भारत में फ्लोराइड और फ्लोरोसिस

फ्लोराइड
फ्लोराइड
फ्लोराइड के दो मुख्य प्रभाव हैं, डेंटल और स्केलेटल फ्लोरोसिस। डेंटल फ्लोरोसिस दांत के एनामेल के विकास में प्रतिरोध को कहा जाता है यह दांत के विकास के दौरान अधिक सांद्रता वाले फ्लोराइड के संपर्क में आने की वजह से होता है, इसकी वजह से ऐनामेल में खनिज तत्व की कमी हो जाती है और इसकी सारंध्रता बढ़ जाती है। एक साल से चार साल तक के बच्चों में डेंटल फ्लोरोसिस होने की संभावना अत्यधिक होती है। फ्लोराइड का अधिक मात्रा में शरीर में जाना इंसानों और पशुओं के लिए खतरनाक होता है, इस बात की खोज सबसे पहले भारत में ही 1937 में (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी, वर्तमान में आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में) में शार्ट, पंडित और राघवाचारी ने की थी। तब से अब तक देश और दुनिया में फ्लोराइड के कुप्रभाव के कई मामले सामने आये हैं। हालांकि फ्लोरोसिस मुख्यतः पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा होने की वजह से होता है, मगर भोजन, धुआं और दूषित वातावरण में फ्लोराइड की अधिक मात्रा से भी इसके प्रसार के कई उदाहरण मिले हैं।

फ्लोराइड अधिकांश भूगर्भीय वातावरण में पाया जाता है, इसलिए हम क्रिस्टलाइन और ग्रेनाइटिक बनावट वाले भूजल में फ्लोराइड की अधिक मात्रा पाते हैं। (उदा। आंध्र प्रदेश में नलगौंडा और कर्नाटक में कोलार), सिंधु-गंगा बेसिन और दूसरे जलोढ़ (उदा। उत्तर प्रदेश में उन्नाव और गुजरात में मेहसाना)। इसके अलावा देश के विभिन्न हिस्सों के भूजल में अलग-अलग गहराई में फ्लोराइड पाया जाता है।

फ्लोराइड के दो मुख्य प्रभाव हैं, डेंटल और स्केलेटल फ्लोरोसिस। डेंटल फ्लोरोसिस दांत के एनामेल के विकास में प्रतिरोध को कहा जाता है यह दांत के विकास के दौरान अधिक सांद्रता वाले फ्लोराइड के संपर्क में आने की वजह से होता है, इसकी वजह से ऐनामेल में खनिज तत्व की कमी हो जाती है और इसकी सारंध्रता बढ़ जाती है। एक साल से चार साल तक के बच्चों में डेंटल फ्लोरोसिस होने की संभावना अत्यधिक होती है। आठ साल की उम्र के बाद जब स्थायी दांत विकसित हो जाते हैं तो डेंटल फ्लोरोसिस का खतरा कम हो जाता है।

शरीर में हड्डियों के निर्माण के दौरान कैल्शियम चयापचय में व्यवधान की वजह से स्केलेटल फ्लोरोसिस विकसित हो जाता है। परिणामस्वरूप हड्डियां मुलायम और कमजोर हो जाती हैं और इंसान विकलांग होने लगता है। इसकी वजह से कैल्शियम से संबंधित रोग भी हो जाते हैं, जैसे बच्चों में रिकेट्स और बड़ों में ओस्टियोपोरोसिस। ऐसे लोग जो दशकों तक उच्च फ्लोराइड के प्रभाव में रहते हैं वे विकलांगता का शिकार भी हो जाते हैं।

flouride in indiaअगर कोई इंसान अपने शरीर के वजन के अनुसार 0.2-0.35 एमजी/केजी फ्लोराइड प्रति दिन ग्रहण करता है तो यह उसके लिए खतरनाक हो सकता है। एक सामान्य वयस्क के लिए यह 10-20 एमजी/ लीटर और बच्चे के लिए 3-8 एमजी/ लीटर की मात्रा है। इसे देखते हुए जल में फ्लोराइड की सुरक्षित मात्रा 1 एमजी/ लीटर या 1.5 एमजी/ लीटर होनी चाहिये।

फ्लोराइड और पोषण तत्व ग्रहण करने के बीच नजदीकी रिश्ता है। शरीर में फ्लोराइड की अधिक मात्रा जाने से कैल्शियम और लौह तत्व की कमी हो जाती है, भारत जैसे मुल्क में औरतों और बच्चों के लिए इन दोनों तत्वों की अत्यधिक आवश्यकता होती है। फ्लोराइड की वजह से शरीर में लौह तत्व को सोखने की क्षमता कम हो जाती है और इंसान एनीमिया जैसे रोग का शिकार हो जाता है। वहीं दूसरी तरफ ऐसा पाया गया है कि विटामिन सी, कुछ एंटीऑक्सिडेंट, मैगनीशियम और दूसरे खनिज शरीर में फ्लोराइड को सोखने की क्षमता में कमी लाते हैं। फ्लोराइड के इस दो तरफा नजदीकी लिंक की वजह से फ्लोरोसिस और कुपोषण के बीच नजदीकी रिश्ता कायम हो जाता है, जो भारत जैसे देश के नजरिए से काफी महत्वपूर्ण है।

भारत के कुछ हिस्से जैसे आंध्र प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में फ्लोरोसिस के प्रभाव के पांच से छह दशक देखे गये हैं। पीढियां गुजर गयीं और कई इलाकों में फ्लोरोसिस लोगों के जीवन का हिस्सा बन गया। इन इलाकों में कई ऐसे गांवों के समूह मिलते हैं जहां स्केलेटन फ्लोरोसिस के शिकार लोग मिलते हैं जिनकी हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं। दूसरे इलाके फ्लोरोसिस के लिहाज से नये हैं लिहाजा वहां डेंटल फ्लोरोसिस और जोड़ों के दर्द और दूसरे कुप्रभाव जैसे स्केलेटल फ्लोरोसिस के शुरुआती लक्षण नजर आते हैं। जो इलाके अभी फ्लोराइड के प्रभाव में आये ही हैं वहां हमें फ्लोरोसिस के ज्यादा लक्षण नजर नहीं आते।

देश के कई इलाकों में, खास तौर पर आदिवासियों इलाकों में फ्लोरोसिस का एक नया ट्रेंड नजर आ रहा है, यह जुवेनाइल फ्लोरोसिस है। जिसमें बच्चों के पांव धनुषाकार हो जाते हैं और रिकेट जैसा प्रभाव नजर आने लगता है। ऐसा अंदाजा है कि यह फ्लोराइड और कुपोषण के मिले-जुले असर की वजह से होता है। अतः इन दोनों मोरचों पर सक्रिय होकर ऐसे बच्चों को विकलांगता से बचाया जा सकता है।

विभिन्न कारकों के मिश्रण से फ्लोराइड और फ्लोरोसिस से जुड़ी जटिल समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। अतः इनका समाधान भी विविधतापूर्ण होने लगा है। नीचे ऐसे कई समाधानों का जिक्र हैः

1. ऐसे जल स्रोत तलाशें जहां न के बराबर या कम से कम फ्लोराइड हो।
2. पीने और खाना पकाने के लिए बारिश का पानी इकट्ठा करें और इस्तेमाल करें।
3. वर्षाजल संचय के जरिये भूजल की गुणवत्ता में सुधार लायें।
4. स्थानीय वातावरण के बाहर से सुरक्षित स्रोतों के जल की व्यवस्था करें।
5. व्यक्तिगत या सामुदायिक तौर पर फ्लोराइड वाले जल के शुद्धिकरण का इंतजाम करें।
6. कैल्शियम की अधिकता वाले खाद्य पदार्थों को खायें और मैगनीशियम लें जो शरीर में कैल्शियम को सोखने में मददगार साबित हो।
7. विटामिन सी और उपयोगी एंटीऑक्सिडेंट लें जो फ्लोराइड को शरीर में घुलने से रोके।

भारत में अलग-अलग इलाकों में इस तरह के प्रयोगों का परीक्षण करके इन्हें विकसित किया गया है। ये सारे प्रयोग पानी से फ्लोराइड को हटाने और फ्लोरोसिस के दर्द को कम करने में सहायक सिद्ध हुए हैं। मगर लोगों की सोच बदलने में औऱ लंबे समय के लिए समाधान निकालने में कम ही सफलता मिली है।

फ्लोराइड और फ्लोरोसिस के पूर्ण समाधान की दिशा में किसी प्रयास के पूरी तरह सफल नहीं होने की कई वजहें हैं, जो निम्न हैं-

अ. यह रोग ऐसे जल की वजह से होता है जो रंग, स्वाद और गंध में किसी तरह अलग नहीं होता और समस्या की वजह समझ पाने में सालों लग जाते हैं और इसे पूरी तरह समाप्त करना आसान नहीं होता।

आ. लोगों के साथ संवाद और उनके व्यवहार में बदलाव लाने में काफी वक्त लग जाता है, जो फ्लोराइड और फ्लोरोसिस के लिए चुनौती पूर्ण होता है।

इ. कई समाधान तकनीकी होते हैं और हमें लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का बोध नहीं होता है।

ई. डॉक्टरों द्वारा इस रोग की जांच और परीक्षण नहीं किये जाने से प्रभावित लोगों की समस्या सामने आऩे में वक्त लग जाता है।

भारत में फ्लोराइड और फ्लोरोसिसयह स्पष्ट है कि फ्लोराइड औऱ फ्लोरोसिस के खिलाफ विभिन्न क्षेत्रों के अर्थपूर्ण गठबंधनों की आवश्यकता है। इसके लिए जल, जन स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, कृषि, जल छाजन, महिला और बाल विकास, संचार और व्यवहार से संबंधित बदलाव जैसे क्षेत्रों को सामूहिक प्रयास करना होगा। ऐसे सामूहिक प्रयासों को आकार देना होता जिससे लंबे समय में वे भारत के कोने-कोने में और दुनिया में फ्लोरोसिस के स्थायी समाधान की दिशा में अग्रसर हो सकें।

कुछ उपयोगी लिंक्स

बिब्लियोग्राफी की सूचीःhttp://www।slweb।org/bibliography।html
पोषण और एनीमिया लिकेंज, परीक्षण की सुविधा के साथ: http://www।fluorideandfluorosis।com/
नीरी की ओर से समेकित फ्लोरोसिस प्रबंधन का मैनुअल: http://www।irc।nl/docsearch/title/168992फ्लोराइड और फ्लोरोसिस के समाधान: http://www।inrem।in/fluorosis/solutions।html

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