भूजल भण्डार

2 Apr 2018
0 mins read
Groundwater level
Groundwater level

जब कई महीनों वर्षा नहीं होती, तालाब और छोटी नदियाँ सूख जाती हैं तब भी हमें कुओं से पानी मिलता रहता है। पर तुमने यह भी देखा होगा कि किसी साल बरसात कम हो तो बहुत से कुएँ भी सूख जाते हैं। जब वर्षा होती है, तब कुएँ में फिर से पानी आ जाता है। यही नहीं, कुओं को लेकर अलग-अलग जगहों के हालात भी अलग-अलग हैं।

उदाहरण के लिये मालवा के पठार में एक गाँव है, अरलावदा। पिछले कुछ सालों में यहाँ पानी की कमी बहुत गंभीर हो गई है। गाँव का मुख्य कुआँ गंगाजलिया भी 1993 की गर्मियों में सूख गया था। बाहर से टैंकर बुलवाकर गंगाजलिया में पानी डालना पड़ा था।

इस वर्ष से पहले जब गर्मियों में अरलावदा के बहुत सारे कुएँ सूख जाते थे तब भी गंगाजलिया में पानी रहता था। इसलिये लोग इस पर बहुत भरोसा करते थे। कुछ साल पहले गंगाजलिया से पास के एक शहर को भी पानी सप्लाई किया गया था। पर आज दूर खेतों के कुओं से अरलावदा के लोग पानी लेकर आते हैं। इस प्रकार का अनुभव यहाँ के कई गाँवों के लिये आम बात बन चुकी है।

नर्मदा के मैदान में एक गाँव है, कोटगाँव। यहाँ पानी की कमी बिलकुल नहीं दिखाई देती। आमतौर पर 12-14 फुट की गहराई पर कुएँ में पानी मिलता है। अरलावदा और कोटगाँव के बीच इतना अंतर क्यों है? जब कुछ जगहों के कुओं में पानी की बहुतायत है तो दूसरी जगहों पर कुओं में पीने के लिये भी पानी क्यों नहीं मिल पाता?

कुओं में पानी कहाँ से आता है? धरती के अंदर पानी कैसे पहुँचता है? हमें पानी बरसात से मिलता है पर यह बरसात का पानी कहाँ जाता है? तुमने बरसात में ज़मीन पर से पानी को बहते हुए देखा होगा। यह बहता हुआ पानी नालों में जाता है और फिर ये नाले नदी में मिलते हैं। बरसात के पानी से तालाब और पोखर भी भर जाते हैं। पर यही नहीं, बरसात का पानी ज़मीन के अंदर भी रिस जाता है। मिट्टी के नीचे जो पत्थर, रेत, कंकड़ आदि हैं उनके बीच की जगह में, छेदों व दरारों में से रिसकर पानी नीचे जाता रहता है। रिस कर नीचे आया हुआ पानी ही भूजल है, यही पानी हमें कुओं में मिलता है।

धरती की सतह के नीचे की बनावट सब जगह एक समान नहीं है। इसका भूजल पर क्या प्रभाव पड़ता है, हम आगे पढ़ेंगे।

नर्मदा के मैदान में अधिक भूजल


पिछले साल तुमने पहाड़ (पाहवाड़ी), पठार (बालमपुर) और मैदान (कोटगाँव) के गाँवों के बारे में पढ़ा था। इन गाँवों में कुएँ खोदने के बारे में भी तुमने पढ़ा था। तुम्हें याद होगा पाहवाड़ी में ऊपरी मिट्टी बहुत हल्की है। उसके नीचे पत्थर हैं। पत्थर को अगर हम तोड़ते हैं फिर भी पानी मिलना तय नहीं है। इसलिये पाहवाड़ी में कुआँ खोदना आसान काम नहीं है।

बालमपुर गाँव (पठार) में भी कुआँ खोदने में कठिनाइयाँ हैं। मिट्टी के नीचे पत्थर हैं, जिनको बारुद से तोड़ना पड़ता है। फिर भी पानी मिल जाएगा इसका भरोसा नहीं है। यहाँ की चट्टानों में दरारें हैं, जिसमें पानी इकट्टा होता है। सिर्फ दरारों में से कुएँ में पानी मिल सकता है।

पाहवाड़ी और बालमपुर से बहुत अलग स्थिति है कोटगाँव में। कोटगाँव नर्मदा के मैदान में है और वहाँ आसानी से कुआँ खुद जाता है। ऊपरी मिट्टी के नीचे बालू और कंकड़ मिलते हैं। कठोर चट्टान नहीं मिलती। बालू कंकड़ के बीच बहुत सारा पानी इकट्ठा रहता है।

कोटगाँव में भूजल इतना अधिक कैसे मिलता है? ऊपर दिए चित्र में हम देखते हैं कि पहाड़ और पठार से बहुत सारे नदी-नाले बहकर नीचे मैदान में पहुँचते हैं। ये सब नर्मदा नदी में मिलते हैं। बरसात के समय जब बहुत सारा पानी इकट्ठा होता है तब नर्मदा नदी में पानी बढ़ जाता है और नदी फैलकर खूब चौड़ी भी हो जाती है। नदी का यह पानी पश्चिम की ओर बहता हुआ आखिर में खंभात की खाड़ी में मिल जाता है। इस प्रकार बहुत पानी मैदानी इलाके में पहुँचता है। कुछ पानी नर्मदा में बहकर पश्चिम की ओर निकल जाता है, परन्तु इन नदी-नालों का कुछ पानी ज़मीन में रिसकर भी जाता है।

प्राकृतिक जल विज्ञानकुछ चट्टानें ऐसी होती हैं जिनमें छेद व दरारें लगभग नहीं होतीं। इनमें पानी घुस नहीं पाता। कई चट्टानें ऐसी हैं जिनमें छेद हैं, इनमें से पानी रिस सकता है। लेकिन जो भी हो, जितनी आसानी से बालू व कंकड़ में से पानी रिसता है उतनी आसानी से तो पत्थरों से नहीं रिस पाता।

पहाड़ और पठार की तुलना में मैदानों में ज्यादा भूजल क्यों मिलता है?


भूजल स्तर


अगर नर्मदा के मैदान के किसी स्थान पर कुआँ खोदा जाए तो पहले मिट्टी और सूखी बालू ही मिलेगी। और खोदने पर कंकड़ व बालू गीली मिलने लगेगी। फिर और खोदें तो थोड़ा-थोड़ा पानी रिस कर कुएँ में आने लगता है। अभी भी कुछ ज़्यादा पानी नहीं मिला। थोड़ा और खोदने पर पानी तेजी से कुएँ में भरने लगता है।

इसके आस-पास के कई और कुएँ भी देखे जा सकते हैं। सभी कुओं में पानी जहाँ तक है वह दिखाया गया है। यह बारिश के बाद की स्थिति है। सभी कुओं में पानी लगभग 15 फीट की गहराई पर मिल जाता है। यानी इस इलाके में जहाँ भी कुआँ खोदा जाये वहाँ लगभग 15 फीट की गहराई पर पानी मिलना चाहिए। यही पानी का स्तर या जलस्तर कहलाता है- जमीन की सतह से 15 फीट नीचे।

भूजल स्तरनदी और कुएँतुम जानते हो कि गर्मियों के महीनों के आते-आते कुओं में पानी का स्तर नीचे पहुँच जाता है। जैसे कि तुम चित्र में देख सकते हो, र्गिमयों में पानी का स्तर- रेखा से बताया गया है।

तुमने एक इलाके के आस-पास के कुओं के बारे में पढ़ा। ये सभी कुएँ एक जैसी समतल जगह पर थे। अब हम एक दूसरी स्थिति के बारे में पढ़ेंगे।

लक्ष्मी नर्मदा के पास रहती है। उसने अपने घर के पास एक कुआँ बनाया है। उसे मिट्टी के नीचे बहुत गहराई तक खोदने की ज़रूरत नहीं थी। इसी नदी के पास श्यामू का घर भी है। वहाँ भी एक कुआँ है। पर लक्ष्मी की तुलना में श्यामू को पानी तक पहुँचने के लिये कुआँ और ज़्यादा गहरा खुदवाने की ज़रूरत पड़ी थी।

नदी जलस्तर एवं कुओं के जलस्तर में सम्बन्धपहले के उदाहरण में जलस्तर दिखाने के लिये हमने एक रेखा खींची थी। उसी प्रकार इस चित्र में भी जलस्तर दिखाया गया है। श्यामू के घर के आस-पास ज़मीन की ऊपरी सतह भूजल स्तर से बहुत ऊपर है। पर लक्ष्मी के घर के पास ज़मीन की सतह भूजलस्तर के करीब है। यदि श्यामू और लक्ष्मी के घर एक ही समतल जगह पर होते तो उन्हें बराबर गहराई तक खोदना पड़ता।

अब तक हमने मैदानी इलाके के भूजल के बारे में पढ़ा। पर पठारी इलाकों की स्थिति इनसे बहुत अलग है। अब हम ऐसे एक पठारी इलाके की स्थिति देखेंगे।

बालमपुर का भूजल


बालमपुर जैसी पठारी जगहों में आमतौर पर पानी ढाल की तरफ नीचे मैदान की ओर बहता है। तुम्हें याद होगा, पिछली कक्षा में हमने पढ़ा था कि बालमपुर के लोग बरसात का पानी इकट्ठा करने के लिये बंधान खड़े कर के तालाब बनाते हैं।

ऊपरी मिट्टी खोदने से यहाँ पत्थर मिलता है। यह बालू पत्थर है जो गुलाबी रंग का है। इसमें पानी की रिसन आसान नहीं है। पर बालू पत्थर में दरारें होती हैं और ऊपरी मिट्टी से रिसकर पानी इन दरारों में भरता जाता है। जब कुआँ खोदते हैं तो दरार तक पहुँचना ज़रूरी है। किसी दरार तक जब कुआँ पहुँच जाता है तब उसमें पानी फूट पड़ता है। बालमपुर का एक कुआँ-2 दिखाया है, जिसमें पानी है। इससे पहले वहाँ कुआँ-1 खुदवाया था। बहुत गहराई तक खोदने से भी उसमें पानी नहीं मिला।

कुआँ -II में पानी है पर कुआँ-1 सूखा है। ऐसा क्यों-अपने गुरू जी के साथ चर्चा करो।


कुएँ का जलस्तरक्या सभी पठारों में भूजल की स्थिति ऐसी ही होती है, जैसी बालमपुर में देखी है? क्या पठारों में हमेशा ऊपरी मिट्टी के नीचे बालू पत्थर मिलता है? चलो एक दूसरे पठार के इलाके, मालवा को देखें।

मालवा में कुएँ


मालवा के किसी गाँव में कुआँ खोदने से आमतौर पर ऊपरी मिट्टी के नीचे मुरम मिलती है। मुरम कहीं तो बहुत गहरी होती है और कहीं इसकी परत पतली होती है। मुरम के अंदर बहुत-सा पानी सोखा जा सकता है। इससे रिसकर पानी नीचे जाता है। मुरम की सतह से नीचे जाने पर हरे-से रंग के पत्थर की चट्टान मिलती है।

यह चट्टान अलग-अलग नाम से जानी जाती है। कहीं उसको लोग मुलायम चट्टान कहते हैं और कहीं कड़क मुरम या कच्चा पत्थर। यह भी एक छेददार चट्टान है। इसके अंदर भी पानी सोखा जाता है। कहीं-कहीं इसमें बहुत सारे गोल गोल निशान दिखायी देते हैं। ये छेद हैं और ऊपर से रिसन का पानी इन्ही में से होकर पत्थर के अन्दर आ जाता है। इस प्रकार मुलायम चट्टान के अंदर पानी इकट्ठा होता है।

कुआँमुलायम चट्टान के नीचे आमतौर पर कठोर काली चट्टान दिखती है। इसके ऊपरी भाग में कभी-कभी दरारें होती हैं, पर नीचे बिल्कुल छेद नहीं होते हैं। इस चट्टान के अंदर पानी के घुसने की संभावना नहीं है। इसलिये इसके ऊपर पानी इकट्ठा होता रहता है। इस काली चट्टान तक कुआँ खोदने की कोशिश होती है, ताकि कुएँ में ज़्यादा से ज़्यादा पानी आ सके।

मालवा में अलग-अलग जगहों पर ज़मीन की भीतरी बनावट में अंतर पाया जाता है। कहीं मुलायम चट्टान की परत मोटी होगी तो कहीं पतली। जैसी बनावट तुमने इस ऊपरी मिट्टी चित्र-7 में देखी, वैसी सभी जगहों पर मिले, यह जरूरी नहीं है। मुरम और चट्टान की परतें सभी जगह इतनी ही गहराई पर मिलें यह भी ज़रूरी नहीं।

काली चट्टान के नीचे भी पानी


तुमने नलकूप देखे होंगे। नलकूप मिट्टी के नीचे बहुत गहराई तक छेद करके बनाए जाता है। ड्रिल मशीन से यह काम किया जाता है। कुएँ की तुलना में नलकूप बनाना बहुत महँगा होता है।

हमने अभी तक साधारण कुएँ खोदने की बात की थी। पर मालवा क्षेत्र में काली चट्टान के नीचे झांक कर नहीं देखा था। काली चट्टान बिना छेद वाले पत्थर से बनी है। काली चट्टान में पानी नहीं घुसता और रिसन भी नहीं होती।

नलकूप काली चट्टान के नीचे तक पहुँचता है। सोचो वहाँ पानी कैसे मिलता होगा?


मिट्टी के नीचे अलग-अलग तरह के पत्थरों की तहे हैं। चित्र 8 को देखो क्या सभी तहें एक सी चौड़ाई की है?


नलकूप जलस्तर‘क’ नलकूप मिट्टी व पत्थर की कई तहों को भेदता हुआ नीचे जाता है। ये तहें एक के ऊपर एक बिल्कुल सीधे-सीधे नहीं फैली हैं। यह नलकूप काली चट्टान को भी छेद कर उसके नीचे की तह तक पहुँचा है। सबसे नीचे की इस तह पर उंगली फेरो और ‘ख’ स्थान तक पहुँचो। देखो कैसे पत्थर की यह तह ‘ख’ स्थान पर ऊपरी मिट्टी के पास मिलती है। यह तह छेदवाले पत्थरों की तह है।

‘ख’ स्थान पर जब बारिश का पानी गिरता है तो इस तह में घुसकर नीचे बहता है और इस तरह ‘क’ स्थान पर काली चट्टान के नीचे पहुँचता है। धरती की ऊपरी सतह से इतने नीचे पहुँचने में पानी को बहुत लम्बा समय लगता है और यह काम बहुत धीरे-धीरे होता है। पर अलग-अलग पत्थरों-चट्टानों की ऊबड़-खाबड़ तहों के बहुत नीचे पहुँचे हुए पानी को भी गहरे नलकूप बाहर खींच निकालते हैं।

भूजल की मात्रा


साल में बारिश सिर्फ तीन या चार महीनों के लिये मिलती है। पर साल भर हम इसी पानी पर निर्भर हैं। चाहे वह पानी हम नदी से लें, तालाब से या कुएँ से। धरती में बारिश के समय ज़्यादा पानी के रिसन के लिये हम क्या कर सकते हैं? क्या हम कोई ऐसी कोशिश कर सकते हैं कि एक बारिश से इकट्ठा हुआ पानी अगली बारिश तक हमारा साथ दे?

तुमने देखा होगा कि नंगी धरती पर से, बिना पेड़-पौधों या घास वाली जगहों से, बारिश का पानी तेज़ बहता है, क्योंकि उसको थामने के लिये कुछ है ही नहीं। पर जब पानी थम कर एक जगह कुछ समय तक रुका रहता है या धीरे बहता है, तब ऊपरी मिट्टी से उसके रिसने की संभावना बढ़ती है। अतः जहाँ पेड़-पौधे तालाब या बांध होते हैं वहाँ भूजल बढ़ने की संभावना होती है।

एक जगह का भूजल धरती के अंदर बहता-बहता दूसरी जगहों तक जाता है। अगर एक जगह पर बहुत ज्यादा मात्रा में पानी निकाला जाता है तो दूसरी जगहों के कुओं में पानी कम पहुँचेगा और वे सूखने लगेंगे। ऐसे अनुभवों के बारे में तुमने सुना होगा।

यानी तुम्हारी ज़मीन के नीचे जो भूजल है, जिससे तुम्हारे कुएँ में पानी मिलता है, वह स्थिर नहीं है। ज़मीन के नीचे सैकड़ों मीलों दूर तक फैली हुई चट्टानों और पत्थरों की तहों मे पानी रिसता है और बहता है।

बहुत ज़्यादा मात्रा में भूजल के निकाले जाने के नतीजे अच्छे नहीं होते। उदाहरण के लिये देवास शहर का अनुभव देखें। देवास की घरेलू ज़रूरतों के अलावा वहाँ के उद्योगों के लिये पानी की मांग बहुत होती है। देवास में भूजल के भारी मात्रा में निकाले जाने के कारण कुएँ एवं नलकूप सूखने लगे हैं। पानी की बहुत कमी हो गयी है। देवास शहर में ही पीने के पानी की दिक्कत बहुत आम बात बन चुकी है।

अरलावदा में पानी की जो स्थिति है उसके बारे में हमने पाठ में देखा था। अरलावदा जैसे गाँव की यह स्थिति एक अकेली बात नहीं है। हमारे देश में कई जगह ऐसी स्थिति देखने को मिलती है।

फिर से हम उसी सवाल पर आ रहे हैं जो पहले भी एक बार किया था-कि बारिश के पानी को ज़्यादा इकट्ठा करने के लिये हम क्या कर सकते हैं? पानी का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं, जिससे ऐसी स्थिति न बने जहाँ लोगों एवं मवेशियों को पीने का पानी भी नहीं मिलता है।

भूजल स्तर की अति


अभी तक हम पानी की कमी के बारे में पढ़ रहे थे। कुछ इलाकों में भूजल की मात्रा अधिक होने से भी समस्याएँ पैदा हो जाती है।

कुओं का पानी साफ क्यों?


नदी या तालाब होने पर भी लोग कुओं से पीने का पानी लेते हैं। यह साफ क्यों होता है? नदी-तालाब में तो ऊपर से गन्दगी मिलती रहती है। पर जब बारिश का पानी मिट्टी, बालू, कंकड़, पत्थरों से रिसकर कुओं में पहुँचता है तो वह साफ होता हुआ नीचे जाता है।

होशंगाबाद में जहाँ तवा नदी की बाईं मुख्य नहर निकाली गई है, चारों ओर के खेतों में नहर का पानी रिसकर पहुँचता रहता है और इससे जलस्तर ऊपर उठ आता है। इससे मिट्टी में दलदल जैसा बन गया है और वहाँ खेती कठिन हो गई है।

इस क्षेत्र में निमसाडिया, रोहना, निटाया, ब्यावरा, आदि गाँवों के किसान बताते हैं कि नहर की रिसन के कारण भूजल स्तर ऊपर उठ आया है। इसलिये कुओं में पानी का स्तर भी ऊपर उठ आया है।

क्या तुम सोच सकते हो कि कुओं में जलस्तर बहुत बढ़ जाने का क्या असर पड़ा होगा?


ऐसे कुओं में रिसन से पानी के साफ होने की भी प्रक्रिया नहीं हो पाती और पानी गंदा रहता है। इस तरह मिट्टी और कुएँ में आवश्यकता से अधिक जल से लाभ नहीं होता, उससे तरह-तरह की समस्यायें खड़ी हो जाती हैं।

अभ्यास के प्रश्न


1. केवल गलत वाक्यों को सुधार कर लिखो

क) मैदान से बहता हुआ पानी पठार तक पहुँचता है।
ख) मैदानी इलाकों में बालू कंकड़ की गहरी परत चट्टान के नीचे पाई जाती है।
ग) चित्र 3 के अनुसार गर्मियों का भूजल स्तर 15 फीट से नीचे है।
घ) बालमपुर में कुआँ खोदना आसान है।

2. नर्मदा के मैदान में पास-पास के तीन कुएँ इस चित्र में दिखाए गए हैं। इस चित्र को सुधार कर बताओ

कुएँ का चित्र3. चित्र-1 को देखकर तुम नर्मदा के मैदान के बारे में क्या-क्या कह सकते हो 8 वाक्य लिखो ।

4. नर्मदा के मैदान में कुआँ खोदने में और मालवा के पठार पर कुआँ खोदने में क्या-क्या अंतर है ?

5. मालवा क्षेत्र में काली चट्टान तो पानी रिसने नहीं देती, फिर भी काली चट्टान के नीचे पानी प्राप्त होता है। ऐसा क्यों? अपने शब्दों में समझाओ।

6. इन चित्रों में सबसे अधिक और सबसे कम पानी की रिसन कहाँ होगी ? कारण सहित समझाओ।

चित्र7. पीपलखेड़ी गाँव में जब कई लोगों ने अपने कुएँ में मोटर लगाए तब दूसरे बिना मोटर वाले कुएँ सूखने लगे। जिनके पास मोटर नहीं थी उन्हें अपने खेतों के लिये पर्याप्त पानी नहीं मिलता। इस समस्या का हल क्या हो सकता है- अपने विचार लिखो।

8. जहाँ पानी की कमी है, क्या वहाँ नलकूप लगाने पर रोक होनी चाहिए? अपने विचार लिखो।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading