भारत की नदी घाटियाँ: एक परिचय (An Introduction of Indian River System)

भारत नदियों का देश है। इसके हर हिस्से में नदियाँ मिलती है। हर दिशा या हर विविधता के साथ प्रवाहित। उन नदियों को तकनीकी लोगों तथा नदियों पर काम करने वाले लोगों द्वारा उन्हें अनेक तरीके से वर्णित तथा वर्गीकृत किया है। लगभग हर नदी को नाम देकर उसकी पहचान तय की है तो उनकी घाटियों को दर्शाने  के लिए अनेक नामों का उपयोग किया है। नामों की विविधता के कारण आम आदमी को उन्हें समझने में कई बार कठिनाई का सामना करना होता है। इसलिए इस लेख में नदी घाटी से जुड़ी शब्दावली से परिचित कराने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा, उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर उनकी विशेषताओं का सांकेतिक विवरण दिया गया है। निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जलप्रवाह को 'अपवाह' तथा इन वाहिकाओं के जाल को 'अपवाह तंत्र' कहा जाता है।वहां के भूवैज्ञानिक समयावधि,चट्टानों की प्रकृति एवं संरचना, स्थलाकृति, ढाल, बहते जल की मात्रा और बहाव की अवधि का परिणाम है।

प्रयुक्त शब्दावली  

सामान्यतः एक नाली को प्रदर्शित करने के लिए अंग्रेजी  भाषा में ड्रेनेज शब्द का और एक से अधिक नालियों को प्रदर्शित करने के लिए ड्रेनेज-सिस्टम शब्द का उपयोग किया जाता है। इस लेख  में  ड्रेनेज (अपवाह)  शब्द  का  उपयोग  नदी  तथा ड्रेनेज-सिस्टम (अपवाह प्रणाली) शब्द का उपयोग नदी-सिस्टम या नदी परिवार को दर्शाने के लिए किया गया है। इस आलेख में ड्रेनेज-बेसिन  शब्द  का  उपयोग  हाइड्रोलॉजिकल  इकाई,  जिसके  अतिरिक्त  बरसाती जल  (रन-आफ)  की निकासी उभयनिष्ठ बिन्दु (common point) से होती है, के लिए किया गया है। इस लेख में हाइड्रोलॉजिकल इकाई शब्द  का अर्थ नदी कछार या वाटरशेड  है। ड्रेनेज-बेसिन या वाटरशेड  या नदी घाटी की विशेषता  यह है कि उनके क्षेत्रफल की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती। वह कुछ सेंटीमीटर  से  लेकर  कुछ  लाख  वर्ग  किलोमीटर  तक हो  सकती  है।  इसी  प्रकार, अंग्रेजी भाषा में नदियों के लिए विभिन्न नामों यथा ट्रिब्यूटरी, क्रीक, स्ट्रीम, हेड स्ट्रीम, रिव्हर, वाटरकोर्स इत्यादि का उपयोग किया जाता है।

सभी जानते हैं कि बरसाती पानी किसी न किसी नदी के माध्यम से  अन्ततः  समुद्र  में  पहुँचता  है।  ऐसी नदी सामान्यतः बड़ी  नदी है और वह सम्पूर्ण  नदी  घाटी  के  पानी  का  नियमन  करती  है। वैज्ञानिकों ने जब पानी के नियमन के नजरिए से भारत की नदियों का अध्ययन किया है तो पता चला है कि उन्हें मात्र छः नदी परिवारों में बाँटा जा सकता हैं। इसके उलट, जब इन छः नदी परिवारों की सूखती नदियों का अवलोकन किया तो पता चला कि नदियों के सूखने की कहानी परिवार की सबसे छोटी नदी से प्रारंभ होती है और धीरे-धीरे परिवार की क्रमशः  बड़ी होती नदियों की ओर अग्रसर होती है।भारतीय  नदियों  की एक और खासियत है। उनके द्वारा  90  प्रतिशत  से  अधिक  पानी  बंगाल  की  खाड़ी  में पहुँचाया जाता है। बाकी बचे पानी का कुछ हिस्सा अरब सागर में तो कुछ हिस्सा देश  की सीमाओं के अन्दर ही झीलों तथा मरुस्थल में जज्ब होकर रह जाता है।

 

ये भी पढ़े :- बाढ़ आपदा क्या है, बाढ़ आने के कारण और उपाय ( What is a flood disaster, causes of floods and measures to prevent floods)

 

इस  लेख में  भारत  की  नदी  घाटियों  /  ड्रेनेज  बेसिनों  के  बारे  में संक्षिप्त एवं सांकेतिक जानकारी दी गई है। यह जानकारी आदर्श  नदी घाटी चुनने, प्रवाह  बहाली  या सही -सही प्लानिंग के  लिए  उपयुक्त  रणनीति  तय  करने  में  सहायक  होगी।  विदित  हो  कि  जो हाइड्रोलॉजिकल इकाई नदियों के लिए प्रवाह जुटाती है वही इकाई प्रवाह बहाली का उद्देश्य  भी पूरा करती है। अतः हमें, सबसे पहले हाइड्रोलॉजिकल इकाइयों को समझने का प्रयास करना चाहिए।

भारत की प्रमुख नदी  तंत्र/ड्रेनेज  बेसिन्स   - 

भारत  के  प्रमुख  ड्रेनेज  सिस्टमों  या नदी तंत्रों को  उनके  उदगम  के  इलाकों  की भौगोलिक स्थिति के आधार पर निम्न दो प्रमुख वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं -

अ. हिमालयी ड्रेनेज सिस्टम/हिमालयीन नदी तंत्र 

हिमालयी ड्रेनेज सिस्टम में सिंधु नदी का ड्रेनेज सिस्टम, ब्रह्मपुत्र नदी का ड्रेनेज सिस्टम और गंगा नदी का ड्रेनेज सिस्टम आते हैं। इन ड्रेनेज सिस्टमों को दक्षिण-पष्चिम और उत्तर-पूर्व मानसून से पानी की पूर्ति होती है। गंगा ड्रेनेज सिस्टम की भारतीय प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियों को छोड़कर हिमालयी नदियाँ मुख्यतः बारहमासी हैं। हिमालयी ड्रेनेज सिस्टम के पूर्वी भाग को यदाकदा चक्रवातों से भी पानी मिलता है। बर्फ पिघलने व वर्षण के कारण बारहमासी।गहरे महाखड्डों से गुजरने के साथ-साथ यह पर्वतीय मार्ग में V-आकार की घाटियाँ,क्षप्रिकाएँ व जलप्रपात तथा मैदानों में क्षेपणात्मक (depositional) स्थलाकृतियाँ जैसे-समतल घाटियां,गोखुर झील,बाढकृत मैदान,गुंफित वाहिकाएँ और नदी के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं। हिमालय क्षेत्र में इन नदियों का रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा है,परंतु मैदानी क्षेत्र में रास्ता बदलते हुए सर्पाकार मार्ग में बहने की प्रवृत्ति पाई जाती है। 

 

ये भी पढ़े :- पानी भर कर लाने में महिलाओं के बर्बाद हो रहे हैं 20 करोड़ घंटे 

 

ब. प्रायद्वीपीय ड्रेनेज सिस्टम/प्रायद्वीपीय नदी तंत्र

प्रायद्वीपीय ड्रेनेज सिस्टम में पूर्व दिशा  में प्रवाहित गोदावरी नदी का ड्रेनेज सिस्टम,  कृष्णा  नदी का  ड्रेनेज  सिस्टम, कावेरी नदी का  ड्रेनेज  सिस्टम  और  महानदी का ड्रेनेज सिस्टम  आते  हैं।  प्रायद्वीपीय  ड्रेनेज  सिस्टमों  में  पश्चिम  की  ओर  प्रवाहित  नर्मदा  नदी  का  ड्रेनेज सिस्टम और ताप्ती नदी का ड्रेनेज सिस्टम भी सम्मिलित है। एक सुनिश्चित मार्ग पर चलनेवाली ये नदियाँ न तो विसर्पो का निर्माण करती हैं और न ही बारहमासी हैं, यद्यपि भ्रंश घाटियों में बहने वाली नर्मदा और ताप्ती इसके अपवाद हैं। प्रायद्वीप की सभी नदियों को पानी की पूर्ति मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी  मानसून से होती है। उसका अवदान अपेक्षाकृत कम है। भारतीय प्रायद्वीप की नदियाँ बरसात पर आश्रित हैं। बड़ी नदियों को छोडकर अधिकांश  नदियाँ मौसमी हैं। नीचे दी तालिका में दोनों ड्रेनेज सिस्टमों/नदी तंत्रों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।

 

ये भी पढ़े:- अमेरिका ने एक हजार बांध तोड़कर नदियों को किया स्वतंत्र

 

तालिका एक - हिमालयीन और प्रायद्वीपीय नदी तंत्र
 

क्रमांक

चरित्र

हिमालयी नदी तंत्र

प्रायद्वीपीय नदी तंत्र

01

उद्गम

हिमालय की बर्फ से ढ़ंकी चोटियों तथा ग्लेसियरों से, गंगा की कुछ सहायक नदियों का उदगम मध्यप्रदेश,  ओडीसा, झारखंड़, राजस्थान इत्यादि से।

प्रायद्वीपीय पठार तथा सेन्ट्रल उच्च भूमि

02

प्रवाह का प्रकार

मुख्यतः बारहमासी। पानी का स्रोत वर्षा तथा बर्फ के पिघलने से। मात्रा अपेक्षाकृत बहुत अधिक।

मुख्यतः मौसमी। प्रवाह मानसून पर निर्भर। पानी की मात्रा अपेक्षाकृत कम

03

नदी का चरित्र

नदी मार्ग की लम्बाई अधिक, पहाड़ी इलाकों में तेज बहाव, शीर्ष  की दिशा  में कटाव। मैदानी इलाकों में घुमावदार मार्ग तथा मार्ग में यदाकदा परिवर्तन

नदी मार्ग की लम्बाई कम। नदी मार्ग निश्चित। उनका घाटी से सम्बन्ध निश्चित।

04

कैचमेंट रकबा

रकबा विशाल से अति विशाल

रकबा अपेक्षाकृत छोटा

05

नदियों की आयु और भूमि कटाव

युवावस्था - आयु कम। नदी घाटी विकास तेज। भूमि कटाव की गति तेज। गाद की मात्रा अधिक

आयु अधिक। घाटी का विकास लगभग  पूरा।  कटाव  का  आधार तल  लगभग हासिल। कटाव गति कम। गाद की मात्रा अपेक्षाकृत कम

उपरोक्त विवरण से जाहिर है कि दोनों वर्गों के नदी तंत्रों में कुछ बुनियादी अन्तर है पर जहाँ तक उनकी जिम्मेदारियों का सवाल है, वह एक ही है लेकिन भारत की सारी नदियों का जितना सटीक वर्गीकरण नेशनल वाटरशेड एटलस में मिलता है उतना सटीक किसी अन्य वर्गीकरण में नहीं मिलता। 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading