भारत में स्वच्छता आन्दोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

9 Nov 2019
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भारत में स्वच्छता आन्दोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में स्वच्छता आन्दोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

प्रस्ताविक

भारत का इतिहास गवाह है कि कई समाज सुधारको के द्वारा स्वच्छतालक्षी आन्दोलन चलाए गए हैं। मुख्यतः महात्मा गाँधी, डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर, संत गाडसे बाबा व सूर्यकान्त परीख उल्लेखनीय हैं। इन लोगों ने स्वच्छता व स्वास्थ्य सुधार, शौचालय के गंदेपन का निकास, शौचालय व स्नानगृह की सफाई आदि के लिए जनजागृति की मुहिम छेड़ी है। गाँधी जी ने स्वच्छता व अश्पृश्यता निवारण को स्वतंत्रता संग्राम प्रवृत्ति का एक हिस्सा बनाया था। स्वच्छ परिधान, घर की स्वच्छता, स्वच्छ कार्यों के लिए डॉ. बाबासाहेब प्रेरक रहे हैं। ग्रामीण प्रान्तों में सफाई, शौचालय सुविधा का प्रयोग व सार्वजनिक स्वच्छता के लिए संत गाडसे बाबा ने जनजागृति फैलाई थी। सार्वजनिक रास्तों की सफाई, पे एण्ड यूझ सुविधाएँ आदि के लिए सूर्यकान्त परीख कार्यशील थे। डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने निम्न जाति के लोगों के गदंगी उठाने के कार्य का विरोध किया है। शौचालय के नवीनीकरण को प्रेरणा दी है। सफाईकर्मियों को प्रशिक्षित करने की सफल कोशिश की गई है। सामाजिक उत्थान, मानव अधिकार के सन्दर्भ में डॉ. पाठक सदैव कार्यरत रहे हैं। स्वतंत्रता के पश्चात केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने भी कई अभियान चलाए हैं। निर्मल भारत, टोटल सेनिटेशन, कम्पेइन (टीएससी) ग्लोबल सेनिटेशन एण्ड प्रोग्राम, नेशनल-सरल हेल्प मिशन-वास्मो आदि के द्वारा वैयक्तिक व सार्वजनिक स्वच्छता, शौचालय सम्बन्धी जागृति व शौचालय निर्माण का प्रचार-प्रसार किया जाता है। इस प्रकार में कई आन्दोलन शौचालय एवं स्वच्छता सन्दर्भ में सफल परिणाम के द्योतक रहे हैं।
 
हड़प्पा और मोहन-जोदड़ो नगर की स्वच्छता सुविधा
 
मोहन-जोदड़ो के निवासियों ने स्वच्छता सन्दर्भ में जिस जागृति का परिचय दिया कदाचित ही किसी अन्य संस्कृति में ऐसी जागृति का उदाहरण प्राप्त हो। इस संस्कृति में शौचालय व उसके स्वच्छता सम्बन्ध के विचार क्रान्तिकारी विचार रहे हैं। सुनिश्चित व पूर्ण विचार-विमर्श की फलश्रुति का अनुभव इस संस्कृति में होता है। घर में स्नानागार, शौचालय का विशेष ध्यान प्रबंध देखा गया है। स्वच्छता संदर्भित कई अवशेष इस संस्कृति के संशोधनों में पुरातत्व विभाग को प्राप्त हुए हैं।
 
महात्मा गाँधी व स्वच्छता आन्दोलन

भारत में सफाई कर्मियों, अस्पृश्यता स्वच्छता समस्याओं हेतु चिन्तित होने वाले सर्वप्रथम भारतीय गाँधी जी थे। गाँधी जी ने सफाई कर्मियों व अस्पृश्यों को ‘हरिजन शब्द से’ विभक्त किया। अस्पृश्यों व सफाईकर्मियों की बदहालत देख गाँधी जी अत्यंत व्यथित हुआ करते थे। गाँधी जी ने जीवन पर्यन्त प्रयास करते हुए इन लोगों को पीड़ा मुक्त करेन का आन्दोलन चलाया तथापि उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त न हुई। गदंगी उठाने की प्रथा में कोई बदलाव नही्र आया।
                    
अस्पृश्यता को गाँधीजी पाप मानते थे। मानवता के लिए उसे खतरा मानते थे, हिन्दू धर्म के कलंक के रूप में मानते थे। अस्पृश्यता निवारण को स्वतंत्रता की लड़ाई की एक आवश्यक क्रिया बताया गया है। स्वराज प्राप्ति की मुहिम में उसने अस्पृश्यता को स्थान दिया था।
 
अहर्निश अस्पृश्यों की सेवा के लिए गाँधीजी तत्पर रहते थे। सफाईकर्मियों में सहज क्रियाएँ थी। हरिजनों से विवाह सम्बन्ध में भी गाँधीजी विधेयात्मक रहे हैं। हरिजन बच्चों को गोद लेते हुए समाजोद्धार का कार्य किया। सवर्णों को हरिजन कन्याओं से विवाह हेतु प्रोत्साहित किया गया। शिक्षा में क्षेत्र में भी सफाईकर्मियों को जोड़ते हुए उनके उद्धार की कोशिश की। शराब से दूर रहने की हिदायत देते हुए गाँधीजी ने लोगों के कल्याण का कार्य किया।
 
वैयक्तिक स्वच्छता गाँधी जी की विशेषता थी। साथ-ही-साथ सार्वजनिक स्वच्छता, मानव गरिमा के वे पक्षधर थे। गाँधी जी ने कहा था कि ‘स्वतंत्रता से स्वच्छता विशेष महत्त्वपूर्ण है।’ जीवन के अभिन्न अंग के रूप में स्वच्छता को प्राधान्य दिया गया था। 1920 में गाँधी जी ने स्वच्छता आन्दोलन प्रारम्भ किया। उनका लक्ष्य गदंगी उठाने वाले की यातना मुक्ति सामग्री जैसे कि सुलभ शौचालय हेतु ईंट, पत्थर, पानी, लकड़ी आदि का उपयोग करता है। पर्यावरणीय स्वच्छता भी गाँधी जी के विचार थे। गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के फिनिक्स आश्रम में शौचालय सम्बन्धित प्रयोग किए थे। अस्पृश्यता निवारण, सफाई कर्मियों के सम्पन्न आदि का प्रयास गाँधी जी ने किया था।
 
गाँधीजी ने गदंगी उठाने से विरोध, शराब न पीने की सलाह, अस्पृश्यता की समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास किया था।
 
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर और स्वच्छता आन्दोलन
 
डॉ.आम्बेडकर महर जाति के महान नेता थे। उनके खान-पान, रहन-सहन, परिधान आदि के लिए वे मार्गदर्शक बने। महर लोग मृतक पशुओं को उठाते थे, उस पर पाबन्दी लगाई गई।

डॉ. आम्बेडकर ने अस्पृश्य लोगों के कल्याण व उत्कर्ष हेतु विशिष्ट कार्य किए थे। कई किताबों के द्वारा उन्होंने अपने विचार प्रदर्शित किए। अस्पृश्यों के लिए गाँधी जी के कार्यों के विवरण का उल्लेख अपनी किताब में 1925 में लिखा है। 1943 में गाँधीजी और अस्पृश्यता मुक्ति, 1946 में अस्पृश्यों के उद्भव में वर्तमान स्थिति का परिचय व्यक्त करने वाली किताब लिखी है। उनके विचारों में स्पृश्य-अस्पृश्य के उद्भव, उनकी विडम्बनाएँ, उनका सामाजिक-सांस्कृतिक पिछड़ापन, स्पृश्यों के द्वारा उन पर होने वाला दमन आदि के प्रति डॉ. आम्बेडकर ने विचार व्यक्त किए हैं। अस्पृश्यों के शैक्षिक स्तर को ऊँचा उठाने का भी प्रयास किया गया। उन्हें राजनैतिक दर्जा प्राप्त करवाने का उनका ध्येय था। अस्पृश्यता निवारण हेतु उन्होंने कई गतिविधियाँ की थी। महर जाति के पीने के पानी का प्रश्न महर सत्याग्रह एक विशेष व उदाहरणीय आन्दोलन था। उनकी विविध मुहिमों में दलितवर्ग के दक्षिण भारत की स्वमान रक्षण मुहिम उल्लेखनीय है।
 
डॉ. आम्बेडकर ने दबे हुए दलितों के लिए धार्मिक दृष्टिकोण व शुद्धि-अशुद्धि के ख्यालों में बदलने का प्रयास किया था। स्वच्छता सम्बन्धी उनका ठोस कार्य नहीं है तथापि उनके विचारों या लेखन तथा सम्भाषणों में इस सन्दर्भ में विचार किया गया है। स्वच्छ पोषक, पेयजल का अधिकार, जातिगत असमानता, निम्न शिक्षास्तर, कमजोर स्वास्थ्य, गंदे निवास, शौचालय सफाई कार्य, आदि सम्बन्धी उनकी लड़ाई देखी गई है। महर सत्याग्रह, स्वमान रक्षण, जाति प्रथा विरोधी मुहिम आदि आम्बेडकर के कार्य थे।
 
संत गाडगे बाबा महाराज और स्वच्छता आन्दोलन

19वीं सदी में महाराष्ट्र के गाँवों में ग्रामीण स्वच्छता की मुहिम छेड़ने वाले संत गाडगे बाबा का कार्य उल्लेखनीय रहा है। पर्यावरणीय जागृति, रास्तों की स्वच्छता, ऊर्जा बचत की महिमा, बीमारी सम्बन्धित, चिकित्सालय निर्माण आदि क्षेत्रों में बाबा गाडगे की सक्रिय भूमिका रही है। सामाजिक दूषणों के खिलाफ उनकी मुहिम रही है।
 
उनका सही नाम डेबुश्री झींगराजी भानोरकर था। 1876 के 23 फरवरी को महाराष्ट्र के अमरावती जिलों के शेणाओन् गाँव में एक धोबी परिवार में उनका जन्म हुआ था। अपनी जमीन गवांने के बाद मजदूरी करके जीवनयापन कर रहे थे। एक बार वे अन्न की रखनेवाली का कार्य कर रहे थे। उस समय एक साधु वहाँ से गुजरा। साधु ने उनसे अनाज के मालिक के लिए पूछा। उस साधु ने डेबुश्री का मजाक उडाया। इस अनुभव से डेबुश्री की विचारधारा ही बदल गई। विविध घटनाओं से वे परेशान होते रहते थे।
 
ग्रामीण समूहों में निम्न सामाजिक रिवाज धार्मिक, अंध श्रद्धा, भेदभाव, महिलाओं से अन्याय, गरीबों का परावलम्बन गदंगी आदि को लेकर संत गाडगे बाबा ने विरोध प्रदर्शित किया। स्वच्छता आन्दोलन चलाया। ग्राम्य समस्याओं के समाधान में उपाय खोजे। ‘कीर्तनों’ के माध्यम से अधंकार में रहनेवाली जनता को उम्मीद की नई किरण का अनुभव करवाया। मानवता-धार्मिकता व अच्छे जीवन की सीख देते हुए सामाजिक परिवर्तन का प्रयास किया। लोगों के योगदान से रास्तों की सफाई, शैक्षिक संस्थानों, चिकित्सालय, धर्मशालाएँ, पशुओं के लिए आश्रय स्थानों का निर्माण करवाया।
 
पशुबलि का विरोध किया, मेहनतकश जीवन जीने का बोध दिया। समाज के उच्चवर्ग को निम्न वर्ग की निस्वार्थ सेवा के लिए प्रेरित किया। 20 नवम्बर 1956 के दिन उनका निधन हुआ। वे ‘महानसंत’ के नाम से विख्यात बने। भारत सरकार ने 2000-2001 में ‘गाडगे बाबा-स्वच्छता अभियान’ स्वच्छता कार्यक्रम का गठन करते हुए ग्राम्य स्वच्छता का अभियान प्रारम्भ किया। ग्राम्य स्वच्छता सम्बन्ध में अवार्ड घोषित हुआ। महाराष्ट्र की अमरावती यूनिवर्सिटी की संत गाडगे बाबा यूनिवर्सिटी का दर्जा देते हुए संत गाडगे बाबा का सम्मान किया है।
 
डॉ. बिन्देश्वर पाठक

डॉ. बिन्देश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल, 1943 के बिहार के वैशाली जिले के रामुपर बाघेल नाम के गाँव के रुढिगत मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। डॉ. बिन्देश्वर को बचपन में ही स्वशुद्धिकरम हेतु उनकी दादी ने गाय के गोबर का उपला खिलाया था, गंगा जल पिलाया था। कारण यही था कि वे घर की ‘अस्पृश्य’ कामवाली का गलती से स्पर्श कर गए थे।
 
सन 1968 में मास्टर डिग्री की प्राप्ति हेतु डॉ. पाठक सागर विश्वविद्यालय जाने के हेतु ट्रेन से रवाना हुए। रास्तों में उनके नाती भैय्या मिल गए। डॉ. पाठक विपरीत दिशा में जा रहे थे- वे नाती भाई के अनुरोध से उनके पास ही ठहर गए। डॉ. पाठक को नाती भैय्या के प्रयास से बिहार गाँधी जन्म शताब्दी समिति में काम मिल गया। वहाँ सरयू प्रसाद के सानिध्य में ‘हरिजन उद्धार’ का कार्य आरम्भ किया। उन दिनों बिहार के हरिजनों की स्थिति विकट थी। गंदा उठाने की उन लोगों की विवशता थी। शौचालय के डिब्बे का निकाल करना उनकी मजबूरी थी। डॉ. पाठक को इसके उद्धार हेतु जिम्मेदारी सौपी गई।
 
डॉ. पाठक इस समस्या को निकटता से समझने के लिए ‘बेलिया’ नामक हरिजनों की आबादी में रहने लगे थे। इस कॉलोनी की दो घटनाओं ने उसे बहुत प्रेरित किया था। कॉलोनी के किसी एक परिवार की नवोढ़ा को शादी के पहले ही दिन गंदगी उठाने पर उनके सास-ससुर व पति के द्वारा दबाव बढ़ाया जा रहा था। पुत्रवधू की अनिच्छा होने पर भी उस पर दबाव बढ़ता जाता है। आखिर नई दुल्हन को यह कार्य करना ही पड़ा।
 
दूसरी घटना में एक लड़के को बैल ने टक्कर मार दी। लड़का गिर गया। हरिजन होने से कोई उसे बचाने न गया। तब डॉ. पाठक व उनके मित्रों ने बच्चे को बचाया, किन्तु अस्पताल पहुँचने से पूर्व बच्चे की मौत हो गई। इन दो घटनाओं से डॉ. पाठक विशेष प्रभावित हुए सेवा करने का सुरुर आज भी गत्वर है।
 
डॉ. पाठक ने पाँच साल पुरानी गदंगी उठाने की प्रक्रिया से मुक्त कराने का प्रयास किया है। 1970 में पाठक ने स्वच्छता आन्दोलन को प्रभावोत्मक बनाने हेतु ‘सुलभ स्वच्छता संस्था’ की स्थापना की। इसका मूल उद्देश्य सफाईकर्मी और अस्पृश्य लोगों को यातना मुक्त करना था। इन लोगों के पुनर्वासन, प्रशिक्षण व सामाजिक दर्जे की प्राप्ति का प्रयास किया। ग्रामीण व नगरीय लोगों में स्वच्छता व शौचालय सन्दर्भ में जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया। सुलभ टेक्नोलॉजी के द्वारा पर्यावरणीय सुविधा व संरक्षण पैदा किया।
 
डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने स्वच्छता सुलभ आन्दोलन के द्वारा भारत व विश्व में विविध देशों में स्वच्छता व स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रान्ति पैदा की। इस संस्थान के द्वारा देश के प्रतिष्ठित स्थानों में 8000 से भी अधिक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण हुआ है। ‘पे एण्ड यूज’ की पद्धति का आविष्कार किया। इस सुविधा का तकरीबन दैनिक उपयोग 1.5 करोड़ लोग करते हैं। जिसमें 200 शौचलायों को बायोगेस प्लांट से जोड़ा गया है। जिससे बिजली पैदा की जाती है। सड़कों की बिजली, खाद का उत्पादन बढ़ाने हेतु बिजली का उपयोग किया जाता है। स्वच्छता आन्दोलन के द्वारा देश के 13 लाख पारम्परिक शौचालयों को सुलभ शौचालयों में तब्दील कर दिया गया है। 10 लाख से अधिक सफाईकर्मियों को गंदे कार्य से मुक्ति मिली है। 640 नगरों में वे मुक्त हुए हैं। बिहार के एक जिले से प्रारम्भ होने वाला यह आन्दोलन आज देश के 25 राज्य, 4 केन्द्र शासित प्रदेश व 506 जिलों में तथा अफगानिस्तान, भूटान जैसे देश में भी कार्यरत है।
 
डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने पिछले 43 वर्षों से सफाईकर्मियों को गंदे कार्य से मुक्ति, पुनर्वासन, मानवीय गौरव, मानवाधिकार के लिए प्रयास किया है। देश में उन्होंने मुक्ति कार्यक्रम, सुलभ पब्लिक स्कूल प्रशिक्षण केन्द्र आदि की स्थापना की है। अस्पृश्यता के सन्दर्भ में डॉ. पाठक ने सुधारात्मक कार्य करते हुए क्रान्ति पैदा की है।
 
डॉ. पाठक ने 1970 सुलभ स्वच्छता संस्थान के उपरान्त सफाईकर्मियों के बच्चों को अग्रेजी माध्यम में शिक्षा हेतु 1992 में सुलभ पब्लिक स्कूल की स्थापना की। 1994 में ‘सुलभ इन्टरनेशनल स्वास्थ्य स्वच्छता संस्थान’ का प्रारम्भ, पर्यावरणीय सुरक्षा, पोषकयुक्त भोजन, परिवार नियोजन आदि के हेतु किया गया। 1984 में सुलभ इंटरनेशल में पर्यावरणीय स्वच्छता एकेडमी और जन स्वास्थ्य, 1994 में सुलभ इन्टरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट (शौचालय संग्रहालय) की स्थापना हुई। महिलाओं के व्यावसायिक पुनर्वासन के लिए शिक्षण व प्रशिक्षण हेतु 2003 में नई दिशा, प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई। इन तमाम संस्थानों के द्वारा सफाईकर्मियों की मुक्ति, व्यावसायिक प्रशिक्षण, सफाईकर्मियों के बच्चों की शिक्षा, सामूहिक भोजन सामाजिक उत्थान, मानवीय गौरव व मानवाधिकारों की मुहिम उठाई गई है।
 
डॉ. बिन्देश्वर पाठक और सुलभ इंटरनेशनल कर्मियों को बिहार या भारत ही नहीं किन्तु वैश्विक फलक पर स्वच्छता के विशेष स्थान को अंकित करने का प्रयास करने पर अभिनंदन दिया जा सकता है। इसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण व नगरीय इलाकों में सुलभ शौचालय व सार्वजिनक शौचालय द्वारा लोगों का फायदा हो रहा है।
 
सूर्यकान्त परीख और स्वच्छता आन्दोलन

अपनी 86 वर्ष की उम्र में सूर्यकान्त परीख ने स्वच्छता हेतु सफाई व स्वच्छता अभियान चलाया है। ‘सुलभ इंटरनेशनल’ से प्रेरित होकर 1988 में न फायदे न नुकसान की निति से ‘नासा’ फाउंडेशन के कर्मियों ने ‘पे एंड यूज’ के रूप में सामूहिक शौचालयों का निर्माण किया। 1988 में श्री परीख ने मित्रों की मदद से ‘नेशनल सेनिटेशन एंड एन्वायरमेंट इंप्रुवमेंट फाउंडेशन’ की स्थापना की। सार्वजनिक शौचालय निर्माण व उनके रखरखाव की जिम्मेदारी ‘नासा’ ने उठाई है। विविध तीर्थ स्थानों, अस्पताल, सरकारी स्कूल, आश्रम आदि में सार्वजनिक शौचालय व स्नानागारों का निर्माण किया है।
 
शौचालय ही सेवा करने का माध्यम क्यों बनाया ? उस प्रश्न पूछने पर सूर्यकान्त परीख ने बताया था कि, ‘जीवन की यह अनिवार्यता पर होने पर भी लोग खुलेआम चर्चा नहीं कर सकते। शौचालय की बातों से ही लोग चिड़ते हैं। ईश्वर की देन है कि मैं ऐसे कार्य की ओर खींचता चला हूँ।’ 1982-85 के दौरान वे गुजरात ऊर्जा विकास संस्था के एक सदस्य थे। उन्होंने ऊर्जा का पारम्परिक अभ्यास किया है। मल-मूत्र से बायोगैस की उन्हें पहचान थी। सुलभ का उन्होंने बिहार जाकर अनुभव प्राप्त किया था।
 
सुलभ ने गुजरात में भी बायोगैस का प्लांट निर्मित किया, जिसकी बागडोर सूर्यकान्त परीख को दी गई। चार साल में सुलभ के द्वारा उन्हें गुजरात विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। अतः शौचालय व स्नानागारों से परीख का प्रत्यक्ष सम्बन्ध था। सुलभ के द्वारा उनका हरियाणा तबादला किया गया। किन्तु उन्होंने यह कार्य छोड़ दिया। तत्पश्चात सफाईक्षेत्र पर उन्होंने ध्यान केन्द्रित किया। गुजरात में सफाईकार्य को अच्छे नेता की आवश्यकता थी। फलतः 63 वर्ष की आयु में उन्होंने नासा फाउंडेशन की संस्थापना की। आज 85 स्थानों पर यह संस्था कार्यरत है।
 
आजतक गुजरात में अछूता रहने वाला यह क्षेत्र अब लोगों का ध्यानाकर्षण केन्द्र बन गया। परीख को चारों ओर से प्रोत्साहन प्राप्त होने लगे। परीख ने सुलभ के अपने अनुभव से विविध योगदानों के द्वारा, सरकार की सहायता के द्वारा अपने कार्य को अंजाम दिया। दाहोद की एक आश्रमशाला से उसके कार्य का प्रारम्भ हुआ। छात्रालयों के शौचालयों से बायोगैस प्लांट तैयार किया गया। भावनगर म्युनिसिपल कॉर्पोरंेशन ने भी इस संस्थान को कुछ प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंपी है। नए शौचालय निर्माण में प्रगति देखी गई।
 
अहमदाबाद में अस्पताल, बस अड्डे उद्यान आदि 26 स्थानों पर आधुनिक शौचालय निर्माण किए। सत्ताधार, बहुचराजी, सोमनाथ, डकोर, अंबाजी आदि तीर्थ स्थानों पर स्वच्छता शौचालयों का निर्माण किया। नदी ग्राम के पास से आदिवासी गाँवों के कई घरों में शौचालय बनाए गए।
 
प्रवर्तमान समय में शौचालय के अभाव से बुजुर्गों व महिलाओं को जो आपत्ति उठानी पड़ रही थी इसमें अब सुधार हुआ है। सूर्यकान्त भाई ने आशीर्वादरूप कार्य किया। उन्हें दाताओं से पर्याप्त अनुदान प्राप्त होता है। नासा के कार्यकर्ता अपना सम्पूर्ण सहयोग दे रहे हैं। नासा की बहने गुजरात की अदालतों की सफाई का कार्य करती हैं। संस्थान का लक्ष्य है कि नए सुलभ की स्थापना हो। सूर्यकान्त परीख  और नासा के कार्यकर्ताओं ने स्वच्छता आन्दोलनों के द्वारा गुजरात में एक उदाहरणीय भूमिका निभाई है।
 
केन्द्र सरकार और स्वच्छ आन्दोलन

केन्द्र सरकार के द्वारा 1947 के बाद सफाईकर्मियों की स्थिति में सुधार हेतु कुछ कदम उठाए गए हैं। स्वच्छता, सफाईकर्मियों की मुक्ति, सामाजिक-धार्मिक सुधार, मानवाधिकार आदि हेतु समितियों का गठन किया गया है। राष्ट्रीय-अनुसूचित आयोग, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन आदि संगठन कार्यरत हैं। भारत सरकार के जन कल्याण मंत्रालय (सामाजिक न्याय व अधिकारी) (सशक्तिकरण मंत्रालय) ने कुछ जनकल्याण सम्बन्धित कार्यक्रमों को प्रारम्भ किया है। सन 1991-92 में सफाईकर्मियों व उनके आश्रित की मुक्ति की राष्ट्रीय योजना, बच्चों की मैट्रिक पूर्व की स्काॅलरशिप, मैट्रिक पश्चात की स्काॅलरशिप, उच्च शिक्षा की स्काॅलरशिप, राजीव गाँधी राष्ट्रीय स्काॅलरशिप हेतु केन्द्र द्वारा संचालित योजनाएँ तैयार की गई हैं। परम्परागत शौचालयों को सुलभ शौचालयों में तब्दील करने की योजना, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम) तथा लोगों के शिक्षण हेतु आरक्षण नीति का नियम लागू किया गया है। सन 1993 में सरकार के द्वारा परम्परागत शौचालयों की सफाई हेतु राष्ट्रीय आयोग का गठन किया है। इन तमाम प्रयासों से सफाईकर्मियों को निसंदेह फायदा प्राप्त होने लगा है। विविध अभियान, कार्यक्रम, योजनाओं के द्वारा केन्द्र सरकार अस्पृश्यता निवारण व सफाईकर्मियों के लाभ हेतु प्रयास कर रहे हैं। तथापि सत्य वह है कि वे लोग अब भी पूर्णतः मुक्त नही हुए हैं। आज भी दूरदराज के प्रान्तों में पुरानी परम्पराएँ कार्यान्वित हैं।
 
केन्द्र सरकार ने स्वच्छता अभियान को प्रभावी बनाने हेतु भारत निर्मल अभियान, टोटल सेनिटेशन कम्पेईन (टीएससी), वोटर एण्ड सेनिटेशन मेनेजमेंट ऑर्गनाइजेशन (वास्मो) आदि परियोजनाएँ लागू की गई हैं। यूनेस्को के ‘मिशन सेनिटेशन’ अभियान द्वारा स्वच्छता, स्वास्थ्य, पर्यावरणीय आदि क्षेत्रों में सुधारात्मक कार्य हुए हैं।
 
राज्य और स्वच्छता आन्दोलन

भारत गणतंत्र के विविध राज्यों के द्वारा स्वच्छता सम्बन्धित मुहिम चलाई गई है। विविध अभियान, कार्यक्रमों को अपनाया गया है। विविध राज्यों के गाँव व नगरों की शौचालय सुविधाएँ भिन्न-भिन्न हैं। फलतः विविध संस्कृति, सामाजिकता के मद्देनजर अभियान चलाए जाते हैं।
 
भारत सरकार के द्वारा सभी राज्यों में निर्मल भारत अभियान, टोटल सेनिटेशन कम्पेईन, वास्मो, सार्वजनिक शौचालय निर्माण योजना, चलाए जा रहे हैं। राज्य में भी इसका निरीक्षण-मूल्यांकन आदि किया जा रहा है। बिहार में बिहार सरकार और सुलभ संस्थान द्वारा सार्वजनिक शौचालय, स्वच्छता, पर्यावरणीय जागृति के कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
 
महाराष्ट्र के संत गाडगे बाबा सुलभ स्वच्छता अभियान चलाया जाता है। ग्रामीण जन जीवन में इसके परिणाम स्वरूप सुधार हुआ है। गुजरात शौचालय योजना कार्यरत है। नगर एंव ग्रामीण इलाकों में इस योजना को लागू कर गुजरात को स्वच्छ करने का अभियान सन 2008 से चलाया जा रहा है।
 
विविध राज्यों में कार्यरत स्वैच्छिक संस्थान जैसे कि सुलभ इंटरनेशनल, सफाई विद्यालय, नासा फाउंडेशन, हरिजन सेवक संघ, सिटीजन फाउंडेशन, केर इंडिया हुडको आवास (एसोसिएशन फॉर वॉटर सेनिटेशन एडं हाइजिंग) आदि स्वच्छता आन्दोलन के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार की प्रवृत्तियों के संस्थापक व कार्यकर्ताओं के प्रयासों से ग्रामीण व शहरी इलाकों में (झुग्गियों में) स्वच्छता जागृति अभियान, सफाईकर्मी मुक्ति अभियान, शौचालय निर्माण, रखरखाव, स्नानागारों का निर्माण, सफाईकर्मियों का मन्दिर प्रवेश, भेदभाव हीनता आदि का जोर-शोर से प्रसार हो रहा है। स्वास्थ्य सम्बन्धित सुधारात्मक कार्य, पर्यावरणीय चिन्तित सहभोजन, सांस्कृतिक संरक्षण के भी प्रयास इन संस्थानों के द्वारा होते रहे हैं।
 
निष्कर्ष

‘मिशन सेनिटेशन’ सामूहिक स्वच्छता व स्वास्थ्य हेतु अनिवार्य है। स्वस्थ बचपन स्वस्थ राष्ट्र के सूत्र के साथ भारत में स्वच्छता आन्दोलन सक्रिय है। आज के स्वच्छ पर्यावरणीय माहौल का श्रेय महात्मा गाँधी डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर, संत गाडगे बाबा, आदि समाज सुधारक व डॉ. बिन्देश्वर पाठक व सूर्यकान्त परीख जैसे कार्यकर्ता तथा भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को प्राप्त होता है।
 
सन्दर्भ सूची

  1. चाकले, ए.एम.  हेल्थ वर्कर के लिए पाठ्य (प्रथम खण्ड एन.आर.ब्रदर्स, इन्दौर। चतुर्थ आवृत्ति (2002)
  2. ओमवेट गेल  दलित और प्रजातांत्रिक क्रान्ति, रावत पब्लिकेशन जयपुर। (2009)
  3. परीख सूर्यकान्त शौचालय (परिचय पुस्तिका)
  4. सुलभ स्वच्छता आन्दोलन  सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन
  5. ओमवेट गेल दलित और प्रजातांत्रिक क्रान्ति, रावत पब्लिकेशन, जयपुर। (2009)
  6. शर्मा, रामशरण ‘शुद्रो का प्राचीन इतिहास’ राजकमल प्रकाशन, नई। (1992)
  7. पटेल अर्जुन गुजरात में दलित अस्मिता सेन्टर फॉर सोसियल स्टडीज, सूरत। (2005)
  8. मेकवान मार्टिन  विश्वभर में विस्तारित दलितों की आवाज परिवर्तन ट्रस्ट बरोडा। (2000)
  9. सुलभ स्वच्छता आन्दोलन सुलभ इंटरनेशल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन नई दिल्ली।
  10. डॉ. बिन्देश्वर पाठक  स्वच्छता का समाजशास्त्र( पर्यावरणीय स्वच्छता, स्वास्थ्य और सामाजिक उपेक्षा), सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन, नई दिल्ली। (2013)

Website

  1. www.sulabhinternational.org
  2. www.sulabhtoilet museum.org
  3. www.sociology of sanitaition.com
  4. www.nasafoundation.org
  5. www.safai vidhyalaya.org
  6. www.harijan sevak sangh.org
  7. www. Govt of india.com
  8. www.govt of Gujarat.com
  9. www.UNDP.org

डॉ.अनिल वाघेला,
एसोसिएटेड प्रो. एंड हेड ऑफ सोसिओलोजी डिपार्टमेंट.
एम.के.भावनगर यूनिवर्सिटी,
शामलदास आर्ट्स कॉलेज भावनगर, गुजरात, इंडिया-364002

 

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