भारत में विलुप्त हो गए 22 लाख तालाब 

5 May 2020
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भारत में विलुप्त हो गए 22 लाख तालाब 
भारत में विलुप्त हो गए 22 लाख तालाब 

कहते हैं ‘‘भारत का दिल गांव में बसता है।’’ संस्कारों और संस्कृति का उद्गम भी गांवों से ही हुआ है। एक तरह से भारत की सांस्कृतिक पहचान गांव ही हैं। सांस्कृतिक रूप से विभिन्नताओं से भरे देश में तालाबों को संस्कृति का ही एक हिस्सा माना गया है, जहां तलाबों व विभिन्न जलस्रोतों को इंसानों की भांति नाम दिए जाते थे। तालाबों की पूजा की जाती थी। खेती और पीने सहित पानी की अन्य जरूरतों के लिए लोग तालाबों पर ही निर्भर थे। कई गांवों में पशुओं के लिए अलग तालाब हुआ करते थे। विभिन्न पौराणिक कथाओं में भी तालाबों का जिक्र मिलता है, जहां लोग पानी लेने व स्नान के लिए जाते थे। एक अनुमान के अनुसार आजादी के पहले भारत में करीब 24 लाख तालाब हुआ करते थे। भूमिगत जलस्तर बनाने में तालाबों की अहम भूमिका थी, लेकिन वर्तमान में तालाब केवल किताबों और सरकारी फाइलों तक ही सिमटते जा रहे हैं और देश की जनता ऐसे विकराल जल संकट की तरफ बढ़ रही है, जहां बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज होना पड़ सकता है। 

5वें माइनर इरीगेशन सेंसस (2013-14) के आंकड़ों पर नजर डाले तो देश में करीब 2 लाख 14 हजार 715 तालाब हैं। शेष लगभग 22 लाख तालाब विलुप्त हो चुके हैं, यानी इन पर भवन निर्माण कर काॅलोनियां बसाई गई हैं। इन काॅलोनियों का नाम भी तालाबों के नाम पर ही रखा गया है। इससे यहां आने वाले नए शख्स को या काॅलोनी का नाम सुनने से ही प्रतीत होता है कि यहां कोई तालाब होगा, लेकिन तसदीक करने पर पता चलता है कि यहां कभी तालाब हुआ करता था, अब तालाब की कब्र पर इमारते खड़ी हैं और इमारतों का संरक्षण तालाब पर कब्जा करने वाले इंसान कर रहे हैं। आलम ये है कि एक समय पर नवाबों के शहर लखनऊ में 13 हजार 37 तालाब थे। ये तालाब करीब 49280 क्षेत्रफल में फैले हुए थे, लेकिन आज करीब 3800 हेक्टेयर पर कब्जा हो चुका है। हिंदुस्तान टाइम्स में वर्ष 2019 में छपी न्यूज के मुताबिक ‘‘गौतमबुद्ध नगर प्रशासन ने 1000 तालाबों को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा है। इनमें से 474 तालाब दादरी, 281 जेवर और 245 तालाब सदर में हैं, जो कि 448.418 हेक्टेयर में फैले हुए हैं। दादरी के 474 तालाबों में से 150 तालाबों पर कब्जा कर यहां अवैध रूप से काॅलोनियां बनाई गई हैं।’’ वर्तमान में नोएडा में काफी कम तालाब बचे हैं। 

हरिद्वार जिला की विभिन्न तहसीलों में करीब 1668 तालाब हैं। कई तालाबों पर अतिक्रमण कर लोगों ने बहुमंजिला भवन बना रखे हैं। जून 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए तालाबों से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। इसके बाद प्रशासन ने सक्रियता दिखाते हुए हरिद्वार तहसील में 330 में से 61 तालाबों पर, रुड़की तहसील में 680 में से 437 तालाबों पर, लक्सर तहसील में 367 में से 316 तालाबों पर और भगवानपुर तहसील में 291 में से 124 तालाबों पर अतिक्रमण होने की बात सामने आई। तहसील प्रशासन ने खानापूर्ति करते हुए हरिद्वार में तीन, रुड़की में 47, लक्सर में 86 और भगवानपुर में 19 तालाबों से अतिक्रमण हटाया, लेकिन इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। जिस कारण हरिद्वार में 58, रुड़की में 390, लक्सर में 230 और भगवानपुर में 105 तालाबों पर अतिक्रमण है। तकरीबन यही हाल पूरे देश का है।  

जल संरक्षण की इन प्राकृतिक धरोहरों को नुकसान पहुंचाने का खामियाजा ये हुआ कि बरसात का पानी पोखर, कुओं, तालाबों आदि में संग्रहित होकर भूजल को रिचार्ज करने के बजाए नालों के माध्यम से नदियों और नदियों से समुद्र में जाकर व्यर्थ होने लगा। इससे वर्षा जल को भूमि के अंदर जाने का माध्यम नहीं मिला और भूजल तेजी से कम होने लगा। तो वहीं भू-जल पर अधिक निर्भर होने के कारण हमने इतना पानी खींच लिया कि हैदराबाद, दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु, कोलकाता आदि बड़े शहरों में भूजल समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया है। जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों की सूची में भारत 120 पायदान पर पहुंच गया। दूसरी तरफ आधुनिकता के दौर में बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर जंगलों के कटान ने आग में घी डालने का काम किया। वनों के कटान से मिट्टी ढीली पड़ गई। हल्की बरसात में भू-कटाव शुरू हो गया। इसका सबसे ज्यादा नुकसान पहाड़ी इलाकों में हुआ। पेड़ों के कटने से पर्यावरण संतुलन बिगड़ने लगा और गर्म दिन गढ़ रहे हैं। भूमि में पहले से ही जल की कमी होने के कारण वनस्पतियों आदि को पर्याप्त नमी और जल नहीं मिला, इससे उपजाऊ भूमि मरुस्थलीकरण की चपेट में आ गई और भारत की करीब 24 प्रतिशत भूमि मरुस्थल में तब्दील हो चुकी है। देश की करीब 40 प्रतिशत जनता स्वच्छ जल के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जिस कारण जनता समय समय पर अपने-अपने राज्य की सरकारों कोसती है। 

जल की इस भीषण समस्या को देखते हुए कई संगठन जरूर सक्रिय हुए और उन्होंने लोगों को जागरुक करना शुरू किया। नतीजा ये रहा कि देश के कई गांवों में तालाब निर्माण का कार्य शुरू हुआ। कई लोगों/किसानों ने स्वयं के स्तर पर भी तालाबों का निर्माण व सफाई की। सभी के इन प्रयासों से देश भर में हजारों तालाब बनाए जा चुके हैं, लेकिन सरकार की नींद फिर भी नहीं टूटी। सरकार की नींद पिछले साल ही टूटी, जब जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया गया। अभी तक तो मंत्रालय के अंतर्गत जल संरक्षण का कार्य जोर-शोर से चल रहा है, लेकिन धरातल पर परिणाम ही मंत्रालय की सफलता की दास्तान को बयां करेंगे, लेकिन गौर करने वाली वाली बात ये है कि आज भी देश के करोड़ों लोग पानी बचाने के प्रति जागरुक नहीं हैं। 40 प्रतिशत जल किसी न किसी कारण से व्यर्थ हो जाता है। जागरुकता के अभाव में लोग रोजाना 48 हजार लीटर पानी बर्बाद करते हैं। तालाबों और नदियों पर अधिकारियों और मंत्रियों की सांठगांठ से धड़ल्ले से अतिक्रमण हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण की दुहाई देने वाले मंत्रियों और अधिकारियों के काल में ही विकास के नाम पर पर्यावरण को क्षति पहुंचाई जा रही है। इसलिए पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए देश को एक ठोस नीति की आवश्यकता है। नीति केवल फाइलों नहीं बल्कि धरातल पर लागू भी हो और नियम कानून का अनुपालन सभी के लिए समान रूप से हो तथा कथनी और करनी में अंतर न हो। साथ ही जनता पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्य का अनुपालन करे। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब हर इंसान के पास रहने के लिए घर तो होगा और घर में नल भी होगा, लेकिन नल में पानी नहीं होगा। इसलिए अपने भविष्य का निर्धारण हमें स्वयं करना होगा।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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