भेड़ाघाट में नर्मदा का सौंदर्य देखने उमड़ती है भीड़

1 Feb 2010
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bhedaghat
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मध्यप्रदेश के जबलपुर से नजदीक है भेड़ाघाट। वैसे तो हम बचपन से ही यहां के बारे में पढ़ते-सुनते आ रहे हैं लेकिन प्रत्यक्ष रूप से इसे देखने का संयोग हाल ही बना। यहां की मार्बल राक्स और धुआंधार दोनों ही बहुत प्रसिद्ध है।

हम 26 तारीख(दिसम्बर 2009 को पिपरिया से सवारी ट्रेन में सुबह सवार हुए। यह ट्रेन बरसों पुरानी है। इसी ट्रेन से लोग गंगाजी(इलाहाबाद) जाया करते हैं। इस ट्रेन के बारे में एक धारणा यह है कि यह प्राय: ’लेट’ ही चलती है। बात सच हुई। पिपरिया से ही एक्सप्रेस ट्रेनों से ’पिटती’ गई तो एकाध स्टेशन को छोड़कर प्राय: हरेक स्टेशन पर पिटी।

मैं अपने परिवार के साथ जा रहा था। साथ में पत्नी और बेटा भी है। इस ट्रेन में जगह अमूमन मिल ही जाती है क्योंकि छोटे-छोटे ’स्टाप’ पर लोग चढ़ते-उतरते रहते हैं। वे आपस में अपने सुख-दुख की बातें करते हैं। इस बीच चना मसाला, अमरूद, मूंगफली बेचने वाले भी आते-जाते हैं। कुछ अप्रिय दृशय भी देखने मिलते हैं जब कोई छोटा बच्चा अपनी शर्ट उतारकर उससे बोगी का फर्श साफ कर हाथ फैलाता है।

सुबह की हमारी ट्रेन शाम को भेड़ाघाट पहुंची। स्टेशन से कुछ दूर पैदल चल हम आटो-टेम्पो में सवार हो धुआंधार पहुंचे। एकाध किलोमीटर सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए हमें बहुत से लोग मिले। दोनों ओर पूजा-सामग्री और मार्बल राक्स की मूर्तियों की दूकानें लगी थीं। शंख-शीप, कंठी-माला, नारियल आदि की दुकानें सजी थीं। हनुमान जी की मूर्ति के सामने एक सूरदास बहुत ही मधुर आवाज में तंबूरे की तान के साथ नर्मदा का बखान कर रहे थे।

अब हम धुआंधार के सामने खड़े हैं। सामने यानी रेलिंग पर। नर्मदा यहां कोई 10-12 फीट नीचे खड्ड में गिरती है और फुहारों के साथ ऊपर उछलती है, मचलती है। गेंद की तरह टप्पा खाकर फब्वारों साथ ऊपर कूदती है । यहां नर्मदा का मनोरम सौंदर्य अपने चरम पर होता है। घंटों निहारते रहो, फिर भी मन न भरे। जल प्रपात का ऐसा नजारा शायद ही कहीं और देखने को मिले।

धुआंधार के सामने दोनों ओर कतारबद्ध संगमरमर की चटानें हैं, जो नर्मदा का रास्ता रोकती हैं। इन मार्बल राक्स की बनावट ऐसी है कि लगता है इन्हें किसी धारदार छेनी से तराशा गया हो। चट्टानों की बीच नर्मदा सिकुड़ती जाती है पर वह अपने वेग में बलखाती, इठलाती और अठखेलियां करती आगे बढ़ती जाती है। मानो कह रही हो 'मुझे कोई नहीं रोक सकता।

यहां ’रोपवे’ भी हैं लेकिन मेरे बेटे ने इस पर यह कहकर जाने से मना कर दिया कि यह विकलांगों के लिए है। हम तो पैदल चलकर ही जाएंगे। यानी यह जेब ढीली करने का ही साधन है।

संझा आरती का समय है। भक्तजन नर्मदा मैया की आरती कर रहे हैं। दीया जलाकर लोग आरती कर रहे हैं और कुछ लोग नर्मदा में दीप प्रवाह कर रहे हैं। कर्तल ध्वनि के साथ आरती में बहुत से लोग शामिल हो गए हैं। आरती के पशचात प्रसाद वितरण हो रहा है।

कुछ परिक्रमावासी ’हर-हर नर्बदे’ का जयकारा कर रहे हैं। पहले लोग नर्मदा के एक छोर से दूसरे छोर तक और वापस उसी स्थान तक पैदल ही परिक्रमा करते थे। अब भी कुछ लोग करते हैं। लेकिन अब बस या ट्रेन से भी परिक्रमा करने लगे हैं।

जीवनदायिनी नर्मदा की महिमा युगों-युगों से लोग गाते आ रहे हैं। लेकिन अब नर्मदा संकट में है। बरसों से नर्मदा बचाओ की लड़ाई लड़ी जा रही है। इस पर बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं। मैं वापस लौटते समय सोच रहा था कि क्या इस जीवनदायिनी मनोरम सौंदर्य की नदी को बचाया नहीं जा सकता?
 

 

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