भारतीय कृषि उत्पादन में सिंचाई जल संसाधन की भूमिका

जल एक मुख्य प्राकृतिक संसाधन है। जल जंतु-जगत की आधारभूत आवश्यकता है और सभी प्रकार के विकास कार्यों का एक मुख्य तत्व है। जल परिस्थितिकी का एक अनिवार्य एवं नियंत्रक तत्व है। पौराणिक काल में भी लोगों को इस वैज्ञानिक सत्य का ज्ञान था कि मानव या जंतु शरीर, पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), वायु एवं प्रकाश पंच माहभूतों से बना हुआ है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनि यह प्रार्थना करते थे कि जिन पांच तत्वों से यह शरीर बना है, मृत्यु-उपरांत वे पांचों तत्व पुनः अपने मूल-तत्वों में चले जावें-

सूर्य चक्षुर्गच्छुत तातमात्मा, धं च गच्छ पृथिवी च धर्मण।
अपो वा गच्छ यिद तत्र ते हितम्, औषधीषु प्रतिष्ठा शरीरेः।।

(ऋग्वेद 2.16.03)

हे शरीर! तुम्हारी आंखे सूर्य में विलीन हों, प्राणवायु में विलीन हो, तुम स्वयं पृथ्वी में समा जाओ, इसी तरह जल में समाकर पौधों के रूप में विद्यमान रहो।

क्योंकि भारत की जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत भाग कृषि या कृषि आधारित धंधों पर निर्भर करता है, इसीलिए प्राचीन काल से ही भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता रहा है। बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के कारण जल की आवश्यकताएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, जबकि जल की मात्रा सीमित है। इसी कारण से कृषि के लिए जल की उपलब्धता में कमी आती जा रही है। यही कमी राजस्थान के लिए तो और भी कष्टदायक है। राजस्थान देश का सबसे बड़ा प्रदेश है जो लगभग 10 प्रतिशत भू-भाग को रेखांकित करता है, परंतु देश में उपलब्ध कुल जल संसाधन का एक प्रतिशत हिस्सा ही प्रदेश को प्राप्त है। प्रदेश के अधिकांश भाग में कम वर्षा व इसकी अनिश्चितता के कारण कृषि उत्पादन को बढ़ावा चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। उपलब्ध जल संसाधन का कुशलतम उपयोग ही कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम उपाय है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा स्वीकृत जल प्रबंध परियोजना में फसलोत्पादन के लिए किये गये प्रयोगों की मुख्य उपलब्धियां इस लेख में प्रस्तुत की जा रही हैं। इस परियोजना में सभी प्रयोगों का उद्देश्य यह रहा कि जलोपयोग दक्षता (उपज/जलोपयोग) कैसे बढ़ाई जावे?

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