भोपाल का पानी (भाग 2)

29 Dec 2008
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water and health
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भास्कर न्यूज/भोपाल. राजधानी का भूमिगत जल भी प्रदूषण के खतरे से घिर गया है। स्वयं प्रदूषण नियंत्रण मंडल की एक रिपोर्ट में यह खतरनाक तथ्य सामने आया है। रिपोर्ट बताती है कि पानी में भारी तत्व इस हद तक बढ़ गए हैं कि भविष्य में बाहरी के साथ जमीन का पानी भी उपयोग के लायक नहीं बचने की आशंका है। मप्र विज्ञान सभा के सर्वेक्षण में भी यही स्थिति सामने आई है। उक्त रिपोर्ट की गंभीरता को देखते हुए प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने इस बात की जरूरत बताई है कि शहर में जल प्रबंधन के अधिक से अधिक उपाय करने होंगे। यह रिपोर्ट जल्द ही जिला प्रशासन सहित जिम्मेदार विभागों को सौंप दी जाएगी। इस रिपोर्ट का आधार मंडल द्वारा नियमित रूप से की जाने वाली पानी की जांच के संकलित आंकड़ों को बनाया गया है।

यह है रिपोर्ट में:

रिपोर्ट में बाहरी तथा भूमिगत पानी में आयरन, फ्लोराइड, कॉपर, लेड, नाइट्रेट जैसे भारी तत्वों की बढ़ती मात्रा पर चिंता व्यक्त की गई है। ये अंतरराष्ट्रीय मानक 1.5 मिलीग्राम प्रतिलीटर को पार कर रहे हैं। पानी में इनकी अधिक मात्रा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। बाहरी और जमीनी जलस्तर कम होने की वजह से इनका प्रभाव बढ़ता जा रहा हैं।

वाटर हार्वेस्टिंग के उपायों को गंभीरता से नहीं लिए जाने से पानी का जमीन में रिसाव नहीं हो पा रहा है। शहरी गंदगी और कृषि में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक उर्वरकों की वजह से बाहरी पानी में तेजी से भारी तत्वों की मात्रा बढ़ रही है। इन तत्वों के जमीन में उतरने से भूगर्भ के पानी की सांध्रता बढ़ने की आशंका बनने लगी है। बढ़ती सांध्रता भूगर्भ के पानी के लिए भी खतरे की घंटी के समान है। -एसपी गौतम, चेयरमैन प्रदूषण नियंत्रण मंडल

शहर के पानी में भारी तत्वों की स्थिति

तत्व होना चाहिए पाया गया
आयरन 0.3 .5 से .7
नाइट्रेट 45 300 से 500
फ्लोराइड 1 5 से 10
आर्सेनिक .05 .8
लैड 0.5 .1 से .2
(आंकड़े मप्र विज्ञान सभा द्वारा करीब छह माह पहले शहर के विभिन्न स्थानों पर भूमिगत जल के अध्ययन की रिपोर्ट पर आधारित है। आंकड़ों में प्रति लीटर पानी में तत्व की मिलीग्राम उपस्थिति बताई गई है )

बचने का यह है उपाय

जमीन में पानी की मात्रा बढ़ाना ही इसका एकमात्र उपाय है। इसके लिए रिपोर्ट में वाटर हार्वेस्टिंग के बेहतर उपायों, नदी के किनारों पर एफटीएल बनाने (चैनल जिससे पानी नदी किनारे बनी खंतियों और खदानों में चला जाए) को तवज्जो दी गई है। बोर्ड का मानना है कि इससे जमीन में पानी का रिसाव बढ़ेगा। जमीन में जितना अधिक पानी होगा पेड़-पौधों उतनी ही अधिक संख्या में बढ़ेंगे। वृक्षों की अधिक संख्या जमीन के भारी तत्वों को अवशोषित कर लेगी, जिससे क्षेत्र से प्रदूषण का दबाव घटेगा।

जलस्तर बढ़ाने के लिए रिपोर्ट में बरसाती नालों पर बांध बनाने, गहरीकरण करने जैसे उपाय भी लिखे गए हैं। इन्होंने भी पाया: मप्र विज्ञान सभा ने भी उक्त स्थिति की पुष्टि की है। उसकी कार्यकारिणी के सदस्य प्रो. केएस तिवारी ने बताया कि राजधानी में भूजल के दोहन तथा उसकी रिचार्जिंग के बीच 10 के अनुपात का अंतर है। यानी यदि 10 लीटर पानी निकाला जा रहा है तो रिचार्जिंग के जरिए महज एक लीटर पानी जमीन के भीतर जा रहा है। इससे पानी में प्रदूषण बढ़ना तय है।

साभार - भास्कर न्यूज .

 

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