भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण


विगत कुछ वर्षों में विश्व के कई भागों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा अन्तरराष्ट्रीय मानकों से अधिक पाई गई है। भारत के अलावा 20 से अधिक राष्ट्र आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित हैं। इनमें चीन, बांग्लादेश, ताईवान, चिली, अर्जेन्टिना, अमेरिका, वियतनाम, मेक्सिको, थाईलैंड आदि राष्ट्र शामिल हैं।

आर्सेनिक एक अत्यधिक विषैला तत्व है और इसकी बहुत कम मात्रा भी मानव शरीर को प्रभावित करने लगती है। आर्सेनिक की उपयोगिता विज्ञान, औषधि एवं तकनीकी कार्य में सर्वविदित है परन्तु भूजल में आर्सेनिक की सांद्रता 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक होने पर इसका स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव दिखाई पड़ने लगता है। आर्सेनिक का प्रयोग कीटनाशक, सेमीकन्डक्टर तथा कॉपर और लैड के अयस्क को मजबूती देने के लिये किया जाता है।

Fig-1भारत में गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदी के कछारीय क्षेत्रों के भूजल में आर्सेनिक की सांद्रता 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक पाई गई है। भारत के सात राज्य भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण की समस्या से प्रभावित है। यह राज्य हैं पूर्वोत्तर में असम एवं मणिपुर, गंगा के कछारी क्षेत्र में पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार एवं उत्तर प्रदेश तथा मध्य भारत के छत्तीसगढ़। इन राज्यों के केवल कुछ प्रखंड ही आर्सेनिक से प्रभावित हैं परन्तु हर नये सर्वे के बाद आर्सेनिक प्रभावित गाँव तथा आर्सेनिक प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ जाती है जो अति चिन्तनीय विषय है।

भूजल में आर्सेनिक आने की क्रिया प्राकृतिक एवं मानव जनित दोनों ही होती है। आर्सेनिक एक प्राकृतिक तत्व है जिसकी परमाणु संख्या 33 है और परमाणु भार 74.92 है। यह एक ऐसा उपधातु है जिसमें धातु एवं अधातु दोनों के गुण होते हैं तथा साधारणतः तीन अपरूप में पाये जाते हैं-धातुई भूरा, पीला और काला। यह प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले तत्वों में 20वें स्थान पर आता है और 200 से अधिक तत्वों में तात्विक आर्सेनिक, आर्सेनाइड, सल्फाइड, ऑक्साइड, आर्सनेट तथा आर्सेनाइट के रूप में उपस्थित रहता है। आर्सेनिक युक्त खनिज (धातुओं के आर्सेनाइड, सल्फाआर्सेनाइड/आर्सेनोपायराइट आदि) प्रायः अघुलनशील होते हैं तथा ये सामान्यतः विषैले नहीं होते हैं परन्तु भूजल में आर्सेनिक घुलित रूप में रहता है। रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान पृथ्वी की ऊपरी पर्त के निक्षेपों में उपस्थित आर्सेनिक युक्त खनिजों से निकल कर आर्सेनिक भूजल में घुल जाता है और जल को विषैला बना देता है।

विभिन्न शोधों के अनुसार भूजल में आर्सेनिक की उपस्थिति का कारण आक्सीकरण एवं अवकरण दोनों को माना गया है लेकिन अवकरण के सिद्धान्त को अधिक मान्यता दी जाती है, जिसके अनुसार धरती के निक्षेपों में उपस्थित आर्सेनोपायराइट से आर्सेनिक भूजल में आता है और भूजल के सामान्य pH (6.5 – 8.5) में घुलित अवस्था में रहता है। यह प्रायः अकार्बनिक आर्सेनाइट (+3) एवं आर्सेनाइट (+5) रूप में रहता है। खनन कार्यों, कीटनाशक दवाओं, उर्वरकों, पेट्रोल एवं कोयले इत्यादि के जलने के कारण अप्राकृतिक रूप से आर्सेनिक की उत्पत्ति होती है।

आर्सेनिक का प्रभाव आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के पारिवारिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर दिखाई पड़ता है। आर्सेनिक प्रदूषित जल के ग्रहण करने से सामान्यतः त्वचा संबंधी रोग अधिक पाये जाते हैं, जिसमें इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के शरीर पर काले-काले धब्बे दिखाई पड़ते हैं। आर्सेनिक प्रभावित भूजल के उपयोग करने से होने वाली अन्य बीमारियाँ हैं पेट, रूधिर संबंधी रोग, हाइपर केरोटोसिस, काला पाँव, मायोकॉर्डियल, इसेचेमिया आदि। लम्बे समय तक आर्सेनिक प्रभावित जल के ग्रहण करने पर यकृत, फेफड़ा, गुर्दे एवं चर्म कैंसर होने का खतरा रहता है।

Fig-2चंग व उनके सहयोगियों ने अपने शोध में ताईवान में फेफड़े के कैंसर से मृत्यु एवं 0.35 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक आर्सेनिक सांद्रता के बीच सहसंबंध पाया है। आर्सेनिक युक्त जल से सिंचित अनाज में भी आर्सेनिक की मात्रा कुछ अधिक होती है जो मानव शरीर में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ाने का काम करती है। हालाँकि इस विषय पर विस्तार में शोध की आवश्यकता है।

आर्सेनिक के स्रोत


आर्सेनिक के भूजल में आने की वास्तविक स्रोत की पूरी जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है, विभिन्न क्षेत्रों के भूजल में आर्सेनिक पर हुये शोधों से कई परिकल्पनायें सामने आई हैं। बंगाल बेसिन में आर्सेनिक का स्रोत राजमहल के गोंड़वाना के कोयला खानों में उपस्थित आर्सेनिक को माना जाता था, परन्तु बिहार एवं उत्तर प्रदेश के गंगा नदी के कछारीय क्षेत्र में आर्सेनिक के पाये जाने से यह परिकल्पना सही नहीं साबित होती है। हिमालय में पाये जाने वाली आर्सेनिक युक्त खनिज भूजल में आर्सेनिक का स्रोत माने जाते हैं। मैकआर्थर व उनके सहयोगियों के अनुसार हिमालय से निकलने वाली नदियों के साथ आने वाले अवसाद को बंगाल बेसिन में भूजल का स्रोत बताया गया है। अब तक के शोधों से इन्हीं की परिकल्पना सही साबित होती है।

साहा व उनके सहयोगियों के शोध के अनुसार मध्य गंगा बेसिन में आर्सेनिक की सांद्रता गंगा के कछारीय क्षेत्रों में कम आयु वाले अवसाद में अधिक है। उन्होंने पाया कि 10,000 साल से कम आयु वाले अवसाद और पुराप्रणालों में उपस्थित जलोढ़ों में आर्सेनिक की सांद्रता अधिक है और 10,000 साल से अधिक आयु वाले प्लास्टोसीन अवसादों में उपस्थित जलोढ़ों में आर्सेनिक की सांद्रता कम है। वियतनाम में भी 5,000 साल से कम आयु वाले कछारी जलोढ़ों में आर्सेनिक की सांद्रता अधिक पाई गई है। पोस्टना व उनके सहयोगियों ने अपने शोध से यह निष्कर्ष निकाला है कि जलोढों की अवसाद की आयु भूजल में आर्सेनिक की मात्रा नियंत्रित करती है।

मध्य गंगा बेसिन में आर्सेनिक प्रदूषित भूजल की आयु 50 वर्ष से कम है और यह उथले जलोढ़ में (सतह से 50 मीटर नीचे तक) उपस्थित है तथा आर्सेनिक मुक्त भूजल की आयु 3,000 वर्ष से अधिक है और यह गहरे जलोढ़ में उपस्थित है। भूजल के स्टेबल आइसोटोपों के अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ है कि आर्सेनिक प्रदूषित भूजल कम वाष्पीकरण वाले सतही जल से रिचार्ज हुये हैं। कोसी क्षेत्र में किये शोधों से यह निष्कर्ष निकाला है कि नूतन अवसाद और पीडमोंट जोन में उपस्थित जलोढ़ के भूजल में आर्सेनिक सांद्रता होने की संभावना अधिक है और यह मेटल ऑक्साइड/हाइड्रोक्साइड रिडक्शन, आयोनिक काम्पटीशन एवं भूजल के पीएच से नियंत्रित होती है।

Fig-3नूतन अवसाद में उपस्थित जलोढ़ के निक्षेपों में मौजूद आर्सेनिक का भूजल में घुलने की एक बड़ी वजह इन अवसादों में उपस्थित नूतन कार्बन का अंतर्वाह है, जो भूजल के दोहन के दौरान सक्रिय हो जाता है और जैविक भूरासायनिक, प्रक्रियाओं द्वारा आर्सेनिक को भूजल में घुलने में मदद करता है। इसके अलावा नष्ट होने योग्य जैविक कार्बन और एनएरोबिक मेटल रिड्यूसिंग बैक्टीरिया भी भूजल में आर्सेनिक के घुलने में अहम भूमिका निभाते हैं।

आर्सेनिक प्रभावित इलाकों के भूजल में किये गये शोध कार्यों का सारांश इस प्रकार है :-

1. मध्य गंगा क्षेत्र में मुख्यत: उथले जलोढ़ (सतह से लगभग 50 मीटर नीचे तक) ही आर्सेनिक से प्रदूषित हैं।
2. प्लॉस्टोसीन आयु के जलोढ़ आर्सेनिक प्रदूषण से मुक्त हैं।
3. आर्सेनिक प्रदूषित इलाके के सभी नलकूप आर्सेनिक प्रदूषित नहीं है।
4. आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में आर्सेनिक की स्रांद्रता एक समान नहीं है।
5. एक ही इलाके के समान गहराई वाले विभिन्न नलकूपों में आर्सेनिक की सांद्रता अलग हो सकती है।
6. अधिकतर प्रभावित इलाकों में आर्सेनिक प्रदूषण का स्रोत प्राकृतिक है जो प्राय: नवीन अवसाद में उपस्थित जलोढ़ में केंद्रित है।
7. कूँओं के जल में उथले नलकूपों के मुकाबले आर्सेनिक सांद्रता की मात्रा कम होती है।
8. आर्सेनिक प्रभावित भूजल कम आयु के होते हैं और कम वाष्पीकरण वाले सतही जल से रिचार्ज हैं।
9. प्रभावित इलाकों में उपस्थित जलोढ़ों में आर्सेनिक की सांद्रता और नलकूपों की गहराई के बीच कोई सहसंबंध नहीं पाया गया है।
10. पुराप्रणाल, पीडमोंट जोन और युवा अलूवियम में उपस्थित जलोढ़ों में आर्सेनिक सांद्रता होने की संभावना अधिक है।
11. आर्सेनिक प्रदूषित भूजल का जलरसायनिक फेसीज साधारणत: Ca-HCO3 टाइप है और यह अधिक लौह, कैल्सियम, मैग्नीशियम, बाइकार्बोनेट और कम मात्रा में क्लोराइड, सल्फेट, फ्लोराइड एवं सोडियम से चित्रित होता है।

आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में इसके खतरे से बचने के लिये निम्न बातों का ध्यान रखने की जरूरत है।

1. आर्सेनिक प्रभावित जलोढ़ों को चिह्नित करना एवं इसके विस्तार को रेखांकित करना।
2. आर्सेनिक प्रदूषित जलोढ़ों में लगे नलकूपों की नियमित अंतराल पर जाँच करना।
3. आर्सेनिक प्रभावित नलकूपों के बारे में लोगों को जागरूक करना तथा इन नलकूपों के जल का प्रयोग पीने एवं खाना बनाने के लिये नहीं करने के लिये कहना।
4. प्रभावित लोगों को आर्सेनिक मुक्त पेयजल उपलब्ध करवाना।
5. प्रभावित लोगों को अनुपूरक आहार एवं ऐंटी ऑक्सीडेंट युक्त पौष्टिक खाद्य पदार्थों की जानकारी देना।
6. आर्सेनिक फिल्टर के उपयोग एवं इसके नियमित रख-रखाव की जानकारी देना।

हालाँकि बाजार में कई तरह के आर्सेनिक फिल्टर उपलब्ध हैं लेकिन इसके उपयोग एवं रख-रखाव में कई तरह की समस्याएं आती हैं इसलिये प्रभावित लोगों को गहरे नलकूपों या सतही जल को पाइप लाइन द्वारा उपलब्ध करवाना एक बेहतर विकल्प है।

आर्सेनिक प्रभावित भूजल को जलोढ़ में ही प्राकृतिक रूप से स्वच्छ करने तथा जलोढ़ों के निक्षेप में मौजूद आर्सेनिक युक्त खनिजों से आर्सेनिक का भूजल में रिसाव को रोकने के लिये शोध और अनुसंधान कार्य जारी है जो भविष्य में तेजी से कम होती भूजल समस्या के बीच आर्सेनिक प्रभावित इलाकों के लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने में कारगर सिद्ध होगा।

सम्पर्क


राज कुमार सिंह
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भुवनेश्वर


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