमी लाना है। इन उद्योगों में गाँवों में प्रचार/लाभदायक व्यवसाय, गतिविधि विविधीकरण के लिए एक विस्तृत, विश्वसनीय और टिकाऊ मॉडल पेश करने की क्षमता है। यह उद्योग मुद्दों तथा चुनौतियों से परे नहीं है। सरकार विभिन्न केन्द्रीय योजनाओं मेक-इन-इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसे नवीन प्रयासों के द्वारा अत्याधुनिक कृषि औद्योगिक आधारभूत संरचना सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है।

कृषि-आधारित उद्योग देश के भीतर और बाहर प्रतिस्पर्धी लाभ की धारणा के अनुरूप है। वे अधिशेष ग्रामीण श्रम को रोजगार प्रदान करने के लिए एक सुरक्षा कवच की भूमिका निभा सकते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी/प्रच्छन्न रोजगार की समस्या का समाधान कर सकते हैं। यहाँ वास्तविक चुनौती यह है कि सरकार अपने योजनाबद्ध और नीतिगत हस्तक्षेप को कितने प्रभावी ढंग से लागू करती है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी सामाजिक-आर्थिक संरचना, कृषि उत्पादन प्रणाली और बुनियादी कृषि विनिर्माण विशेषताओं की पहचान को कम किए बिना एक सर्वांगीण औद्योगिक विकास सुनिश्चित किया जा सके।

(लेखक वैकुंठ मेहता राष्ट्रीय सहकारी प्रबंध संस्थान, (वैमनीकॉम) पुणे, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के निदेशक हैं। तथा लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

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