भुगतान का निर्धारण

यह बात तो तय ही थी सरकार कभी भी जमीन के बदले जमीन नहीं दे पायेगी क्योंकि घनी आबादी वाले गांगेय क्षेत्र में 304 गाँव बसाने के लिए जमीन खोजना एक टेढ़ी खीर थी। देबेश मुखर्जी, चीफ इंजीनियर-कोसी प्रोजेक्ट (1963), ने लिखा कि स्थायी पुनर्वास में निम्न बातें शामिल होंगी। “...नदी और तटबन्ध के बीच में बने घरों की कीमत के बराबर घर बनाने के लिए अनुदान दिया जायेगा और पुनर्वासित होने वाले लोगों से उनके पुराने घरों के नाम पर कोई कटौती नहीं की जायेगी। यह भी तय किया गया है कि घर बनाने के लिए अनुदान किस्तों में दिया जायेगा।

(i) उन मकानों के लिए अनुदान जिनकी कीमत 200 रुपये या इससे कम है, दो किस्तों में दिया जायेगा।
(ii) दो सौ रुपयों से 5,000 रुपयों की मालियत के मकानों का भुगतान तीन किस्तों में होगा
(iii) पाँच हजार से अधिक मूल्य वाले घरों का भुगतान चार किस्तों में होगा।

पहली किस्त का भुगतान उसी समय कर दिया जायेगा जब सरकार अधिगृहीत जमीन के प्लॉट का आवंटन कर देती है। मौजूदा घरों की मालियत के एवज में मिली रकम में घर बनाने पर होने वाले खर्च की भी सीमा निर्धारित कर दी गई है। जिसके अनुसार,

(i) 1,000 रुपये मालियत वाले घरों में से 75 प्रतिशत करना होगा।
(ii) 1,000 से 5,000 रुपयों तक की मालियत पर 60 प्रतिशत।
(iii) 5,000 से 10,000 रुपयों तक की मालियत पर 50 प्रतिशत।
(iv) 10,000 से 15,000 रुपयों तक की मालियत पर 33 प्रतिशत
(v) 15,000 रुपयों से ज्यादा की मालियत पर 25 प्रतिशत।

मुखर्जी आगे कहते हैं कि, “...राज्य सरकार ने विस्थापितों की जीविका उपार्जन के उपाय तथा लघु और कुटीर उघोगों के आंकड़ों का भी संकलन किया है जिससे पुनर्वासित लोगों के आर्थिक उत्थान के लिए उचित योजनायें बनाई जा सकें।”

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